पार्ट 2: ‘मेरा काम बड़े फिल्मकारों को काम देने के लिए मजबूर कर देगा’

अभिनेत्री तापसी पन्नू के साथ बातचीत का दूसरा हिस्सा.

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मशहूर होने के साथ परिचितों की संख्या बढ़ जाती है और हक़ जताने वाले ढेर सारे उग आते हैं?

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सच है, लेकिन मैं जिनके बीच पली-बढ़ी हूं, उन सभी को अच्छी तरह जानती हूं. नए-नए उगे रिश्तेदारों और परिचितों को भी पहचानती हूं. निकट संबंधियों की जरूर मदद करती हूं.

मुझे मालूम है कि अनुराग कश्यप की फिल्म मिलने से आप फूले नहीं समा रही थीं. तो फिल्म आई और चर्चित रही. क्या आपकी अपेक्षाएं पूरी हुईं?

बहुत अच्छा अनुभव रहा. अनुराग की एक छवि बाहरी दुनिया के लिए है और मैं उसी छवि से परिचित थी. साथ काम करने से वह छवि एकदम से टूट जाती है. अनुराग कभी नहीं बताते कि मुझे क्या करना है या किसी और अभिनेत्री-अभिनेता को क्या करना है? फिर भी हम सभी अपना बेहतरीन परफॉर्मेंस उनकी फिल्मों में देते हैं. उन्होंने मुझे कभी नहीं कहा कि ऐसे या वैसे करूं. उनका यही निर्देश रहता था कि तू करके दिखा. फिर मैं बताऊंगा कि वह मेरे लिए सही है या नहीं? अनुराग के अंदर की एनर्जी संक्रामक है. उनकी फिल्में डार्क होती हैं लेकिन उनकी जिंदगी बेहद चमकीली है. ‘मनमर्जियां’ के समय तो मैं लड़ जाती थी कि मेरे चेहरे पर रोशनी डालो, वरना क्या फायदा है पर्दे पर दिखने का? उनकी टांगे बहुत खींची हैं. मैंने मजाक-मजाक में कहा भी कि मैं या और कोई दर्शक थिएटर में टॉर्च लेकर थोड़े बैठेगा कि मेरा चेहरा दिखे. उनके साथ अभी एक और फिल्म करने वाली  हूं. यह सुपर नेचुरल थ्रिलर फिल्म होगी. अनुराग भी मेरी तरह मिडिल क्लास बैकग्राउंड से आते हैं. उनके साथ मेरी छनती है. मेरा स्ट्रगल उनकी समझ में आता है. अभी तो हमारी नियमित बातचीत होती है. मेरी धारणा थी कि वे बहुत सख्त मिजाज होंगे और हैवी परफॉर्मेंस की मांग करते होंगे. पता नहीं मुझसे हो पाएगा कि नहीं हो पाएगा? मैं तो किसी एक्टिंग स्कूल से नहीं आती हूं, स्पॉन्टेनियस हूं. मुझ से अगर हो जाता है तो हो जाता है. उनके आसपास ज्यादातर ऐसे एक्टर हैं, जिन्होंने पहला ग्रास लेने के समय से ही तय किया होगा कि मुझे एक्टर बनना है.

अनुराग की फिल्मों की लड़कियों के बारे में क्या राय है?

एक तो वे खुद ही बड़े फेमिनिस्ट हैं, इसलिए उनकी फिल्म की लड़कियों का किरदार जबरदस्त होता है. भले ही वह पर्दे पर पांच-दस मिनट के लिए ही आएं. मुझे ऐसा लगता है कि उनकी लड़कियों के बारे में आप पहले से कोई अनुमान या धारणा नहीं बना सकते. उनकी लड़कियां एक परत की नहीं होतीं. ‘मनमर्जियां’ की रूमी उनकी लिखी हुई नहीं थी, लेकिन उसमें जान अनुराग ने ही डाली. उन्होंने किरदार को पंख दिया. मैं ऐसे कम मर्दों को जानती हूं. अनुराग के लिए तो औरतें समकक्ष नहीं बल्कि उनसे ऊपर का दर्जा रखती हैं.

 और कौन से निर्देशक हैं जिनके प्रति ऐसे ही ऊंची धारणा है आपकी?

