मेरठ हिंसा में घायल पत्रकार: ‘मीडिया को लेकर लोगों में गुस्सा है जिसका शिकार मैं हो गया’

मेरठ में 20 दिसंबर को हुए विरोध-प्रदर्शन में घायल पत्रकार खुर्शीद अहमद से बातचीत.

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मेरठ में भी 20 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसमें पांच नागरिकों की मौत गोली लगने से हो गई थी. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने ईटीवी भारत के रिपोर्टर खुर्शीद अहमद को भी निशाना बनाया. खुर्शीद पर प्रदर्शनकारियों ने उस वक़्त हमला किया जब वे एक पुलिस चौकी को फूंके जाने की रिपोर्टिंग कर रहे थे. इस हमले में खुर्शीद को गहरी चोटें आई हैं.

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प्रदर्शनकारियों ने खुर्शीद पर हमले के दौरान उन्हें जमकर पीटा और साथ ही उनका फोन और माइक आईडी भी छीन लिया. जो अभी तक उन्हें नहीं मिला है.

‘वे मुझे सुन तक नहीं रहे थे बस मारने लगे

घटना के बारे में न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए खुर्शीद कहते हैं, ‘‘शुक्रवार को नमाज़े-जुमा के बाद ख़बरें आने लगी कि कुछ जगहों पर पथराव हो रहा है. लाठीचार्ज हुआ है. लिहाजा मैं रिपोर्टिंग के लिए निकल गया. शहर के दूसरे हिस्से से घटना की ख़बर आई थी. मैं उधर ही निकल गया. रास्ते में इस्लामाबाद पुलिस चौकी है. मुझे लगा कि पुलिस चौकी पर पुलिस मौजूद होगी. पुलिस चौकी पर तो कोई नहीं था लेकिन वहां गाड़ियां जल रही थीं. मैं उसका विजुअल बनाने लगा. उसी दौरान तीन-चार दंगाई आए और मुझे पकड़कर पीटने लगे. मैं उनसे जैसे-तैसे छूटकर भागा. सरकारी अस्पताल में भर्ती हुआ. उन्होंने मेरे सिर पर हमला किया था. अभी मुझे 12 टांके लगे हुए हैं.’’

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इस्लामाबाद पुलिस चौकी

पिछले डेढ़ साल से मेरठ में ईटीवी भारत के लिए रिपोर्टिंग कर रहे खुर्शीद पर प्रदर्शनकारियों ने पहले उनके ही सेल्फी स्टिक से हमला किया. उसके बाद उनके सर पर ईट मार दिया.

खुर्शीद बताते हैं, ‘‘मैंने प्रदर्शनकारियों को अपना नाम बताया. उन्हें अपनी आईडी कार्ड दिखाता रहा. मेरे हाथ में उस वक़्त माइक आईडी भी था. वे कुछ सुन नहीं रहे थे लगातार मुझपर हमला करते रहे. पहले उन्होंने मेरे ही सेल्फी स्टिक से मेरे सिर पर मारा. उसके बाद ईंट मारने लगे. मुझे मारते वक़्त वे लगातार कह रहे थे कि हमारी ख़बरें तो दिखाते नहीं हो.’’

खुर्शीद आगे कहते हैं, ‘‘प्रदर्शनकारियों के अंदर मीडिया को लेकर गुस्सा था. मुझ पर हमला करते वक़्त वे कह रहे थे कि हमारी ख़बरें तुम लोग दिखाते नहीं हो. मीडिया के खिलाफ लोगों में जो धारणा बन गई है वह साफ़ दिख रहा था. लेकिन सभी पत्रकार तो एक जैसे नहीं है. मैं वहां गया था वहां की हकीकत दिखाने की कोशिश कर रहा था. दूसरी बात उनके मन में यह डर बैठ गया कि मैं जो पुलिस चौकी जलाते हुए विजुअल बना रहा था उसमें उनकी तस्वीर भी आ गई है. इस वजह से उन्होंने मेरा मोबाइल वगैरह भी छीन लिया. माइक आईडी भी छीन लिया.’’

इस मामले को लेकर खुर्शीद ने स्थानीय थाने में एफआईआर दर्ज कराई है. लेकिन पुलिस ने इस मामले में उनसे कोई सम्पर्क नहीं किया है.

