एनएल चर्चा 36: राहुल गांधी का बयान, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी, आतिशी ‘मार्लेना’ व अन्य

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राहुल गांधी का 1984 दंगों के संबंध में बयान (जिसमें उन्होंने कहा कि 1984 दंगों में पार्टी के स्तर पर कांग्रेस की संलिप्तता नहीं थी), भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का मालदीव चुनावों के संबंध जारी ट्वीट (मालदीव चुनावों में अगर किसी प्रकार की धांधली होती है, तो भारत सरकार को मालदीव पर हमला कर देना चाहिए), देश भर में मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां, आप नेत्री आतिशी मार्लेना के नाम में बदलाव आदि रहे इस हफ्ते की न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के मुख्य विषय.

स्वतंत्र पत्रकार नेहा दीक्षित इस हफ्ते चर्चा की अतिथि थीं. पैनल में न्यूज़लॉन्ड्री संवाददाता अमित भारद्वाज और राहुल कोटियाल भी मौजूद थे. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले कहा कि, कांग्रेस पार्टी 1984 के दंगों में शामिल नहीं थी. राहुल के इस बयान के बाद उनकी कटु आलोचना हो रही है.

अतुल ने राहुल के बयान के संबंध में कहा, “हम दंगों की बात आते ही हमेशा ‘तब क्यों नहीं कहा, अब क्यों कहा’ (वाट्बाउट्री) के चक्करों में उलझ जाते हैं. 1984 की बात होती है तो 2002 का जिक्र आगे कर दिया जाता है. राहुल गांधी आज 1984 कें दंगों में कांग्रेस की भूमिका नकार रहे हैं. खुद 2005 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन दंगों के लिए माफी मांगी थी.”

अतुल आगे जोड़ते हैं, “यह भी एक विडंबना है कि सिखों के खिलाफ हुए दंगों के लिए कांग्रेस की तरफ से माफी भी एक सिख ने मांगी. उसके पीछे भले ही कांग्रेस के शीर्ष परिवार (गांधी परिवार) की भूमिका रही हो, लेकिन राहुल का यह बयान बताता है कि अभी भी वह परिवार 1984 के दंगों की किसी भी जवाबदेही से बचना चाहता है.”

राहुल के बयान की आलोचना करते हुए नेहा दीक्षित ने कहा, “लॉ एंड ऑर्डर किसकी जिम्मेदारी है? वह केन्द्र व राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. अगर किसी की भी सरकार में दंगे हो रहे हैं, चाहे वो सामाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुआ मुजफ्फरनगर का दंगा हो, भाजपा सरकार के दौरान 2002 का गुजरात दंगा हो या कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में 1984 का सिख दंगा हो- उसकी जिम्मेदारी वहां की सरकार की ही बनती है.”

अतुल ने पैनल का ध्यान ‘गवर्नमेंट ऑर्गनाइज़ कार्नेज’ नाम की किताब की ओर दिलाया. अतुल के अनुसार इस किताब में 1984 के दंगों का पूरा दस्तावेजीकरण है. ये दस्तावेज बताते हैं कि कांग्रेस का काडर इन दंगों में ऊपर से नीचे तक संलिप्त था. मुजफ्फरनगर का दंगा 1984 से बस इस मामले में भिन्न है कि वहां सपा की संलिप्तता काडर के स्तर पर नहीं थी. वह उनकी प्रशासनिक असफलता ज्यादा थी.

नेहा दीक्षित की बात का समर्थन करते हुए राहुल कोटियाल ने कहा, “इसमें कोई दो-मत नहीं कि दंगों की जिम्मेदारी सरकारों की है. यह भी अहम है कि दंगों के दौरान राज्य सरकार प्रशासन को किस तरह के निर्देश देती है. 2002 दंगों के लिए नरेन्द्र मोदी की बतौर मुख्यमंत्री इसलिए आलोचना होती क्योंकि प्रशासन को देरी से निर्देश दिया गया. अगर आप सजाओं की तुलना में 2002 और 1984 को देखें तो 2002 की कन्विक्शन दर ज्यादा है. 2002 के दंगों में कई कद्दावर लोगों को सजाएं भी मिली. लेकिन 1984 में उस तरह की सजाएं अबतक देखने को नहीं मिल सकी हैं.”

अमित भारद्वाज के मुताबिक राहुल गांधी को खुलकर 1984 के बारे में बात करनी चाहिए और पार्टी की भूमिका के लिए माफी मांगनी चाहिए. “जब आप अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर नफरत खत्म करने की बात करते हैं, तो आपको 1984 के बारे में भी खुलकर बात करना चाहिए. जिन नेताओं की संलिप्तता उन दंगों में बताई जा ही थी, सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर, एचकेएल भगत और कमलनाथ, उन्हें कुछ नहीं हुआ. कमलनाथ तो आज मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी के तौर पर कांग्रेस की कमान संभाले हुए हैं.”

पूरी बातचीत सुनने के लिए सुनें न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा.

पत्रकारों की राय, क्या पढ़ा, देखा या सुना जाए-

नेहा दीक्षित

फिल्म: फैंड्री

अतुल चौरसिया

किताब: गर्वन्मेंट ऑर्गनाइज़ड कार्नेज

राहुल कोटियाल

अमित भारद्वाज

फिल्म: कोर्ट

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