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बॉलीवुड को हॉलीवुड की चुनौती

पिछले कुछ समय से सिनेमा के बाजार के संदर्भ में बीच-बीच में यह चर्चा होती रहती है कि बॉलीवुड की फिल्मों को आनेवाले समय में हॉलीवुड की फिल्मों से कड़ी चुनौती मिल सकती है. वर्ष 2015 में जुरासिक वर्ल्ड, एवेंजर्स: एज ऑफ अल्ट्रॉन और फास्ट एंड फ्यूरियस 7 ने सौ करोड़ रुपये से अधिक की आमदनी की थी. इसी तरह से पिछले साल पांच हॉलीवुड फिल्मों ने 50 करोड़ से ज्यादा कमाया था. बॉलीवुड फिल्मों की संख्या और कमाई के लिहाज से ये आंकड़े कोई बहुत अधिक नहीं है, पर जैसा कि हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट ने रेखांकित किया है, हॉलीवुड की एक फिल्म को किसी भी बंबईया फिल्म की तुलना में बहुत कम थियेटर मिलते हैं. ऐसे में अगर थियेटरों के हिसाब से कमाई का औसत निकाला जाये, तो देशी सिनेमा का प्रदर्शन कमजोर है.

यह उल्लेखनीय है कि दर्शकों की तादाद और पसंद की व्यापकता के कारण हर तरह की फिल्मों- जिनमें दक्षिण भारतीय भाषाओं की हिंदी में डब फिल्में भी शामिल हैं- के लिए काफी जगह है. लेकिन क्या यह बॉलीवुड के भविष्य को लेकर आश्वस्त होने के लिए काफी है! शायद नहीं. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट ने बताया है कि मुश्किल यह है कि हॉलीवुड की फिल्में बॉलीवुड सिनेमा की ओपनिंग पर नकारात्मक असर डाल रही हैं. मामला यह है कि शहरी क्षेत्र के मल्टीप्लेक्स सिस्टम की वजह से फिल्मों पर यह दबाव रहता है कि सिनेमाघरों में बने रहने और अगले कुछ दिनों तक दर्शकों को खींचते रहने के लिए उन्हें रिलीज के शुरूआती तीन दिनों- जो आम तौर पर सप्ताहांत के दिन होते हैं- में अच्छी कमाई करनी है. यदि ऐसा नहीं होता है तो फिल्म परदे से उतरने लगती है. इस दबाव को इस हफ्ते रिलीज हुई ब्लैक पैंथर फिल्म के उदाहरण से समझ सकते हैं जिसे दर्शकों के साथ समीक्षकों का भी साथ मिल रहा है. इस हॉलीवुड फिल्म ने पहले दिन साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा कमाई की है. ध्यान रहे, इस फिल्म के सामने पैड मैन और अय्यारी जैसी फिल्में हैं. जनवरी के दूसरे हफ्ते में रिलीज हुई द पोस्ट ने दो सप्ताह में तीन करोड़ से ज्यादा कमा लिया था जबकि उसे सिर्फ 83 सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया गया था.

बॉक्स ऑफिस इंडिया के मुताबिक 2017 में जनवरी और सितंबर के बीच हॉलीवुड फिल्मों का भारतीय बाजार में हिस्सा 19.8 फीसदी रहा था, जबकि 2009 में यह महज 7.2 फीसदी था. इसके साथ बाहुबली के दूसरे भाग की हिंदी में डब फिल्म की कमाई, जो कि 74.8 मिलियन डॉलर रही थी, को जोड़ लें. फिर इंटरनेट के ओवर द टॉप प्लेटफॉर्मों के बढ़ते आधार को सामने रखें. देश के टेलीकॉम नियामक प्राधिकरण के आंकड़े बताते हैं कि 2017 में इनके सब्सक्राइबर 160 फीसदी की दर से बढ़े हैं. ऐसे में बॉलीवुड के वर्चस्व को गंभीर खतरा हो सकता है.

हॉलीवुड की अनेक फिल्मों के साथ एक खास बात यह होती है कि वे अंग्रेजी के साथ हिंदी और कुछ अन्य भाषाओं में रिलीज की जाती हैं. इससे उनका बाजार बढ़ जाता है. यह बात बॉलीवुड फिल्मों के साथ नहीं है. बंबईया फिल्मों के लिए टेलीविजन कमाई का एक जरिया है, वहां उसे डब की गई दक्षिण भारत की फिल्मों से चुनौती मिल रही है. इस कारण बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई ही उनके लिए एकमात्र बड़ा विकल्प बच जाता है.

हॉलीवुड फिल्मों के कमाने के दो कारण बहुत अहम हैं और इनके ऊपर बॉलीवुड को ध्यान देना चाहिए. त्योहारों और खास अवसरों पर कुछेक सुपरस्टारों की फिल्मों के रिलीज का रिवाज है. ऐसी फिल्में बॉलीवुड में सबसे अधिक कमाती हैं. साल के अन्य महीनों में आई फिल्में प्रचार और चर्चा का वैसा माहौल नहीं बना पातीं तथा वे चार दिनों में लागत और मुनाफा बटोरने पर ही अधिक ध्यान देती हैं. ऐसे माहौल में हॉलीवुड की फिल्में कम थियेटर के बावजूद कमा कर निकल जाती हैं. बॉलीवुड को अपने निर्माण, वितरण और प्रचार के अर्थशास्त्र पर गंभीर विचार करना चाहिए. कुछ सुपरस्टारों और कुछ बड़ी फिल्मों के सहारे इतनी बड़ी इंडस्ट्री ज्यादा दूर तक चल नहीं सकती है.

यदि भारत में हॉलीवुड की सफल फिल्मों पर नजर डालें, तो हम पाते हैं कि उनकी विषयवस्तु और प्रस्तुति बॉलीवुड से बिल्कुल अलग है. कथानक चाहे थ्रिलर हो, ऐतिहासिक हो, सुपरहीरो पर आधारित हो या फिर साइंस-फिक्शन हो- इन विषयों पर बॉलीवुड अच्छी फिल्में नहीं बनाता है. इस बड़ी कमी को हॉलीवुड की फिल्में बखूबी पूरा करती हैं और दर्शक भी उनका स्वागत करते हैं.

इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि इंटरनेट के प्रसार ने भारतीय दर्शक को हॉलीवुड से बेहतर तरीके से परिचित कराया है. उनके बारे में होनेवाली अंतरराष्ट्रीय चर्चाएं, प्रचार, गॉसिप आदि हमारे यहां भी आसानी से पहुंचते हैं. जब वे फिल्में हमारे देश में रिलीज होती हैं, तो दर्शकों को ऐसा नहीं लगता है कि वे किसी अनजान कलात्मक कृति से रूबरू ही रहे हैं. किशोरों-युवाओं की बड़ी संख्या की आकांक्षाएं और सपने सिर्फ उन मुद्दों या सोच तक सीमित नहीं हैं, जिनका प्रतिनिधित्व बॉलीवुड करता है, बल्कि हमारा युवा वैश्विक संस्कृति के विभिन्न आयामों से प्रभावित हो रहा है. यह वर्ग सिनेमा का सबसे बड़ा दर्शक वर्ग है. उम्मीद यही है कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री आसन्न चुनौतियों से आगाह है और जल्दी ही वह हॉलीवुड की तरह अपनी प्रस्तुति को विविधता देकर दर्शकों को अपने पास बरकरार रखने में सफल रहेगी.

(साभार: डिक्टाफिक्टा)