Newslaundry Hindi
उत्तराखंड के मेडिकल कॉलेजों में लिखी जा रही आर्थिक ग़ुलामी की इबारत
उत्तराखंड के प्राइवेट मेडिकल कालेज ने 400 प्रतिशत फीस बढ़ा दी है. यहां के तीन प्राइवेट मेडिकल कालेजों में करीब 650 छात्र छात्राएं पढ़ते हैं. इनमें से आधे उत्तराखंड के ही हैं. राज्य सरकार ने मेडिकल कालेज को फीस बढ़ाने की छूट दे दी है. इस खेल का असर आप जानेंगे तो रातों की नींद उड़ जाएगी. उसके बाद हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर किसी धार्मिक जुलूस में ख़ुद को स्वाहा कर लेने के अलावा आपके सामने कोई रास्ता नहीं बचेगा.
अभी तक यहां के निजी मेडिकल कॉलेजों की प्रथम वर्ष एमबीबीएस की फीस छह लाख 70 हज़ार थी जो अब सीधे 23 लाख हो गई है. दूसरे साल की फीस 7 लाख 25 हज़ार थी जो अब 20 लाख हो गई है और तीसरे साल की फीस 7 लाख 36 हज़ार से बढ़कर 26 लाख हो गई है. जो छात्र दूसरे वर्ष में हैं उन्हें बैक डेट से प्रथम वर्ष की फीस का बढ़ा हुआ हिस्सा भी देना होगा यानी दूसरे वर्ष के छात्र को करीब 40 लाख रुपये देना होगा.
अब यह आर्थिक ग़ुलामी नहीं तो और क्या है.
सरकार ने जनता को ग़ुलाम बनाने का तरीका खोज रखा है. इनके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है. या तो सरकार इस अमानवीय फीस वृद्धि को 24 घंटे में वापस कराए या फिर ये छात्र आर्थिक ग़ुलामी को स्वीकार कर लें. क्या कोई भी कालेज फीस के नाम पर इस हद तक छूट ले सकता है कि आपका सब कुछ बिकवा दे.
ठीक है कि 6 लाख भी फीस कम नहीं मगर कैरियर के लिए छात्र लोन ले लेते हैं, उन पर 50 लाख का और बोझ, किस हिसाब से डाला जा रहा है. यही समझ कर ना कि अब वे फंस चुके हैं, लोन लेंगे ही. इसे ही आर्थिक ग़ुलामी कहते हैं. क्योंकि अब इनमे से कोई पढ़ाई छोड़ना चाहेगा तो उसे निकलने के लिए 60 लाख रुपये देने होंगे. अर्थशास्त्र की किसी भी समझ के अनुसार ये ग़ुलामी है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने टीवी-18 से कहा है कि एक प्राइवेट मेडिकल कालेज बनाने में 700-800 करोड़ रुपए लगते हैं. वाकई किसी ने इतना पैसा लगाकर मेडिकल कालेज बनाया है?
किसने आडिट किया है कि 800 करोड़ का एक मेडिकल कालेज है. आर्थिक चेतना न होने का लाभ उठाकर ये सब तर्क दिए जा रहे हैं. आप धार्मिक उन्माद की भेंट चढ़ते रहें, इसकी आड़ में स्कूलों कालेजों में लोग आर्थिक दासता के शिकार हो रहे हैं.
मैंने कई परिवारों से सीधा पूछा कि क्या आप में से कोई ब्लैक मनी वाले परिवार से है, या जिसके पास बहुत सारा पैसा है, जो जवाब मिला उल्टा मैं शर्मिंदा हो गया. ज़्यादातर छात्र मध्यम और साधारण श्रेणी के परिवारों से हैं. ये डोनेशन वाले नहीं हैं. ये सभी नीट प्रतियोगिता परीक्षा पास कर आए हैं. 450 अंक लाकर. इन कालेजों का चुनाव इसलिए किया कि प्राइवेट कालेज महंगे होते हैं मगर लोन के सहारे एक बार डाक्टर तो बन जाएंगे.
अब इनकी इसी मजबूरी का फायदा उठाते हुए यह बोझ डाला गया है. इनके सर पर परमाणु बम फोड़ दिया गया है. यह क्या हो रहा है, हमारे आस पास. क्या वाकई नेताओं ने जनता को ग़ुलाम समझ लिया और क्या जनता भी ख़ुद को ग़ुलाम समझने लगी है?
Also Read
-
If manifestos worked, Bihar would’ve been Scandinavia with litti chokha
-
South Central 49: EC’s push for SIR, high courts on sexual assault cases
-
NDA’s ‘jungle raj’ candidate? Interview with Bihar strongman Anant Singh
-
TV Newsance 319: Bihar dramebaazi and Yamuna PR wash
-
Argument over seats to hate campaign: The story behind the Mumbai Press Club row