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59 लाशों पर जेरूसलम में अमेरिकी दूतावास का उद्घाटन!
पिछले साल दिसंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताओं और फिलिस्तीनियों की भावनाओं को दरकिनार यह घोषणा कर दी थी कि जेरूसलम इजरायल की राजधानी है और अमेरिका अपने दूतावास को तेल अवीव से हटाकर जल्दी ही जेरूसलम ले जायेगा.
सोमवार, 14 मई को जेरूसलम में अमेरिकी दूतावास का औपचारिक उद्घाटन हो रहा था. उद्घाटन समारोह में 700 से अधिक अमेरिकी अतिथियों के मौजूद होने का अनुमान है. इस आयोजन में व्हाइट हाउस की तरफ से इवांका ट्रंप और उनके पति जे कुशनेर ने हिस्सा लिया. राष्ट्रपति के बेटी-दामाद उनके नजदीकी सलाहकार भी हैं. हालांकि, दूतावास का स्थानांतरण अभी सांकेतिक ही है क्योंकि नये भवन के बनने में समय लगेगा, तब तक दूतावास का कामकाज तेल अवीव से चलेगा.
राजदूत डेविड फ्रीडमैन और उनका स्टाफ जेरूसलम से अपना काम नियमित रूप से करेंगे. लेकिन यह आयोजन और हस्तांतरण इजरायल की बड़ी कूटनीतिक जीत है तथा साथ ही, अमेरिकी विदेश नीति पर ट्रंप की छाप का बड़ा उदाहरण भी है.
अभी दूतावास की जगह जेरूसलम में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास का भवन होगा, जो 2010 से काम कर रहा है. इसमें अभी अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट का नवीनीकरण और स्थानीय लोगों के वीजा आवेदनों के निपटारे जैसे काम होते हैं. इसके अलावा यहां से फिलीस्तीनियों से अमेरिकी रिश्तों को बढ़ाने का काम भी होता है. मध्य जेरूसलम में स्थित इस भवन का कुछ हिस्सा उस जमीन पर बना है, जो 1967 से पहले इजरायल और जॉर्डन की सीमा का हिस्सा होता था.
साल 1967 में इजरायल ने अरब देशों की संयुक्त सेना को हरा कर जॉर्डन से पूर्वी जेरूसलम छीन लिया था. पवित्र मंदिर, होली सेपुखर चर्च, गोल्डेन डोम, अल-अक्सा मस्जिद जैसे धार्मिक महत्व की सभी खास जगहें पूर्वी जेरूसलम में ही हैं.
स्वाभाविक रूप से फिलीस्तीनी दूतावास को जेरूसलम लाने के फैसले का विरोध कर रहे हैं. कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि दूतावास के उद्घाटन के बाद ट्रंप प्रशासन इजरायल-फिलीस्तीन शांति के लिए कुछ योजना की घोषणा कर सकता है जिसमें फिलीस्तीनियों के लिए मुआवजे की व्यवस्था हो सकती है. परंतु यह कह पाना मुश्किल है कि ऐसी घोषणा कब होगी या फिर होगी भी कि नहीं.
बहरहाल, यह भी दिलचस्प है कि अमेरिका का एक बड़बोला और विवादित ईसाई पादरी रॉबर्ट जेफ्रेस दूतावास के आयोजन में प्रवचन देनेवाला है. यह पादरी ट्रंप का करीबी है और यहूदियों और इस्लाम के बारे में अपमानजनक बयान देने के लिए कुख्यात है. अरब की बदलती राजनीति और इजरायल के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए यह भी कोई अचरज की बात नहीं है कि जेरूसलम में अमेरिकी दूतावास लाने के मामले में अरब के देश चुप्पी साधे हुए हैं. यह साफ होने लगा है कि फिलीस्तीनियों को अपनी आजादी की लड़ाई अपने ही बूते लड़नी होगी और उन्हें अरब देशों के सहयोग का भरोसा छोड़ देना होगा.
