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अभिसार शर्मा और अमित सिंह को मिला हिंदी श्रेणी में रामनाथ गोयनका अवार्ड

साल 2017 के रामनाथ गोयनका एक्सिलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड की घोषणा कल कर दी गई. 18 श्रेणियों में दिए जाने वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार देश-विदेश के कुल 29 पत्रकारों को दिया गया. पुरस्कार कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गृहमंत्री राजनाथ सिंह थे. गोयनका अवार्ड ग्राउंड रिपोर्टिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को दिया जाता है. इसमें प्रिंटऔर इलेक्ट्रॉनिक दोनों माध्यमों  में काम करने वाले पत्रकारों को शामिल किया जाता है.

इस वर्ष हिन्दी कैटेगरी में प्रिंट के लिए द वायर के पूर्व वरिष्ठ संवाददाता अमित सिंह और ब्रॉडकास्ट कैटेगरी में एबीपी न्यूज़ के पूर्व एंकर और रिपोर्टर रहे, अभिसार शर्मा को यह अवार्ड मिला.

स्टोरी जिसकी वजह से मिला “रामनाथ गोयनका एक्सिलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड

अमित सिंह ने जम्मू कश्मीर पुलिस के ऊपर एक स्टोरी की थी. अमित ने यह बताने का प्रयास किया कि कश्मीर की पुलिस किन परिस्थितियों में काम करती है और उन पर किस-किस तरह के खतरे हमेशा मंडराते रहते हैं. यहां तक की वह अपने किसी रिश्तेदार की शादी जन्मदिन या अन्य सामाजिक समारोह तक का हिस्सा नहीं बन पाते हैं क्योंकि उनके और उनके परिवारों के ऊपर हमेशा आतंकियों की नज़र रहती है.

जम्मू-कश्मीर पुलिस के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से अमित ने अपनी स्टोरी में बताया, कि  वह भारत के अन्य राज्यों के पुलिस जवानों की तरह किसी पड़ोसी, दोस्त या रिश्तेदार को गर्व से अपनी नियुक्ति अथवा अपने बहादुरी के काम के बारे में बता भी नहीं सकते. किसी को पता नही रहता कि कौन वहां आतंकवादियों का मुखबिर है.

कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें बताया कि आतंकवादियों  द्वारा केवल पुलिसकर्मियों को ही नहीं बल्कि उनके परिवार को भी निशाना बनाया जाता रहा है एक आंकड़े के मुताबिक अब तक (2017 ) आतंकियों के हमले में 28 पुलिसकर्मी घायल हुए या मारे गए हैं.

एक अन्य पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि कश्मीर पुलिस सेना के मुक़ाबले काम की दोहरी मार झेलती है. सेना, सीआरपीएफ़ और बीएसएफ़ के जवान केवल एक निश्चित इलाके में काम करते है जबकि पुलिसकर्मी केंद्रीय बलों के साथ मिलकर शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए चौतरफा काम करते हैं. उसके साथ ही  वीआईपी की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था बनाए रखना, अपराधियों को पकड़ना, यातायात सुचारु करना, अदालती कार्रवाई में हिस्सा लेना, खुफिया सूचनाओं को एकत्र करने जैसे तमाम काम होते हैं.

अमित की स्टोरी में घाटी के एक पुलिस अधिकारी कहते है कि यहां सेना के जवानों के साथ-साथ पुलिसकर्मी भी शहीद होते है पर दोनों को लेकर देश में लोगों का नज़रिया अलग-अलग है. एक तरफ लोगों के दिलों में सेना जवानों के लिए सहानुभूति होती है, बड़े-बड़े नेता शहीद के परिवार से मिलने पहुंचते है वहीं दूसरी तरफ एक पुलिसकर्मी के शहीद होने से किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता. कोई नेता उसके घर नहीं पहुंचता और न ही गृह मंत्रालय किसी तरह का स्टेटमेंट जारी करता है.

अमित सिंह की पूरी स्टोरी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

पूर्वी उत्तर प्रदेश में दिमागी बुखार की महामारी पर अभिसार शर्मा की रिपोर्ट

अभिसार शर्मा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज समेत दर्जन भर जिलों में पिछले 40 साल से फैली जापानी एन्सेफलाइटिस (दिमागी बुखार) के ऊपर “एक लाख बच्चों का क़ातिल कौन?” नाम से रिपोर्ट की थी. उनकी रिपोर्ट में सामने आया कि किस तरह से इस बीमारी ने लाखों बच्चों की जान ले ली है. इस बीमारी से बीते 40 साल में करीबन 1,00,000 बच्चों की मौत हो चुकी है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिले अभी भी इस बिमारी की चपेट में हैं.

गोरखपुर के डॉक्टर अभिसार को बताते हैं कि इस बीमारी की वजह गंदगी, सूअर और धान के खेत हैं. गंदगी और धान के खेतों में भरे पानी से इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) का मच्छर पनपता है.

चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने खुद इस समस्या का जिक्र अपनी चुनावी रैली में किया था लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार ने इस बीमारी से ग्रसित लोगों की सुध ली.

अभिसार शर्मा की पूरी रिपोर्ट आप यहां देख सकते हैं

इसके अलावा इस बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार एक नई श्रेणी में प्रभावशाली संपादकीय टिप्पणी के लिए भी दिया गया. इस श्रेणी में राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक और स्वामी गुलाब कोठारी को पुरस्कार दिया गया. 2017 में राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने पत्रकारों द्वारा किसी भी नेता या नौकरशाह के खिलाफ रिपोर्ट से पहले पुलिस की अनुमति लिए जाने का प्रस्ताव पारित किया था. इसके खिलाफ गुलाब कोठारी ने राजस्थान पत्रिका में एक विस्तृत संपादकीय लिखकर विरोध जताया था.