योगी का गोरखपुर : ‘मठ’ के ऊपर ‘नट’ को बिठाने की सियासत

योगी आदित्यनाथ ने अभी तक भोजपुरी अभिनेता रवि किशन के लिए प्रचार क्यों नहीं किया?

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भोजपुरी अभिनेता रवि किशन उर्फ़ रवींद्र नारायण शुक्ला ने बीते महीने 23 अप्रैल के दिन गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से अपना नामांकन दाखिल कर दिया था. उम्मीद लगायी जा रही थी कि नामांकन भरवाने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी साथ में जायेंगे, लेकिन उन्होंने अपनी तरफ़ से नामांकन में न जाने का फैसला किया, जिसके बाद अटकलें तेज हो गयीं कि योगी पार्टी के चयन से नाखुश हैं. साल 2014 में कांग्रेस के टिकट से रवि किशन ने जौनपुर सीट से चुनाव लड़ा था, जिसमें वह हार गये थे, लेकिन 2017 में वह भारतीय जनता पार्टीं में शामिल हो गये.

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51 साल के रवि किशन द्वारा नामांकन दाखिल करने के इतने दिनों बाद भी योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में अब तक कोई रोड शो या रैली नहीं की है. योगी आदित्यनाथ पांच बार गोरखपुर से सांसद रह चुके हैं, साथ ही वह गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं. योगी आदित्यनाथ ने दो बार अपने गृहनगर का दौरा किया और दो सभाओं में भाग लिया, तब भी योगी ने रोड शो या रैली नहीं की. गोरखपुर में 19 मई को मतदान होना है.

रवि किशन की रैलियों से आदित्यनाथ की गैर-मौजूदगी ने उन कयासों को हवा दे दी कि या तो उन्होंने रवि किशन को नहीं चुना है या फिर मुख्यमंत्री को उस क्षेत्र में पार्टी की जीत को लेकर कोई चिंता नहीं है, जहां से उन्होंने दो दशक तक प्रतिनिधित्व किया है.

हालांकि, इस अनुमान के विपरीत, बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने ज़ोर देकर कहा कि किशन आदित्यनाथ द्वारा चुने गये हैं. उनका कहना है कि, “योगी जी अपनी चुनावी सभाओं में व्यस्त हैं, लेकिन अगले कुछ दिनों में गोरखपुर में चुनाव प्रचार करेंगे.”

इस बीच, रवि किशन ने आदित्यनाथ की अनुपस्थिति के बारे में बात की. अपना नामांकन दाखिल करने के बाद रवि किशन ने कहा, “महाराज जी मुझे नामांकन के दौरान आशीर्वाद देने वाले थे, लेकिन पहले से व्यस्त होने के कारण वह नहीं आ सके’’. रवि किशन ने यह भी कहा कि “वह आदित्यनाथ की खड़ाऊं (लकड़ी की चप्पल) रखकर लोगों की सेवा करेंगे.

मार्च 2018 में हुए उपचुनाव में बीजेपी इस प्रतिष्ठित सीट पर समाजवादी पार्टी से हार गयी थी. योगी आदित्यनाथ द्वारा सीट से हट जाने के बाद इस सीट पर फिर से चुनाव करवाये गये थे. तीन दशक में ऐसा पहली बार हुआ है, जब भाजपा ने गोरखनाथ मठ का उम्मीदवार इस सीट के लिए नहीं चुना. मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव योगी के लिए एक चुनावी परीक्षण था, जिसमें उनको असफलता प्राप्त हुई. इस परिणाम को मठ में कम होती उनकी प्रासंगिकता के रूप में भी देखा गया था.

कुछ भाजपा नेताओं का मानना ​​है कि आदित्यनाथ गोरखपुर में किसी और प्रत्याशी को मजबूत नहीं देखना चाहते हैं. यही कारण है कि उन्होंने एक गैर-राजनीतिक उम्मीदवार को चुना है, जो इस शहर से भी नहीं है. हालांकि, रवि किशन कहते हैं कि इस जिले से उनकी जड़ें जुड़ी हुई हैं. भाजपा के नेताओं के अनुसार हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय, योगी आदित्यनाथ के लिए यह जीत बहुत महत्वपूर्ण है, जिन्हें भविष्य के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में भी देखा जा रहा है.

गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह इस बात से सहमत हैं कि “गोरखपुर में एक बार फिर हारने से न केवल राज्य में योगी की शक्ति कम हो जायेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उनकी उम्मीदवारी की संभावनाओं को भी नुकसान होगा. इसलिए वह अपने गृह क्षेत्र में भाजपा की जीत सुनिश्चित करेंगे.”

शैक्षणिक योग्यता पर है विवाद

चुनाव आयोग ने रवि किशन के ख़िलाफ़ उनकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर शिकायत दर्ज़ की है. रवि किशन जब साल 2014 में कांग्रेस की ओर से चुनाव में उम्मीदवार थे, तब उन्होंने हलफ़नामे में बीकॉम की पढ़ाई बतायी थी, जबकि अभी के हलफ़नामे में 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई को उन्होंने अपनी सर्वोच्च शिक्षा बताया है.

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(रवि किशन का 2014 का हलफ़नामा)

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(रवि किशन का 2019 का हलफ़नामा)

रवि किशन का चुनावी हलफ़नामा बताता है कि वह मुंबई के निवासी हैं, शादीशुदा हैं और उनके चार बच्चे हैं. किशन और उनके परिवार के पास 21 करोड़ की संपत्ति है, जिसमें दो कॉमर्शियल अपार्टमेंट, मुंबई और पुणे में छह फ्लैट, मर्सिडीज बेंज, बीएमडब्ल्यू, जगुआर कार और एक हार्ले डेविडसन बाइक शामिल है.

क्या रवि किशन पर दांव लगाना सही फैसला है?

उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा 2018 के उपचुनाव के विजेता प्रवीण कुमार निषाद (निषाद पार्टी के सर्वेसर्वा जिन्होंने सपा के टिकट पर चुनाव जीता था, लेकिन अब भाजपा में शामिल हो गये हैं) या उपचुनाव में हारे उपेंद्र शुक्ला को टिकट देगी. लेकिन पार्टी ने इसके बदले रवि किशन को चुना.

इस निर्णय को एक तीर से कई निशाने लगाने के रूप में भी देखा जा रहा है. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं- “पहली बात यह है कि रवि किशन को चुनकर बीजेपी के भीतर के असंतोष को शांत किया गया है. दूसरा, रवि किशन एक गैर-राजनीतिक व्यक्ति हैं और इसलिए, पार्टी में सभी गुटों का समर्थन प्राप्त कर सकते हैं. तीसरा, रवि किशन अभिनेता हैं. अगर वह जीतते हैं, तो ज़्यादातर मुंबई या दिल्ली में पड़े रहेंगे. इसलिए वह कभी भी योगी के लिए ख़तरा नहीं बनेंगे.”

इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक एसके द्विवेदी की राय सबसे अलग है. वह कहते हैं कि “राजनीति में एक मानक बनाये रखने के लिए, राजनीतिक दलों को चुनाव में केवल पार्टी के सदस्यों को ही मैदान में उतारना चाहिए, न कि बाहरी लोगों को, जो न तो नीतियों को समझते हैं और न ही पार्टी की विचारधारा को. ज़्यादातर अभिनेता संसद और निर्वाचन क्षेत्र दोनों से ही गायब रहते हैं. रवि किशन तो अपनी शैक्षणिक योग्यता भी नहीं जानते हैं.”

रवि किशन को हराने के लिए, समाजवादी पार्टी ने रामभुआल निषाद को लोकसभा क्षेत्र में उतारा है, जिन्होंने पिछले महीने भाजपा में शामिल हुए सांसद प्रवीण निषाद की जगह ली है. रामभुआल निषाद गोरखपुर से दो बार विधायक रह चुके हैं और समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के समर्थन से चुनावी मैदान में खड़े हुए हैं.

