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ओप्रा विंफ्रे: दुनिया भर की लड़कियों, क्षितिज पर नया सवेरा हो चुका है

शुक्रिया. आप सबका शुक्रिया. शुक्रिया रीस (अभिनेत्री रीसविदरस्पून). 1964 में जब मैं छोटी बच्ची थी, अपनी मां के मिलवॉकी (अमेरिका के विस्कॉन्सिन राज्य का एक बड़ा शहर) स्थित घर में लिनोलियम से बनी फर्श पर बैठी थी. मैं टीवी पर देख रही थी, एन बैनक्रॉफ्ट 36वें एकेडमी अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार प्रदान कर रही थीं. उन्होंने सिर्फ पांच शब्द कहे और वो शब्द इतिहास बन गए- “और विजेता हैं सिडनी प्वाइटियर.” सिडनी मंच पर पहुंचे और उनसा सजीला आदमी मैंने आज तक नहीं देखा. मुझे याद है, उनकी टाई सफेद रंग की और स्वाभाविक तौर पर शरीर काला था. मैंने कभी भी एक काले आदमी का इस गर्मजोशी से इस्तकबाल होते नहीं देखा था. मैंने समय-समय पर बार-बार इस घटना को समझने की कोशिश की कि एक छोटी सी बच्ची के लिए उस एक पल का क्या महत्व है. एक बच्ची जो अपने घर की सस्ती दरी पर बैठी दरवाजे से अपनी मां को अंदर आते हुए देख रही थी. वह मां जो दूसरों के घर कामकाज निपटाने के बाद थकी-हारी लौटी थी. मैं उस पल को सिडनी के अभिनय से जुड़े एक संवाद से परिभाषित करना चहूंगी- “लिलीज़ ऑफ द फील्ड” “आमीन, आमीन, आमीन, आमीन.” 1982 में सिडनी ने इसी हॉल में इसी स्थान पर गोल्डेन ग्लोब का “सेसिल बी. डेमिल” अवार्ड ग्रहण किया. और यह सिलसिला यही खत्म नहीं होगा क्योंकि इस समय जब मैं पहली अश्वेत महिला के रूप में यह पुस्कार ग्रहण कर रही हूं तब कुछ और छोटी बच्चियां इस पल को देख रही होंगी.

यह एक सम्मान है और आप सबों के साथ यह शाम साझा करना एक उपलब्धि है. वे तमाम पुरुष और महिलाएं जिन्होंने मुझे प्रेरित किया है, चुनौती दी है, टिकाए रखा है और यहां तक पहुंचने के सफ़र को संभव बनाने में मदद की है. डेनिस स्वानसन, जिन्होंने “ए.एम. शिकागो” में मुझे मौका देकर दांव खेला, क्विंसी जोन्स, जिन्होंने मुझे उस शो में देखा और स्टीवन स्पीलबर्ग से कहा, “हां, ये ‘द कलर पर्पल’ की सोफिया है; गेयल, जो मेरे लिए मित्रता की परिभाषा रहे हैं; और स्टैडमेन, जो मेरे साथ चट्टान की तरह खड़े रहे हैं- ऐसे कई और नाम हैं. मैं हॉलीवुड फॉरेन प्रेस एसोसिएशन का शुक्रिया अदा करती हूं क्योंकि हम सभी को मालूम है इन दिनों प्रेस भी बहुत दबाव से गुजर रहा है.
लेकिन हमें उनकी सच के प्रति प्रतिबद्धता और लगन का भी अहसास है जो हमें किसी भी तरह के भ्रष्टाचार और अन्याय को नज़रअंदाज नहीं करने देगा. यह हमें अत्याचारियों और पीड़ितों के प्रति, रहस्य और असत्य के प्रति आगाह करेंगे. मैं कहना चाहती हूं कि वर्तमान में जब हम इस विकट समय से पार पाने की कोशिश कर रहे हैं तब मेरे मन में प्रेस के प्रति पहले से कहीं ज्यादा आदर का भाव आ गया है. मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं- अंतत: अपने हिस्से का सच बोलना ही हमारा सबसे ताकतवर हथियार है. और मैं खासकर उन सभी महिलाओं से गौरवान्वित और प्रेरित हूं जिन्होंने खुद को सशक्त बनाया और अपनी निजी कहानियां दुनिया से साझा की. इस कमरे में मौजूद हम सभी आज उन्हीं कहानियों का जश्न मना रहे हैं जो आपने दुनिया से साझा की. और इस साल हम सब खुद कहानी बन गए. लेकिन यह कहानी ऐसी नहीं है जो सिर्फ मनोरंजन उद्योग को प्रबावित कर रही है. यह किसी भी संस्कृतिक, भौगोलिक, सामुदायिक, धार्मिक, राजनीतिक और कामकाज की जगहों में फैली हुई है.

