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Contributeइस सप्ताह की एनएल चर्चा में जेएनयू में छात्रों का फीस वृद्धि को लेकर चल रहा आंदोलन प्रमुखता से छाया रहा. इसके अलावा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में छात्रों के एक गुट द्वारा एक मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति का विरोध और इस पूरे सप्ताह इलेक्टोरल बांड को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी पर प्रकाशित हुई विशेष सिरीज़ चर्चा के केंद्र में रही. ये पूरी सिरीज बताती है कि कैसे सरकार ने चुनावी व्यवस्था में काले धन को संस्थागत रूप दे दिया. दिल्ली में हवा और पानी की जो खराब स्थिति है उस पर भी चर्चा हुई.
इस हफ्ते चर्चा में दो खास मेहमान, बीबीसी इंडिया के डिजिटल एडिटर मिलिंद खांडेकर और मैगज़ीन एडिटर, न्यूज़ 18 मनीषा पाण्डेय शामिल हुईं. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
जेएनयू पर चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल चौरसिया ने कहा कि एक चीज जो मैं जानना चाहता हूं कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी हो या बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी वहां के भी छात्रों के लिए फीस वृद्धि एक बड़ा मुद्दा रहता है लेकिन जेएनयू के फीस वृद्धि को लेकर हो रहे विरोध को जिस तरह से राजनीतिक रंग दे दिया गया है उसे किस तरह से देखा जाय. इसको मिलिंद आप कैसे देखते हैं?
इस सवाल का जवाब देते हुए मिलिंद खांडेकर ने कहा, “देखिए जेएनयू के मुद्दे को आप सिर्फ फीस वृद्धि से जोड़ के देखे तो वो ठीक नहीं होगा. जब से नई सरकार आई है तब से उसकी जेएनयू के साथ एक विचारों की भी लड़ाई चल रही है. लेफ्ट बनाम राईट. और इसलिए जेएनयू में जब भी कोई घटना होती है तो उसको जरूरत से ज्यादा तवज्जो मिलती है. उस पर बहुत ज्यादा चर्चा होती है. तो मुझे लगता है कि फीस वृद्धि बस एक बहाना है. जो भी सरकार सत्ता में होती है उसको लगता है कि वो दूसरे विचार को खत्म कर सकती है. जेएनयू में विचारों की लड़ाई चल रही है.”
जेएनयू में चल रहे वृद्धि के आंदोलन की मनीषा पांडे ने एक अलग पहलु से व्याख्या की, “जेएनयू क्यों अलग है, इसके लिए मैं एक उदाहरण देती हूं. कुछ साल पहले जेएनयू में एक लड़के ने एक लड़की पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया था. हम लोग जिस इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से आए है वहां लड़कियों के साथ बतमीजी या छेड़छाड़ की घटनाएं बहुत स्वीकार्य थी. इसके लिए कोई काउंसलिंग या कोई जागरुकता कार्यक्रम नहीं होता था. लेकिन जेएनयू में उस घटना के बाद महीनों तक काउंसलिंग सेशन चला. शिक्षकों ने मीटिंग ली. लड़कों और लड़कियों को एक दूसरे के प्रति सेंवेदनशील और सम्मानपूर्वक देखने की जरूरत पर जोर दिया गया. शिक्षक और कैम्पस में मौजूद हर शख्स उस संवाद में शामिल हुआ. ये हैं उस यूनिवर्सिटी का महौल.”
इसके अलावा भी तमाम विषयों पर दिलचस्प और तथ्यपरक चर्चा हुई. पूरी चर्चा सुनने के लिए आप हमारा पूरा पॉडकास्ट सुनें.
पत्रकारों की राय, क्या देखा, सुना और पढ़ा जाय:
अतुल चौरसिया
एनपीआर पॉडकास्ट: हाउ आइ बिल्ट दिस
फिल्म: बाला
मनीषा पांडे
फिल्म: द आवर्स
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