Newslaundry Hindi
पांच साल में क्यों नहीं ला पाए 56 इंच वाले लोकपाल?
2014 में भाजपा की केंद्र की सत्ता में बंपर जीत के पीछे एक बड़ी वजह 2011 से दिल्ली में चल रहा अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और सशक्त लोकपाल की स्थापना की मांग थी. अरविंद कजरीवाल और अन्ना हजारे ने जनता के जिस गुस्से को तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ हवा दी थी उसको राजनीतिक पूंजी में बदलने में कामयाबी भाजपा को 2014 के आम चुनावों में मिली.
2014 के आम चुनावों से पहले जारी हुए भाजपा के घोषणा पत्र के पेज नंबर 18 पर इस बात का जिक्र है कि जीतने की स्थिति में देश को ‘खुली सरकार और जवाबदेह प्रशासन’ मिलेगा. इसमें लिखा हुआ है कि भाजपा एक प्रभावी लोकपाल संस्था गठित करेगी. हर स्तर के भ्रष्टाचार से कड़ाई और त्वरित गति से निपटा जाएगा.
अब नरेंद्र मोदी की सरकार अपना कार्यकाल के अंतिम पड़ाव पर है. नरेंद्र मोदी औऱ अमित शाह पहले से ही आगामी लोकसभा चुनाव की मुहिम में जुट गए हैं. लेकिन लोकपाल अभी तक देश के लिए बुरांस के उस फूल की तरह है जिसकी झलक आज तक किसी को नहीं मिली.
लोकपाल के लिए संघर्ष करने वाली संस्था कॉमन कॉज़ के डायरेक्टर विपुल मुद्गल बताते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार देश को एक मज़बूत लोकपाल देने को लेकर कभी भी गंभीर नहीं रही. सरकार में आने के बाद लोकपाल लागू न हो इसके लिए वे लोग बहाने तलाशते रहे. जब कॉमन कॉज़ की तरफ से डाली गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल केंद्र सरकार को आदेश दिया कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी का गठन करे. तब जाकर 28 सितंबर, 2018 को केंद्र सरकार ने आठ सदस्यों की लोकपाल सर्च कमेटी का गठन किया यानी मोदी सरकार का कार्यकाल लगभग सवा चार साल बीत जाने के बाद, वो भी सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद.
लोकपाल सर्च कमेटी का गठन सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में किया गया. इसके बाकी सदस्य हैं- एसबीआई की पूर्व अध्यक्ष अरुंधति भट्टाचार्य, प्रसार भारती के अध्यक्ष ए सूर्य प्रकाश, इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस सखाराम सिंह यादव, इसरो प्रमुख एएस किरन कुमार, गुजरात पुलिस के पूर्व प्रमुख शब्बीर हुसैन एस खंडवावाला, रिटायर्ड आईएएस ललित के पवार और रंजीत कुमार.
ऐसा नहीं है कि सर्च कमेटी बनाने के बाद सरकार की नीयत में कोई बदलाव आ गया हो और वह लोकपाल को लेकर सचेत हो गई हो. लोकपाल सर्च कमेटी के बने हुए लगभग चार महीने हो गए हैं, लेकिन अभी तक कमेटी के सारे सदस्य एक बार भी मिलकर आधिकारिक रूप से बैठक नहीं कर सके हैं. सर्च कमेटी के सदस्य इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस सखाराम सिंह यादव ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया,
“अभी तक कमेटी के सदस्य एक साथ कभी नहीं मिले हैं. फोन पर एकाध बार चर्चा जरूर हुई है. लेकिन आधिकारिक रूप से कमेटी की कोई बैठक अभी तक नहीं हुई है. लोकपाल के लिए किसी के नाम पर अभी तक कोई चर्चा नहीं हुई है, शायद जल्द ही हम लोग मिलने वाले हैं.”
जाहिर है सरकार ने कोर्ट के दबाव में कमेटी का गठन तो कर दिया लेकिन लोकपल की नियुक्ति को लेकर उसकी मंशा कतई साफ नहीं है. चार महीने में एक अधिकारिक बैठक तक नहीं होना इस बात की ताकीद करता है. अगले एक महीने में 2019 के लोकसभा चुनावों की घोषणा हो जाएगी, इसके बाद इस कमेटी का भविष्य खुद ब खुद अनिश्चय में पड़ जाएगा.
लोकपाल सर्च कमेटी के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “जब भी सरकार कोई कमेटी या कमीशन बनाती है तो उसके सदस्यों को काम करने के लिए जगह, कुछ कर्मचारी लोग मुहैया करवाती है. लेकिन हमें अभी तक कोई जगह या लोग मुहैया नहीं कराया गया है. इसके कारण हम कभी भी एक साथ नहीं मिले हैं. हालांकि पूर्व जस्टिस रंजना देसाई ने पिछले दिनों हुई बातचीत में जल्द ही मिलने का जिक्र किया था.”
सिर्फ कमेटी के सदस्य ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी पिछले दिनों बताया था कि कमेटी को जरूरी आधारभूत सुविधाएं और मानव संसाधन उपलब्ध नहीं है. इसके चलते सर्च कमेटी लोकपाल के चयन पर काम नहीं कर पा रही है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को सर्च कमेटी को जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में कॉमन कॉज़ संस्था की तरफ से पेश होने वाले वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने जब सर्च कमेटी के कामों पर सवाल खड़ा किया तो मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने उन्हें सकारात्मक रहने की सलाह दी.
प्रशांत भूषण लोकपाल सर्च कमेटी के काम करने के तरीके पर भी सवाल उठाते हैं. वे कहते हैं, “सर्च कमेटी क्या कर रही है, उसकी किसी को जानकारी ही नहीं है. कमेटी क्या फैसला कर रही है इसपर पारदर्शिता होनी चाहिए. लोकपाल चुनने का पैमाना क्या बनाया गया है इसकी भी जानकारी होनी चाहिए.”