अनुभव सिन्हा, सुजॉय घोष, शुजीत सरकार… सभी के साथ मेरा संबंध ऐसा है कि मैं बिना काम के भी उन्हें फोन कर सकती हूं. बातें कर सकती हूं. मिलने जा सकती हूं. हमारे बीच हमेशा काम की बात नहीं होती हैं. इन सभी के साथ बहुत अच्छा समीकरण है. सुजॉय घोष तो मेरे मॉर्निंग अलार्म हैं. हम दोनों सुबह जगने वाले व्यक्ति हैं. उम्मीद तो यही है कि इन सभी के साथ काम करती रहूंगी. पूरी फिल्म इंडस्ट्री तो इमोशन पर ही टिकी हुई है पर्दे पर और पर्दे के पीछे. इमोशनल रिश्ते बन ही जाते हैं.

अमिताभ बच्चन के साथ कैसा अनुभव रहा? दो फ़िल्में कर लीं आपने उनके साथ?

उनके बदले मैं अभिषेक से ज्यादा बातें कर सकती हूं. उनके प्रति मन में आदर है. हाथ जोड़कर उनके सामने बैठूंगी, लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके प्रभामंडल में सहमी और दबी बैठी रहूं. ‘पिंक’ की शूटिंग के पहले दिन से ही यह बात दिमाग से निकाल दी थी. यह उनके लिए भी ठीक रहता है. मैंने देखा है कि मेरी पीढ़ी के लोग उनके प्रभाव में नर्वस रहते हैं. मैं उनसे नॉर्मल बातें करती हूं. कभी-कभी उनकी बच्ची की तरह कुछ सलाह भी देती रहती हूं. कह सकती हूं कि उनके साथ मेरी अच्छी पटती है. एक्टिंग उनसे सीखनी चाहिए. वे जोंक की तरह किसी दृश्य से चिपक जाते हैं. रिहर्सल पर रिहर्सल करते रहते हैं. मैं तो तंग आ जाती थी और कहती भी थी कि आपने तो संवाद की जान निकाल दी. निचोड़ डाला है. मुझे रिहर्सल पसंद नहीं है. वे तो जब तक एक-एक शब्द पर अभ्यास न कर लें, तब तक लगे रहते थे. मुझे डर लगा रहता है कि रिहर्सल में बहुत बार सुन लेने के बाद कैमरा ऑन होने पर शायद में ढंग से रिएक्ट ना कर सकूं. फिर एक्टिंग नहीं कर पाऊंगी. ‘बदला’ में तो हम ही दोनों टेबल के आर-पार बैठे हुए थे. बाद में वे भी समझ गए थे और फिर केवल आखिरी रिहर्सल में मुझे बुला लिया करते थे. उनकी सबसे बड़ी खासियत है कि वे अपनी डायरेक्टर की सुनते हैं. उन्हें कभी मॉनिटर पर नहीं देखा.

साथ की अभिनेत्रियों में किन का नाम लेना चाहेंगी, जिनसे कुछ सीखा हो?

विद्या बालन… उन्होंने ही मुझे पहली बार एहसास कराया कि कोई अभिनेत्री फिल्म की हीरो हो सकती है. उस समय मैं नई-नई आई थी और तभी मैंने ‘द डर्टी पिक्चर’ देखी थी. ‘द डर्टी पिक्चर’ के बाद ‘कहानी’ आई. फिर तो मुझे लगा कि अभिनेत्रियां भी सेंट्रल कैरेक्टर कर सकती हैं. मेरे लिए वह बहुत बड़ी जागृति थी. उनके प्रति एक सम्मान रहा और फिर जब ‘मिशन मंगल’ में हमने साथ काम किया तो मेरा उत्साह दोगुना हो गया. अपनी एनर्जी और खुशमिजाजी से वह सबको प्रसन्न रखती हैं. उनकी नटखट हरकतें लाजवाब होती हैं. ‘मुल्क’ देखने के बाद उन्होंने मुझे फोन किया था और मेरी तारीफ की थी. उन्हें मेरी ‘मनमर्जियां’ ‘बदला’ भी पसंद आई. मैं जिन का आदर और सम्मान करती हूं, उनसे पहचान मिले तो गर्व का अनुभव होता है.

क्या तापसी ब्रांड बन चुकी हैं?

कुछ हद तक… अभी ब्रांड में वैल्यू भरना बाकी है, हां, मेरा नाम सुनकर लोगों को मेरी फिल्मों के प्रति एक भरोसा बनता है. मेरी ब्रांड इमेज यही है कि मैं हमेशा रिस्क लेती हूं. नए विषयों की फिल्में करती हूं. सेफ नहीं खेलने के लिए ही मैं बदनाम हूं.