मार्च के महीने से गाजा-इजरायल सीमा पर फिलीस्तीनियों का विरोध चल रहा है और अब तक 40 से आधिक फिलीस्तीनी मारे जा चुके हैं. दूतावास के उद्घाटन के मौके पर जेरूसलम के भीतर और गाजा सीमा पर प्रदर्शनों की योजना है और व्यापक हिंसा की आशंका भी जतायी जा रही है. गाजा की अशांति अभी तक पूर्वी जेरूसलम और वेस्ट बैंक इलाकों में नहीं फैल सकी है, पर दूतावास प्रकरण से लपटें बढ़ सकती हैं.
दूतावास के उद्घाटन का समय भी सवालों के घेरे में है. साल 1948 में इजरायल के देश बनने के अवसर को इजरायली 14 मई को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं. उसके अगले दिन यानी 15 मई को फिलीस्तीनी नकबा के रूप में मनाते हैं जब उन्हें अपने घर-बार छोड़ कर जाने के लिए मजबूर कर दिया गया था. इसी बीच रविवार को जेरूसलम में इजरायलियों द्वारा जेरूसलम दिवस मनाया गया जिसमें वे 1967 में पूर्वी जेरूसलम पर जीत का जश्न मना रहे थे.
यह सालाना जुलूस होता है और पूर्वी जेरूसलम से गुजरनेवाला यह जुलूस असल में फिलीस्तीनियों को अपमानित करने के इरादे से निकाला जाता है जिसमें भड़काऊ नारे लगाये जाते हैं और फिलीस्तीनियों की दुकानों को नुकसान पहुंचाया जाता है. इस बार भी यह जुलूस निकाला गया जिसमें हजारों इजरायली थे और उन्हें हर साल की तरह बाकायदा पुलिस सुरक्षा मिली हुई थी.
इजरायल-फिलीस्तीन विवाद में ईसाई चर्चों पर बढ़ते हमले भी एक चिंताजनक तत्व बनते जा रहे हैं. इजरायली सरकार ने फिलहाल तो अपने उन विवादित इरादों को रोक दिया है जिनमें चर्चों और उनकी संपत्तियों पर कर लगाने और कुछ संपत्तियों के अधिग्रहण की बात थी, लेकिन चर्च अभी एक नये हमले का सामना कर रहा है. इजरायली बाशिंदों के कुछ गिरोह लगातार ईसाईयों के पवित्र स्थलों पर भद्दी टिप्पणियां लिख देते हैं और तोड़फोड़ करते हैं. यह सिलसिला पिछले साल से चल रहा है.
कई ईसाईयों को निजी तौर पर भी अभद्रता का सामना करना पड़ रहा है. इजरायल के ज्यादातर ईसाई अरबी मूल के हैं और वे तीन मुख्य चर्चों- ग्रीक कैथोलिक, ग्रीक ऑर्थोडॉक्स और रोमन कैथोलिक चर्च के अनुयायी हैं.
जेरूसलम की पवित्रता, ऐतिहासिकता और सामाजिकता में ईसाई एक मुख्य घटक हैं. उन्होंने जेरूसलम पर डोनाल्ड ट्रंप के फैसले की आलोचना करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि यथास्थिति को बरकरार रखा जाना चाहिए.
जेरूसलम में अमेरिकी दूतावास, ईरान एटमी करार से अमेरिका का हटना तथा अरब देशों की इजरायल से बढ़ती नजदीकी से इजरायल और फिलीस्तीन के लिए नयी राजनीतिक स्थितियां बन रही हैं. मध्य-पूर्व में तनाव चरम पर है जिसका एक संकेत सीरिया में ईरान और इजरायल के बीच चल रहीं हिंसक झड़पें हैं. जेरूसलम के इर्द-गिर्द फिर एक बार इतिहास करवट ले रहा है और हमेशा की तरह हिंसा, हत्याएं और फरेब का माहौल है.
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