मेरठ के प्राइवेट अस्पतालों ने गोली लगे घायलों को बिना इलाज वापस लौटा दिया

कुछ अस्पतालों के मुताबिक उन्होंने पुलिस के निर्देश पर ऐसा किया, कुछ ने स्वयं ही इसे लागू कर दिया. 21 दिसंबर को हुई हिंसा की पड़ताल.

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नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में 20 दिसंबर को हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पांच लोगों की मौत के छह दिन बाद भी मेरठ शहर में असहजता और बेचैनी का आलम है. पुलिस की उग्र कार्रवाई से डरे-सहमे लोग अभी भी घरों से निकलने से बच रहे हैं. 26 दिसंबर को जब हम एक मृतक के परिजनों से मिलने जा रहे थे तभी एक घर की छत पर बैठा शख्स हमसे पूछता है, शहर की फ़िज़ा कैसी है?’

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26 दिसंबर को दोपहर के तीन बज रहे हैं. मेरठ के जाली वाली गली में स्थित अपने मकान के बरामदे में 70 वर्षीय मुंशी अहमद कालीन बिछाकर बैठे हुए हैं. कांग्रेस के कुछ नेता उनसे दिल्ली से मिलने आए हुए हैं. अपने बेटे की मौत का ग़म साझा करते हुए वो अचानक चुप हो जाते हैं और फिर रोने लगते हैं. नेताओं की टीम उनके साथ सहानुभूति जताते हुए हर तरह की मदद करने का वादा करती है. नेताओं का समूह जैसे ही निकलता है, एक स्थानीय पत्रकार उनके पास बैठकर बेटे की मौत के बारे में पूछताछ करने लगता है. मुशी फिर से अपने बेटे की मौत से जुड़ी तमाम बातें दोहराने लगते हैं. घटना के बाद से यही उनकी दिनचर्या बन गई है. मिलने-जुलने वालों का तांता लगा रहता है, बीच-बीच में बाहर से आए पत्रकार, नेता उनसे बेटे की मौत से जुड़ी वही जानकारियां मांगते हैं जो वो बार-बार दोहरा चुके हैं.

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ज़हीर अहमद के पिता, मुंशी अहमद.

मुंशी के घर के सामने गली में खड़े उनके एक पड़ोसी ने बताया, ‘‘दिन में सैकड़ों लोग आते हैं और सबको यह अपने बेटे की मौत की कहानी सुनाते हैं. यह सिलसिला पिछले छह दिनों से जारी है. इस बुजुर्ग आदमी का वो सहारा था जिसे पुलिस ने छीन लिया.’’

20 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान मेरठ शहर में जिन पांच लोगों की मौत हुई थी उनमें मुंशी अहमद के 45 वर्षीय बेटे ज़हीर भी थे. ज़हीर शहर में मजदूरी कर गुजारा करते थे.

जब हम मुंशी के घर के बाहर खड़े होकर उनसे बातचीत का इंतज़ार कर रहे थे, उसी वक्त ख़ुद को सुप्रीम कोर्ट का वकील बताने वाली एक महिला वहां पहुंचती हैं. काफी देर बातचीत के बाद महिला वकील मुंशी अहमद से पूछती हैं, ‘आप चाहते हैं कि आपको न्याय मिले?’ इस सवाल के जवाब में धीमी आवाज़ में मुंशी अहमद कहते हैं, ‘‘मेरा बेटा मरा है. मैं क्यों नहीं चाहूंगा कि मुझे न्याय मिले. पुलिस वाले ने उसकी हत्या की है, उसे सज़ा मिले. लेकिन मुझे डर है कि अगर हम लड़ाई के लिए आगे आएंगे तो पुलिस हम पर और ज़ुल्म करेगी. पुलिस ने मेरे मरे हुए बेटे को बलवाई बताते हुए मामला दर्ज़ किया है. मेरा बेटा बलवाई नहीं था.’’

मुंशी अहमद कोर्ट में केस लड़ने को राज़ी नहीं होते इसके बाद महिला वकील वापस लौट जाती हैं.

