मुंबई अस्पताल की आग और 10 लोगों की मौत, दोनों टल सकती थी

एक साल के भीतर ही मुंबई के ईएसआईसी अस्पताल में आग लगने की 4 घटनाएं हुई लेकिन स्थितियां जस की तस बनी रहीं.

WrittenBy:राहुल कोटियाल
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

“ये हादसा आज नहीं तो कल होना ही था. अस्पताल प्रशासन भी ये बात जानता था लेकिन फिर भी किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई. हम लोगों ने कई बार शिकायत दर्ज की थी और बताया था कि यहां कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. वो तो अच्छा हुआ कि आग ओपीडी बंद होने के बाद लगी. अगर यही आग दो-ढाई घंटे पहले लगी होती तो सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती.” मुंबई के ईएसआईसी अस्पताल के यह कर्मचारी आगे बताते हैं, “इस अस्पताल में आग लगने की न तो यह पहली घटना है और न ही आखिरी. इसी साल अस्पताल में कई बार आग लग चुकी थी, लेकिन प्रशासन की ओर से फिर भी कोई कदम नहीं उठाया गया.”

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
imageby :

बीते हफ्ते मुंबई के ‘कर्मचारी राज्य बीमा निगम’ यानी ईएसआईसी अस्पताल में आग लगने से दस लोगों की मौत हो गई. इस हादसे में सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं जिनका मुंबई के अलग-अलग अस्पतालों में उपचार किया जा रहा है. मौके पर मौजूद रहे लोगों के अनुसार यह आग ग्राउंड फ्लोर पर चल रहे निर्माण कार्य के दौरान लगी. यहां वेल्डिंग का काम चल रहा था जिसके पास में ही रबर की कुछ शीट रखी थीं. इन्हीं शीट में आग लगने के कारण यह भीषण हादसा हुआ.

imageby :

इस घटना के चश्मदीद बताते हैं कि यह आग ज़्यादा भीषण नहीं थी और आग ने इतना नुकसान नहीं किया जितना नुकसान इसके धुएं ने किया. चूंकि यह आग एयर कंडिशनर के डक के पास लगी थी लिहाज़ा यह धुंआ तेज़ी से पूरी बिल्डिंग में फैल गया और कुछ लोगों की मौत दम घुटने से हो गई. इसके अलावा कुछ लोगों को इसलिए भी जान गंवानी पड़ी क्योंकि वे आग से बचने के लिए तीसरी-चौथी मंज़िल से कूद पड़े थे.

imageby :

अस्पताल के ही एक कर्मचारी जो मौक़े पर मौजूद थे, बताते हैं, “यही आग अगर दो घंटे पहले लगी होती तो मरने वालों की संख्या सैकड़ों में होती. क्योंकि दिन में ओपीडी खुलती है और तब यहां लोगों की भारी भीड़ होती है. ऐसे में अगर उस वक़्त आग लगने से अफ़रा-तफ़री मची होती तो न जाने कितने लोगों की जान जाती. शाम तक भीड़ काफ़ी कम हो जाती है. इसके बावजूद दस लोग इस हादसे में मारे गए. ये पूरी तरह प्रशासन की लापरवाही के कारण हुआ है.”

अस्पताल के कई कर्मचारी बताते हैं कि जिस लापरवाही के साथ पिछले कई सालों से यह अस्पताल चलाया जा रहा था, उसमें ऐसे हादसों की गुंजाइश लगातार बनी ही रहती थी.

अस्पताल की लैब में कार्यरत एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “इसी साल 20 मार्च को अस्पताल के ब्लड बैंक में आग लगी थी और एक आदमी की जान जाते-जाते बची थी. इसके बाद हमने प्रशासन को लिखित में यह बताया था कि अस्पताल में कुछ सुधार तत्काल किए जाने की जरूरत है. स्टाफ से लेकर सुरक्षा तक में यहां कई अनियमितताएं हैं. ब्लड बैंक में तो आपात एग्जिट तक नहीं है और आग बुझाने के लिए जो उपकरण यहां रखे हैं वो इतने पुराने हो चले हैं कि अब किसी काम के नहीं हैं. लेकिन इन शिकायतों पर कान धरने के बजाय प्रशासन ने उस घटना को नजरअंदाज कर दिया.”

imageby :

ब्लड बैंक में लगी इस आग के कुछ ही महीनों बाद ईएसआईसी अस्पताल के किचन में भी आग लगने की घटना हुई. लेकिन इस हादसे को भी इतना हल्के में लिया गया कि आपात स्थिति से बचने के कोई उपाय इसके बाद भी नहीं किये गए.

