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आरटीआई पार्ट-3: मंत्रियों ने विज्ञापनों और आयोजनों के जरिए पीएसयू को दुहा

सूचना अधिकार (आरटीआई) अधिनयम के तहत मिले दस्तावेजों से पता चलता है कि सिर्फ आम संसद सदस्य ही अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने सरकारी पद और प्रभाव का दुरुपयोग नहीं कर रहे. मौजूदा और पिछली सरकार के कई बड़े मंत्रियों ने भी फंड और प्रायोजक हासिल करने के लिए अनेकों पत्र पीएसयू को लिखे. इनमें जुअल ओरम, नितिन गडकरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिनशा पटेल, हरीश रावत, सुशील कुमार शिंदे के नाम शामिल हैं. इन मंत्रियों ने अपने लैटरहेड्स का इस्तेमाल करते हुए, बिना किसी हिचकिचाहट के, पीएसयू से फंड्स लेने हेतु सन्देश भेजे हैं. कुछ मंत्रियों ने उन पीएसयू को फंड जारी करने को बोला जो सीधे उनके मातहत थे. यह सीधे-सीधे हितों के टकराव और पद के दुरुपयोग का मामला है.

30 जुलाई, 2014 को ओराम ने आदिवासी मामलों का मंत्री रहते हुए महानदी कोल फील्ड लिमिटेड और नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) जैसे पीएसयू को अपने लेटरहेड पर पत्र लिखे. पत्रों में, उन्होंने उड़िया साप्ताहिक “राष्ट्रदीप” के स्वर्ण जयंती उत्सव के लिए पैसों की मांग की थी. मोहन भागवत इस मौके पर मुख्य वक्ता थे. ओराम ने “राष्ट्रवादी नजरिये” के साथ एक साप्ताहिक के रूप में राष्ट्रदीप की तारीफ की थी. उन्होंने एक अन्य पत्र में लिखा, “एक वक्त में जब अलगाववादियों, उग्रवादी, और राष्ट्रविरोधी बलों ने अपना हिंसक सिर उठा रखा था, यह अखबार…ऐसी ताकतों के खिलाफ लड़ रहा था.” उन्होंने आगे लिखा है, “इस वर्ष राष्ट्रदीप अपना स्वर्ण जयंती समारोह मना रहा है. 10 अगस्त, 2014 को सालभर का यह उत्सव समाप्त होगा. इस समापन कार्यक्रम में आरएसएस के सरसंघचालक, डॉ मोहन राव भागवत ने प्रमुख वक्ता के रूप में हिस्सा लेने की सहमति दी है.”

अपने पत्र में उन्होंने लिखा “वे इस अवसर पर एक विशेष अंक भी निकालने वाले हैं… इसलिए मैं आपसे आग्रहपूर्वक अनुरोध करता हूं कि इस महान कार्य में अपना सहयोग देते हुए एक विज्ञापन बुक करें.”

इत्तफाक़ से इस स्वर्ण जयंती समारोह में ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा सभी भारतीयों की सांस्कृतिक पहचान ‘हिंदुत्व’ होने पर की गयी टिप्पणी ने मीडिया में तूफ़ान मचा दिया था.

हमने ओराम से पूछा कि क्या ऐसे किसी संगठन के लिए पैसे की मांग करना मुनासिब है जो उनकी पार्टी की विचारधारा से मिलता-जुलता है. हमारे ईमेल का कोई जवाब नहीं मिला. न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा किये गये फोन कॉल और संदेशों का भी कोई जवाब उन्होंने नहीं दिया.

22 अक्टूबर, 2014 को गडकरी ने ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आरईसी) के अध्यक्ष को एक नागपुर से निकलने वाली पत्रिका, ग्रीन होप को सहयोग करने के लिए पत्र लिखा. यह मासिक पत्रिका गिरीश गांधी द्वारा निकाली जाती है, जिन्होंने लम्बे समय तक टिकने वाले विषय पर पत्रिका के एक खास अंक के लिए सहयोग मांगा था. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गडकरी और गांधी की दोस्ती महाराष्ट्र की राजनीतिक गलियारों में जगजाहिर है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की वेबसाइट पर, गांधी के 65वें जन्मदिवस समारोह के मौके पर गडकरी के साथ एक तस्वीर भी छपी है.

हमने गडकरी से पूछा कि क्या उन्हें लगता कि उनके दफ्तर का उपयोग उनके किसी करीबी की एक पत्रिका के लिए पीएसयू से फंड्स की मांग करने में किया जाय तो इसमें हितों का टकराव होता है? हमने उन्हें जो इमेल्स, मेसेज और कॉल्स भेजे, उसका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के समय में भी मंत्रियों ने फण्ड और विज्ञापन जारी करने के लिए पीएसयू को कई पत्र लिखे. आरटीआई अधिनियम के तहत मिले दस्तावेज में फंड्स के लिए यूपीए मंत्रियों द्वारा लिखे गए ऐसे 100 से भी ज्यादा पत्र मिले हैं.  इनमें से कुछ केसों में, पेड न्यूज़ का संकेत भी मिला है.

