बाल ठाकरे से आदित्य ठाकरे के बीच कैसे बदली है शिवसेना

आज शिवसेना में नेतृत्व की तीसरी पीढ़ी आ गई है. बाल ठाकरे से अब तक क्या बदला है शिवसेना में?

WrittenBy:प्रतीक गोयल
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साल 1967 में शिवसेना के एक नेता बलवंत मंत्री दादर के वनमाली सभागृह में एक सभा कर रहे थे. अचानक से सभागृह में कुछ लोगों ने अफरा-तफरी मचा दी. इन लोगों ने भाषण दे रहे मंत्री की जमकर पिटाई की और उनके कपड़े तक फाड़ दिए. हमलावर इसके बाद मंत्री को खींचते हुए प्रभादेवी स्थित मार्मिक पत्रिका के दफ्तर ले गए और बाल ठाकरे के सामने खड़ा कर दिया. मंत्री शिवसेना के उन नेताओं में से थे जो 30 अक्टूबर 1966 को पार्टी की शिवाजी पार्क में हुई पहली रैली में बाल ठाकरे के साथ मंच पर मौजूद थे. वह चाहते थे कि शिवसेना और ज़्यादा लोकतान्त्रिक ढंग से चले और इस बात को लेकर उनका शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे से विवाद हो गया था. जिसके चलते शिवसैनिकों ने उन पर हमला कर दिया था.

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यह शिवसैनिकों द्वारा किसी के ऊपर सार्वजनिक स्थल पर किया गया पहला हमला था. आने वाले वक्त में शिवसेना और शिवसैनिकों ने हिंसा और तोड़-फोड़ की ऐसी कई घटनाओं को अंजाम दिया. शिवसैनिक बाल ठाकरे के प्रति इतनी निष्ठा रखते थे कि उनके एक इशारे पर अपनी जान तक दांव पर लगाने को तैयार थे. इसलिए बाल ठाकरे अक्सर कहते थे कि अगर उनके सर का एक बाल भी बांका हुआ तो पूरी मुंबई जल उठेगी और उनकी यह बात एक हद तक सही भी थी. शिवसैनिक का उनके प्रति समर्पण ही ठाकरे की सबसे बड़ी ताकत था और उसी के बल पर वो मुंबई पर राज करते थे.

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बाल ठाकरे के प्रति उनके शिवसैनिकों की निष्ठा समझने के लिए शिवसेना के बनने के पीछे की कहानी को समझना ज़रूरी है. फ्री प्रेस जर्नल अख़बार में कार्टूनिस्ट (व्यंग चित्रकार) की हैसियत से काम करने वाले बाल ठाकरे ने 1959 में नौकरी से इस्तीफ़ा देने के बाद 1960 में मार्मिक नाम से व्यंग-चित्रों की एक पत्रिका शुरू कर दिया था. मार्मिक ही वह पत्रिका है जिसके ज़रिये बाला ठाकरे के असाधारण, गॉडफादर शैली वाले राजनैतिक सफर की शुरुआत हुई.

इस पत्रिका के ज़रिये मुंबई में रहने वाले मराठी लोगों को उनका हक़ दिलाने के लिए उन्होंने एक मुहिम शुरू कर दी थी. इस मुहिम के ज़रिये उस वक्त मुंबई में रहने वाले दक्षिण भारतीय, गुजराती और माड़वाड़ी लोगों को सबसे पहले उन्होंने निशाना बनाया. क्षेत्रीय पहचान और अस्मिता उनकी राजनीति के अहम पुरजे थे. इस पत्रिका के ज़रिये वो बताते थे कि मुंबई के विभिन्न निजी व सरकारी संस्थानों पर दूसरे राज्यों से आये लोगों का दबदबा है और स्थानीय मराठी लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है.

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मार्मिक के ज़रिये ठाकरे ने मुंबई में रहने वाले स्थानीय मराठी लोगों से एक गहरा संवाद बना लिया था. उन्होंने स्थानीय लोगों की समस्याओं के बारे में उनसे सीधा संवाद स्थापित कर उनकी नब्ज़ पकड़ ली थी और मार्मिक के ही ज़रिये उन्होंने शिवसेना की पहली रैली में शामिल होने के लिए लोगों से आह्वान किया था. उन्होंने अपने आह्वान में कहा था कि सभी मराठी बंधू उनके ही प्रदेश में उनके साथ हो रही नाइंसाफी को ख़त्म करने के लिए रैली में शामिल हों. ठाकरे ने जितनी अपेक्षा नहीं की थी उससे कहीं ज़्यादा लोग उस रैली में शामिल हुए और शिवाजी पार्क खचाखच भर गया था. इन्हीं लोगों से मिलकर ठाकरे की शिवसैनिकों की पहली पीढ़ी बनी थी.

