चैंपियन आप जैसे नहीं होते कुंवर प्रणव

अपने छद्म नाम पर ही अगर कभी प्रणव सिंह ने गंभीरता से सोचा होता और अपने व्यवहार से उसकी तुलना की होती तो उन्हें शायद समझ आ जाता कि चैंपियन ऐसे तो बिलकुल नहीं होते.

WrittenBy:राहुल कोटियाल
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सोशल मीडिया पर एक अश्लील वीडियो इन दिनों जमकर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में एक अधनंगा आदमी अपने घुटने पर शराब का गिलास टिकाये हुए, हाथों में चार हथियार थामे हुए, भद्दी-भद्दी गालियां बकते हुए झूमता दिखायी दे रहा है. किसी सड़कछाप महफ़िल में फूहड़ लोगों के झूमने का जो दृश्य होता है, वही दृश्य इस वीडियो में नज़र आ रहा है. लेकिन वीडियो इसलिए वायरल हो रहा है क्योंकि यह किसी सड़कछाप महफ़िल का नहीं, बल्कि देश की राजधानी में स्थित उत्तराखंड सदन का है और इस वीडियो में झूमते हुए, हथियार लहराते हुए, भद्दी गालियां बकते हुए फूहड़ता का नंगा नाच जो व्यक्ति कर रहा है, वह उत्तराखंड के खानपुर क्षेत्र का विधायक प्रणव सिंह है.

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ये कोई पहली बार नहीं है जब प्रणव सिंह का ऐसा वीडियो सामने आया है. इससे पहले विधायक साहब के कई वीडियो वायरल हो चुके हैं, जिनमें कभी वो ख़ुद शराब के नशे में झूमते नज़र आये हैं, तो कभी महिला डांसर्स के नाच का आनंद लेते, कभी किसी को गालियां देते तो कभी किसी से मारपीट करते और कई बार तो अधनंगे होकर हथियार लहराते हुए भी विधायक साहब देखे जाते रहे हैं. बेहद भारी शरीर और बेहद हल्की हरकतों वाले इन विधायक के नाम के आगे और पीछे दो छद्म नाम भी जुड़े हुए हैं. प्रणव सिंह अपने नाम के आगे कुंवर लिखते हैं और पीछे चैंपियन. इस लिहाज़ से इनका एक भारी-भरकम नाम बन पड़ता है- कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन.

प्रणव सिंह दावा करते हैं कि वे आर्म रेस्लिंग में एशिया चैंपियन और शूटिंग में नैशनल चैंपियन रह चुके हैं. लेकिन उनकी इस उपलब्धि की प्रामाणिकता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. कुछ समय पहले उनकी ही पूर्व पार्टी (भाजपा) के एक साथी विधायक देशराज कर्णवाल ने भी उनके चैंपियन होने के दावे पर सवाल उठाये थे. इसके जवाब में प्रणव सिंह ने प्रेस को बुलाकर बयान दिया, ‘उसने (विधायक देशराज कर्णवाल) अगर मां का दूध पिया है और वो एक बाप की औलाद है तो मुझसे अखाड़े में आकर लड़े. अगर एक ही थप्पड़ में मैंने उसकी आंख, कान, नाक और मुंह से ख़ून न निकाल दिया तो मैं अपनी मूंछ मुंडवा लूंगा.’ इस बयान के साथ ही उन्होंने अपने चैंपियन होने के दावे पर उठने वाले सवालों पर पूर्णविराम लगा दिया.

वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट बताते हैं कि प्रणव सिंह ने अपने नाम में चैंपियन लगाना विधायक बन जाने के बाद ही शुरू किया. पहली बार जब प्रणव सिंह विधानसभा चुनाव जीत कर आये तो उन्होंने एक ऐफ़िडेविट देकर अपने नाम में संशोधन की अपील की और उसके बाद वो कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन बन गये. प्रणव सिंह कई बार तो यह भी दावा कर चुके हैं कि वो एक आईएफएस (भारतीय विदेश सेवा) अधिकारी रह चुके हैं. पत्रकार योगेश भट्ट बताते हैं, ‘प्रणव सिंह के ऐसे दावों का मैं ख़ुद प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं. एक बार मैं तत्कालीन सचिव एन रविशंकर के साथ उनके कार्यालय में था. तभी प्रणव सिंह वहां आये और आदतन उन्होंने अपने पैर से धकेलते हुए कार्यालय का दरवाज़ा खोला. फिर ख़ुद का परिचय देते हुए वे बोले कि मैं कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन हूं, अभी विधायक हूं और पहले एक आईएफएस अफ़सर रह चुका हूं.’ लात मारकर किसी अफ़सर के कार्यालय का दरवाज़ा खोलना जिस तरह एक खोखले व्यक्तित्व का परिचय देता है, उतना ही खोखला परिचय कुंवर प्रणव ने ख़ुद को पूर्व आईएफएस बता कर मौखिक रूप से दिया. और अपना ऐसा ही झूठा परिचय वो कई अन्य जगह भी देते रहे हैं.

