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एन एल चर्चा 19: आसाराम, सरोज खान का बयान, महाभियोग व अन्य

आसाराम को आजीवन कारावास, सरोज खान का कास्टिंग काउच को लेकर विवादित बयान, कर्नाटक चुनाव में रेड्डी बंधुओं को भाजपा का उम्मीदवार बनाया जाना, मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग के निहितार्थ और संजय दत्त के जीवन पर बन रही फिल्म का ट्रेलर इस हफ्ते न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के मुख्य विषय रहे.चर्चा में इस बार दो मेहमान शामिल हुए. वरिष्ठ फिल्म समीक्षक और पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज और भारतीय जन संचार संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर आनंद प्रधान. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के संवाददाता अमित भारद्वाज और कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया भी चर्चा का हिस्सा रहे.

आसाराम बापू को बलात्कार के मामले में जोधपुर की जिला अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. आसाराम के संदर्भ में आनंद प्रधान ने कहा कि भारत में गॉडमैन के प्रति आस्था कोई नई बात नहीं है. उन्होंने बाबाओं की सत्ता पर जरूरी सवाल उठाए. सरोकार का विषय यह है कि देश और दुनिया में नव उदारवाद का आगमन हुआ. आधुनिकता ने अपने पैर पसारे हैं. चिंता का विषय यह है कि बेहद ताकतवर और महत्वपूर्ण संस्थान राज्य की नाक के नीचे ऐसे बाबा पनपते कैसे हैं. वे कैसे अपनी सामानांतर सत्ता कायम कर लेते हैं?

अतुल चौरसिया का विचार था कि बाबाओं के मंच पर नेताओं का आना-जाना उनको हर लिहाज से राजनीतिक सत्ता से वैधता प्रदान करता है. जब अटल बिहारी, नरेंद्र मोदी, दिग्विजय सिंह जैसे नेता आसाराम जैसे बाबाओं के साथ मंच साझा करते हैं तो उनके भक्तों को भी भरोसा होता है कि उनके बाबा के संबंध ऊंचे लोगों से हैं.

इस बात को आगे बढ़ाते हुए आनंद प्रधान ने जोड़ा कि ऐसा इसलिए भी क्योंकि हमारी राजनीतिक सत्ता बहुत तेजी से विश्वसनीयता खोती जा रही है. यह एक नेक्सस है जहां बाबा अपने मोटे पैसे वाले भक्तों और राजनीतिक नेताओं के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने लगे हैं.

अतुल ने इस बहस का एक और पक्ष, राज्य और धर्म के अंतर्संबंधों की ओर ध्यान दिलाया. राज्य और राजनीति को धार्मिक गतिविधियों से खुद को दूर रखना था लेकिन आज हम इसका बिल्कुल उल्टा होते देख रहे हैं. आए दिन राजनीतिक सत्ता द्वारा बाबाओं के संरक्षण की बात हमारे सामने आती हैं.

अजय ब्रह्मात्मज ने 1932 में लाहौर से निकलने वाली युगांतर पत्रिका का जिक्र किया. पत्रिका में भापोल के एक पाठक का पत्र छपा था जिसका मजमून यह था कि भोपाल में किसी बाबा ने एक लड़की के साथ यौन संबंध बनाये और जब उसे पता चला कि लड़की गर्भवती है तो उसने लड़की को छोड़ दिया. पत्र लिखने वाले के मुताबिक लड़की भोपाल की सड़कों पर मारी-मारी फिर रही थी इसके बावजूद लोगों की आस्था उस बाबा में कायम थी. यह पत्र 1932 में छपा था और आज भी हम कमोबेश उसी हालात से गुजर रहे हैं.

राजनीतिक सत्ता और धार्मिक सत्ता के घालमेल के विषय पर अजय ब्राह्मात्मज ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जिक्र किया. नेहरू बेहद सावधानी से खुद को धार्मिक गतिविधियों से दूर रखते थे. उनका इस सिद्धांत में भरोसा था कि धर्म निजी मामला है और कभी भी इसका सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं होने देते थे. हालांकि इंदिरा गांधी के काल से धर्म को राजनीति में घुसाने की परंपरा शुरू हुई.

अमित भारद्वाज ने बाबाओं की वैधता से जुड़ी बात पर उनके समर्थकों की मानसिकता की ओर ध्यान दिलाया. बाबाओं के श्रद्धालुओं के लिए संदेश स्पष्ट होता है कि जब राज्य का मुख्यमंत्री बाबा के दरबार में शरणागत है तो हमारे बाबा कितने शक्तिशाली हैं. यह श्रद्धालुओं के भीतर बाबाओं के प्रति आत्मविश्वास का संचार करता है.

अमित ने सोशल मीडिया ट्रेंड की ओर भी ध्यान दिलाया. समझदार और तार्किक बातें करने वाले लोग भी आसाराम को सजा मिलने के बाद प्रधानमंत्री मोदी के साथ आसाराम की तस्वीरें साझा कर रहे हैं. इसे अमित सही नहीं मानते हैं. यह भी बताया जाना चाहिए कि जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने ही आसाराम के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत की थी जिसके बाद आसाराम को अपना घर गुजरात छोड़कर मध्य प्रदेश भागना पड़ा था. लेकिन कुछ लोग सिर्फ आसाराम के साथ वीडियो के चलते सिर्फ नरेंद्र मोदी पर ही हमला करने लगे.

अतुल ने इस मसले का एक और पक्ष रखा. उनके मुताबिक यह पोस्ट ट्रुथ का दौर है जहां अतीत की चीजें, गतिविधियां वर्तमान में लोगों का पीछा कर रही हैं, ख़ासतौर से सार्वजनिक जीवन में रह रहे लोगों का. आज हम पाते हैं कि राहुल गांधी गुजरात से लेकर कर्नाटक तक मंदिरों-मठों में जा रहे हैं, बाबाओं का आशीर्वाद ले रहे हैं. कल को अगर इनमें से किसी बाबा का दामन दागदार निकलता है तो क्या राहुल गांधी उसके लिए जिम्मेदार होंगे? जाहिर है नहीं. यहां मूल सवाल गौण हो जाता है- धर्म को राजनीति से अलग रखने का सवाल. और इसमें फिलहाल किसी दल की रुचि नहीं है.

पैनल के सदस्य इस बात पर सहमत थे कि राज्य का काम लोगों के बीच वैज्ञानिक सोच-समझ को विकसित करना होना चाहिए. एक तरफ बाबाओं की सामांतर सत्ता और दूसरी तरफ तार्किक लोगों पर हमला करना, यह चिंतनीय है.

बाकी अन्य मुद्दों पर पत्रकारों की राय जानने के लिए सुनिए न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा.

इस हफ्ते क्या सुनें, देखें और पढ़ें-

आनंद  प्रधान
वाइल्ड वाइल्ड कंट्री 
द गॉड:  मार्केट हाउ ग्लोबलाइजेशन इज़ मेकिंग इंडिया मोर हिंदू
अजय ब्रह्मात्मज
दास देव
फिल्म कॉम्पेनियन
अमित भारद्वाज
अतुल चौरसिया
किलिंग द मैसेंजर
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