दिल्ली अग्निकाण्ड: ‘जब तक पत्रकारों का आना बंद नहीं होगा तब तक यहां हालात नहीं बदलेंगे’

दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में भीषण अग्निकांड के तीन दिन बाद एक लेखाजोखा.

WrittenBy:बसंत कुमार
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“दो दिन से काम बंद है. अब तो डर लगने लगा है. जिस गली में यह घटना हुई उस गली में ही अकेले पांच हज़ार से ज्यादा मजदूर रोजाना काम करते हैं. इस घटना के बाद तो मुझे लगता है कि किसी दिन मैं जहां काम करता हूं वहां आग लग गई तो मैं भी भुट्टे की तरह जलकर ख़ाक हो जाऊंगा. मैं अब शायद ही यहां काम कर पाऊं,’’ यह कहना है बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले रहने वाले मनोज मिश्रा का.

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मनोज मिश्रा आनाज मंडी इलाके में ही पिछले पांच साल से मजदूरी करते आ रहे हैं. उनका कारखाना उसी बिल्डिंग के पास है जहां रविवार की सुबह आग लगने 43 लोगों की मौत हो गई थी.

जिस गली में यह आग लगी उसके गेट पर लिखे संदेश ‘आपका हार्दिक अभिनंदन है’ से अभिनंदन शब्द मिट चुका है. पुलिसकर्मी लगातार सुरक्षा में तैनात हैं और आसपास के लोग उस बिल्डिंग को देखने आ रहे हैं जिसमें लगी आग की चीखें दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बिहार और यूपी के गांवों में सुनाई दे रही है.

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हर घर में होता है काम  

अनाज मंडी से सटी उस गली में हम प्रवेश करते हैं जिसमें रविवार की अल सुबह भीषण आग लगी थी. वहां हमारी मुलाकात बिहार के रहने वाले निजाम से हुई. अपने दोस्त के साथ घटनास्थल से लौट रहे निजाम कहते हैं, ‘‘सारा दोष नितीश और लालू का है. बिहार में रोजगार देते नहीं हैं. तो हमें इतना दूर आना पड़ता है. बताइए जहां काम करते थे वहीं सोते थे. यहां हर घर में ऐसा ही काम होता है. मुर्गे-मुर्गियों की तरह रहते हैं हम.’’

अनाज मंडी इलाके में हर घर के अंदर छोटे-छोटे कुटीर उद्योग चलते हैं. किसी में स्कूल बैग बनाया जाता है तो किसी में टोपी. कई घरों में प्लास्टिक के खिलौने बनाए जाते है. यह काम यहां सालों से चलता आ रहा है. ज्यादातर घरों के मालिक नीचे के दो से तीन फ्लोर पर अपना व्यवसाय करते हैं और सबसे ऊपर उनका परिवार रहता है.

घटना के बाद अनाज मंडी इलाके के लोग मीडिया से बच रहे हैं. एक दुकानदार नाम नहीं छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करने को राजी होते हैं. वे कहते हैं, ‘‘जब एमसीडी बनी भी नहीं थी तब से हमारे बाप-दादा यहां कारोबार कर रहे हैं. हमें लोगों के मरने का दुःख है, लेकिन यह एक दुर्घटना थी जो घट गई. आग तो सरकारी ऑफिस में भी लग जाती है जहां सुरक्षा का इतना इंतजाम होता है. दो दिनों से हमारा काम बंद पड़ा हुआ है. जब तक पत्रकार आते रहेंगे तब तक हम अपनी दुकान नहीं खोलेंगे. इनको बस गड़बड़ी दिखाना है. माइक मुंह में घुसाकर आप लोग पूछने लगते हैं कि आपके पास ये प्रमाणपत्र, ये कागज़ है. इसका जवाब कौन देगा. यहां ज्यदातर लोग बिना किसी वैध प्रमाणपत्र के काम कर रहे हैं.’’

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नियम के खिलाफ काम करना गलत है. लेकिन यहां के ज्यादातर मालिकों को इससे फ़र्क नहीं पड़ता है. मीडिया से नाराज़ स्थानीय मलिक इस दर्दनाक हादसे को एक घटना मानकर आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं.

इसी गली में रहने वाले एक दूसरे व्यवसायी और मकान मालिक कहते हैं, ‘‘नियम से इस देश में क्या-क्या होता है? आज आपको उन परिवारों का दुःख दिख रहा है. उनका दुःख सही भी है. लेकिन उनके जैसे लाखों परिवारों का पेट अनाज मंडी से भरता है. लोग यहां काम करते हैं. सरकार तो रोजगार दे नहीं पा रही है. हम रोजगार दे रहे है तो हमें ही नियम-कानून का पाठ पढ़ाया जा रहा है. अब हर कोई नरेला में जाकर व्यवसाय तो करेगा नहीं.’’

