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प्रधानमंत्री के ‘मेहुल भाई’ और रविशंकर प्रसाद के ‘जेंटलमैन चौकसी’

“कितना ही बड़ा शो रूम होगा, हमारे मेहुल भाई यहां बैठे हैं, लेकिन वो जाएगा अपने सुनार के पास ज़रा चेक करो.”
ये शब्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हैं. यू ट्यूब पर हैं. “पीएम नरेंद्र मोदी एट द लॉन्च ऑफ इंडियन गोल्ड कॉइन एंड गोल्ड रिलेटेड स्कीम”- नाम से टाइप कीजिए, प्रधानमंत्री का भाषण निकलेगा. इस वीडियो के 27 वें मिनट से सुनना शुरू कीजिए. प्रधानमंत्री ‘हमारे मेहुल भाई’ का ज़िक्र कर रहे हैं. ये वही मेहुल भाई हैं जिन पर नीरव बैंक के साथ पंजाब नेशनल बैंक को 11 हज़ार करोड़ का चूना लगाने का आरोप लगा है. उनके पार्टनर हैं, मामा भी हैं.

रविशंकर प्रसाद बेहद गुस्से में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए थे. उन्हें लगा कि वे जो बोलेंगे वो जज की तरह फैसला होगा. पत्रकार भी सवाल जवाब नहीं कर सके. आज कल चुप रहने वाले लोग पोलिटिकल एडिटर बन रहे हैं, बोलने वाले निकलवा दिए जा रहे हैं.

बहरहाल रविशंकर प्रसाद दोबारा अपना प्रेस कांफ्रेंस देख सकते हैं. कितने गुस्से में मेहुल चौकसी का नाम लेते हैं, जैसे उनकी हैसियत से नीचे की बात हो उस शख्स का नाम लेना. जबकि प्रधानमंत्री उसी मेहुल भाई को कितना आदर से पुकारते हैं. हमारे मेहुल आई. अहा. आनंद आ गया.

इन्हीं के बारे में रविशंकर प्रसाद कह रहे थे कि इनके साथ कांग्रेसी नेताओं की तस्वीरें हैं मगर वो जारी नहीं करेंगे. क्योंकि ये उनकी राजनीति का स्तर नहीं है. दुनिया भर के विरोधी नेताओं की तस्वीरें और सीडी जारी करने की राजनीति के बाद उनके इस आत्मज्ञान पर हंसी आ गई. गोदी मीडिया की हालत बहुत बुरी है.

13 जनवरी, 2016 को पीटीआई की ख़बर कई अखबारों में छपी है कि अरुण जेटली 100 उद्योगपतियों को लेकर दावोस जा रहे हैं. यह ख़बर फाइनेंशियल एक्सप्रेस में भी छपी है. आप ख़ुद भी देख सकते हैं कि उसमें नीरव मोदी का नाम है.

किसी भी बिजनेस अख़बार की ख़बर देखिए, उसमें यही लिखा होता है कि प्रधानमंत्री मोदी इन बिजनेसमैन की टोली का नेतृत्व कर रहे हैं. ज़ाहिर है उन्हें पता था कि भारत से कौन-कौन दावोस जा रहा है. इसलिए रविशंकर प्रसाद को सही बात बतानी चाहिए थी न कि इसे सीआईआई पर टाल देना चाहिए था.

नीरव मोदी एक जनवरी, 2018 को भारत से रवाना हो जाते हैं. उसके एक दिन बाद सीबीआई की जांच शुरू होती है. क्या यह महज़ संयोग था? जांच के दौरान यह शख्स 23 जनवरी को स्वीट्ज़रलैंड में दावोस में प्रधानमंत्री के करीब पहुंचता है, क्या यह भी संयोग था? इतने छापे पड़े, एफआईआर हुई मगर यह तो मकाऊ में शो रूम का उद्घाटन कर रहा है.

क्या ऐसी छूट किसी और को मिल सकती है? 2014 के पहले मिलती होगी लेकिन 2014 के बाद क्यों मिल रही है?

एनडीटीवी की नम्रता बरार की रिपोर्ट है कि नीरव मोदी इस वक्त न्यूयार्क के महंगे होटल में है. सरकार ने कहा है कि पासपोर्ट रद्द कर दिया जाएगा मगर अभी तक तो नहीं हुआ है. इतने दिनों तक उन्हें भागने की छूट क्यों मिली? हंगामा होने के बाद ही सरकार ने ये क्यों कहा जबकि पंजाब नेशनल बैंक ने एफआईआर में कहा है कि इनके ख़िलाफ़ लुक आउट नोटिस जारी किया जाए. क्यों नहीं तभी का तभी कर दिया गया?

अब ख़बर आई है कि इंटरपोल के ज़रिए डिफ्यूज़न नोटिस जारी किया गया है. इसका मतलब है कि पुलिस जांच के लिए गिरफ्तारी ज़रूरी है. हंगामे के बाद तो सब होता है मगर लुकआउट नोटिस उस दिन क्यों नहीं जारी हुआ जब एफआईआर हुई, छापे पड़े.

15 फरवरी को नीरव मोदी के कई ठिकानों पर छापे पड़े हैं जिनमें 5100 करोड़ की संपत्ति के काग़ज़ात ज़ब्त हुए हैं. सभी जगह इसे बड़ा कर छापा गया है जिससे लगे कि बड़ी भारी कार्रवाई हो रही है. दैनिक जागरण ने तो इस पूरे घोटाले में सिर्फ इसे ही शीर्षक बना दिया.

