मिलिट्री ख़रीद और ख़र्च का चोखा धंधा

भारत दुनिया में हथियारों और साजो-सामान का सबसे बड़ा ख़रीदार है और ख़र्च के हिसाब से चौथे पायदान पर है

WrittenBy:प्रकाश के रे
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बजट के मौसम में फिर रक्षा मद में बढ़ोतरी पर चर्चा जारी है. इस चर्चा में एक बात अक्सर कही जाती रही है कि इस मद में आवंटन (पेंशन को छोड़कर) का एक-तिहाई हिस्सा ही नये हथियारों और साजो-सामान की ख़रीद के लिए हासिल होता है. यह भी सुनने को मिलता है कि लड़ाई की हालत में सेना के पास कुछ दिन या हफ़्तों के लिए ही गोला-बारूद बचा है तथा रख-रखाव के लिए ज़रूरी चीज़ें नहीं हैं या कम हैं. चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की मौजूदगी का हवाला देकर बजट बढ़ाने और हथियार ख़रीदने की वक़ालत की जाती है. कमोबेश ऐसा ही दुनिया के ज़्यादातर देशों में देखने को मिलता है. ऐसे में मिलिट्री ख़रीद और ख़र्च को देखने का एक नज़रिया यह हो सकता है कि इससे किसको मुनाफ़ा होता है और मुनाफ़ा कमानेवाला इसे बरक़रार रखने के लिए क्या क़वायदें करता है.

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स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च (सिपरी) की रिपोर्ट के मुताबिक, हमारा देश दुनिया में हथियारों और साजो-सामान का सबसे बड़ा ख़रीदार है और ख़र्च के हिसाब से चौथे पायदान पर है. यह 2018 का आकलन है. भारत (66.5 अरब डॉलर) से ऊपर अमेरिका (649 अरब डॉलर), चीन (250 अरब डॉलर) और सऊदी अरब (67.7 अरब डॉलर) हैं. पांचवें स्थान पर फ़्रांस है, जिसने 2018 में 63.8 अरब डॉलर ख़र्च किया है. बीते पांच सालों के हिसाब पर नज़र डालें, तो रक्षा में बजट आवंटन में लगभग दोगुनी बढ़त हुई है. साल 2017 की तुलना में 2018 में जहां दुनियाभर में सैन्य ख़र्चों में 2.6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई थी, वहीं भारत में यह 6.5 फ़ीसदी (मार्च, 2019 तक) रहा था.

तीन सालों की लगातार बढ़त के साथ 2017 में दुनिया के 100 सबसे बड़े रक्षा ठेकेदारों ने 398 अरब डॉलर के हथियार बेचे थे. साल 2002 के बाद उस साल पहली बार रूस ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका के बाद सबसे बड़ा हथियार उत्पादक देश बना गया. दुनिया के सबसे बड़े रक्षा ठेकेदारों (निर्माताओं) में पांच अकेले अमेरिका में हैं. सबसे बड़े 100 ठेकेदारों के कुल धंधे का 57 फ़ीसदी अमेरिकी कंपनियों को जाता है. इस आकलन में चीनी कंपनियों का हिसाब नहीं है, क्योंकि उनकी सूचनाएं सिपरी या किसी को नहीं मिल पाती हैं.

