क्यों धारा 370 पर आरटीआई का जवाब देने से कतरा रहा पीएमओ?

धारा 370 पर भाजपा के 5 साल ऐसे जैसे ‘नाम बड़े और दर्शन देंगे ही नहीं.

WrittenBy:हृदयेश जोशी
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भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जारी अपने घोषणापत्र के साथ ही जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी धारा 370 को अपने चुनावी वादे का प्रमुख मुद्दा बनाया था. ऐसे में जब भाजपा संविधान की इस धारा को लेकर इतनी संवेदनशील है और भाजपा के साथ ही संघ परिवार के लोग भी इसे लेकर समय-समय पर बयानबाज़ी करते रहते हैं तब यह सवाल लाजिमी हो जाता है कि इसे लेकर सरकार के स्तर पर आखिर किया क्या जा रहा है. लगभग पांच साल तक पूर्ण बहुमत वाली सरकार चलाने के दौरान इस मुद्दे पर मोदी सरकार की क्या प्रगति रही?  यह सवाल पूछने पर मोदी  सरकार चुप्पी साध लेती है.

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पिछले साल जुलाई में धारा 370 को लेकर एक आरटीआई लगाई गई तो प्रधानमंत्री कार्यालय ने उस अर्ज़ी को खारिज कर दिया और कोई जानकारी नहीं दी. फिर एक और आरटीआई लगाई गई और उसके बाद प्रथम अपील अधिकारी ने आदेश दिया कि इस संबंध में याची को सूचना मुहैया करवाई जाए. फिर भी अब तक सरकार ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. इस आरटीआई में धारा 370 को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ हुये सभी पत्राचार और  फाइल नोटिंग के बारे में पूछा गया था.

धारा 370 को खत्म करना शुरू से ही भाजपा और संघ परिवार का एजेंडा रहा है. सोमवार को भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से धारा 370 के खिलाफ याचिका की जल्द सुनवाई की मांग की है और इसे “अत्यधिक राष्ट्रीय महत्व” की याचिका बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मांग पर जल्द विचार करेगा.

संविधान की धारा 370 जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देती है. राज्य में नागरिकों के मूल अधिकारों और ज़मीन जायदाद को लेकर अलग नियम कानून हैं और दूसरे राज्य के लोगों के लिये सूबे में संपत्ति खरीदने पर प्रतिबंध है. मुख्य धारा और सोशल मीडिया पर भाजपा सांसद और मंत्री धारा 370 को लेकर लगातार बोलते रहे हैं.

लेकिन धारा 370 को लेकर एक दिलचस्प मामला उस आरटीआई का है जो पिछले साल 30 जुलाई को  सूचना अधिकार कार्यकर्ता नीरज शर्मा ने लगाई थी. इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय से 2014 से 2018 के बीच धारा 370 को हटाने को लेकर हुई प्रगति और पत्राचार के बारे में पूछा गया. इस आरटीआई में प्रधानमंत्री की फाइल नोटिंग, अधिकारियों को दिशानिर्देश और दूसरे मंत्रालयों द्वारा किये गये फॉलोअप को लेकर भी सवाल थे.

सरकार ने इस आरटीआई पर कोई जानकारी नहीं दी और जवाब में कहा कि प्रार्थी ने पत्राचार की कोई स्पष्ट तारीख नहीं बताई है और जानकारी बहुत सरसरी तौर पर मांगी गई है और अगंभीर है.

आरटीआई कार्यकर्ता शर्मा ने पीएमओ से यह सवाल भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के 20 जून, 2018 को किये गये ट्वीट के बाद पूछे थे. इस ट्वीट में स्वामी ने कहा था, “मैंने संविधान सभा में हुई बहस की फोटोकॉपी और अपने क़ानूनी तर्कों के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय को एक नोट भेजा है कि किस तरह संसद की सहमति के बिना राष्ट्रपति के आदेश द्वारा धारा 370 को खत्म किया जा सकता है.”