ठाकरे ने स्थानीय लोगों की रोज़ी रोटी के लिए लड़ने की अपनी कवायद से उनको अपनी तरफ कर लिया था और गुज़रते वक्त के साथ लोगों की उनके प्रति निष्ठा बढ़ती चली गयी. शिवसेना में शामिल होने वाले अधिकांश लोग निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे. मुंबई के मिल मजदूरों का समर्थन भी धीरे-धीरे वामपंथी ट्रेड यूनियनों से खिसक कर शिवसेना को मिलने लगा. शिवसेना में उस दौरान बहुत से ऐसे गैर असामाजिक तत्व भी शामिल हुए जिनकी अपने इलाकों में दादागिरी चलती थी.

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कांग्रेस पार्टी ने वामपंथियों को मुंबई से ख़त्म करने की अपने कवायद में शिवसेना का इस्तेमाल किया और शिवसैनिकों द्वारा किये जा रहे गैर कानूनी कामों और हिंसा को नज़रअंदाज़ करना शुरु कर दिया. इसके चलते शिवसेना दिनोदिन मजबूत होती चली गयी.

गौरतलब है की साल 1970 में सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया) के मशहूर नेता और परेल से विधायक कृष्णा देसाई की हत्या भी शिवसैनिकों ने की थी. देसाई उस ज़माने के कद्दावर वामपंथी मजदूर नेता थे.

शुरुआती दौर में हिंसा और तोड़फोड़ शिवसैनिकों को परिभाषित करने के लिए उपयुक्त शब्द बन गए थे. भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के विरोध में पिच उखाड़ने का मामला हो, मुंबई में दूसरे राज्यों से आये लोगों पर हमले की घटनाएं हों, 1992 के मुंबई दंगे हों, पत्रकारों पर हमले हों, बाबरी विध्वंस हो या हिंसक आंदोलन हो शिवसैनिकों का नाम चर्चा में रहा.

शिवसेना एक कैडर आधारित पार्टी है और उसी वजह से ज़मीनी स्तर पर उसका तंत्र मजबूत है. इसी तंत्र के ज़रिये शिवसेना में सम्मिलित कुछ शिवसैनिक दादागिरी और उगाही कर अपना भरण-पोषण करते हैं. ऐसे बहुत से वाकये हैं जहां शिवसैनिकों ने धार्मिक उत्सवों के चंदे के नाम पर या सुरक्षा प्रदान करने के नाम पर लोगों से उगाही की है. अपनी आपराधिक गतिविधियों से आम लोगों में शिवसेना की एक दहशत सी बना दी थी. इनमे से बहुत से आपराधिक तत्व बाद में पार्टी के बड़े नेता भी बने. जिसका उदहारण है शिवसेना नेता आनंद दीघे जिनकी साल 2001 में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गयी थी.

दीघे का मुंबई के निकट थाने में एकछत्र राज चलता था, साल 1989 में उन्होंने शिवसेना के ही एक पार्षद श्रीधर खोपकर की हत्या कर दी थी. दीघे को संदेह था कि महापौर के चुनाव में खोपकर ने कांग्रेस को वोट दिया था और इसी के चलते उन्होंने दिन दहाड़े खोपकर की हत्या कर दी थी. दीघे जितने ताकतवर तो नहीं लेकिन सेना में दिघे जैसे ऐसे कई नेता हैं जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि है और जो दहशत पैदा कर काम करते हैं.

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सिर्फ मुंबई ही नहीं बाल ठाकरे के लिए अपनी जान देने वाले आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग उत्तर प्रदेश में भी थे. पूर्व गैंगस्टर पवन पांडे ने नब्बे के दशक में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा था, “अगर बालासाहेब ठाकरे का एक बाला भी बांका हुआ तो मैं कसम खाता हूं की 24 घंटे के भीतर दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान में मार दूंगा.” पांडे उत्तर प्रदेश के अकबरपुर से शिवसेना के विधायक थे और माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम के उस दौर के साथी छोटा राजन की बाल ठाकरे को एक अख़बार में दी गयी धमकी के बाद उन्होंने ऐसा कहा था.