प्रदर्शन हिंसक कैसे हुआ

मेरठ में घटना के एक सप्ताह गुजर जाने के बाद भी लोगों में भय कायम है. घटना के बाद दूसरा शुक्रवार होने की वजह से मेरठ में प्रशासन काफी चुस्त-दुरुस्त नजर आया. भारी मात्रा में सुरक्षा बल तैनात थे लेकिन सड़कों पर लोग कम ही निकले. भीड़ से गुलजार रहने वाले मेरठ के कई बाज़ारों में सन्नाटा नज़र आया.

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घटना के एक सप्ताह बाद खाली पड़ी सड़कें

बीते शुक्रवार को शांतिपूर्ण प्रदर्शन कैसे हिंसक हो गया इसको लेकर खुर्शीद कहते हैं, ‘‘नमाज़ पढ़ने के बाद जैसे लोग निकले तो काफी संख्या में पुलिस गलियों में घूम रही थी. वहां पुलिस को मामले को कंट्रोल करने के लिए लोगों से अपील करनी चाहिए थी लेकिन ऐसा करने में पुलिस चूक गई. मैंने देखा कि पुलिस ने लोगों से कहा कि घरों के अंदर चले जाओ नहीं तो हमने तुम्हारा इंतजाम कर रखा है. पुलिस को गुज़ारिश करनी चाहिए थी क्योंकि सामने भीड़ थी.’’

खुर्शीद बताते हैं, ‘‘उस रोज लोगों ने जबर्दस्त पथराव किया था. रिपोर्टिंग के दौरान मैं कई इलाकों में गया जहां सड़कों पर काफी संख्या में पत्थर नज़र आ रहे थे. उस दिन पुलिस की तरफ से भी फायरिंग हुई है. इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है. यहां पांच मौतें भी हुई है जिसमें से चार की प्रशासन ने तस्दीक की है.’’

मेरठ में हिंसा के दौरान हुई आम नागरिकों की मौत की जिम्मेदारी पुलिस ने नहीं ली है. वहीं मृतकों के परिजनों का आरोप है कि मरने वालों को पुलिस की ही गोली लगी है. वहीं पुलिस का दावा है कि प्रदर्शनकारियों ने भी गोली चलाई है. इसकी कई तस्वीरें पुलिस ने खुद साझा किया है.

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इसको लेकर खुर्शीद कहते हैं, ‘‘पुलिस ने हमें सीसीटीवी से कुछ तस्वीरें साझा की है जिसमें दो-तीन नौजवान ऐसे दिख रहे हैं जिनके पास पिस्टल है. वे फायर करके वापस जा रहे है. रिपोर्टिंग के दौरान मैंने पब्लिक के हाथ में हथियार तो नहीं देखा लेकिन सीसीटीवी में जो सामने आया उसमें वो ज़रूर नजर आ रहा है. पर पुलिस ने सिर्फ पब्लिक की तरफ का फूटेज जारी किया है. पुलिस के तरफ का जारी नहीं हुआ है. अगर पुलिस अपने तरफ का भी सीसीटीवी फूटेज जारी कर दे तो उसमें एक निष्पक्षता और पारदर्शिता आ जाएगी.’’

सीएए और एनआरसी के विरोध के दौरान मीडिया पर निशाना

सीएए और एनआरसी को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान मीडिया को कई जगहों पर निशाना बनाया गया. इस दौरान प्रदर्शनकारियों में कुछ मीडिया संस्थानों को लेकर गुस्सा साफ़ नजर आया. जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रदर्शन के दौरान गोदी मीडिया गो बैक के नारे लगे. लोगों ने सड़कों पर भी यह नारा लिख दिया था.

21 दिसंबर को लखनऊ में सीएए के प्रदर्शन के दौरान ही कई मीडिया संस्थानों के ओबी वैन को प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया था.

प्रदर्शन कर रहे लोग आरोप लगाते हैं कि उनकी बातों को मीडिया नहीं दिखाता है. सरकार का ही पक्ष ज्यादा दिखाया जाता है.

खुर्शीद का इंटरव्यू यहां देखें.

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