सिंधिया ने, ऊर्जा मंत्री रहते हुए अपने प्रभाव के इस्तेमाल से, पॉवर ग्रिड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (पीजीसीआईएल) (ऊर्जा मंत्रालय के तहत आने वाला  पीएसयू) से मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ (एमपीसीए) को फंड्स दिलवाया था. पीजीसीआईएल ने न्यूज़लॉन्ड्री आरटीआई के जवाब में कहा है, कि सिंधिया के अनुरोध पर उन्होंने 2013 से 2014 तक मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) को 20 लाख रूपये का भुगतान किया है.

चूंकि सिंधिया 2004 से एमपीसीए के अध्यक्ष रहे हैं और हाल तक इसके चेयरमैन भी थे लिहाजा उनके द्वारा ऊर्जा मंत्री के रूप में अपने अधीन आने वाली एक पीएसयू से विज्ञापनों की मांग करना सीधे-सीधे हितों के टकराव का मामला है.
सिंधिया को किये गये हमारे किसी भी  ईमेल, मेसेज और कॉल्स का कोई जवाब नहीं मिला.

सिंधिया, हालांकि, एकमात्र ऊर्जा मंत्री नहीं थे जिन्होंने पीजीसीआईएल से सहयोग की मांग करते हुए पत्र लिखा था. पीएसयू के जवाब से पता चलता है कि उसने सुशील कुमार शिंदे के अनुरोध पर  भी 10 अलग अलग मौकों पर विभिन्न प्रकाशनों और संगठनों (इवेंट्स के लिए) जैसे कि संवाद सिंडी, सरोकार, और पार्लियामेंट स्ट्रीट के लिए पैसे उपलब्ध करवाए.
पीजीसीआईएल के जवाब से पता चलता है कि उसने शिंदे के अनुरोध पर, जब वह 2011 में ऊर्जा मंत्री थे, 6 लाख रुपये से अधिक खर्च किये.

जब हमने शिंदे से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि उन्हें पीएसयू से फंड्स की मांग के लिए पत्र लिखने की बात याद नहीं है. उन्होंने कहा, “मुझे याद नहीं आ रहा है. मुझे नहीं लगता कि यह जानकारी सही है, और मैं इस बारे में आगे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं.”

3 जुलाई, 2013 को तत्कालीन जल संसाधन मंत्री हरीश रावत, ने एनटीपीसी प्रमुख को एक साप्ताहिक “अमर सहारा” में विज्ञापन के छपवाने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि “अमर सहारा” को विज्ञापन देना चाहिए क्योंकि इस साप्ताहिक ने कांग्रेस पार्टी और एनटीपीसी को महत्वपूर्ण कवरेज दिए थे. उन्होंने गेल लिमिटेड, पीजीसीआईएल जैसी कई पीएसयू को अमर टुडे, इंडियन ड्रीम जैसी पत्रिकाओं में विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए लिखा. दस्तावेजों से पता चलता है कि हर उस पीएसयू ने 30,000 रुपये के विज्ञापन जारी किए जिन्हें रावत ने पत्र लिखा था.

रावत को की गयी हमारी ईमेल का भी कोई जवाब नहीं आया. जब हमने रावत से संपर्क करने की कोशिश की तो उसके पीए ने कहा कि वो हमें बाद में सम्पर्क करेंगे, पर उन्होंने पलट कर कभी जवाब नहीं दिया.

सुरेश ने श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री रहते, दो अलग अलग संगठनों द्वारा आयोजित दो नौका दौड़ प्रतियोगिताओं के लिये फंड्स संबंधित दो पत्र लिखे. पहला 22 मई 2013 को और दूसरा 27 अगस्त 2013 को. अपने दूसरे पत्र में अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी, माधवराव सिंधिया को (जो उस समय ऊर्जा राज्य मंत्री थे) पयीपाद नौका दौड़ के लिए 10 लाख रुपये की स्पांसरशिप संबंधी पत्र लिखा. उन्होंने यह भी कहा कि एनटीपीसी की स्पांसरशिप “स्थानीय समुदाय और एनटीपीसी की आपस में सद्भावना बढ़ाने” में मदद करेगी. दस्तावेजों से पता चलता हैं कि सुरेश उन संगठनो के संरक्षक थे जो दौड़ का आयोजन कर रहे थे. हमने सुरेश को भी ईमेल, मेसेज, और कॉल्स किये लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

मई 2011 से अक्टूबर 2012 के बीच, उस समय के ऊर्जा राज्य मंत्री केसी वेणुगोपाल ने एनटीपीसी के प्रमुख को निर्देश दिया कि वह जनयुगोम प्रकाशन, त्रिवेंद्रम के लिए 35,000 रुपये के विज्ञापन, केरल कार्टून अकादमी के लिए 50,000 रुपये के विज्ञापन जारी करें. और साथ ही समकालीन चौथी दुनिया और पद्मराजन स्मरणिका के लिए विज्ञापन जारी करने के अनुरोध पर भी गौर करें. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि वेणुगोपाल के नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री बनने के बाद भी, उनका कार्यालय दैनिक मध्यमान के लिए विज्ञापनों हासिल करता रहा.