गौरतलब है, जहां एक तरफ शिवसैनिकों की दादागिरी के चर्चे हैं वहीं दूसरी तरफ आम लोगों की मदद करने शिवसैनिकों द्वारा संचालित शाखाएं काफी कुशलता से काम करती हैं. ज़मीनी स्तर पर शिवसेना बहुत ही संगठित ढंग से काम करती है. शिवसेना के पदाधिकारियों की अगर नीचे से ऊपर के क्रम में फेहरिस्त बनायी जाए तो सबसे पहले आता है इमारत प्रमुख या झुग्गी प्रमुख और फिर बढ़ते हुए क्रम में आते है गट प्रमुख, उपशाखा प्रमुख, शाखा प्रमुख, उप विभाग प्रमुख, विभाग प्रमुख, शिवसेना संघटक, शिवसेना जिला प्रमुख, शिवसेना उपनेता, शिवसेना सचिव, शिवसेना महासचिव, शिवसेना नेता, शिवसेना कोर कमेटी, युवा सेना प्रमुख और शिवसेना प्रमुख.

जमीनी स्तर पर शिवसेना की शाखाएं लोगों की बुनियादी दिक्कतों को ठीक करने के लिए रोज़ाना काम करती हैं. पानी-बिजली की समस्या से लेकर, स्कूल एडमिशन यहां तक की घरेलू झगड़ों तक को शिवसैनिक अपने स्तर पर सुलझाते हैं. शिवसैनिकों द्वारा संचालित यह तंत्र ही उनकी सबसे बड़ी ताकत, जहां एक तरफ कुछ शिवसैनिक इसका गलत इस्तेमाल भी करते हैं, वहीं बहुत से शिवसैनिक इसके ज़रिये लोगों की दिक्कतें सुलझाते हैं और शिवसेना के मतदाता भी बढ़ाते हैं. शिवसैनिकों द्वारा संचालित स्थानीय लोकाधिकार समिति के ज़रिये मराठी मूल के स्थानिक लोगों को नौकरी दिलवाने में मदद करती है, जिसके चलते भी स्थानिक लोगों का शिवसेना के प्रति समर्पण बढ़ा है.

उद्धव ठाकरे के करीबी हर्षल प्रधान कहते हैं, “मोहल्ले के नलों पर पानी भरने के दौरान होने वाले झगड़ो से लेकर घरेलू विवादों को सुलझाने तक में शिवसैनिक लोगों की मदद करते हैं. एक आम आदमी के जीवन में आने वाली छोटी से लेकर बड़ी कठनाइयों तक के लिए लोग स्थानीय शिवसैनिकों के पास जाते हैं. एक बार खुशवंत सिंह ने खुद राहुल गांधी से कहा था कि अगर संगठन चलाना है तो देखो शिवसेना कैसे काम करती है.”

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प्रधान कहते हैं, “अगर 1992 के दौरान अगर शिवसेना मुंबई में नहीं होती तो मुंबई ख़त्म हो गयी होती. 1992 के दंगो में बालासाहेब और शिवसैनिक हिन्दुओं को बचाने के लिए मैदान में उतरे थे, जिसके बाद मुंबई में शिवसेना का रसूख और लोकप्रियता बहुत बढ़ गयी थी. इसी तरह 1984 के सिख दंगों में शिवसैनिकों ने मुंबई में सिखों की रक्षा की थी. बालासाहेब के भाषण और हिन्दू धर्म के बारे में उनके कट्टरपंथी विचारों के वजह से भी मुंबई में शिवसेना की लोकप्रियता बढ़ती चली गयी थी.”

बाल ठाकरे के प्रति शिवसैनिक के समर्पण के बारे में प्रधान कहते हैं, “बाला साहेब ने मराठी लोगों के लिए जो किया है वो कोई नहीं कर सकता. आज उन्ही की बदौलत मुंबई में मराठी लोगों का वजूद है. मराठी मूल के लोगों के घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया था, उनके पास नौकरियां नहीं थी, भूमिपुत्रों को उनका हक़ और न्याय दिलाने के लिए बालासाहेब ने जीवन भर संघर्ष किया और इसी वजह से शिवसैनिक उन पर और ठाकरे परिवार पर अपनी जान छिड़कते हैं.”