फिल्म इंडस्ट्री के कथित बड़े निर्देशक आप तक नहीं पहुंच रहे हैं या आप उन तक नहीं पहुंच पा रहीं?

कभी-कभी लगता है कि आसानी से उनकी फिल्में मिल जातीं. मन तो करता है कि मौका मिलना चाहिए मुझे काम करने का. कई बार नई फिल्मों की घोषणा होती है तो मुझे लगता है, अरे मुझसे तो किसी ने पूछा ही नहीं? मैं क्या गलत थी? फिलहाल मैं देखती हूं कि मेरा गिलास आधा भरा हुआ है. मन में यह एहसास तो है कि आखिर कितने दिनों तक मेरे पास नहीं आएंगे. अपनी फिल्मों से ही मैं यह स्थिति पैदा कर दूंगी कि एक न एक दिन मैं उनकी फिल्मों का भी हिस्सा बन सकूं. मेरे लिए एक बड़ी चुनौती है. मैं तो मानकर चलती हूं कि आखिर कितने दिनों तक मुझे नजरअंदाज करोगे, मैं तो एसएमएस कर देती हूं कि मुझे आपके साथ काम करना है. ‘गली ब्वॉय’ देखने के बाद मैंने जोया अख्तर को संदेश भेजा था. राम माधवानी और मेघना गुलजार को भी मैंने संदेश भेजा है.

पुराने निर्देशकों में किसके साथ काम करना चाहती हैं?

मैंने बहुत देर से फिल्में देखनी शुरू की. घर में फिल्में देखने का कोई रिवाज नहीं था, इसलिए मुख्यधारा की फिल्मों से मेरा परिचय देरी से हुआ, मेरी पहली फिल्म ‘छोटा चेतन’ थी. कॉलेज के आखिरी सालों में मैंने फिल्मों को गंभीरता से देखना शुरू किया. अभी फिल्में देखती हूं और थिएटर में जाकर खूब देखती हूं. फ़िल्में तो सामूहिक दर्शन की चीज हैं. 200-300 लोगों के साथ फिल्म देखने का मजा ही कुछ अलग है

तापसी पब्लिक फिगर हैं, इसलिए सोशल मीडिया पर सावधानी बरतनी पड़ती होगी फिर भी कभी-कभी ट्वीट पर कोई राय दिख जाती है!

कुछ मुद्दों से जुड़ाव महसूस करती हूं तो अपनी बात कह देती हूं. अपना दृष्टिकोण जाहिर कर देती हूं. अगर मैं किसी को निशाना नहीं बना रही हूं तो मुझे डर कैसा?

कंगना रनौत का प्रसंग चल ही रहा है. कई बार मुझे लगता है कि मीडिया आप दोनों के बीच के विवाद के मजे लेता है. इससे बचा तो जा सकता है?

बचना तो चाहिए, लेकिन अगर कोई निशाना बनाता है तो उसका जवाब भी देना चाहिए. मीडिया की अलग भूमिका तो होती है, लेकिन मुझे लगता है कि अपना पक्ष मुझे लोगों के सामने सीधे रखना चाहिए. अगर कोई मुझसे पूछेगा तो चुप थोड़े ही रहूंगी. मैं भी जवाब दूंगी. ‘मिशन मंगल’ और अभी ‘सांड़ की आंख’ के समय विवाद हुए. ऐसे विवादों में किसी प्रकार की टिप्पणी या आरोप से मुझे कुछ बुरा नहीं लगता. मुझे तो यह लगता है कि मैं उनके लिए मायने रखती हूं, तभी मेरी हर बात पर नज़र रखी जाती है.

तापसी के प्रति दर्शकों का प्यार बढ़ा है? क्या यह प्यार कोई जिम्मेदारी भी देता है? आपको सचेत करता है?

यह प्यार अनमोल है. मैंने इसके लिए अलग से कोई कोशिश नहीं की थी. मेरी फिल्मों से ही यह प्यार उमड़ा है. किसी योजना के तहत यह प्यार हासिल नहीं हुआ है, इसीलिए इसको बचाए रखने की कोई योजना नहीं है मेरे पास. अपनी ईमानदारी बनाए रखूंगी. किसी एजेंडा के तहत कोई काम नहीं करूंगी. किसी प्रकार के भ्रम में आते ही मेरी चढ़ाई उतराई में बदल जाएगी. मैं खुद को पिंच करती रहती हूं और मेरे पास ऐसे लोग भी हैं, जो मुझे सच्चाई का एहसास दिलाते रहते हैं.

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