न्यूज़रूम सेंसरशिप: वाइस इंडिया को नहीं चाहिए अमित शाह का फोन कॉल?

एक के बाद एक तीन शीर्ष संपादकों के इस्तीफे के पीछे वाइस इंडिया में चल क्या रहा है?

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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जून 2016 में बड़े तामझाम के साथ अमेरिका की प्रतिष्ठित न्यूज़ संस्था वाइस ने भारत में अपना साझा न्यूज़ उपक्रम शुरू करने की घोषणा की थी. इस साझेदारी में दूसरा पार्टनर भारतीय मीडिया की दिग्गज कंपनी टाइम्स समूह था. टाइम्स ब्रिज के जरिए टाइम्स समूह इस तरह के कई उपक्रम शुरू कर चुका है. इसमें हफिंगटन पोस्ट के साथ हुआ करार भी शामिल है जो महज साल भर के भीतर ही अनजान संकटों से घिर गया.

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जिस तामझाम के साथ वाइस इंडिया की घोषणा हुई थी बात उतनी सरलता से आगे नहीं बढ़ पायी. वाइस की योजना टाइम्स समूह के साथ मिलकर एक टीवी चैनल और एक डिजिटल प्लेटफॉर्म शुरू करने की थी. लेकिन इस घोषणा के दो साल बाद, अब वाइस के न्यूज़रूम से जो ख़बरें आ रही हैं वो सकारात्मक नहीं हैं. वाइस की वेबसाइट अभी तक लॉन्च नहीं हुई है, टीवी चैनल के लिए लाइसेंस की अर्जी सूचना और प्रसारण मंत्रालय में अटकी हुई है. यह प्रोजेक्ट साल भर से ज्यादा देर हो चुका है. वेबसाइट जिसे एक अप्रैल से लाइव करने की योजना है, की लॉन्चिंग भी संदेह के दायरे में है. अब ख़बर है कि लॉन्चिंग 15 अप्रैल तक टाल दी गई है.

जनवरी महीने के अंत में ही वाइस डिजिटल की एडिटर इन चीफ प्रज्ञा तिवारी ने इस्तीफा दे दिया था. उनकी नियुक्ति जून 2017 में हुई थी. इसके बावजूद उनके छोड़ते समय वेबसाइट की लॉन्चिंग की दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई थी. प्रज्ञा के इस्तीफे की वजह उनके पिता की बीमारी बतायी जा रही है. उन्हें हाल ही में हार्ट अटैक हुआ है. प्रज्ञा के बाद मार्च महीने के मध्य तक मैनेजिंग एडिटर ऋषि मजूमदार और न्यूज़ एडिटर कुणाल मजूमदार ने भी अपना इस्तीफा दे दिया. तीन वरिष्ठ संपादकीय सदस्यों के इस्तीफे के बाद वेबसाइट की लॉन्चिंग अधर में लटक गई. इसके अलावा न्यूज़रूम में भी सबकुछ ठीकठाक नहीं है, इसे लेकर तमाम अटकलें और कयासबाजियां लगाई जा रही हैं.

वाइस में काम कर रहे मौजूदा संपादकीय स्टाफ और अन्य सूत्रों से जो ख़बरें बाहर आ रही हैं उसके मुताबिक संपादकीय ओर मैनेंजमेंट के बीच रिश्ते काफी ख़राब हो चुके हैं. मैनेजमेंट की तरफ से लगातार एडीटोरियल में हस्तक्षेप किया जा रहा था. सारा विवाद यहीं से शुरू हुआ.

कंपनी में काम कर रहे अलग-अलग लोग जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते, वो बताते हैं कि प्रज्ञा के वाइस से इस्तीफे के बाद एडिटोरियल और मैनेजमेंट के बीच कई तरह के टकराव पैदा हो गए थे. हालांकि इन टकरावों की शुरुआत प्रज्ञा के रहते ही हो गई थी.