अब आते हैं मुनाफ़े के आंकड़ों पर. दुनिया की सबसे बड़ी हथियार ठेकेदार कंपनी लॉकहीड मार्टिन अमेरिका की है और इसने 2017 में अकेले 44.9 अरब डॉलर (कुल बिक्री 51 अरब डॉलर) के हथियार बेचे थे तथा दो अरब डॉलर का मुनाफ़ा कमाया था. यह अमेरिकी सरकार का भी सबसे बड़ा ठेकेदार है. इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, यमन और अफ़्रीकी देशों में इसके बनाये हुए बम सालों से बरस रहे हैं. अमेरिकी कम्पनी बोईंग ने कुल बिक्री 93.4 अरब डॉलर की थी, जिसमें 26.9 अरब डॉलर के हथियार थे. उस साल मुनाफ़े में इसे 8.2 अरब डॉलर की कमाई हुई थी. दो अरब डॉलर के फ़ायदे के साथ अमेरिकी कंपनी रेथियोन तीसरे और 1.1 अरब डॉलर मुनाफ़े के साथ ब्रिटिश बीएइ सिस्टम चौथे स्थान पर थीं. अमेरिका की ही नॉर्थरोप ग्रुममैन ने 22.4 अरब डॉलर के हथियार बेचकर (कुल बिक्री 25.8 अरब डॉलर) दो अरब डॉलर मुनाफ़ा हासिल कर लिया था. फ़ायदे के लिहाज़ से बड़ी 20 कंपनियों में जेनरल डायनामिक्स (अमेरिका), एअरबस (यूरोप), थेल्स (फ़्रांस), लियोनार्दो (इटली), अल्माज़-एंटी (रूस), यूनाइटेड टेक (अमेरिका), एल-3 टेक (अमेरिका), हटिंगटन इंगाल्स (अमेरिका), यूनाइटेड एअरक्राफ़्ट (रूस), यूनाइटेड शिपबिल्डिंग (रूस), हनीवेल (अमेरिका), रॉल्स रॉयस (ब्रिटेन), लीडोस (अमेरिका), नेवल ग्रुप (फ़्रांस) और टेक्सट्रॉन (अमेरिका) हैं.

अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने कांग्रेस से रक्षा मद के लिए 750 अरब डॉलर की मंज़ूरी मांगी है. जानकारों के मुताबिक, अमेरिका मिलिट्री इतिहास में बहुत बड़ा बजट होगा, पर अमेरिका का कुल रक्षा ख़र्च एक ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा है. अमेरिका के बेतहाशा ख़र्च को समझने के लिए हथियार कंपनियों द्वारा लॉबिंग पर किये जाने वाले ख़र्च को देखने की ज़रूरत है.

मार्च में क्वॉर्ट्ज़ में छपी हीथर टिम्मोंस और नताशा फ़्रॉस्ट की रिपोर्ट में सेंटर फ़ॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स के हवाले से बताया गया है कि बोईंग ने 1998 से 2018 तक 275 मिलियन डॉलर लॉबिंग पर ख़र्च किया है. साल 2018 में यह ख़र्च 15.1 मिलियन डॉलर रहा था. इस ख़र्च का बड़ा हिस्सा हाउस ऑफ़ रेप्रेज़ेंटटिव और सीनेट के उन सदस्यों को जाता है, जो रक्षा के संघीय बजट के आवंटन के लिए ज़िम्मेदार समितियों के सदस्य हैं.

सरकारी ठेके लेने वाली कंपनी होने के नाते बोईंग जैसी कंपनियों को निर्वाचित प्रतिनिधियों को बड़े कॉर्पोरेट चंदे देने की अनुमति नहीं है. लेकिन बोईंग में काम करने वाले लोगों के चंदे से बने समूह और काम करनेवाले व्यक्तिगत तौर पर चंदा देते रहे हैं. साल 1990 से 2018 तक इस तरह से 32.6 मिलियन डॉलर चंदा दिया गया है. राष्ट्रपति के हालिया चुनाव में बोईंग से जुड़े समूहों ने हिलेरी क्लिंटन को 229,000 डॉलर और डोनाल्ड ट्रंप को 42,500 डॉलर दिया था. तब यह माना जा रहा था कि हिलेरी क्लिंटन की जीत होगी. साल 2018 के चुनाव में ज़्यादा चंदा राष्ट्रपति ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी को गया था. राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यभार संभालने के अवसर पर हुए जलसे के लिए इस कंपनी ने चंदा दिया था. जब 2017 में ट्रंप ने कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की, तो बोईंग को 1.1 अरब डॉलर का फ़ायदा हुआ था. इस धन के बड़े हिस्से का इस्तेमाल उसने अपने शेयरों की फिर से ख़रीद के लिए किया, जिससे उसके शेयरों की क़ीमत ऊंची बनी रही. इस फ़रवरी में पहली बार इसके शेयर का दाम 400 डॉलर से ऊपर गया था.