बाल ठाकरे के अंगरक्षक मोहन रावले का उदाहरण देते हुए प्रधान कहते हैं, “मोहन रावले बाल साहेब के एक अंगरक्षक थे, जिनको बाद में साहेब ने सांसद बनवा दिया था. ऐसे बहुत से उदहारण है जो यह बताते हैं कि बाला साहेब और उनके परिवार ने हमेशा शिवसैनिकों को अपने से ऊपर माना है और उनकी मदद की है. साहेब और ठाकरे परिवार ने हमेशा त्याग किया है, खुद के लिए कभी भी कुछ नहीं किया है, सदा अपने शिवसैनिकों और लोगों के लिए ही काम करते रहे. हिन्दुस्तान की राजनीति में महात्मा गांधी के बाद अगर किसी ने बिना किसी स्वार्थ के राजनीति की है तो वह बाला साहेब और उनके परिवार ने की है. साहेब अक्सर कहते थे मैं जो कुछ भी हूं अपने शिवसैनिकों की वजह से हूं. आज जब वे इस दुनिया में नहीं हैं, तब भी शिवसैनिक बाला साहेब के नाम के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं.”

प्रधान ने बताया की मुंबई में 127 वार्ड्स हैं और इन सभी वार्डों में शिवसेना की शाखाएं काम करती हैं. शाखा प्रमुख और बाकी शिवसैनिक इन शाखाओं के ज़रिये लोगों की मदद करते हैं. वह कहते हैं, “किसी के राशन कार्ड की समस्या हो, या किसी बुज़ुर्ग के पेंशन की दिक्कत हो, किसी बस्ती में पानी की दिक्कत हो या किसी के घर में एम्बुलेंस की ज़रुरत हो, या किसी का कोई शोषण कर रहा हो, शिवसैनिक लोगों की हर बुनियादी दिक्कत को हल करने के लिए हमेशा काम करते रहते हैं.”

पूर्व में दो बार पार्षद रही 65 वर्षीय सुयोगी नाईक उन लोगों में से जिन्होंने अपन सारा जीवन शिवसेना के लिए दिया है. उनके दिवंगत पति मोहन राजाराम नाईक शिवसेना के उन पार्षदों में से थे जिन्होंने सबसे पहले बृहन्मुम्बई महानगर पालिका में जीत हासिल की थी, आज भी दादर पूर्व के ऍफ़ वार्ड में उनके काम और साफ़ छवि के लिए उनको जाना जाता है.

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न्यूज़लॉन्ड्री से बात करने के दौरान सुयोगी नाईक कहती हैं, “शिवसैनिक हमेशा लोगों की समस्याएं सुलझाने के लिए काम करते हैं. यह ज़रूर है कि पहले के शिवसैनिक साहेब और शिवसेना के प्रति आज मुकाबले ज़्यादा समर्पित थे. एक वड़ापाव खाकर शिवसैनिक शिवसेना का काम करते थे. रात-बेरात कोई भी अगर किसी को दिक्कत होती थी तो वह शिवसैनिकों के पास आ जाते थे और शिवसैनिक उनकी हमेशा मदद करते थे. साहेब भी अपने शिवसैनिकों को बहुत प्यार करते थे, उनके जाने के बाद बहुत से लोगों को लगता था कि शिवसेना का क्या होगा, लेकिन उद्धव साहेब ने पार्टी को संभाल लिया है.”

शिवसैनिकों के उग्र रवैये की बाबत पूछने पर नाईक कहती हैं, “शिवसैनिक गर्म मिज़ाज़ के ज़रूर होते हैं, लेकिन हर बार गुस्से से काम नहीं होता है. यह कहना भी गलत है कि शिवसैनिक हरदम ज़ोर आजमाइश करके काम करते हैं. अच्छे स्वाभाव और मृदभाषी होकर भी शिवसैनिकों ने बहुत काम किया है और जहां ज़रुरत हो तभी वे उग्र होते है, बिना वजह वे उग्र नहीं होते.”

शिवसेना की शाखा क्रमांक 200 के शाखा प्रमुख नितिन पेडनेकर कहते हैं, “एक ज़माने में शिवसैनिक बहुत उग्र होते थे, पहले ज़माने में शिवसैनिक अपने खिलाफ मुकदमे दर्ज होने में घबराते नहीं थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योंकि अपराध दर्ज होने पर नौकरी और रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में भी दिक्कत होती हैं. उद्धव साहेब का भी शिवसैनिकों को निर्देश है कि आपराधिक मामले, हिंसा और तोड़फ़ोड़ करने से बचें और यह सही भी है. पहले किसी शिवसैनिक का कोई विवाद हो जाता था या कोई सरकारी फैसला पार्टी को अच्छा नहीं लगता था तो शिवसैनिक मुंबई बंद करा देते थे, लेकिन अब शिवसैनिक ऐसा नहीं करते.”