जितनी बातें और दस्तावेज सामने आए हैं उन्हें एक साथ मिलाकर देखने पर तीन अहम बातें साफ होती हैं. पहला, प्रबंधन ने एडीटोरियल को बताया कि उसे अमित शाह से फोन कॉल नहीं चाहिए और कोई लीगल नोटिस नहीं चाहिए. दूसरा, एक तरफ से सभी ख़बरों की लीगल वेटिंग करवाई जा रही थी, तीसरा, कल्चरल एंड पोलिटिकल सेंसिटिविटी कमेटी का गठन करने की घोषणा मैनेजमेंट ने की थी जिसे लेकर एडीटोरियल और मैनेजमेंट के बीच विवाद था. और नतीजे में दोनों एडिटर्स ने इस्तीफा दे दिया. इन तीनों बातों में क्या सच्चाई है, हम एक-एक कर देखेंगे. न्यूज़लॉन्ड्री के पास इससे जुड़े आंतरिक मेल हैं.

क्या अमित शाह संबंधित बयान दिया गया?

वाइस के दिल्ली दफ्तर में काम कर रहे संपादकीय स्टाफ और इस्तीफा दे चुके लोगों में से एक के मुताबिक कम से कम दो मौके पर सार्वजनिक रूप से संपादकीय टीम, मुंबई स्टाफ और मार्केटिंग टीम की मौजूदगी में मैनेजमेंट की ओर से कहा गया कि उन्हें अमित शाह की तरफ से कोई फोन कॉल नहीं आना चाहिए. न ही उन्हें किसी तरह का कानूनी, कचहरी का नोटिस चाहिए.

पहली बार प्रज्ञा तिवारी के इस्तीफे से ठीक पहले, फरवरी के पहले हफ्ते में वाइस, एशिया पैसिफिक के सीईओ होसी साइमन दिल्ली आए थे. उनकी संपादकीय और मार्केटिंग टीम से बैठक हुई. उस बैठक में सार्वजनिक रूप से वाइस इंडिया की सीईओ चनप्रीत अरोड़ा ने कहा कि उन्हें अमित शाह की तरफ से कोई फोन नहीं आना चाहिए.

उस समय ज्यादातर लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि उसी समय के आस-पास प्रज्ञा ने इस्तीफा दे दिया था और लोगों का ध्यान उसी ओर चला गया था.

12 मार्च यानी डेढ़ महीने बाद एक बार फिर से संपादकीय टीम के साथ मीटिंग में मैनेजमेंट की तरफ से यह बात कही गई. सीईओ चनप्रीत अरोड़ा टेलीकॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संपादकीय टीम से मुखातिब थी. इस मीटिंग में मैनेजिंग एडिटर ऋषि मजूमदार, न्यूज़ एडिटर कुणाल मजूमदार, डेस्क हेड सोनल, और कॉपी एडिटर विवेक गोपाल के साथ अन्य एडीटोरियल स्टाफ भी मौजूद था. चनप्रीत ने कहा कि उन्हें अमित शाह की तरफ से फोन कॉल नहीं आना चाहिए ना ही उन्हें शुरुआती दिनों में किसी तरह का कोर्ट से कानूनी नोटिस चाहिए. इसी समय के आस-पास यह बात भी सामने आई कि लॉन्चिंग के लिए प्लान की गई सभी स्टोरीज़ को एक लीगल टीम द्वारा पास करवाया जाएगा. इस पर हम आगे बात करेंगे.

सीईओ की तरफ से इस बयान के बाद एडिटोरियल टीम के भीतर एक नाराजगी का माहौल बन गया. हालांकि किसी ने भी आधिकारिक तौर पर इसका विरोध किया हो यह बात हमारी जानकारी में नहीं आई है. इसके बाद सीधे ऋषि और कुणाल के इस्तीफे की ख़बर सामने आई.

कल्चरल पोलिटिकल कमेटी का सच क्या है?