वहीं, कांग्रेस ने एक गैर-राजनैतिक उम्मीदवार और पेशे से वकील  मधुसूदन तिवारी (65) को मैदान में उतारा है, तिवारी पहले न तो किसी पार्टी का सदस्य रहे हैं और न ही अब तक कोई चुनाव लड़े हैं. हालांकि, त्रिकोणीय मुकाबले ने इस लड़ाई को काफ़ी दिलचस्प बना दिया है. माना जाता है कि तिवारी पूर्वी यूपी के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के क़रीबी हैं. गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी का ‘हाता’ ब्राह्मणों का गढ़ माना है, जबकि गोरखनाथ मंदिर ठाकुर समुदाय का गढ़ रहा है.

ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौतें चुनावी मुद्दा नहीं 

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कथित तौर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी के कारण अगस्त 2017 में 60 बच्चों की मौत हो गयी थी. उपचुनावों में सपा की जीत का यह एक बड़ा कारण था. इनमें से ज़्यादातर बच्चे जापानी इंसेफेलाइटिस के मरीज़ थे, जो स्पेशल वार्ड में इलाज करवा रहे थे. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उपचुनाव के दौरान इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाया था.

पूर्वी यूपी में स्थित बीआरडी अस्पताल में जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण पिछले तीन दशकों में हर साल 500-600 से अधिक बच्चों की मौत हो जाती है. आस-पास के कई जिलों में तो केवल तृतीय श्रेणी की देखभाल सुविधाएं उपलब्ध हैं. अस्पताल से जुड़े एक डॉक्टर का कहना है, “ऑक्सीजन त्रासदी या जापानी इंसेफेलाइटिस की मौत अब चुनावी मुद्दे नहीं हैं. जाति आधारित राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे चुनावी नतीजे तय करेंगे.”

इस बीच, योगी आदित्यनाथ की सरकार का दावा है कि बीच-बचाव के अनेक कार्यक्रम चलाये जाने से साल 2017 के बाद से जापानी इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या में 66 प्रतिशत की गिरावट आयी है.

वोटों का समीकरण

यहां 19.5 लाख से अधिक मतदाता लोकसभा चुनाव के सातवें व अंतिम चरण में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. निषाद समुदाय की भूमिका यहां काफ़ी महत्वपूर्ण रहेगी, क्योंकि उनकी आबादी 3.5 लाख है.

गोरखपुर में निषाद, केवट, मल्लाह और मांझी जैसी पिछड़ी जातियों की अच्छी संख्या है, जो मछली पकड़ने और नौकायन से जुड़े कार्य करती हैं. कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 30 फीसदी से अधिक की है. साल 2015 में बनी निषाद पार्टी, जों एक छोटा राजनैतिक संगठन है, चुनाव में वोटों के लिहाज़ से भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होगी. इसके अतिरिक्त, गोरखपुर में दलितों की आबादी 8.5 प्रतिशत, मुसलमानों की 14 प्रतिशत और यादवों की संख्या लगभग सात प्रतिशत है. बाक़ी आबादी ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य और कायस्थों की है.

इस चुनाव में सपा सत्ता-विरोधी लहर और जातीय समीकरणों पर निर्भर है. दूसरी ओर, भाजपा मोदी के करिश्मे, योगी आदित्यनाथ के प्रभाव और पिछले दो वर्षों में किये गये विकास कार्यों पर दांव लगा रही है. ऐसा लग रहा है कि ब्राह्मणों, ठाकुरों और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) का एक वर्ग रवि किशन को समर्थन दे सकता है. वहीं, गठबंधन के उम्मीदवार ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोटों को आकर्षित करेंगे, जबकि कांग्रेस के मधुसूदन तिवारी भाजपा के ब्राह्मण वोटों के साथ-साथ, सपा-बसपा के मुस्लिम वोट भी काटेंगे.

कांग्रेस प्रवक्ता अंशु अवस्थी कहते हैं कि “रवि किशन ख़ुद को ब्राह्मण चेहरे के रुप में पेश करना चाहते हैं, लेकिन गोरखपुर पहले ही उपचुनाव में भाजपा को नकार चुका है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद भी लोगों की परेशानियों को दूर करने में असफल रहे. अब भाजपा एक बार फिर शिकस्त की ओर बढ़ रही है.”

गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार गौरव त्रिपाठी का कहना है, “रवि किशन का अभियान धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ रहा है, और अगर योगी उनके लिए प्रचार करते हैं तो वे मोदी के नाम पर शायद जीत भी सकते हैं.”

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