जब हमने वेणुगोपाल से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए संपर्क किया तो उन्होंने कहा, “जब मैं मंत्री था, तब मैं पीएसयू को पत्र भेज रहा था. यहां तक कि जब मैं ऊर्जा मंत्री था और एनटीपीसी जैसे पीएसयू मेरे अधीन थे, और मैं पत्र फॉरवर्ड कर रहा था, तो तय पीएसयू को ही करना था कि वो फण्ड देना चाहते हैं या नहीं. उनके पास बाकायदा ऐसा करने का अधिकार है.”

तत्कालीन खान मंत्री, दिनशा पटेल ने ऊर्जा मंत्री सिंधिया को अपने मंत्रालय के तहत सभी पीएसयू को बिल्ड इंडिया मैगज़ीन के लिए विज्ञापन जारी करने का निर्देश दिया. 24 जुलाई, 2013 को पटेल ने लिखा था कि यह पत्रिका “यूपीए सरकार की उपलब्धियों और चौतरफ़ा विकास और उन्नति की भविष्य योजना” पर एक विशेष अंक लाने जा रही है.” ऊर्जा मंत्री ने जरूरी कार्यवाही के लिए उनके अनुरोध को आगे भेज दिया. इत्तेफाक देखिये कि नाल्को लिमिटेड, जो कि पटेल के मंत्रालय के अधीन आने वाला पीएसयू था, ने मई 2013 में बिल्ड इंडिया को 75,000 रुपये का भुगतान किया.

हमने पटेल से पूछने के लिए ईमेल किया कि क्या उन्हें नहीं लगता कि मंत्रियों के हवाले पर सरकारी कार्यालय का इस्तेमाल पीएसयू/मंत्रालयों को संगठनों/प्रकाशनों के लिए फण्ड देने के लिए पत्र लिखना गलत है. अगर पत्र न लिखा जाये तो शायद पीएसयू स्पॉन्सर करने में दिलचस्पी ना दिखाए. हमारे ईमेल का हमें कोई जवाब नहीं मिला. जब हमने पटेल से उनके ऑफिस में फ़ोन पर संपर्क किया तो उनके सहायक विनय पटेल ने कहा, “मुझे ईमेल भेजें, और हम जवाब देंगे.” ईमेल दोबारा भेजने के बावजूद हमें अभी तक पटेल या उनके ऑफिस से कोई जवाब नहीं आया है.

जेना ने, 29 जनवरी, 2014 को, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वन राज्यमंत्री (आईसी) रहते हुए, उड़ीसा क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक क्रिकेट लीग “अंगुल टस्कर्स” के लिए एनटीपीसी से फण्ड मांगा था. वो यह भी चाहते थे एनटीपीसी उसके प्रमोशन के लिए भी विज्ञापन दे.

जब हम जेना से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए पहुंचे, तो उन्होंने कहा, “मैंने कोई पत्र नहीं लिखा है. ये किसी की शरारत हो सकती है. अगर मुझे लिखना भी होता, तो मैं केवल मंत्री या उन पीएसयू को लिखता जो मेरे मंत्रालय के अधीन आती हैं, ना कि एनटीपीसी को.”

कुछ मामलों में, मंत्रियों के ऑफिस के अधिकारी अपने मंत्रियों के आदेश पर विज्ञापनों और फंड्स की मांग करते हैं. जैसा कि, 18 सितम्बर 2012 को, तत्कालीन रक्षा राज्य मंत्री एमएम पल्लम राजू के अतिरिक्त निजी सचिव ने बीईएमएल (एक रक्षा पीएसयू) के अध्यक्ष को विशाखापत्तनम में आयोजित दो दिवसीय “राष्ट्रीय एकता के लिए मेगा संगीत कार्यक्रम” को स्पॉन्सर करने का अनुरोध किया.

अपने पत्र में पीएस ने कहा, “…माननीय रक्षा मंत्री चाहते हैं कि कृपया उनके अनुरोध पर विचार करें और उन्हें हालात की जानकारी दें.” बीईएमएल ने मंत्री की बात मानी और आंध्र सांस्कृतिक और कल्याण समिति के आयोजकों को 25,000 रुपये का भुगतान करके इस कार्यक्रम का सह-प्रायोजक बन गया.

हमने एमएम पल्लम राजू को भी मेल और फ़ोन किये लेकिन उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया.

एडिशनल रिपोर्टिंग: मनीषा पांडे व अरुणब सैकिया

अनुवाद:  बाल किशन बाली