सीएए विरोधी आंदोलन की शुरुआत से अब तक दिल्ली एनसीआर में 32 पत्रकारों पर हमला

‘काज’ की रिपोर्ट के मुताबिक नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद से दिल्ली में हुए दंगों तक पत्रकारों पर हमले की घटनाओं में तेजी का नया चलन देखने को मिला है.

Article image
  • Share this article on whatsapp

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पास होने के बाद उसके खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शन, उसके समर्थन में निकाली गई रैलियों और बीते दिनों दिल्ली में हुए दंगे के दौरान 32 ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें पत्रकारों के साथ मारपीट या उन्हें उनके काम करने से रोकने की कोशिश हुई है.

यह खुलासा सोमवार को कमेटी अगेन्स्ट एसॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट से हुआ है.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
imageby :

“रिपब्लिक इन पेरिल” नाम की इस रिपोर्ट को दिल्ली के प्रेस क्लब आफ इंडिया में कारवां पत्रिका के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल, वरिष्ठ पत्रकार आनंदस्वरूप वर्मा और ऑल इंडिया विमेंस प्रेस कॉर्प्स की पूर्व अध्यक्ष टीके राजलक्ष्मी ने जारी किया.

रिपोर्ट को जारी करते हुए कारवां पत्रिका के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल ने कहा, ‘‘ये रिपोर्ट काफी विस्तृत रूप में लिखी गई है जो पिछले तीन-चार महीने की घटनाओं से संबंधित है. पर इन घटनाओं की शुरुआत पिछले तीन-चार महीने नहीं बल्कि पांच से छह साल पहले हुई थी. मीडिया के प्रति एक जो अविश्वास है और मीडिया के अंदर जो दरार पैदा हुई है, वह अपने आप नहीं हुई है इस पर काफी काम किया गया है.’’

imageby :

रिपोर्ट में पत्रकारों पर हुए हमले को तीन चरणों में बताया गया है. यह हमले सीएए समर्थकों, विरोधियों के साथ-साथ सुरक्षा बलों द्वारा किए गए हैं.

पहला चरण

पहला चरण नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के पारित किए जाने के बाद केंद्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इसके खिलाफ हुए प्रदर्शन से शुरू होता है.

इस चरण में 15 दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच पत्रकारों पर हमले हुए. ये हमले सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों द्वारा और पुलिस द्वारा किए गए.

इस दौरान मकतूब मीडिया, बीबीसी, पल-पल न्यूज़, एएनआई,जी न्यूज़, एशियानेट न्यूज़ और मातृभूमि न्यूज़ के 10 पत्रकारों और कैमेरमैन को निशाना बनाया गया.

15 दिसंबर को जामिया के अंदर घुसकर पुलिस ने छात्रों पर बल प्रयोग किया था. इसी दिन बीबीसी हिंदी की पत्रकार बुशरा शेख को पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा मारा गया और उनका फोन छीनकर तोड़ दिया गया था.

दूसरा चरण

पत्रकारों पर हमले का दूसरा चरण जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में पांच जनवरी को नकाबपोश लोगों द्वारा किए गए हमले के बाद से लेकर 31 जनवरी तक का है.

जेएनयू में हुए हमले की जिम्मेदारी हिन्दू रक्षा दल जैसे फर्जी संगठनों ने लिया था हालांकि इंडिया टुडे के एक स्टिंग में आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विधार्थी परिषद से जुड़े छात्रों ने हमले में अपनी भूमिका कबूल की थी.

जिस दिन जेएनयू में नकाबपोश लोगों ने हमला किया था उस शाम जेएनयू के बाहर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर हमले हुए थे. जब ये हमले हो रहे थे तब पुलिस वहां मौजूद थी.

रिपोर्ट के अनुसार दूसरे चरण में पन्द्रह से ज्यादा पत्रकारों को निशाना बनाया गया था.जिसमें न्यूजलॉन्ड्री, स्क्रोल, इंडिया टुडे, जी न्यूज़, मीडियाविजिल, टेलीग्राफ, द हिन्दू के पत्रकार शामिल थे.

पांच जनवरी को जेएनयू गेट के बाहर हंगामा कर रहे हिंदूवादी संगठन के लोगों ने आज तक के रिपोर्टर आशुतोष मिश्रा और उनके कैमरेमैन पर हमला कर दिया था. उन्हें बुरी तरह से मारा था.