विशालकाय शरीर, ऐंठी हुई मूंछें और गालियों भरी ज़ुबान वाले विधायक प्रणव सिंह सालों से विवादित रहे हैं. इनसे जुड़े विवादों की शुरुआत लगभग तभी हो चुकी थी, जब उत्तराखंड में पहली चुनी हुई सरकार बनी थी. तब प्रणव सिंह निर्दलीय विधायक चुने गये थे. 2003 में इन पर लक्सर में मगरमच्छ का शिकार करने के आरोप लगे. इस मामले में मुकदमा भी दर्ज़ हुआ लेकिन आगे जाकर इस मुक़दमे की नियति भी वही हुई जो उन पर लगे अधिकतर मुक़दमों की होती है, दोषी नहीं पाया जाना. 2009 में इन पर हवाई फ़ायरिंग के आरोप लगे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, 2011 में तत्कालीन विधायक प्रेमचंद अग्रवाल के समर्थकों के साथ मारपीट के आरोप लगे तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई और इसी साल रुड़की में एक होटल मालिक पर फ़ायर करने के आरोप भी लगे, लेकिन इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

कुंवर प्रणव का हथियारों से बेहद लगाव है. वे कभी हथियार लहराते देखे जाते हैं, कभी हवाई फ़ायरिंग करते तो कभी लोग उनकी गोलियों का शिकार भी हो जाते हैं. ऐसा ही कुछ साल पहले मंत्री हरक सिंह रावत के घर में आयोजित एक पार्टी में भी हुआ. तब प्रणव सिंह ने नशे में आदतन गोलियां चलानी शुरू कीं, जिसमें से एक गोली स्थानीय नेता विवेकानंद खंडूरी के पैर में जा लगी. उस दौरान इस मामले ने काफ़ी तूल पकड़ा, लेकिन बाद में ख़ुद विवेकानंद खंडूरी इस बात से मुकर गये और मामला रफ़ा-दफ़ा हो गया.

अपनी रैलियों से लेकर अपने नामांकन तक में प्रणव सिंह इसलिए विवादों से घिर चुके हैं कि उनके साथी हथियार लहराते चलते हैं. बताते हैं कि 11 लाइसेंसी हथियार तो उनके अपने परिवार वालों के पास ही हैं, और इनकी आड़ में कई प्रतिबंधित हथियार भी वो लिए घूमते हैं. वो जहां भी जाते हैं, उनके साथ 7-8 गाड़ियों का एक क़ाफ़िला चलता है और इनमें से कई गाड़ियों पर ‘चैंपियन फ़ोर्स’ नाम के स्टिकर लगे होते हैं. दबंग प्रवृत्ति वाले प्रणव सिंह पहली बार निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गये थे. 2007 और 2012 के चुनाव कांग्रेस के टिकट से लड़े और जीते, लेकिन फिर भाजपा में शामिल हो गये. प्रदेश की पिछली सरकार जब डगमगाने लगी और हवा भाजपा के पक्ष में नज़र आने लगी, तो ये चैंपियन भी कांग्रेस का मैदान छोड़ अन्य बाग़ी विधायकों के साथ भाजपा में जा मिले थे. पिछला चुनाव प्रणव सिंह भाजपा से ही जीते.

कुछ समय पहले ही भाजपा ने इन्हें तीन महीनों के लिए पार्टी से निलंबित किया था. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इन्होंने एक पत्रकार के साथ न सिर्फ़ गाली-गलौज की, बल्कि उसे थप्पड़ मारते हुए जान से मारने की भी धमकी दी. इस घटना का वीडियो सार्वजनिक होने के बाद भाजपा ने उन्हें तीन महीनों के लिए पार्टी से निलंबित किया था. ये तीन महीने अभी पूरे भी नहीं हुए थे कि ये नया वीडियो सामने आ गया, जिसमें वो अधनंगे होकर शराब के नशे में झूमते, हथियार लहराते और उसी प्रदेश का अपमान करते नज़र आ रहे हैं, जहां से वे चार बार विधायक चुने गये.

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी परिषद के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र जुगराण बताते हैं, ‘प्रणव सिंह के नाम दो दर्जन से ज़्यादा बड़े और गंभीर विवाद दर्ज़ हैं. लगभग दो साल पहले प्रणव सिंह के बेटे ने एक एक्सिडेंट भी किया था. देहरादून के धर्मपुर चौक के पास इनके बेटे ने अपनी गाड़ी से ट्यूशन जाते एक बच्चे को उड़ा दिया था. वह 16 साल का बच्चा बहुत लंबे समय तक अस्पताल में रहा और शुरुआती 24 दिन तो उसे होश तक नहीं आया था. लेकिन कुंवर प्रणव या उनका कोई प्रतिनिधि उस बच्चे को देखने तक नहीं आया. मैंने इस मामले में मुख्यमंत्री को लिखित शिकायत भेजी थी, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. उस बच्चे के इलाज में क़रीब 20 लाख रुपये ख़र्च हुए. प्रणव सिंह की ओर से उस बच्चे की कोई वित्तीय मदद भी नहीं की गयी. हमने ही लड़-झगड़ कर तीन लाख की वित्तीय मदद मुख्यमंत्री से करवायी.’