प्रशांत भूषण न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं कि मोदी सरकार की मंशा साफ है कि वे लोकपाल बनाना ही नहीं चाहते है. सरकार में आने के बाद जानबूझकर लोकपाल की नियुक्ति को टालते रहे. हमारी कोशिश के बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया तब जाकर सर्च कमेटी बनी.
प्रशांत भूषण आगे कहते हैं, “सर्च कमेटी के बने चार महीने हो गए है, लेकिन अभी तक उनकी कोई मीटिंग नहीं हुई है. कहा जा रहा है कि सर्च कमेटी को कोई कमरा नहीं दिया गया है, कोई लोग नहीं दिए गए ये सब तो सरकार को ही देना था. जिस तरह से सरकार लोकपाल को लेकर ढुलमुल रवैया पिछले पांच साल से अपना रही है उससे साफ जाहिर है की सरकार का मज़बूत लोकपाल लाने का इरादा नहीं है.”
लोकपाल सर्च कमेटी के एक सदस्य मोदी-बीजेपी भक्ति में लीन
लोकपाल जो राजनीतिक पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार की जांच करने वाली सबसे बड़ी संस्था होगी उसके चयन के लिए बनी सर्च कमेटी के एक सदस्य सखाराम सिंह यादव का फेसबुक प्रोफाइल मोदी सरकार की तारीफों और भाजपा के गुणगान से भरा हुआ है.
सखाराम सिंह यादव ने योगी आदित्यनाथ के नाम से बने एक फेसबुक पेज का वीडियो इसी साल ग्यारह जनवरी को शेयर किया है, जिसपर लिखा है- “जो लोग मोदीजी के विदेशी यात्राओं का विरोध करते हैं वो ये वीडियो ज़रूर देखें, ये है मोदी जी का कमाल, हर नमो समर्थक गर्व से शेयर करें.”
यहीं नहीं बीजेपी और पीएम मोदी के पक्ष में सखाराम सिंह यादव ने कई पोस्ट शेयर किए हैं. 11 जनवरी को ही एक दूसरा वीडियो भी उन्होंने शेयर किया है, जो इंडिया फर्स्ट नाम के फेसबुक पेज का है. इस वीडियो का शीर्षक है- “जनता ही बनी हो जिसका ढाल, विपक्ष क्या करेगा उस पर प्रहार.”
इन तमाम पोस्ट को देखकर सवाल ये उठता है कि जो शख्स सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़ रहा है वो ईमानदारीपूर्वक लोकपाल के चयन में भूमिका अअदा कर पाएगा?
30 जनवरी से आमरण अनशन पर अन्ना हजारे
साल 2011 में जब अन्ना हजारे के नेतृत्व में दिल्ली और देश के दीगर हिस्सों में लोकपाल को लेकर आंदोलन चल रहा था, तब बीजेपी से जुड़े नेता सत्ता में आने के बाद मज़बूत लोकपाल बिल लाने की बात करते थे, लोकपाल लाने का जिक्र अपने घोषणा पत्र में भी किया, लेकिन लेकिन सत्त्ता में आने के बाद वे लोकपाल को लेकर आनाकानी करने लगे.
इससे खाफ होकर एकबार फिर समाजसेवी अन्ना हजारे लोकपाल के लिए आमरण अनशन करने जा रहे हैं. अन्ना हजारे एनडीए सरकार के दौरान दूसरी बार अनशन पर बैठ रहे हैं. इससे पहले मार्च 2018 में अन्ना अनशन पर बैठे थे. तब केंद्र सरकार ने उन्हें लोकपाल की नियुक्ति को लेकर लिखित आश्वासन दिया था.
अन्ना हजारे की तुलना जयप्रकाश नारायण से करने वाले पीएम नरेंद्र मोदी को अन्ना ने लोकपाल नियुक्ति के संबंध में पिछले पांच सालों में 32 दफा पत्र लिखा जिसके जवाब में पीएम मोदी का सिर्फ एकबार जवाब आया. अन्ना हजारे न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं कि पीएम ने अपने पत्र में बस इतना ही लिखा था की, आपका पत्र मिला. हजारे आगे कहते हैं कि मोदी सरकार ने देश की जनता को धोखा दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल सर्च कमेटी को निर्देश दिया है कि वो फरवरी तक लोकपाल और अन्य सदस्यों की लिस्ट तैयार करे. जब अभी तक सर्च कमेटी के लोगों की बैठक ही नहीं हुई तो देखना होगा कि कमेटी किस तरह लोकपाल और और उसके अन्य सदस्यों के लिए नामों का चयन करती है.
आरटीआई एक्टिविस्ट और लोकपाल आंदोलन से जुड़े रहे निखिल डे कहते हैं, “अभी तक सर्च कमेटी की मीटिंग नहीं हुई. फरवरी के अंत या मार्च की शुरुआत में चुनाव की घोषणा हो जाएगी. इस कमेटी को लोकपाल का नाम जिसे सौंपना है, जब वही नहीं होंगे तो कमेटी के होने या नहीं होने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.”
Also Read
-
Did global media rush to blame pilots in Air India crash?
-
South Central 35: Vijay Mallya’s half-truths and Kingfisher’s fall, Bharat Mata controversy in Kerala
-
Bihar voter list revision: RJD leader Manoj Jha asks if ECI is a ‘facilitator’ or a ‘filter’
-
उत्तराखंड: हिंदू राष्ट्र की टेस्ट लैब बनती देवभूमि
-
पुणे में महिला पत्रकार पर अवैध निर्माण की रिपोर्टिंग के दौरान जानलेवा हमला