उनके जाने के बाद न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए मुंशी अहमद कहते हैं, ‘‘मेरा बेटा उस रोज़ काम से वापस लौटा था. वह मजदूरी करता था. रोज़ाना तीन सौ से चार सौ रुपए कमा लेता था. काम से लौटने के बाद घर से बाहर ही एक दुकान से बीड़ी खरीदकर पी रहा था. तभी पुलिस गली में आई और उसे गोली मार दी. गोली उसके सर में लगी. उस वक़्त गली में कई लोग मौजूद थे, लेकिन जब उसे गोली लगी तो सब डरकर भाग गए. थोड़ी देर बाद जब पुलिस चली गई तो हम वहां पहुंचे और उसे अस्पताल लेकर भागे जहां डॉक्टर ने कहा कि उसकी मौत हो गई है. ज़हीर ही मेरा सहारा था. उसकी 22 साल की एक बेटी है जिसकी शादी के लिए वह लड़का देख रहा था. हमारा तो सबकुछ तबाह हो गया.’’

उसी दिन जालीवाली गली के बगल में मौजूद बादलवाली गली के रहने वाले 32 वर्षीय आसिफ़ की भी मौत गोली लगने से हुई. आसिफ के परिवार में पत्नी और तीन बच्चों के अलावा कोई नहीं है. उनके मां-बाप की मौत पहले ही हो गई है. आसिफ की मौत के बाद उनकी पत्नी अब मायके में रह रही है.

न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब आसिफ से मिलने पहुंची तो उनकी तीनों बेटियां सड़क पर खेलती नज़र आई. आसिफ के एक रिश्तेदार ने बताया, ‘‘वह मजदूरी करता था. काम करके लौटा था. नमाज़ पढ़ने के बाद अपने ससुराल खाना खाने के लिए आ रहा था. बीच रास्ते में ही पुलिस की गोली आकर उसकी छाती में लगी. उस वक़्त मैं भी वहीं मौजूद था लेकिन पुलिस के डर से भाग गया. पुलिस जब आगे बढ़ गई तब हम आसिफ़ के पास पहुंचे.’’

मेरठ में 20 दिसंबर को हुए विरोध प्रदर्शन के दिन खत्ता रोड के आसपास तीन लोगों की मौत हुई थी. आसिफ और ज़हीर को जहां गोली लगी उससे महज सौ मीटर की दूरी पर मोहसिन को गोली लगी. गुलज़ारे इब्राहीम इलाके के रहने वाले मोहसिन के बड़े भाई इमरान बताते हैं, ‘‘शहर का माहौल बिगड़ रहा था तो मेरे भाई ने सोचा की मवेशियों के लिए चारा लाकर रख दे. यही सोचकर वह ठेला लेकर चारा लाने गया. ट्यूबेल चौराहा के पास पहुंचा तो वहां प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच पत्थरबाजी चल रही थी. दोनों के बीच वह फंस गया था. इसी दौरान उसे गोली लग गई.’’

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वो ठेला जो मोहसिन अपने साथ ले गए थे जब उन्हें गोली लगी थी.

इमरान बताते हैं, ‘‘भाई को गोली लगने की जानकारी हमें मिली तो हम भागे-भागे वहां पहुंचे और उसे संतोष अस्पताल लेकर पहुंचे. अस्पताल वालों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया. हम उसके बगल के अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने भी भर्ती करने से मना कर दिया. अस्पताल वालों ने कहा कि कोई प्राइवेट अस्पताल गोली लगे मरीज को अपने यहां भर्ती नहीं करेगा. फिर हम सरकारी अस्पताल लेकर भागे जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.’’

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मोहम्मद इमरान, मोहसिन के भाई.

मोहसिन को पुलिस की गोली लगी है, इसकी गवाही घटना के वक्त उनके साथ मौजूद साजिद देते है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए साजिद कहते हैं, ‘‘उसे पुलिस ने गोली मारी है. मैंने गोली लगते देखा है. मैं तो वहीं पर मौजूद था.’’

प्राइवेट अस्पतालों ने भर्ती करने से किया इंकार

मोहम्मद इमरान ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में बताया कि जब संतोष अस्पताल और उसके बगल के अस्पताल ने मोहसिन को भर्ती करने से इनकार कर दिया तो हमने पूछा कि जब पीड़ित को तत्काल इलाज की ज़रूरत है तब अस्पताल उसे भर्ती करने से क्यों इनकार कर रहा है. हम ये जानकर हैरान हुए कि असल में पुलिस ने यहां के कुछ प्राइवेट अस्पतालों को प्रदर्शन के दौरान घायल हुए लोगों को भर्ती करने से मना किया था. कुछ अस्पतालों ने खुद ही भर्ती न करने का निर्णय लिया था.