उसी रोज न्यूज़लॉन्ड्री के रिपोर्टर आयुष तिवारी को भी गेट पर प्रदर्शनकारियों ने भारत माता की जय के नारे लगाने के लिए कहा था.

तीसरा चरण

रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों पर हुए हमले का तीसरा चरण दिल्ली में हुए दंगे के दौरान शुरू हुआ.

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी से शुरू हुए दंगे के दौरान दंगाइयों ने कई पत्रकारों पर हमले किए. इस दौरान पत्रकारों पर अपनी धार्मिक पहचान बताने के लिए भी दबाव बनाया गया. उन्हें बुरी तरह मारा गया यहीं नहीं जेके न्यूज़ 24 के पत्रकार आकाश नापा को गोली मार दी गई.

दंगे के दौरान जेके न्यूज़ 24 , एनडीटीवी, सीएनएन न्यूज़ 18, इंडियन एक्सप्रेस, स्क्रोल.इन, इंडिया टुडे, टाइम नाउ, न्यूज़ एक्स, रिपब्लिक टीवी, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, एनडीटीवी, जनचौक और कई स्वतंत्र पत्रकारों को निशाना बनाया गया.

जानचौक के पत्रकार सुशील मानव को दंगाइयों ने कपड़े उताकर अपनी धार्मिक पहचान बताने के लिए मजबूर किया.

हरतोष सिंह बल कहते हैं, ‘‘मैंने खुद ही कम से कम 15-20 साल पहले मध्य प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगे के मामले को कवर किया है. गुजरात में हम सबके अनुभव रहे है. पर आज जो हो रहा है बतौर पत्रकार आज के पहले हमने नहीं देखा है. अक्सर कर्फ्यू की स्थिति में भी हम जाते थे, पुलिस भी होती थी. दोनों पक्ष भी होते थे लेकिन पत्रकारों को अपने काम करने में जो आज बाधाएं आ रही हैं वो नहीं आती थी.’’

ऑल इंडिया विमेंस प्रेस कॉर्प्स की पूर्व अध्यक्ष टीके राजलक्ष्मी ने कहा, ‘‘पत्रकारों पर हो रहे हमले के पीछे पांच छह सालों से इस सरकार द्वारा की जा रही ध्रुवीकरण की राजनीति है. घृणा और नफरत की जो राजनीति लिंचिंग के साथ शुरू हुई. जिन लोगों ने सरकार का विरोध किया उनको देशद्रोही बोला गया. एक पूरे विश्वविद्यालय को देशद्रोही बताया गया. पटियाला कोर्ट में वकीलों ने पत्रकारों पर हमले किए. उसके बाद से जो दौर शुरू हुआ वो अभी तक जारी है. इस सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता की इस ध्रुवीकरण की राजनीति का असर पत्रकारों पर भी हो रहा है.’’

imageby :

वरिष्ठ पत्रकार आनंदस्वरूप वर्मा ने कहा, “पत्रकारों में पूर्वाग्रह पहले भी थे अभी भी है. ऐसा नहीं है कि कोई पत्रकार निष्पक्ष हो. पहले लिखा जाता था कि ये वामपंथी पत्रकार है लेकिन ऐसा नहीं था कि कोई वामपंथी पत्रकार है तो वो राष्ट्रविरोधी है. वामपंथी पत्रकार से ये अर्थ लगाया जाता था कि ये जनआंदोलनों के पक्ष में लिखता है. जो लोग हाशिये पर हैं उनके पक्ष में लिखता है और सरकार की नीतियों की आलोचना करता है. लेकिन वह राष्ट्रविरोधी है ऐसा नहीं कह सकते थे. पिछले कुछ वर्षों में यह सिलसिला शुरू हुआ कि पत्रकारों को राष्ट्विरोधी बताया जाने लगा. इसकी शुरुआत टुकड़े-टुकड़े गैंग शब्द के इजाद से शुरू हुई, फिर अवार्ड वापसी गैंग शब्द आया और उसके बाद अर्बन नक्सल कहा जाने लगा. इन शब्दों को मीडिया के ही लोगों ने ईजाद किया. जिसे गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने भी इस्तेमाल किया.’’

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like