नए साल से किसानों को बहुत उम्मीदें हैं, उनका कहना है कि अभी तो नहीं लेकिन जल्द ही नए साल का जश्न मनाएंगे.
नया साल खुशी में मनाया जाता है गम में नहीं
कैंडल जला रहे गुरविंदर सिंह कहते हैं, "नया साल तो घर में होता है, अब यहां सड़कों पर परेशानी में कोई क्या नया साल मनाए. क्योंकि जब किसी पर कोई मुश्किल वक्त होता है तब खुशी मनाने का कोई मजा नहीं होता है. इसलिए हम इस अवसर पर कैंडल जलाकर किसानों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. हमारे 40 से ज्यादा किसान शहीद हो गए हैं."
कपूरथला जिला निवासी 31 वर्षीय सिंह आगे कहते हैं, "अगर आज हम नया साल मनाते हैं तो कहीं न कहीं उनकी शहादत की बेइज्जती है. जब ये तीनों बिल रद्द हो जाएंगे तब हमारा नया साल होगा. और यहां से घर तक नाचते-गाते जाएंगे."
पटाखे जलाने वालों के बारे में वो कहते हैं, "पता नहीं कौन लोग थे और किसने भेजे थे. क्योंकि यहां माहौल और आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. पिछले कई आंदोलनों को भी बदनाम करने के लिए ऐसा किया गया है. इसलिए उनकी पड़ताल होनी चाहिए कि वह कौन लोग हैं जो पटाखे छोड़ रहे थे."
"हम यहां सिर्फ नगर कीर्तन की तैयारी कर रहे हैं. क्योंकि अगर हम यहां जश्न मनाएंगे तो जो लोग यहां शहीद हुए हैं उनकी शहादत का क्या फायदा. हम यह एकता के लिए भी कर रहे हैं. क्योंकि बीजेपी हमें बांटने की कोशिश कर रही है. कभी हमें खालिस्तानी बोलती है तो कभी अर्बन नक्सल. लेकिन हम एकजुट हैं."
अलाव जलाकर रातें गुजार रहे किसान
कुछ किसान यहां पूरी-पूरी रात अलाव जलाकर भी रातें गुजार रहे हैं. वहीं कुछ खुले आसमान के नीचे सिर्फ ट्राली के सहारे कपड़ा बिछाकर, अपने बिस्तर के पास ही आग जलाकर सो जाते हैं. उनके जूते भी बिस्तर के पास ही पड़े नजर आते हैं. देखकर भी डर लगता है कि कहीं यह आग उनके बिस्तर में न लग जाए.
अलाव ताप रहे कुछ लोग कहते हैं, “यह तो मोदी को देखना चाहिए के कौन कैसे सो रहा है. यहां पड़े किसानों को कोई खुशी नहीं है जो अपना घर छोड़े पड़े हैं. यहां हम मुश्किल में जरूर हैं लेकिन अब हमने भी कमस खा ली है कि जब तक ये कानून वापिस नहीं हो जाते हैं तब तक हम यहां से नहीं जाने वाले हैं.”
इन्हीं में से एक किसान कहते हैं, “सरकार सोचती होगी कि हम यहां से चले जाएंगे, लेकिन हम यहां से जाने वाले नहीं हैं. उन्हें लगता है कि परेशान होकर या फिर ठंड से भागकर अपने घर चले जाएंगे. ये उनकी गलतफहमी है, किसान यहां से हिलने वाला नहीं है.”
किसान आदोलन में 45 से ज्यादा मौतें
अब तक किसान आंदोलन में 45 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं. इनमें दो किसानों ने सुसाइड किया है जबकि बाकि किसानों की मौत ठंड या हार्ट अटैक के कारण हुई है. साल की पहली तारीख यानी एक जनवरी को भी गाजीपुर बॉर्डर पर एक किसान ने दम तोड़ दिया. जबकि 2 जनवरी, शनिवार को भी एक बुजुर्ग किसान के आत्महत्या की खबर है.
धरना-प्रदर्शन स्थल के पास लगे शौचालय में रामपुर निवासी कश्मीर सिंह ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है. उन्होंने लिखा है कि उनकी शहादत बेकार नहीं जानी चाहिए. उनका अंतिम संस्कार भी दिल्ली यूपी की सीमा पर ही किया जाए.
इससे पहले शुक्रवार को बागपत जिले के भगवानपुर नांगल गांव के 57 वर्षीय निवासी मोहर सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई थी. उनकी मौत गाजीपुर बॉर्डर के धरनास्थल पर ही हो गई थी.