20 दिसंबर को शाम 6:30 बजे मेरठ के हापुड़ रोड स्थित संतोष अस्पताल में 10 से अधिक पुलिस के लोग पहुंचे थे. अस्पताल प्रबंधन के एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘पुलिस ने हमें अस्पताल में विरोध-प्रदर्शन में घायल हुए लोगों को भर्ती नहीं करने का निर्देश दिया था. उन्होंने कहा कि हमें प्रदर्शनकारियों की पहचान करनी है. इसलिए आपके अस्पताल में जो भी मरीज प्रदर्शन में घायल होकर आए उसे सीधे सरकारी अस्पताल लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (एलएलएमआरसी) में भेज दें.’’ एलएलएमआरसी, संतोष अस्पताल से 4 किलोमीटर दूर स्थित है.

संतोष अस्पताल के प्रबंधन ने बताया कि 21 दिसंबर, शनिवार की सुबह करीब 11 बजे गोली लगने से घायल एक व्यक्ति उनके अस्पताल में आया था जिसे उन्होंने भर्ती नहीं किया. उन्होंने घायल के परिजनों से कहा, आप कहीं और जाइये. हम भी डरे हुए थे, हमें पुलिस के साथ सहयोग करना पड़ा.

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मेरठ के एमसीसी, संतोष और जगदंबा अस्पताल.

संतोष अस्पताल के बगल में स्थित जगदंबा अस्पताल को पुलिस के निर्देश की ज़रूरत नहीं पड़ी. उन्होंने खुद ही तय कर लिया कि हिंसा में घायल किसी भी शख़्स को अपने यहां भर्ती नहीं करेंगे. अस्पताल के प्रबंधक रुतबहार राणा बताते हैं, ‘‘20 दिसंबर को उनके अस्पताल में भी पुलिस आई थी लेकिन उन्हें कोई निर्देश नहीं मिला. हालांकि हमारे पास 20 दिसंबर को 5-6 मरीज आए थे जिनके हाथ और सिर में चोट थी. हमने उनमें से किसी को भी भर्ती नहीं किया. उसमें से एक मरीज था जिसके सीने में गोली लगी थी. लेकिन घायल का परिवार आईसीयू में बहुत शोर मचा रहा था. इसलिए हमने उन्हें यहां से जाने के लिए कह दिया.’’

संतोष और जगदंबा के पास में ही मेरठ क्रिटिकल केयर (एमसीसी) अस्पताल है. यहां के प्रबंधक बाबूराव ने हमें बताया कि एमसीसी ने अब तक केवल एक घायल ओमराज सिंह को भर्ती किया है. ओमराज को बिजनौर के नहटौर में प्रदर्शन के दौरान गोली लगी थी.

बाबूराव कहते हैं, ‘‘ओमराज दूर से आए थे इसलिए हमने उन्हें भर्ती कर लिया है. हम यहां के ऐसे मरीजों को भर्ती करने से बचते हैं. चूंकि यह इलाका मुस्लिम बाहुल्य है. कुछ भी हुआ तो लोग बवाल करने लगते है.’’

पुलिस द्वारा किसी तरह के निर्देश मिलने के सवाल पर बाबूराव कहते हैं, ‘‘पुलिस तो 20 दिसंबर को हमारे यहां भी आई थी लेकिन हमें उन्होंने इस तरह का कोई निर्देश नहीं दिया. वे बस यहां की सुरक्षा देखने आए थे.’’

हापुड़ रोड पर राजधानी और अर्जुन नाम के दो अन्य अस्पतालों ने पुलिस से निर्देश मिलने से इनकार किया. उन्होंने दावा किया कि विरोध प्रदर्शन के दिन या उसके बाद के दिनों में कोई भी घायल उनके यहां इलाज के लिए नहीं आया था.

क्या पुलिस की तरफ से इस तरह का कोई निर्देश निजी अस्पतालों को दिया गया? यह जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने मेरठ के एसएसपी (सिटी) अखिलेश नारायण सिंह से बात की. अखिलेश नारायण सिंह वहीं अधिकारी है जिनका वीडियो सोशल मीडिया वायरल हुआ जिसमें वो मेरठ के लोगों को पाकिस्तान चले जाने की बात कहते नज़र आ रहे हैं. उन्होंने हमें बताया, ‘‘इस तरह का निर्देश पुलिस ने अस्पतालों को नहीं दिया है. यह अफवाह है. भ्रम फैलाया गया. अस्पतालों को लिखित या फ़ोन पर ऐसी कोई सूचना दी गई है तो उन्हें बताना चाहिए. कई लोग ऐसी शिकायत लेकर आ रहे हैं. हमारी तरफ़ से ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया है.’’