इस पर मनी कंट्रोल की सुचेता दलाल ने सख़्त ट्वीट किया है. उनका कहना है कि ख़बर है कि सीबीआई और डीआरई ने 5100 करोड़ के जवाहरात ज़ब्त किया है. अगर नीरव मोदी के पास इतनी संपत्ति होती तो उसे फर्ज़ी लेटर ऑफ अंडर टेकिंग लेकर घोटाला करने की ज़रूरत नहीं होती.

दूसरी, प्रक्रिया की बात होती है जो इन छापों से जुड़े अधिकारी ही बता सकते हैं. इतनी जल्दी संपत्ति का मूल्यांकन नहीं होता है. यह सब ख़बरों का मोल बढ़ाने के लिए किया गया है.

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि घोटाला 2011 से शुरू हुआ. लेकिन यह 2017 तक कैसे चलता रहा? क्यों फरवरी 2017 में आठ फर्ज़ी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए गए? रविशंकर प्रसाद ने यह तथ्य प्रेस कांफ्रेंस में छपा लिया.

इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि यह घोटाला 17 अन्य बैंकों तक भी गया है. 11,300 करोड़ के अलावा भी 3000 करोड़ का घोटाला हुआ है. नीरव मोदी की कई कंपनियां हैं, इन कंपनियों को 17 बैंकों ने 3000 करोड़ रुपये के लोन दिए हैं.

एक्सप्रेस लिखता है कि नीरव मोदी और उनके रिश्तेदारों की कंपनी को 2011 से 2017 के बीच 150 लेटर ऑफ अंडरटेकिंग दिए गए हैं. नियम है कि लेटर ऑफ अंडरटेकिंग से पैसा लेने पर 90 दिनों के अंदर चुका देना होता है. मगर बिना चुकाए भी इन्हें एलओयू मिलता रहा. इतनी मेहरबानी किसके इशारे से हुई?

इस मामले में बैंक मैनेजर को क्यों फंसाया जा रहा है? एलओयू की मंज़ूरी बैंक के बोर्ड से मिलती है, बैंक के मैनेजर से नहीं. मगर एफआईआर बैंक के मैनेजर और क्लर्कों के खिलाफ हुई है. बोर्ड के सदस्यों और चेयरमैन के ख़िलाफ़ क्यों नहीं एफआईआर हुई?

एक दो एलओयू बैंक के खाते में दर्ज नहीं हो सकते हैं मगर उसके आधार पर जब दूसरे बैंक ने नीरव मोदी को पैसे दिए तो उस बैंक ने पंजाब नेशनल बैंक को तो बताया होगा. उसने अपने पैसे पंजाब नेशनल बैंक से तो मांगे होंगे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन बैंकों से भी पैसे ले लिए गए और वहां भी हिसाब किताब में एंट्री नहीं हुई? इसका जवाब मिलना चाहिए कि पंजाब नेशनल बैंक के बोर्ड ने कैसे एलओयू को मंज़ूरी दी. बैंक का हर तिमाही फिर सालाना ऑडिट होता है. क्या उस आडिट में भी 11,000 करोड़ का घपला नहीं पकड़ा गया तो फिर बैंकों के ऑडिट कि क्या विश्वसनीयता रह जाती है?

इसलिए इस पर नौटंकी ज़रा कम हो, जांच जल्दी हो. 2जी में भी सारे आरोपी बरी हो गए. एक नेता को बचा कर कितने कारपोरेट को बचाया गया आप खुद भी अध्ययन करें. आदर्श घोटाले में भी अशोक चव्हाण बरी हो गए. इटली की कंपनी अगुस्ता वेस्टलैंड से हेलिकॉप्टर खरीदने के घोटाले को लेकर कितना बवाल हुआ. पूर्व वायु सेनाध्यक्ष को गिरफ्तार किया गया मगर इटली की अदालत में सीबीआई सबूत तक पेश नहीं कर पाई. ये सारी मेहरबानियां किस पर की गईं हैं?

बैंक कर्मचारी बताते हैं कि ऊपर के अधिकारी उन पर दबाव डालते हैं. नौकरी बचाने या कहीं दूर तबादले से बचने के लिए वे दबाव में आ जाते हैं. इन ऊपर वाले डकैतों के कारण बैंक डूब रहे हैं और लाखों बैंक कर्मचारी डर कर काम कर रहे हैं. उनकी सैलरी नहीं बढ़ रही है, बीमारियां बढ़ती जा रही हैं. बैंको पर भीतर से गहरी मार पड़ी है. आप किसी भी बैंक कर्मचारी से पूछिए वो बता देंगे अपना बुरा हाल. उनकी मानसिक पीड़ा समझने वाला कोई नहीं.

आप उस महंगी होती राजनीति की तरफ देखिए जहां पैसे से भव्य रैलियां हो रही हैं. वो जब तक होती रहेंगी तब तक बैंक ही डूबते रहेंगे. आखिर बिजनेसमैन भी पैसा कहां से लाकर देगा. इन्हीं रास्तों से लाकर देगा ताकि हुज़ूर रैलियों में लुटा सकें. यह पैटर्न आज का नहीं है मगर इसके लाभार्थी सब हैं.

साभार: फेसबुक वॉल