रविंद्र जुगराण आगे कहते हैं, ‘ये व्यक्ति हमेशा से ऐसी ही अश्लील और बेहद हल्की हरकतें करता रहा है. लेकिन मेरी शिकायत अपने प्रदेश की विधायिका से ज़्यादा है, जिसने हमेशा इस व्यक्ति को आश्रय दिया. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां इसे आश्रय देती रही हैं और इसकी बदमिजाज़ी इसलिए भी बढ़ती रही.’ प्रणव सिंह की पत्नी देवयानी सिंह उत्तर प्रदेश के चर्चित विधायक महेंद्र सिंह भाटी की बेटी हैं. वही महेंद्र सिंह भाटी, जिनकी हत्या बाहुबली नेता डीपी यादव और उनके साथियों ने की थी.

महेंद्र सिंह भाटी एक वक़्त में देश के सबसे बड़े गुर्जर नेताओं में से एक थे. उनकी बेटी का प्रणव सिंह की पत्नी होना भी उनके वोट बैंक का एक मज़बूत आधार माना जाता है. जिस क्षेत्र से प्रणव सिंह लगातार चुनाव जीतते हैं वहां गुर्जर मतदाताओं की काफ़ी संख्या है. इसी के दम पर प्रणव सिंह संवैधानिक पदों पर रहते हुए भी लगातार फूहड़ता का प्रदर्शन करते रहते हैं और पार्टियां उनकी ऐसी हरकतों को बर्दाश्त करती हैं. इस बार ज़रूर भाजपा ने उन्हें स्थायी तौर से निष्कासित करने का फ़ैसला ले लिया है, क्योंकि कुल 70 में से 57 सीटों वाली मौजूदा भाजपा पर एक विधायक के कम होने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला. लेकिन यह निष्कासन भी प्रणव सिंह के राजनीतिक सफ़र में कोई बड़ी परेशानी लेकर आयेगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता. वो जिस क्षेत्र से आते हैं वहां के जातीय समीकरण और चुनाव जीतने के गुर वो बख़ूबी जानते हैं.

इस बार जिस वीडियो के चलते वो सुर्खियों में हैं, उसमें उनकी फूहड़ता तो वही पुरानी है जो पहले भी कई बार देखी गयी है, लेकिन इस बार वे सीधे-सीधे प्रदेश का अपमान करते दिख रहे हैं. यही कारण है कि इस बार उनका विरोध भी प्रदेश भर में हो रहा है और उनके ख़िलाफ़ देहरादून में एफआईआर भी दर्ज़ की गयी है. इस वीडियो में दिख रहा है कि हथियार लहराते हुए वे इतराते हुए अपने साथ नाच रहे लोगों से बेहद भद्दे तरीक़े से पूछते हैं कि ‘देखें हैं किसी के पास तीन-तीन पिस्टल?’ इस सवाल का जवाब देती एक आवाज़ वीडियो में सुनाई देती है कि ‘पूरे उत्तराखंड में किसी के पास नहीं.’ ये जवाब सुनकार प्रणव सिंह शराब का घूंट जल्दी से गटकते हुए कहते हैं, ‘हिंदुस्तान. पूरे हिंदुस्तान में नहीं है. उत्तराखंड तो ##### पे रहा, हमारे भें###.’

अपने नाम में चैंपियन लिखने वाले प्रणव सिंह उस राज्य के बारे में ये कह रहे हैं, जिसकी विधायिका में वो सालों से प्रदेश की जनता का नेतृत्व करते आ रहे हैं. ये दुनिया के शायद एकमात्र ऐसे ‘चैंपियन’ हैं, जो उसी धरा का अपमान करते हुए इतनी भद्दी भाषा बोल रहा है जिसका वो प्रतिनिधित्व करता है. प्रणव सिंह पहले भी कई बार ये साबित कर चुके हैं कि वे न तो महिलाओं का सम्मान करते हैं, न क़ानून का, न संविधान का, न जनता का और न ही उस विधानसभा का जिसका वे हिस्सा हैं. इस बार उन्होंने ये भी सार्वजनिक कर दिया कि प्रदेश के बारे में उनकी सोच क्या है. पिछले दो दशकों से वो विधायक ज़रूर हैं, लेकिन अपने व्यवहार से उन्होंने लगातार दर्शाया है कि वो इस संवैधानिक पर होने की नैतिक योग्यता बिलकुल नहीं रखते. अपने छद्म नाम पर ही अगर कभी उन्होंने गंभीरता से सोचा होता और अपने व्यवहार से उसकी तुलना की होती तो उन्हें शायद समझ आ जाता कि चैंपियन ऐसे तो बिलकुल नहीं होते.

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