स्वामी का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर काफी चला. इसे 16 हज़ार से अधिक लोगों ने लाइक किया और 6600 से अधिक लोगों ने इसे रीट्वीट किया. स्वामी ने अपने इस ट्वीट में जम्मू कश्मीर में धारा 370 खत्म करने के लिये मध्य सितंबर (2018) तक का समय सुझाया.

शर्मा कहते हैं कि उन्होंने 7 अक्टूबर, 2018 को एक दूसरी आरटीआई लगाई जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय से स्वामी के ट्वीट का हवाला देकर एक बार फिर सवाल पूछे गए. आरटीआई में पूछा गया कि स्वामी के कहे मुताबिक क्या कोई पत्राचार पीएमओ को प्राप्त हुआ है. उनके भेजे नोट और दस्तावेज़ों के अलावा इस बारे में सम्बद्ध विभागों और मंत्रालयों के फीडबैक को लेकर जानकारी मांगी गई थी.

पीएमओ की ओर से 6 नवंबर को एक अंतरिम जवाब में कहा गया कि इस बारे में जानकारी इकट्ठा की जा रही है.

लेकिन जब कोई सूचना नहीं दी गई तो आवेदनकर्ता ने सूचना अधिकार कानून के तहत प्रथम अपील अधिकारी के आगे आवेदन किया. उस आवेदन पर प्रथम अपील अधिकारी ने 30 दिसम्बर को आदेश जारी किया और सूचना अधिकारी से कहा कि 15 दिन के भीतर अपीलकर्ता को जवाब दिया जाए. लेकिन उस आदेश के 50 से अधिक दिन बीच जाने के बाद भी सरकार ने अब तक कोई जानकारी नहीं दी है.

शर्मा ने बताया, “भाजपा के नेता और मंत्री सोशल मीडिया पर अक्सर इसे लेकर बयान देते हैं लेकिन मुझे यह तक पता नहीं चला है कि भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी के साथ ऐसा कोई पत्राचार किया भी है जिसके बारे में उन्होंने अपने ट्वीट में कहा था.”

वैसे प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जानकारी मांगने पर न देना और टालना एक सिलसिला बन गया है. कई अन्य मामलों में भी जानकारी मांगने पर यही जवाब मिलता है.

सतर्क नागरिक संगठन की अंजलि भारद्वाज जिन्होंने आरटीआई कानून पर भी काफी काम किया है वह कहती हैं, “हम यह देख रहे हैं कि जो सूचना दी जानी होती है उसे या तो लोगों को बहुत देरी से दिया जा रहा है या बिना कोई वजह दिये मना कर दिया जाता है जो कि गैरकानूनी है. यह कहना कि इसे (जानकारी को) इकट्टा करने में समय लग रहा है… इस तरह की चीजें नहीं होनी चाहिये. कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. 30 दिन के भीतर सूचना देनी होती है और पीएमओ ऐसा नहीं कर सकता कि वह जानकारी न दे.”

सरकार जानकारी दे या न दे लेकिन भाजपा भावनात्मक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे की अहमियत समझती है और समय समय पर इसका इस्तेमाल करती है. पिछले लोकसभा चुनावों से पहले इस मामले को गरमाते हुये खुद नरेंद्र मोदी ने कहा था, “मुझे खुशी है कि धारा 370 पर बहस की मेरी अपील के बाद अब टीवी और सोशल मीडिया समेत लोगों के बीच इसे लेकर व्यापक चर्चा हो रही है.”

फिर लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में लाने के साथ भाजपा ने जम्मू कश्मीर राज्य विधानसभा चुनावों में भी इसे गरमाया लेकिन जब पीडीपी के साथ उन्हें राज्य में सरकार बनानी पड़ी तो नरेंद्र मोदी ने महबूबा मुफ्ती को “100 प्रतिशत” भरोसा दिया कि धारा 370 से छेड़छाड़ नहीं होगी.

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