क्वॉर्ट्ज़ की रिपोर्ट में प्रोजेक्ट ऑन गवर्नमेंट ओवरसाइट के आकलन के आधार पर यह भी बताया गया है कि बीते दस सालों में बोईंग ने अमेरिका रक्षा विभाग के 19 अधिकारियों को अपने यहां काम दिया है. कुछ दिन पहले तक अमेरिका के कार्यवाहक रक्षा सचिव रहे पैट्रिक शनाहन तीस सालों से अधिक समय तक बोईंग में काम कर चुके हैं. राष्ट्रपति ट्रंप इन्हें रक्षा सचिव बनाना चाहते थे, पर उनके पारिवारिक जीवन के बारे कुछ ख़बरें मीडिया में छपने के कारण उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था. उल्लेखनीय है कि अमेरिका में लॉबिस्टों, कॉर्पोरेट अधिकारियों और नेताओं की भूमिका बदलती रहती है तथा वे कभी सरकार में आ जाते हैं, कभी कॉर्पोरेट सेक्टर में चले जाते हैं. नव-उदारवाद के साथ यह रोग भारत समेत तीसरी दुनिया के कई देशों में तेज़ी से फैला है. अमेरिका के फ़ेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन के कार्यवाहक प्रमुख एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन नामक लॉबिंग समूह से जुड़े रहे थे, जिसका एक सदस्य बोईंग भी है. इस कंपनी ने दर्जनों ऐसे लोगों को भी नौकरी दी है, जो जन-प्रतिनिधियों के सहयोगी थे या सरकार में अधिकारी थे.

लॉबिंग में रक्षा क्षेत्र की अन्य कंपनियां भी ख़ूब सक्रिय हैं. सेंटर फ़ॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स के मुताबिक, रक्षा क्षेत्र की एक और बड़ी कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने 2018 में 13,205,502 डॉलर लॉबिंग पर ख़र्च किया था. नॉर्थरोप ग्रुममैन का यह ख़र्च 14,303,000 डॉलर रहा था.

बहरहाल, लॉबिंग अमेरिकी राजनीति का एक स्थायी पहलू बन चुका है. मई में फ़ोर्ब्स में एडम आंद्रेवेवस्की ने लिखा था कि फ़ॉर्चून 100 कंपनियां इसलिए सफल हैं क्योंकि वे अपने निवेश को वापस हासिल करने पर ध्यान देती हैं. वे ये जानते हैं कि अमेरिकी राजधानी ‘पे-टू-प्ले’ पर चलती है और अब यह कॉर्पोरेट बिज़नेस मॉडल का हिस्सा बन चुका है. आप जितना देंगे, आपके लिए खेलना उतना ही आसान हो जायेगा. आंद्रेवेवस्की आगे बताते हैं कि 2014 से 2017 के बीच फ़ॉर्चून 100 कंपनियों ने वाशिंगटन के सत्ता-तंत्र में लॉबिंग पर दो अरब डॉलर का ख़र्च किया था. इस अवधि में उन्हें सरकार की ओर से 3.2 अरब डॉलर का संघीय अनुदान मिला. यह अनुदान असल में अमेरिकी करदाताओं का पैसा है.

राफ़ेल के हवाले से एक लेख में मैंने रेखांकित करने की कोशिश की थी कि किस तरह से देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हथियारों की धंधेबाज़ी करते हैं. हथियारों का कारोबार- युद्ध के भी और छोटे हथियारों के भी- देखकर हम दुनिया की राजनीति और कॉरपोरेट जगत के नैतिक पतन के पाताल को देख सकते हैं. युद्ध, आतंक और अपराध का बढ़ता स्याह साया इसी नैतिक पतन का नतीजा है.

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