स्थिति यह थी कि अस्पताल में बीते कई सालों से न तो कोई फायर ऑडिट हुई थी और न ही फायर एनओसी ली गई थी. बीते छह सालों से इस अस्पताल में काम कर रहे एक कर्मचारी बताते हैं, “मेरी नियुक्ति से पहले से इस अस्पताल में निर्माण कार्य चल रहा है. इस निर्माण को लगभग दस साल होने को हैं लेकिन यह अब तक पूरा नहीं हुआ है. इस निर्माण के चलते पूरे अस्पताल में ही अव्यवस्था फैली हुई हैं. कहीं निर्माण का सामान बिखरा रहता है और कहीं टॉयलेट और पीने के पानी जैसी मूलभूत ज़रूरतों की भी व्यवस्था अधूरी है. अस्पताल एडमिनिस्ट्रेशन से इस बारे में बात करो तो उनका यही जवाब होता है कि अभी निर्माण कार्य चल रहा है इसलिए दिक़्क़तें हैं, जल्द ही यह कम हो जाएंगी. लेकिन दस साल बाद भी यह निर्माण अधूरा ही है.”

ईएसआईसी अस्पताल कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष स्वर्णव बनर्जी कहते हैं, “बीते सोमवार को हुए हादसे में अस्पताल प्रशासन की नहीं बल्कि एनबीसीसी और सुप्रीम कन्स्ट्रक्शन जैसी कंपनियों की ग़लती है. निर्माण कार्य की ज़िम्मेदारी इन्हीं के ऊपर है और इसमें अस्पताल प्रशासन की कोई भूमिका नहीं है. यह हादसा निर्माण कार्य में होने वाली लापरवाही के चलते ही हुआ है.”

वे आगे कहते हैं, “पूरे अस्पताल में जहां-तहां निर्माण कार्य में लगने वाला सामान डम्प किया गया है. जहां वेल्डिंग का काम चल रहा है उसके पास ही ऐसे पदार्थ रखे गए हैं जो हल्की सी चिंगारी लगने से ही आग पकड़ सकते हैं. यह हादसा भी ऐसी ही लापरवाही के चलते हुआ.”

imageby :

हालांकि अस्पताल के कई कर्मचारी स्वर्णव की बातों से इत्तेफ़ाक नहीं रखते और प्रशासन को इस घटना के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं. एक कर्मचारी कहते हैं, “कई ग़लतियां इन कंपनियों की हो सकती हैं लेकिन फ़ायर ऑडिट करवाना, एनओसी लेना, बिजली की सही वायरिंग करवाना और आग बुझाने के साधनों की व्यवस्था दुरुस्त रखना तो अस्पताल प्रशासन का ही काम है. इनमें से कुछ भी प्रशासन ने ठीक से नहीं किया था.”

सोमवार को हुई भीषण घटना के दो दिन बाद ही एक बार फिर ईएसआईसी अस्पताल में आग लग चुकी है. हालांकि इस दूसरी घटना में कोई भी घायल नहीं हुआ है लेकिन यह प्रशासन की लापरवाही की ओर इशारा ज़रूर करती है. कर्मचारियों के अनुसार अस्पताल में हुई नियुक्तियों में भी लगातार अनियमितताएं बरती जाती हैं और टेक्निकल पदों पर भी ऐसे लोगों को नियुक्त किया गया है जिनके पास न्यूनतम आवश्यक योग्यताएं भी नहीं हैं. ऐसी कई नियुक्तियों को न्यायालय में चुनौती भी दी गई हैं और कुछ मामलों में न्यायालय ने इन नियुक्तियों को रद्द भी किया है.

ईएसआईसी अस्पताल के ब्लड बैंक में कार्यरत एक कर्मचारी बताते हैं, “यहां अधिकतर नियुक्तियां ऐसी हैं कि आठवीं पास व्यक्ति को टेक्निकल पदों पर नियुक्त कर दिया गया है, पदोन्नति के माध्यम से. जबकि ऐसी पदों पर डिप्लोमा आवश्यक होता है. ऐसा स्टाफ़ आपात स्थिति से निपटने में तो अक्षम है ही साथ ही रोज़ के तकनीकी कार्यों को करने के भी योग्य नहीं है.” अनियमितताओं और लापरवाही से जुड़े इन आरोपों के जवाब लेने के लिए न्यूज़लॉंड्री ने अस्पताल प्रशासन से संपर्क करने की कई कोशिशें की लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया. ईएसआईसी अस्पताल प्रशासन यदि ख़ुद पर लग रहे इन आरोपों में अपना पक्ष रखता है तो उसे इस रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा.

imageby :
imageby :
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like