वाइस एडिटोरियल टीम के सदस्यों के मुताबिक पूरी टीम को काफी समय से यह संदेश दिया जा रहा था कि पॉलिटिकल और कल्चरल सेंसिटिव ख़बरों से बचें वरना ऐसी ख़बरों की लीगल वेटिंग कराई जाएगी. वाइस के संपादकीय स्टाफ में मौजूद कई लोग इस बात को मानते हैं कि मैनेजमेंट (चनप्रीत अरोड़ा) की ओर से इस तरह के संदेश आ रहे थे. हालांकि कोई भी अपना नाम उजागर नहीं करना चाहता.

टीम के एक सदस्य के मुताबिक शुरुआत में टीम को इस तरह के संदेश मौखिक रूप से दिए गए थे जिसे लोगों ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन 10 मार्च को, जो कि शनिवार का दिन था और दफ्तर बंद था उस दिन सीईओ चनप्रीत अरोड़ा ने लीगल टीम और संपादकीय टीम के कुछ सदस्यों को एक मेल भेजा. इस मेल में पहली बार “कल्चरल पॉलिटिकल कमेटी” बनाने का आदेश सामने आया. चनप्रीत ने लिखा कि- इस टीम के लिए दो सदस्यों का नाम समीरा तय करेंगी और दो सदस्यों का नाम मैनेजिंग एडिटर ऋषि मजूमदार तय करेंगे.

10 मार्च को भेजे गए इस मेल के बाद संपादकीय टीम में नाराजगी बहुत बढ़ गई थी. क्योंकि मैनेजमेंट बिना एडिटोरियल से सलाह लिए एकतरफा अपने फैसले उन पर थोप रहा था. विशेषकर छुट्टी वाले दिन इस तरह का मेल भेजने के भी कई संदेश थे. इसके बाद सोमवार यानी 12 मार्च को दफ्तर में वह मीटिंग हुई जिसका जिक्र ऊपर किया जा चुका है, जिसमें चनप्रीत ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्हें अमित शाह की तरफ से फोन कॉल नहीं आना चाहिए. इसके अगले दिन यानी 13 मार्च को ऋषि मजूमदार ने भी अपना इस्तीफा भेज दिया. क्या ऋषि के इस्तीफे की वजह चनप्रीत द्वारा 10 मार्च को भेजे गए मेल और 12 मार्च को सार्वजनिक रूप से दिया गया अमित शाह वाला बयान था? न्यूज़लॉन्ड्री ने ऋषि से इस बारे में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया.

हालांकि 26 मार्च को ऋषि ने अपनी संपादकीय टीम के सदस्यों को एक मेल भेजा. इस मेल से उन बातों की ताकीद होती है कि चनप्रीत अरोड़ा के संपादकीय मामलों में दखल और कल्चरल पोलिटिकल कमेटी के प्रस्ताव से उन्हें दिक्कत थी. इस रिपोर्टर ने वह पूरा मेल पढ़ा है.

ख़बरों की लीगल वेटिंग का सच क्या है?

वाइस इंडिया की योजना 60 ख़बरों के साथ वेबसाइट लॉन्च करने की है. इस रिपोर्टर ने वाइस इंडिया का न्यूज़ ट्रैकर देखा है. 20 मार्च तक उनके पास 60 में से 34 स्टोरीज़ तैयार थीं. इनमें समलैंगिक अधिकारों, बीफ, बजरंग दल आदि से जुड़ी कहानियां थी.

यहां हम उन कहानियों का विस्तार से जिक्र नहीं कर सकते. सभी 34 कहानियों के सामने लीगली वेटेड का ग्रीन टैग लगा हुआ था. यानी कि वाइस अपनी सभी कहानियों को कानूनी तौर पर परख कर ही प्रकाशित करने की नीति पर काम कर रहा है.

वाइस संपादकीय टीम के एक स्टाफ ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “सभी स्टोरी को एक लीगल एक्सपर्ट के पास भेजा जाता है. वह इन पर अपनी राय और सुधार भेजता है. इसके बाद ही वह स्टोरी फाइनल मानी जाती है.”