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पेडनेकर आगे कहते हैं, “उद्धव साहेब शिवसेना को बहुत कुशलता और पेशेवर ढंग से चला रहे हैं. शिवसैनिकों को उनके हिंसा और तोड़ फोड़ से बचने के उनके निर्देश पहले समझ में ना आये हों, लेकिन बाद में वह समझ गए की हिंसा करने से शिवसेना का ही नुकसान होता है. पार्टी की छवि ख़राब होती है. पहले यह सब चलता था लेकिन आज के दौर में लोगों के यह हिंसक रवैया नागवार लगता है. उस वक़्त मद्रासी लोगों को बहुत दबदबा था. वे दादागिरी करते थे. मराठी आदमी अपने ही शहर में खौफ और मजबूरी में जी रहा था. उस वक्त उग्र होने की ज़रुरत थी. लेकिन अब माहौल बदल गया है.  यह बात ज़रूर है कि अगर फिर से मराठी आदमी पर अगर कोई दादागिरी या अत्याचार होता है तो शिवसैनिक फिर से अपने पुराने अंदाज़ में सड़कों पर उतरेंगे. तब कोई शिवसैनिक यह नहीं सोचेगा की किस पर कितने आपराधिक मामले दर्ज होंगे.”

गौरतलब है कि हर शाखा के पदाधिकारी रोज़ शाम को 7 से लेकर 10 बजे तक शाखा के स्थानीय दफ्तर में लोगों की समस्याएं सुनने के लिए इकट्ठा होते हैं. पेडनेकर बताते हैं, “हमारे पास जो भी अपनी समस्याएं लेकर आता है हम उसकी मदद करते हैं, हम कभी यह नहीं देखते की हमारे पास जो व्यक्ति आया है वह किस जाति, धर्म या प्रदेश का है. कोई दिल्ली का हो या बंगाल का हो हम सबकी मदद करते हैं. हमारी शाखा के निकट जो कैंसर अस्पताल है, बांग्लादेशी मूल के भी बहुत लोग आते हैं जिनके पास रहने की व्यवस्था नहीं होती, हम उनके रुकने की व्यवस्था करवाते हैं. बाहरी होने की वजह से कई बार दलाल लोग उन्हें लूटने की कोशिश करते हैं तो वह हमारे पास आते हैं, ऐसे दलालो को कभी-कभी धमकाना पड़ता है.”

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शाखा के दफ्तार चलाने के लिए शाखा प्रमुखों को पार्टी की तरफ से किसी तरह की कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती है. दफ्तर के बिजली के खर्चे से लेकर लोगों की मदद तक का खर्चा शाखा प्रमुख करते हैं. पेडनेकर कहते हैं, “हमारे बड़ों ने हमें बस शिवसेना नाम की छड़ी दी है, उसका लोगों की मदद के लिए कैसा इस्तेमाल करना है यह हम पर निर्भर करता है.”

एक अन्य शिवसैनिक रितेश सावंत कहते हैं, “शिवसैनिको के घर का हर सदस्य शिवसेना को ही वोट देता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी की वजह से मुंबई में भाजपा की लोकप्रियता बढ़ी है, लेकिन इससे शिवसेना के प्रभाव पर ज़रा भी फर्क नहीं पड़ा है. शिवसेना को चाहने वाले आज भी उसी को वोट करते हैं. आज भी बालासाहेब के प्रति लोगो की उतनी ही आस्था हैं, आज भी हम शिवसैनिक उनके पुराने भाषण सुनकर उनसे प्रेरणा लेते हैं और काम करते हैं. जब तक शिवसैनिक ज़िंदा है शिवसेना कभी ख़त्म नहीं होगी.”

दुर्वास पारकर जो शिवसेना भवन के पास अपनी चित्रों की दुकान चलाते हैं, कहते हैं, ‘ शिवसैनिक हमेशा हमारी मदद करते हैं. कोई भी दिक्कत होती है तो हम पास के शाखा में चले जाते है और शाखा प्रमुख हमारी समस्या सुलझा देते हैं. चाहे बच्चों के एडमिशन की बात हो, या नौकरी की.”

पारकर आगे कहते हैं, “मराठी लोग अगर मुम्बई में आज शान से रह रहें हैं तो सिर्फ बालासाहेब ठाकरे की वजह से वर्ना बहुत मुश्किल होता. हमारे लिए वे शिवाजी महाराज के समान हैं.”

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