Newslaundry Hindi
दो लाख नये शिक्षकों की भर्ती में कॉलेजों की गुणवत्ता पीछे न रह जाये
प्रधानमंत्री ने रोज़गार और कौशल विकास को लेकर दस मंत्रियों की एक समिति बनायी है, जो बतायेगी कि रोज़गार कैसे पैदा किया जाये. चुनाव में भले ही प्रधानमंत्री रोज़गार के सवाल को किनारे लगा गये, मगर सरकार में आते ही इसे प्राथमिकता पर रखना अच्छा कदम है. बेरोज़गारों में भी उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है. बेरोज़गार उनका वोट बैंक भी है, इसलिए इस दिशा में कुछ होता है तो राजनीतिक, अर्थव्यवस्था और सामाजिक रूप से फायदेमंद रहेगा.
मेरी राय में सरकार को सरकारी परीक्षाओं की व्यवस्था को इस तरह से ईमानदार और पारदर्शी करना चाहिए जिसमें कोई सेंध न लगा सके, न पर्चा लीक हो और न रिज़ल्ट में देरी हो. सरकारी नौकरियों के लिए इस तरह का सिस्टम का बन जाना बहुत बड़ा कदम होगा. परीक्षा में सुधार के लिए ज़रूरी है कि स्थानीय स्तर पर परीक्षा हो. रेलवे की परीक्षा देने के लिए छपरा से बेंगलुरू जाने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए. इससे ग़रीब छात्रों को बहुत तक़लीफ़ होती है. परीक्षाओं में क्षेत्रीय असंतुलन का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने देश के सभी वाइस चांसलरों से कहा है कि वह छह महीने के भीतर ख़ाली पदों को भर दें. अगर ऐसा हुआ तो छह महीने के भीतर दो लाख से अधिक लोगों को यूनिवर्सिटी में नौकरी मिलेगी. उच्च शिक्षा के सचिव ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा है कि कालेजों से लेकर यूनिवर्सिटी तक में दो लाख शिक्षकों के पद ख़ाली हैं. हमने यूनिवर्सिटी सीरीज़ के तहत इस बात को ज़ोर शोर से उठाया था. जिन लोगों ने बिना शिक्षक के कॉलेज जीवन व्यतीत किया, उनकी भरपायी तो नहीं हो सकती है, मगर अब जो नये छात्र आयेंगे उन्हें यह शिकायत नहीं होगी.
यूजीसी ने भर्ती के दिशानिर्देश जारी किये हैं, इसको लेकर कितनी ईमानदारी से प्रक्रिया का पालन होता है यह देखने की बात होगी. इन दो लाख पदों पर बहाली उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के भविष्य का इशारा कर देगी.
पिछली सरकारों में बड़ी संख्या में अयोग्य शिक्षकों को रखा गया जिसका नुकसान छात्रों को उठाना पड़ा. किसी वाइस चांसलर के लिए बहुत मुश्किल होता है राजनीतिक दबावों को किनारे रखकर योग्य छात्र को लेना और उसी तरह राजनीतिक दल के लिए भी मुश्किल होता है कि अपने इस लालच पर लगाम लगा पाना कि अपना आदमी कॉलेज में पहुंच जाये. संघ को भी इससे दूर रहना चाहिए वरना उसके नाम पर बहुत से औसत लोग कालेजों में जुगाड़ पा लेंगे. यही ग़लती वाम दल भी कर चुके हैं.
आदर्श स्थिति की कल्पना तो मुश्किल है, फिर भी बेहतर होता कि सरकार यूनिवर्सिटी सिस्टम को बनाने पर ध्यान दे. कैंपस की राजनीति छात्रों के बीच हो, शिक्षकों की गुणवत्ता को लेकर नहीं. दुनिया भर की यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे भारतीय शिक्षकों को भारत आने का अवसर दिया जाना चाहिए, ताकि हमारी यूनिवर्सिटी व्यवस्था में विविधता और नवीनता आये. अलग-अलग क्षेत्र से आयीं प्रतिभाएं टकराती हैं तो नया मौहाल बन जाता है.
अच्छा है कि रोज़गार सृजन फोकस में है. आगे क्या होगा, देखते रहा जायेगा लेकिन शुरुआत देखकर उम्मीद की जानी चाहिए. नज़र रखी जानी चाहिए कि दो लाख शिक्षकों की भर्ती अनुकंपा और राजनीतिक हिसाब से न हो. अगर पचास फीसदी सीटों पर भी योग्य शिक्षक भर लिए गये तो आने वाले दिनों में उच्च शिक्षा का स्वरूप बदल जायेगा और अगर केवल राजनीतिक बहाली हुई तो उच्च शिक्षा का बंटाढार हो जायेगा.
Also Read
-
Did global media rush to blame pilots in Air India crash?
-
South Central 35: Vijay Mallya’s half-truths and Kingfisher’s fall, Bharat Mata controversy in Kerala
-
Bihar voter list revision: RJD leader Manoj Jha asks if ECI is a ‘facilitator’ or a ‘filter’
-
उत्तराखंड: हिंदू राष्ट्र की टेस्ट लैब बनती देवभूमि
-
पुणे में महिला पत्रकार पर अवैध निर्माण की रिपोर्टिंग के दौरान जानलेवा हमला