यहां कई सवाल खड़े होते हैं मसलन क्या किसी मीडिया संस्थान में एक सिरे से सभी स्टोरी को लीगली वेट करना संभव है? हर स्टोरी से कोई न कोई नाराज़ होता है, ऐसे में लीगल टीम के पास हर स्टोरी को गिराने या सुधारने का कुछ न कुछ तर्क होगा. क्या पत्रकारिता पर वो तर्क लागू होते हैं? क्या एक मीडिया हाउस ऐसा कर सकता है? और इससे भी जरूरी सवाल वाइस इंडिया का अपने एडिटोरियल स्टाफ पर इतना अविश्वास क्यों है?

ये सब ऐसे सवाल हैं जिन पर हम आगे बात करेंगे लेकिन यह स्थिति कैसे बनी वह जानना ज्यादा जरूरी है. कैसे लीगल वेटिंग की शुरुआत हुई.

पहले पहल तीन स्टोरी थी जिन पर मैनेजमेंट को आपत्ति थी. उसने अपनी लीगल टीम से उन तीनों के बारे में सलाह मांगी. ये तीनों स्टोरीज़ इस तरह हैं-

1- दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में आज भी बीफ (बफ नहीं) परोसा जाता है. इसका स्रोत होटल का शेफ है.

2- दिल्ली में ‘गे’ स्पा.

3- एबीवीपी का गे कार्यकर्ता.

एडीटोरियल टीम के एक सदस्य के मुताबिक इनमें से दो स्टोरी इस्तीफा दे चुके न्यूज़ एडिटर कुणाल मजूमदार की थीं. इन्हें सबसे पहले लीगल वेटिंग के लिए चुना गया. वाइस ने मयंक मुखर्जी नाम के कानूनी सलाहकार के पास ये स्टोरीज़ भेजीं.

मयंक ने तीनों स्टोरीज़ में कई सुधार सुझाए जिसे लेकर एडिटोरियल के अंदर असंतोष पैदा था. पहली स्टोरी पर मयंक की राय थी कि- “यह सार्वजनिक प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने वाला कंटेंट है क्योंकि इस इंटरव्यू के लिए जरूरी दस्तावेज चाहिए होगा.”

दूसरी स्टोरी पर मयंक की प्रतिक्रिया- “पूरा लेख राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है. यह धारा 377 का उल्लंघन है. इसके बदले में सोर्स को उजागर करने का दबाव आ सकता है.”

तीसरी स्टोरी पर मयंक की प्रतिक्रिया- “शीर्षक में से एबीवीपी का नाम हटाया जाना चाहिए. पूरा लेख ही राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है, जिन पार्टियों के नाम इसमें हैं, वे हिंसक बवाल मचा सकते हैं.”

इतना ही नहीं वाइस के मैनेजमेंट ने एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि स्टोरी ट्रैकर का एक्सेस लीगल टीम के सदस्य मयंक मुखर्जी को दे दिया जाय. यहां जान लें कि स्टोरी ट्रैकर क्या है- स्टोरी ट्रैकर दरअसल एक ऑनलाइन एक्सेल फाइल होती है जिसमें हर स्टोरी का लेखा-जोखा दर्ज होता है. उसका स्टेटस, प्रकाशित है या अप्रकाशित, एडिटेड है या नहीं, इमेज का स्टेटस क्या है, कब प्रकाशन के लिए शेड्यूल है आदि. जाहिर सी बात है कि यह संपादकीय टीम की निगरानी में रहता है. हर न्यूज़रूम में इस तरह की व्यवस्था होती है जिसे अलग-अलग नामों से जानते हैं. कोई भी पत्रकारिता संस्थान इसकी पहुंच संपादकीय टीम के बाहर के सदस्यों को नहीं देता क्योंकि इससे स्टोरीज़ और उनकी गोपनीयता के लीक होने का ख़तरा रहता है. फिर भी वाइस मैनेजमेंट ने इस तरह का आदेश जारी किया.