स्थानीय लोग घटना के शिकार मकान के मालिक रेहान का बचाव करते नज़र आते हैं. 600 गज में फैले इस मकान के मालिक रेहान और उसके मैनेजर को गिरफ्तार किया जा चुका है. उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (ग़ैरइरादतन हत्या) के तहत मामला दर्ज किया गया है. घटना के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम बिल्डिंग को अपने कब्जे में लेकर जांच कर रही है.

रेहान का बचाव करते हुए स्थानीय लोग कहते हैं कि उसकी क्या गलती थी. आग तो लग जाती है. उसने जानबूझ कर किसी को मारा तो नहीं था. वो तो लोगों को रोजगार दे रहा था. वो तो बेचारा बेवजह जेल काटेगा.

इस बिल्डिंग में रेहान का अपना काम तो था ही उसके अलावा भी कई और लोग किराए पर कमरा लेकर अपना छोटा-मोटा व्यवसाय चला रहे थे.

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निजाम

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के शव गृह के सामने लोगों का एक समूह बेहद उदास बैठा नज़र आ रहा है. बिजनौर के 12 साल का अली अपने पिता का शव लेने पहुंचा तो उसे देख वहां आसपास मौजूद सभी लोगों की आंखें भर गई. अस्पताल प्रशासन शव उसी शख्स को सौंप रहे हैं जिसका मृतक से खून का रिश्ता हो.

 शोक का गांव

इस घटना में बिहार के समस्तीपुर जिले के एक ही गांव हरिपुर के दस लोगों की मौत हो चुकी है. अभी कुछ शवों की पहचान होना बाकी है ऐसे में हरिपुर के रहने वाले लोगों का कहना है कि मृतकों की संख्या बढ़ भी सकती है. यहां के सभी मरने वाले मुस्लिम समुदाय से हैं.

हरिपुर गांव के रहने वाले मनोज कीर्ति नगर में कारपेंटर का काम करते हैं. उनको घटना की जानकारी मिली तो वो भागे-भागे अस्पताल पहुंचे. मनोज कहते हैं, ‘‘मरने वालों में कई मेरे बचपन के साथी थे. हम कई बार दिल्ली से अपने गांव साथ-साथ गांव गए. जब से इस घटना के बारे में सुना, मेरे होश ही उड़ गए हैं.’’

एक कोने में खड़े होकर मोबाइल पर रो-रोकर किसी से बात कर रहे नसीम के जीजा और जीजा के छोटे भाई की भी मौत इस हादसे में हो गई है. फोन में अपने एक रिश्तेदार से नसीम कहते हैं, ‘‘दीदी को पता मत चलने देना की जीजा की मौत ही गई है. वो पागल हो जाएगी.’’

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नसीम

नसीम न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘पांच साल पहले मेरी बहन की शादी हुई थी. उसकी दो बेटियां हैं. एक तीन साल की है. दूसरी अभी सात दिन पहले ही हुई है. अभी तक हमने बहन को बताया नहीं है कि जीजा की मौत हो गई है. बच्चे की पैदाइश के बाद उसका शरीर कमजोर हो गया है. इसकी जानकारी मिलते ही वो पागल हो जाएगी. घर पर कोई समझाने वाला नहीं है.’’

बिहार के पूर्णिया जिले के रहने वाले मोहम्मद मुन्ना के दो सालों की मौत इस हादसे में हो गई है. जयपुर में रहकर काम करने वाले मुन्ना को जब इस बात की जानकारी मिली तो वे भागे-भागे यहां पहुंचे. शव की शिनाख्त तो कर ली है लेकिन शव उन्हें सौंपा नहीं जा रहा है. मुन्ना कहते हैं, ‘‘मृतक के परिजन आ रहे हैं. उन्हीं को शव दिया जाएगा.’’

मैं अपने दोस्त को बचा नहीं पाया

यह घटना कितनी खतरनाक थी और लोग कैसे तड़प-तड़प कर मरे हैं इसका एक ऑडियो सामने आया है. आग में घिरे बिनजौर के मुशर्रफ अली ने अपने दोस्त मोनू को फोन किया था. फ़ोन करने के थोड़ी देर बाद ही मुशर्रफ की मौत हो गई.

मोनू और मुशर्रफ बचपन के दोस्त हैं. आग लगने के बाद चारो तरफ से घिरे मुशर्रफ ने मोनू से अपने बच्चों का ख्याल रखने को कहा. हमने मोनू से बात की. मोनू कहते हैं, ‘‘मैं सो रहा था. सुबह के पांच से साढ़े पांच के बीच मुझे फोन आया. इत्तफाक से मैंने फोन उठा लिया. उधर से मुशर्रफ की टूटती आवाज़ सुनाई दी जिसमें वो मरने की बात कर रहा था. मैं समझ ही नहीं पा रहा था क्या बोलूं. मैं उसे जितना हो सकता था समझाया. पर वो अब नहीं रहा. मैं बदनसीब हूं कि अपने दोस्त को बचा नहीं पाया. उसने कुछ सोचकर ही मुझे याद किया होगा.’’