हालांकि मेरठ में मृतकों के परिजनों के अलावा कई घायलों ने भी निजी अस्पतालों द्वारा इलाज नहीं करने और भर्ती नहीं किए जाने को लेकर अपना अनुभव न्यूज़लॉन्ड्री से बताया.

अभी तक न एफआईआर दर्ज़ हुआ न पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली

एक तरफ जहां प्रशासन नुकसान का हिसाब लगाकर हरजाना वसूलने के लिए लोगों की पहचान शुरू चुका है वहीं दूसरी तरफ़ तीनों मृतकों के परिजनों से न्यूज़लॉन्ड्री की बातचीत एक अफ़सोसजनक स्थिति सामने लाती है. उन्होंने बताया कि घटना के छह दिन गुजर जाने के बाद भी न तो किसी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट दी गई है न ही एफआईआर दर्ज़ हुआ है.

मोहसिन के बड़े भाई मोहम्मद इमरान न्यूज़लॉन्ड्री को तहरीर की कॉपी दिखाते हैं, जो उन्होंने 20 दिसंबर को ब्रह्मपुरी थाने में दी है. अपनी तहरीर में इमरान ने पुलिस पर गोली मारने का आरोप लगाया है. तहरीर में उन्होंने लिखा है, ‘‘मेरा भाई भैंसों के लिए कुट्टी (चारा) लाने जा रहा था. ट्यूबेल चौराहे के पास पहुंचा तो लोग प्रदर्शन कर रहे थे. जहां कुछ लोग पुलिस पर पत्थर चला रहे थे और पुलिस गोली चला रही थी. तभी पुलिस की तरफ से आई गोली उनके भाई को लगी.’’

तहरीर देने के छह दिन बाद भी पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं किया है. जब इमरान तहरीर देने गए थे तो ब्रह्मपुरी थाने के दरोगा ने उसे पढ़ने के बाद नाराज़गी दर्ज़ की. इमरान बताते हैं, ‘‘दरोगा ने कहा कि हमने गोली नहीं चलाई है. फिर बहस हुई. तभी उसके बगल में खड़े एक अधिकारी ने कहा कि हमने गोली चलाई है. हालांकि तहरीर देने के बाद भी पुलिस ने एफआईआर दर्ज़ नहीं किया है.’’

ऐसी ही हाल आसिफ और ज़हीर के मामले में भी है. दोनों के परिजनों ने पुलिस को तहरीर दी है, लेकिन उनकी तहरीर के आधार पर अभी तक एफआईआर दर्ज़ नहीं किया गया है. आसिफ की पत्नी ने 20 दिसंबर को तहरीर दी है. उनके अनुसार 20 दिसंबर की शाम चार बजे उनके पति घर का सामान लाने बाज़ार गए थे. वहां पुलिस लोगों पर अंधाधुंध गोली चला रही थी जिसमें उनके पति के सिर में गोली लगी.

एक सीनियर पुलिस अधिकारी पुलिस की गोली लगने से किसी भी शख़्स की मौत होने की बात से साफ़ इनकार करते है. वे यह दावा तो करते हैं लेकिन अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते क्योंकि अभी तक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है और संभव है कि रिपोर्ट सामने आने के बाद उनका दावा मेरठ पुलिस के लिए शर्मिंदगी का सबब बन जाए.

मृतक ज़हीर के एक पड़ोसी पुलिस के इस दावे को झूठ बताते हुए कहते हैं, ‘‘अगर मौत वहां होती जहां पर प्रदर्शन हो रहा था तो हम मान भी लेते लेकिन ज़हीर की मौत जहां प्रदर्शन हो रहा था उससे सौ मीटर दूर अंदर गली में हुई है. यहां प्रदर्शनकारी आपस में गोली थोड़े चलाते. हममे से कई लोगों ने देखा है कि लोगों को खदेड़ रही पुलिस गली में आकर गोली चला रही थी. जिसमें एक गोली आकर ज़हीर को लगी. उस वक़्त गली में खड़े तमाम लोग भाग गए नहीं तो कुछ और लोगों को गोली लगती.’’

