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एनएल चर्चा के 131वां अंक खासतौर पर कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर उठे सवालों और हंगामेदार सीडब्ल्यूसी की बैठक पर केंद्रित रही. इसके अलावा जेईई-नीट परीक्षा कराने को लेकर अड़ी सरकार से छात्रों के टकराव और इसके औचित्य पर भी विस्तार से बात हुई. ब्लूम्सबरी पब्लिकेशन द्वारा दिल्ली दंगो पर आने वाली किताब का प्रकाशन स्थगित करने का निर्णय, एक्सेंचर कंपनी द्वारा भारत में 5 प्रतिशत कर्मचारियों को निकालना, जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्यों द्वारा हिस्सेदारी की मांग और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के इस्तीफे का भी चर्चा में जिक्र हुआ.
इस बार की चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई, शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. इसका संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा, “कांग्रेस के 23 नेताओं ने पार्टी में नेतृत्व को लेकर चल रहे असमंजस को खत्म करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र लिखकर पार्टी में आमूल बदलाव की सलाह दी. इस चिट्ठी के बाद हुई सीडब्लूसी की बैठक में सोनिया गांधी अगले छ: महीने के लिए फिर से कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के लिए मान गई. आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी सबसे खराब स्थिति में है, ऐसे समय में भी जब पार्टी में बदलाव के लिए पत्र लिखा गया, तो गांधी परिवार इस पर बातचीत को तैयार नहीं है?”
इस पर रशीद किदवई कहते है, “किसी भी राजनीतिक पार्टी में उतार-चढ़ाव का समय आता है. यह पार्टी का अंदरूनी मामला है. 1978 से लेकर अभी तक गांधी परिवार के सदस्य पार्टी के लिए वोट लाते रहे है. 23 नेताओं ने जो पत्र लिखा है उससे यह साबित करने की कोशिश की गई है कि राहुल गांधी नेतृत्व के लायक नहीं है, वहीं सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी फल-फूल नहीं रही है.”
अतुल ने फिर से पूछा कि यह जो पत्र लिखा गया है वह नेतृत्व के खिलाफ बगावत है या पार्टी के भले के लिए भली मंशा से लिखा गया है?
रशीद कहते है, “अगर यह पत्र अच्छी मंशा से लिखा गया होता तो, इसे 2014 में लिखा जाना चाहिए था. दरअसल यह जो नेता हैं उनका राजनीतिक अस्तित्व खतरे में है. क्योंकि हर पार्टी में सत्ता परिवर्तन होता है, वैसा ही अब कांग्रेस में भी हो रहा है. पार्टी में परिवर्तन को लेकर यहीं हाल बीजेपी में भी था, जब आडवाणी और अटल की जोड़ी थी, जो बाद में अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी बन गई. कांग्रेस पार्टी में सोनिया गांधी या गांधी परिवार के खिलाफ इन नेताओं की चाल कारगर नहीं हो पाई क्योंकि पार्टी में इनके खिलाफ कोई जा नहीं सकता.”
यहां पर मेघनाथ ने रशीद से सवाल पूछते हुए कहा, “बहुत से राजनीतिक विश्लेषक भी कहते हैं, अगर गांधी परिवार पार्टी से निकल जाता है तो, पार्टी का फिर से सत्ता में आना मुश्किल है. दूसरा शिवम शंकर सिंह जो पालिटिकल स्ट्रैटजिस्ट हैं, वह कहते हैं, गांधी परिवार को पार्टी से बाहर जाने के बाद, आर्थिक तौर पर पार्टी के लिए मुश्किलें आ सकती है, क्योंकि अभी तक पार्टी के आर्थिक स्रोत गांधी परिवार के जरिए ही पार्टी को चंदा देते हैं. यह बात कितनी सही है.”
मेघनाद के प्रश्न का उत्तर देते हुए रशीद कहते हैं, “यह व्यावहारिक समस्या है, जैसा मैंने पहले कहा, चुनावों में उम्मीदवार प्रचार के लिए गांधी परिवार को ही बुलाते है, क्योंकि उनका मानना हैं कि उनके नाम पर ही वोट मिलेगा. दूसरा, मुझे लगता है कि राहुल गांधी की राजनीति को लेकर हमेशा योजनाबद्ध तरीके से सवाल उठाया गया है, लेकिन अगर हम देखें तो, गुजरात के चुनाव में मुकाबला बराबरी का था, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान या कर्नाटक, इस सब जगह पार्टी ने जीत हासिल की थी. तो यह कहना सहीं नही है कि राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी में दमखम नहीं है. मेघनाथ और अतुल से सवाल करते हुए रशीद कहते है, क्यों आप को लगता है कि कोई मोदी समर्थक वोटर कांग्रेस को सिर्फ इसलिए वोट देगा कि अब गांधी परिवार पार्टी नेतृत्व में नहीं है. मुझे लगता हैं ऐसा नहीं है बल्कि कांग्रेस के वोट में गिरावट ही आएंगी.”
यहां मेघनाध कहते हैं मुझे लगता है पिछले कुछ समय से राहुल गांधी की इमेज को बीजेपी ने खराब करने की कोशिश की है. बहुत हद तक बीजेपी, राहुल गांधी को पप्पू की इमेज से बाहर नहीं आने देती और उसका यह कैंपेन सफल भी रहा है.
अतुल कहते है बीजेपी की यह राजनीतिक चाल रही है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठा दो, तो पूरी पार्टी पर सवाल उठ जाएगा. वहीं कोशिश बीजेपी की रही है.
शार्दूल कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर कहते है, कांग्रेस पार्टी और बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकते. राजनीति, राजनीतिक हितों के लिए होती है. आज नरेंद्र मोदी का एकछत्र राज इसलिए हैं क्योंकि वह तीन बार मुख्यमंभी और 2 बार लोकसभी चुनाव जीत कर आए है, लेकिन राहुल गांधी कौन सा चुनाव जिताया है. आज के समय में गांधी परिवार के पास जनता का समर्थन नहीं है. जितना पहले हुआ करता था.
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