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मोनू 

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के बाहर भी उदासियों की चहल-पहल पिछले तीन दिन से जारी है. बिहार और यूपी से लोग अपने परिजनों का शव लेने आ रहे हैं.

दिल्ली सरकार के मंत्री इमरान हुसैन कहते हैं, ‘‘तमाम शवों को एम्बुलेंस से उनके घर भेजा जाएगा. जो मृतक दिल्ली के आसपास के हैं उनको शव गृह से सीधे उनके घर भेजा जा रहा हैं, लेकिन जो मृतक बिहार या किसी दूरदराज से हैं उनके शव को पहले कापसहेड़ा भेजा जा रहा है. वहां इनके शरीर पर दवाइयों का लेप लगाया जाएगा फिर उनके घरों को भेजा जाएगा ताकि शव खराब न हों.’’

मुआवजे के सवाल पर इमरान हुसैन कहते हैं, ‘‘मृतकों के परिजनों को जल्द से जल्द मुआवजे की राशि दी जाएगी.’’

घटना के लिए कौन जिम्मेदार?

इस दर्दनाक हादसे के तुरंत बाद से ही राजनीति शुरू हो गई. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने इसके लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार को जिम्मेदार ठहराया वहीं आप ने इसके लिए बीजेपी के नेतृत्व में सालों से काम कर रही एमसीडी को कसूरवार बताया है.

दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने आम आदमी पार्टी पर आरोप लगाते हुए घटना वाले बिल्डिंग के मालिक को आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता बताया है.

अनाज मंडी में रहने वाले लोग मनोज तिवारी के इस बयान को सरासर गलत करार देते हैं. अनाज मंडी में काम करने वाले मनोज कहते हैं, “पहली बात कि उसका किसी पार्टी से कभी कोई कनेक्शन नहीं था. दूसरी बात किसी वर्कर की गलती से पार्टी का क्या संबंध. वैसे भी मकान मालिक से कोई गलती नहीं हुई है. वह एक हादसा था.”

वहीं आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह इस मामले पर कहते हैं, ‘‘भारतीय जनता पार्टी हमेशा लाश के ऊपर राजनीति करती है. फैक्ट्री को लाइसेंस देने का काम एमसीडी का है. अगर एक घर में अवैध तरीके से फैक्ट्री चल रही थी तो उसको बंद कराने की जिम्मेदारी एमसीडी की थी. एमसीडी पर बीजेपी का कब्जा है. एमसीडी ने उस फैक्ट्री को चलने कैसे दिया? जहां तक दिल्ली सरकार के फायर विभाग की है तो उसने साफ़ कह दिया है कि कोई भी अनापत्ति प्रमाण पत्र कंपनी को नहीं दिया गया था.’’

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घटना के लिए ज्यदातर लोग एमसीडी को ही जिम्मेदार बता रहे हैं. लेकिन घटनास्थल पर पहुंची नार्थ एमसीडी की कमिश्नर वर्षा जोशी से जब इस मामले को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने किसी सवाल का जवाब देने के बजाय वहां से निकल गई.

शव गृह के सामने अपने ममेरे भाई का शव लेने पहुंचे रिजवान कहते हैं, ‘‘ये लोग राजनीति करेंगे, चुनाव जीतेंगे. लेकिन हमारे लोग तो नहीं रहे. मेरे भाई की दो बेटियां हैं. उनकी देखभाल अब कौन करेगा?’’

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अपने रिश्तेदार को खोने वाले दिलदार हुसैन वेलकम में रहते हैं. वे कहते हैं,  ‘‘अनाज मंडी ही क्या दिल्ली के कई इलाकों में लोग बुरी स्थिति में रहकर काम करने को मजबूर हैं. इस घटना को दो-चार दिन में लोग भूल जाएंगे. लेकिन जिनका कोई मर गया वो शायद ही भूल पाएं. मजदूर मरते रहेंगे. यह कोई पहली बार नहीं था जब मजदूर बेमौत मरे हो?”

दिल्ली में ऐसे तमाम इलाके हैं जहां अवैध रूप से औद्योगिक इकाइयां रिहाइशी इलाकों में काम कर ही हैं. ऐसे तमाम मौके अतीत में सामने आए जहां एमसीडी की मिलीभगत से ऐसी इकाइयां काम कर रही थी. लेकिन बाद में कार्रवाई के स्तर पर कुछ नहीं होता. ना ही भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई दूरगामी नीति बनती है. लिहाजा हम बार-बार इस तरह की अमानवीय दुर्घटनाओं को झेलने के लिए अभिशप्त हैं.

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