इसलिए मैं आज की रात उन सभी महिलाओं के प्रति आभार व्यक्त करना चाहती हूं जिन्होंने सालोंसाल प्रताड़ना और अत्याचार सहे हैं. उन्होंने इसलिए सहे क्योंकि उन्हें- मेरी मां की तरह- बच्चों को पालना था, ईएमआई का भुगतान करना था और अपने सपनों को भी पूरा करना था. उन तमाम महिलाओं के नाम हम सब कभी नहीं जान पाएंगें. वे घरेलू काम करने वाली महिलाएं हैं, वे खेतों में काम करती हैं, वे फैक्टरियों और रेस्तराओं में काम करती हैं, वे अकादमिक, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और विज्ञान की दुनिया में कार्यरत हैं. वे तकनीक, राजनीति और बिजनेस की दुनिया में काम कर रही हैं, वे ओलिम्पिक में एथलीट हैं, वे सेना में सैनिक भी हैं.

और वे कोई भी हो सकती हैं. उनमें से एक नाम है रेकी टेलर का जो जिसे मैं जानती हूं और चाहती हूं कि आप भी जानें. 1944 में, रेकी टेलर एक युवती और मां थी. एब्बेविल में एक चर्च में सेवा देने के बाद वे अपने घर लौट रही थीं. छह सशस्त्र श्वेत युवकों ने उनका अपहरण कर रेप किया और सड़क के किनारे उन्हें छोड़ दिया. अपराधियों ने उन्हें धमकाया कि अगर उसने इस घटना का जिक्र किसी से किया तो वे उन्हें जान से मार देंगे. लेकिन उनके साथ हुई घटना की रिपोर्ट एनएएसीपी में हुई. रोजा पार्क्स नाम का व्यक्ति उनके केस की जांच के लिए नियुक्त किया गया और दोनों ने मिलकर न्याय की गुहार की. पर जिम क्रो के जमाने में न्याय कोई विकल्प नहीं था. जिन पुरुषों ने उसे बर्बाद किया उन्हें कभी सज़ा नहीं हुई. रेकी टेलर की मृत्यु अभी दस दिनों पहले हुई, 98वें जन्मदिन के तुरंत बाद. वे जिंदा रहीं, वैसे ही जैसे हम सब कुछ समय पहले तक एक बर्बर पुरुष शासित समाज में जिंदा रहे. और लंबे समय तक ऐसी महिलाओं की बात को न तो सुना गया न उनपर भरोसा किया गया जिन्होंने इन पुरुषों की सत्ता के सामने सच बोलने की हिम्मत की. लेकिन अब उनका समय खत्म, उनका समय खत्म, उनका समय खत्म.

और मुझे उम्मीद है कि रेकी टेलर इस बदले हुए सच के साथ मरीं- जो कि अनगिनत शोषित महिलाओं का सच रहा है और जो आज भी शोषित हैं. यह बात कहीं न कहीं रोजा पार्क के दिल में बैठी हुई थी. शायद इसीलिए 11 साल बाद उन्होंने मोंटगोमरी जा रही बस में बैठे रहने का निश्चय किया. और यहीं से वह शुरुआत हुई जहां सभी महिलाओं ने एक साथ कहा, #MeToo. और हर पुरुष ने इसे सुनना चाहा. अपने करियर में-चाहे टीवी हो या फिल्में- मैंने हमेशा यही कहने की कोशिश की कि पुरुषों और महिलाओं का व्यवहार कैसा हो. कैसे हम शर्मिंदगी का अनुभव करते हैं, कैसे हम प्यार करते हैं, कैसे लड़ते हैं, कैसे हारते हैं और कैसे उनसे उबरते हैं. और मैंने ऐसे लोगों का साक्षात्कार भी किया जिनके जिंदगी में अनुभव बेहद बुरा रहा. लेकिन उन सबमें मैंने एक क्षमता जरूर पायी और वो थी एक चमकती सुबह की उम्मीद, काली घनी रातों के बावजूद.

इसलिए मैं चाहती हूं कि वो सभी लड़कियां जो आज यह देख रही हैं वो जान लें कि क्षितिज पर एक नया सवेरा हो रहा है. और जब यह सवेरा एक चमकदार दिन में बदलेगा तब उसके पीछे अनगिनत शानदार महिलाओं की भूमिका होगी. उनमें से कई आज रात इसी कमरे में मौजूद हैं. कुछ बेहद उल्लेखनीय पुरुषों के वजह से भी यह संभव हो सका है जिन्होंने आगे बढ़कर यह सुनिश्चित किया कि हम खुद नेतृत्वकर्ता बन सकें और वहां तक पहुंच सकें जहां से किसी को भी #मीटू कहने की जरूरत न पड़े. शुक्रिया.