इन तमाम टकरावों ने मिलकर अंतत: ऐसी स्थिति पैदा कर दी जिसमें आज पूरा वाइस डिजिटल ही बिखराव के कगार पर नज़र आ रहा है. पहले इसे एक अप्रैल को लॉन्च होना था अब ख़बरें आ रही हैं कि इसे आगे बढ़ाकर 15 अप्रैल कर दिया गया है.

वाइस इंडिया द्वारा इस हद तक लीगल वेटिंग और संपादकीय टीम पर दबाव की क्या वजहें हो सकती है. एक सच यह भी है कि वाइस टाइम्स ग्रुप के साथ मिलकर टीवी चैनल शुरू करने वाला था. लेकिन केन की एक स्टोरी के मुताबिक यह प्रस्ताव सूचना और प्रसारण मंत्रालय में अटका हुआ है. वाइस का टीवी प्रोजेक्ट साल भर से ज्यादा देर हो चुका है. एक सुगबुगाहट यह भी है कि इस लाइसेंस के चक्कर में वाइस फिलहाल ऐसी कोई स्टोरी नहीं करना चाहता जो मौजूदा सरकार और उसकी पॉलिटिकल कल्चरल सेंसिटिविटी को प्रभावित करती हो. वरना इस बात को मानने की कोई वजह नहीं है कि जो वाइस अमेरिका में आए दिन डोनल्ड ट्रंप के खिलाफ ख़बरें करता है, समलैंगिक अधिकारों से जुड़ी कहानियां प्रसारित करता है वह भारत में अपने न्यूज़रूम में संपादकीय टीम पर इस तरह का सेंसर थोपे.

इन तमाम परिस्थितियों और सवालों के जवाब सिर्फ दो लोग दे सकते थे- वाइस इंडिया की सीईओ चनप्रीत अरोड़ा और अंतरिम एडिटर अंकिता राव. न्यूज़लॉन्ड्री ने दोनों से इस बारे में एक विस्तृत मेल भेजकर उनका पक्ष जानना चाहा. 25 मार्च को भेजे गए मेल का चनप्रीत अरोड़ा ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है. अंकिता अरोड़ा ने कुछ भी बात करने से मना कर दिया. चनप्रीत अरोड़ा का जवाब मिलने पर हम एक बार फिर से इस स्टोरी को अपडेट करेंगे.

ये रहे चनप्रीत अरोड़ा को भेजे गए सवाल-

1- I learnt from at least 3 different sources that the editorial staff, in a teleconference meeting, on 12th March, was directed that a phone call from Amit Shah was not looked forward to. Any legal notice in initial days of launch was not looked forward to. How much truth does the statement bear?

2- What was the response of the editorial team towards this?

3- Are there any specific trigger points that led to conveying such a message to the editorial staff?

4- I also learnt from trusted sources that Vice India has been legally wetting all of its stories that have been prepared for the launch. Does this bear any truth? Also is it possible to hamper stories like this?

5- Why is the Vice India management so sceptical towards its editorial staff?

6- Do you think that your initial editorial staff was not mature enough or lacked experience?

7- In your opinion, can such a situation between the management and editorial establish a healthy newsroom, especially when you are putting forward your first step in the country?

8- Vice US is famous for its Anti-establishment stories and modern, progressive approach towards people, life and society. The aim in the country here is different. Why such censorship here?

9- According to Ken Story, Vice has a plan to launch a TV Channel in collaboration with the Times group. But the license has not been issued by the I&B Ministry and has been delayed for over a year. Is this a probable reason to issue such guidelines to the editorial?

अगर ये आरोप और स्थितियां सच हैं तो फिर एक सवाल वाइस से भी पूछा जाना चाहिए- सत्ताधारी वर्ग के खिलाफ ख़बरें सेंसर करने वाले मीडिया संस्थान की विश्वसनीयता क्या होगा?

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