हिंसा के दौरान घायल हुए ईटीवी के पत्रकार खुर्शीद अहमद कहते हैं, ‘‘उस रोज लोगों ने जबर्दस्त पथराव किया था. रिपोर्टिंग के दौरान मैं कई इलाकों में गया जहां सड़कों पर काफी संख्या में पत्थर नज़र आ रहे थे. पुलिस की तरफ़ से भी फायरिंग हुई थी. पुलिस ने हमसे सीसीटीवी की कुछ तस्वीरें साझा की है जिसमें भीड़ में शामिल लड़के दिख रहे हैं जिनके पास पिस्टल है. वे फायर करके वापस जा रहे है. रिपोर्टिंग के दौरान मैंने पब्लिक के हाथ में हथियार तो नहीं देखा लेकिन सीसीटीवी में जो सामने आया उसमें वो ज़रूर नज़र आ रहा है. पर पुलिस ने सिर्फ़ पब्लिक की तरफ का फ़ुटेज जारी किया है. पुलिस की तरफ़ से ऐसा कुछ जारी नहीं हुआ है. अगर पुलिस अपनी तरफ का भी सीसीटीवी फुटेज जारी कर दे तो उससे निष्पक्षता और पारदर्शिता आ जाएगी.’’

मोहसिन के साथ-साथ ज़हीर और आसिफ के परिजनों को भी अभी तक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं मिली है. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं मिलने के सवाल पर लिसाड़ी गेट थाने के एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘‘पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट अस्पताल से कप्तान साहब के यहां जाएगी. उसके बाद मामले की जांच कर रहे अधिकारियों और परिजनों को दी जाएगी. मैं खुद मृतकों के एक मामले की जांच कर रहा हूं. मुझे भी अभी तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली है.’’

मृतक आसिफ़ के एक रिश्तेदार कहते हैं, ‘‘पुलिस पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट देने से इसलिए बच रही है क्योंकि उसके आने के बाद ज़ाहिर हो जाएगा कि उनकी मौत किसकी गोली से हुई है.’’

परिजनों के तरफ से एफआईआर दर्ज़ नहीं होने के सवाल पर शहर के एसएसपी अखिलेश नारायण सिंह कहते हैं, ‘‘एक घटना को लेकर दो एफआईआर दर्ज़ नहीं कर सकते है. हमने परिवार की तरफ़ से एफआईआर दर्ज़ नहीं किया है. पुलिस पहले ही एफआईआर दर्ज़ कर चुकी है. उन युवाओं की मौत कैसे हुई यह अभी जांच का विषय है.’’

जिस एफआईआर का जिक्र एसएसपी अखिलेश सिंह कर रहे हैं, उसके अनुसार मृतक मोहसिन, आसिफ और जहीर पर हत्या की कोशिश, दंगा भड़काने और शांति भंग करने का मामला दर्ज़ किया है.

लोगों में भय कायम

मेरठ के लिसाड़ी थाने के गेट पर पुलिस ने दो पोस्टर चिपका रखा है. जिसपर कुछ तस्वीरें छपी है और उसके नीचे लिखा है, ‘वांटेड दंगाई‘. ये तस्वीरें पुलिस ने हिंसा के दौरान खींची हैं. पुलिस ने वांटेड दंगाईयोंका पता बताने वाले का नाम गुप्त रखने और इनाम देने की भी बता लिखी है.

इस तरह की तस्वीरें दूसरे थानों में भी लगाई गई है. दूसरी तरफ यहां पर पुलिस ने 97 लोगों पर उनके नाम के साथ और 2000 अज्ञात लोगों के खिलाफ दंगा-फसाद का एफआईआर दर्ज़ किया है. 

बादलवाली गली में रहने वाली एक बुज़ुर्ग महिला रोते हुए कहती हैं, ‘‘पूरी-पूरी रात जागकर गुज़ार रहे हैं. घर के बाहर आग जलाकर बैठे रहते हैं, क्या पता कब पुलिस वाले हमारे किसी परिजन को गिरफ्तार करने चले आएं. जुम्मे की रात से ही डर के मारे कोई बाहर नहीं निकल रहा है.’’

वहीं पुलिस का कहना है कि दंगे में शामिल जिन लोगों की तस्वीरें हमारे पास हैं, उन पर हम जल्द से जल्द कार्रवाई करेंगे. जो भी नुकसान हुआ उसकी भरपाई हिंसा करने वालों से ही करेंगे.

पुलिस के इस बयान पर मोहसिन के बड़े भाई कहते हैं, ‘‘पुलिस तो लोगों से सरकारी संपति के नुकसान की भरपाई कर लेगी लेकिन हमारे भाई की मौत की भरपाई हम किससे करेंगे?’’

पुलिस दावा कर रही है कि मेरठ में अब शांति है लेकिन इस शांति के पीछे एक दहशत साफ देखी जा सकती है. यह यूपी पुलिस की दहशत है. 

न्यूज़लॉन्ड्री के रिपोर्टर बसंत कुमार द्वारा लिया गया मुंशी अहमद का विडियो इंटरव्यू आप नीचे देख सकते हैं.

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