Newslaundry Hindi
रवीश कुमार की नज़रों से कोलंबिया ज़र्नलिज्म स्कूल का सफ़र
1912 में जब हम अपनी आज़ादी की लड़ाई की रूपरेखा बना रहे थे तब यहां न्यूयार्क में जोसेफ़ पुलित्ज़र कोलंबिया स्कूल ऑफ़ जर्नलिज़्म की स्थापना कर रहे थे. सुखद संयोग है कि 1913 में गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर में प्रताप की स्थापना कर रहे थे. तो ज़्यादा दुखी न हो लेकिन यह संस्थान पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. मोहम्मद अली, शिलादित्य और सिमरन के मार्फ़त हमने दुनिया के इस बेहतरीन संस्थान को देखा. यहां भारतीय छात्र भी हैं और अगर ज़रा सा प्रयास करेंगे तो आपके लिए भी दरवाज़े खुल सकते हैं. किसी भी प्रकार का भय न पालें बल्कि बेहतर ख़्वाब देखें और मेहनत करें.
तो सबसे पहले हम इसके हॉल में घुसते हैं जहां 1913 से लेकर अब तक पढ़ने आए हर छात्रों के नाम है. मधु त्रेहन और बरखा दत्त यहां पढ़ चुकी हैं. और भी बहुत से भारतीय छात्रों के नाम है. पुलित्ज़र की प्रतिमा और उनका वो मशहूर बयान जिन्हें हर दौर में पढ़ा जाना चाहिए (पुलित्ज़र का मूल कथन अंग्रेज़ी में है, जो कि तस्वीर में है. यहां उसका हिंदी में अविकल अनुवाद है.) आपके लिए हमने पुलित्ज़र पुरस्कार के मेडल की तस्वीर भी लगाई है.
“हमारा गणतंत्र और इसके मीडिया का उत्थान और पतन आपस में निहित है,” पुलित्ज़र लिखते हैं. “एक सक्षम, तटस्थ, जनहित को समर्पित मीडिया, सच को जानने की मेधा, और ऐसा करने के साहस के सहारे ही सार्वजनिक शुचिता को संरक्षित किया जा सकता है, इसके बिना कोई लोकप्रिय सरकार ढोंग और नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं. एक सशंकित, स्वार्थी और महामानव सरीखा प्रेस समय के साथ खुद के जैसे लोगों की खेप तैयार करेगा. गणतंत्र के भविष्य को दिशा देने की ताकत भविष्य में तैयार होने वाली पत्रकारों की पीढ़ियों के हाथ होगी.”
भारत में पत्रकारिता के दो से तीन अच्छे शिक्षकों को छोड़ दें तो किसी संस्थान में संस्थान के तौर पर कोई गंभीरता नहीं है. सवाल यहां संस्थान, संसाधन और विरासत की निरंतरता का है. मेरी बातों पर फ़ालतू भावुक न हो. यहां मैंने देखा कि पत्रकारिता से संबंधित कितने विविध विषयों पर पढ़ाया जा रहा है. प्रतिरोध की पत्रकारिता का पोस्टर आप यहां देख सकते हैं. बचपन के शुरुआती दिनों की पत्रकारिता पर भी यहां संस्थान है.
हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में रिपोर्टिंग के दौरान कई पत्रकारों को मानसिक यातना हो जाती है. उन्हें यहां छात्रवृत्ति देकर बुलाया जाता है. उनका मनोवैज्ञानिक उपचार भी कराया जाता है. यहां डार्ट सेंटर फॉर जर्नलिज्म एंड ट्रॉमा है. खोजी पत्रकारिता के लिए अलग से सेंटर हैं. दुनिया के अलग-अलग हिस्से से आए पत्रकार या अकादमिक लोग यहां प्रोफ़ेसर हैं. भारत के राजू नारीसेट्टी यहां पर प्रोफ़ेसर हैं. राजू ने ही मिंट अख़बार को स्थापित किया.
यह क्यों बताया? इसलिए बताया कि हमारे संस्थान गोशाला हो चुके हैं, जहां एक ही नस्ल की गायें हैं. वहां न शिक्षकों में विविधता है, न छात्रों में. और विषयों की विविधता क्या होगी आप समझ सकते हैं. आईआईमएमसी के छात्र अपने यहां प्रतिरोध की पत्रकारिता का अलग से कोर्स शुरू करवा सकते हैं. यह नहीं हो सकता तो मोदी प्रशंसा की पत्रकारिता जैसा कोर्स शुरू करवा सकते हैं. यह भी एक विधा है और इसमें काफ़ी नौकरियां हैं. लेकिन पहले जोसेफ़ पुलित्ज़र ने लोकतंत्र और पत्रकारिता के बारे में जो कहा है, वो कैसे ग़लत है, उस पर एक निबंध लिखें. फिर देखें कि क्या उनकी बातें सही हैं? कई बार दौर ऐसा आता है जब लोग बर्बादी पर गर्व करने लगते हैं. उस दौर का भी जश्न मना लेना चाहिए ताकि ख़ाक में मिल जाने का कोई अफ़सोस न रहे. वैसे भारत विश्वगुरु तो है ही.
इसके बाद अली ने हमें कुछ क्लासरूम दिखाए. एप्पल के विशालकाय कंप्यूटर लगे हैं. क्लास रूम की कुर्सियां अच्छी हैं. सेमिनार हॉल भी अच्छा है. झांक कर देखा कि ब्राडकास्ट जर्नलिज़्म को लेकर अच्छे संसाधन हैं. यहां हमारी मुलाक़ात वाशिंगटन में काम कर रहे वाजिद से हुई. वाजिद पाकिस्तान से हैं. उन्होंने बताया कि जिस तरह मैं भारत में गोदी मीडिया का इस्तेमाल करता हूं उसी तरह से पाकिस्तान में मोची मीडिया का इस्तेमाल होता है. यानी हुकूमत के जूते पॉलिश करने वाले पत्रकार या पत्रकारिता.
गुज़ारिश है कि आप सभी तस्वीरों को ग़ौर से देखे. सीखें और यहां आने का ख़्वाब देखें. हिन्दी पत्रकारिता में बेहतरीन छात्र आते हैं. वे यह समझें कि पत्रकारिता अध्ययन और प्रशिक्षण से भी समृद्ध होती है. भारत के घटिया संस्थानों ने उनके भीतर इस जिज्ञासा की हत्या कर दी है लेकिन फिर भी. मैंने उनके लिए यह पोस्ट लिखा है ताकि वे नई मंज़िलों की तरफ़ प्रस्थान कर सकें. अभी आपकी मंज़िल हिन्दू मुस्लिम डिबेट की है. सत्यानाश की जय हो.
(लेख और सभी फोटो रवीश कुमार की फेसबुक वाल से साभार)
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Reporters Without Orders Ep 375: Four deaths and no answers in Kashmir and reclaiming Buddha in Bihar
-
Lights, camera, liberation: Kalighat’s sex workers debut on global stage