इन मौतों पर भारतीय किसान यूनियन का कहना है कि मरने वाले किसानों को शहादत का दर्जा मिलना चाहिए.
नया साल खुशी में मनाया जाता है गम में नहीं
कैंडल जला रहे गुरविंदर सिंह कहते हैं, "नया साल तो घर में होता है, अब यहां सड़कों पर परेशानी में कोई क्या नया साल मनाए. क्योंकि जब किसी पर कोई मुश्किल वक्त होता है तब खुशी मनाने का कोई मजा नहीं होता है. इसलिए हम इस अवसर पर कैंडल जलाकर किसानों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. हमारे 40 से ज्यादा किसान शहीद हो गए हैं."
कपूरथला जिला निवासी 31 वर्षीय सिंह आगे कहते हैं, "अगर आज हम नया साल मनाते हैं तो कहीं न कहीं उनकी शहादत की बेइज्जती है. जब ये तीनों बिल रद्द हो जाएंगे तब हमारा नया साल होगा. और यहां से घर तक नाचते-गाते जाएंगे."
पटाखे जलाने वालों के बारे में वो कहते हैं, "पता नहीं कौन लोग थे और किसने भेजे थे. क्योंकि यहां माहौल और आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. पिछले कई आंदोलनों को भी बदनाम करने के लिए ऐसा किया गया है. इसलिए उनकी पड़ताल होनी चाहिए कि वह कौन लोग हैं जो पटाखे छोड़ रहे थे."
"हम यहां सिर्फ नगर कीर्तन की तैयारी कर रहे हैं. क्योंकि अगर हम यहां जश्न मनाएंगे तो जो लोग यहां शहीद हुए हैं उनकी शहादत का क्या फायदा. हम यह एकता के लिए भी कर रहे हैं. क्योंकि बीजेपी हमें बांटने की कोशिश कर रही है. कभी हमें खालिस्तानी बोलती है तो कभी अर्बन नक्सल. लेकिन हम एकजुट हैं."
अलाव जलाकर रातें गुजार रहे किसान
कुछ किसान यहां पूरी-पूरी रात अलाव जलाकर भी रातें गुजार रहे हैं. वहीं कुछ खुले आसमान के नीचे सिर्फ ट्राली के सहारे कपड़ा बिछाकर, अपने बिस्तर के पास ही आग जलाकर सो जाते हैं. उनके जूते भी बिस्तर के पास ही पड़े नजर आते हैं. देखकर भी डर लगता है कि कहीं यह आग उनके बिस्तर में न लग जाए.
अलाव ताप रहे कुछ लोग कहते हैं, “यह तो मोदी को देखना चाहिए के कौन कैसे सो रहा है. यहां पड़े किसानों को कोई खुशी नहीं है जो अपना घर छोड़े पड़े हैं. यहां हम मुश्किल में जरूर हैं लेकिन अब हमने भी कमस खा ली है कि जब तक ये कानून वापिस नहीं हो जाते हैं तब तक हम यहां से नहीं जाने वाले हैं.”
इन्हीं में से एक किसान कहते हैं, “सरकार सोचती होगी कि हम यहां से चले जाएंगे, लेकिन हम यहां से जाने वाले नहीं हैं. उन्हें लगता है कि परेशान होकर या फिर ठंड से भागकर अपने घर चले जाएंगे. ये उनकी गलतफहमी है, किसान यहां से हिलने वाला नहीं है.”
किसान आदोलन में 45 से ज्यादा मौतें
अब तक किसान आंदोलन में 45 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं. इनमें दो किसानों ने सुसाइड किया है जबकि बाकि किसानों की मौत ठंड या हार्ट अटैक के कारण हुई है. साल की पहली तारीख यानी एक जनवरी को भी गाजीपुर बॉर्डर पर एक किसान ने दम तोड़ दिया. जबकि 2 जनवरी, शनिवार को भी एक बुजुर्ग किसान के आत्महत्या की खबर है.
धरना-प्रदर्शन स्थल के पास लगे शौचालय में रामपुर निवासी कश्मीर सिंह ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है. उन्होंने लिखा है कि उनकी शहादत बेकार नहीं जानी चाहिए. उनका अंतिम संस्कार भी दिल्ली यूपी की सीमा पर ही किया जाए.
इससे पहले शुक्रवार को बागपत जिले के भगवानपुर नांगल गांव के 57 वर्षीय निवासी मोहर सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई थी. उनकी मौत गाजीपुर बॉर्डर के धरनास्थल पर ही हो गई थी.
इन मौतों पर भारतीय किसान यूनियन का कहना है कि मरने वाले किसानों को शहादत का दर्जा मिलना चाहिए.
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