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झारखंड सरकार का परायापन, 33 पारा शिक्षकों की मौत !

झारखंड में पारा शिक्षकों की मौत का सिलसिला जारी है. बीते दो महीने में आधा दर्जन पारा शिक्षकों की मौत हुई है.

24 जून को चतरा के प्रतापुर प्रखंड अंतर्गत जुड़ी गांव के विष्णुपत भारती (45) आर्थिक तंगी के कारण बीमारी से हार गए, तो वहीं पैर से मजबूर इटखोरी प्रखंड स्थित परसौनी गांव के अनिल कुमार (50) बेहतर इलाज के अभाव और कर्ज़ के बोझ तले 17 जूलाई को चल बसे. ये दोनो पास के ही उत्क्रमित मध्य विद्यालय और राजकीय मध्य विदलाय में बतौर पारा शिक्षक पदस्थापित थे.

एकीकृत पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा के अनुसार राज्य में 67 हजार के करीब पारा शिक्षक हैं. ये लोग लंबे समय से अपने स्थायीकरण और वेतनमान को बढ़ाए जाने की मांग करते आ रहे हैं. इनका कहना है कि जो मानदेय सरकार की तरफ उन्हें मिलता है उसमें गुजारा करना बहुत मुश्किल है. फिलहाल चार महीने से मानदेय (सैलरी या वेतनमान) नहीं मिल पाने के कारण इनकी मुश्किल और बढ़ी है. और कई पाराकर्मियों की जान जाने की वजह भी ये लोग यही बताते हैं.

अपनी इन्हीं मांगो को लेकर 23 जूलाई को एक बार फिर हजारों की संख्या में पारा शिक्षक राजधानी रांची में एकट्ठा हुए. मानसून सत्र के दौरान इन्होंने विधानसभा घेराव करने की कोशिश, लेकिन प्रशासन ने उन्हें बिरसा चौक के पास ही रोक दिया. चार दिवसीय इनके घेराव का कार्यक्रम सत्र की समाप्ति के साथ समाप्त हो गया. लेकिन इस बीच विभागीय मंत्री या सरकार के किसी प्रतिनिधि ने इनसे कोई बातचीत नहीं की. हालांकि बीते हफ़्ते पारा कर्मियों के खाते दो माह का मानदेय ज़रूर आया है, लेकिन अपनी मांग पर ये अब भी अडिग हैं.

एकीकृत पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष संजय दुबे कहते हैं, “विधानसभा में विपक्ष के कुछ नेताओं ने पारा शिक्षकों के मुद्दों को जरूर उठाया, मगर सरकार ने इसपर गंभीरता नहीं दिखाई. हमलोगों को न ही मिलने दिया गया और ना सरकार का कोई प्रतिनिधि हमसे मिलने आया.”

बीते छह महीने राज्य के पारा शिक्षकों का स्थायीकरण और मानदेय बढ़ाए जाने को लेकर उनका यह दूसरा बड़ा प्रदर्शन था. इससे पहले बीते साल 15 नवंबर को पारा शिक्षकों ने राज्यव्यापी हड़ताल शुरू किया था जो कि दो माह तक चला था.

मजदूरी और कर्ज के लिए मजबूर

मृतक विष्णुपत भारती दलित परिवार से आते थे.  वो अपने पीछे पत्नी, तीन बेटी और दो बेटे के अलावा गरीबी-गुर्बत अपने पूर्वजों की ही तरह विरासत में छोड़ गए हैं. भारती को बतौर पारा शिक्षक मिलने वाला मानदेय उनके पूरे परिवार के जीवन यापन का सहारा था, लेकिन बीते चार माह से मानदेय नहीं मिल पाने के कारण परिवार आर्थिक परेशानी से जूझ रहा था.

मोबाइल पर पत्नी सरीता देवी बातचीत करते हुए रोने लगती हैं. वो कहती हैं, “तीन-चार महीने से पैसा नहीं मिला था. पहले से ही उनकी  तबियत खराब थी. पैसा-कौड़ी की एकदम तंगी रहती है. महाजन तकाजा करते हैं, रोज तंग कर रहे हैं. हमारे पास तो जमीन भी नहीं है. परिवार, गांव वाले, कोई मदद नही है. एक लड़का है जो पढ़ रहा है. और दो जवान बेटी है जिसकी शादी कैसे होगी, कुछ समझ में नहीं आ रहा है.”

विष्णुपथ ने घर के राशन के लिए कर्जा ले रखा था.  पैसों की तंगी की वजह कर खुद का उचित इलाज भी नहीं करवा पा रहे थे. अचानक तबियत ज्यादा बिगड़ी तो साथी शिक्षकों ने आपस में चंदा कर उन्हें मगथ मेडिकल कॉलेज ले गए, लेकिन डॉक्टर ने बताया कि दिल का दौरा पड़ने से इनकी मौत रास्ते में ही हो चुकी है.

मृतक अनिल कुमार के परिवार पर भी कुछ इसी तरह का पहाड़ टूटा है. फिलहाल पत्नी सदमें हैं और बच्चों का भविष्य तंगी के भंवर में फंसा है. परिवार में अब पत्नि के अलावा दो बेटा और एक जवान बेटी है.

ग्रेजुएशन कर रही अनिल कुमार की बेटी अनुराधा कुमारी फोन पर बिलखते हुए बताती हैं, “पापा को कई महीने से वेतन नहीं  नहीं मिला था. आप समझ सकते हैं कि एक पारा शिक्षक के लिए अपने बच्चे को पढ़ाना कितना मुश्किल है. इंजीनियरिंग कराना कितना कठिन है. पापा ने हमारे पढ़ाई के लिए कर्ज ले रखा था. तंगी के कारण वो अपने पैर के जख्म का भी सही से इलाज नहीं करवा रहे थे. कर्ज के कारण तनाव में रहते थे. दिन-ब-दिन उनके पैर की तकलीफ बढ़ती जा रही थी. हमलोग डॉक्टर के पास उन्हें ले गए, लेकिन पापा को बचा नहीं पाए.”

झारखंड एकीकृत पारा शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष संजय दुबे कहते हैं कि विष्णुपत भारती और अनिल कुमार जैसी कहानी सैकड़ों पारा शिक्षकों की है और सरकार ने इनकी स्थिति यहां तक ला दी है कि लोग ईट भट्टा में मजदूरी तक कर रहें हैं.

हाल के दिनों पारा शिक्षकों के द्वारा मजदूरी किए जाने की खबरें भी सामने आयी है. नामकुम के रहने वाले एक पारा शिक्षक ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहा, “मुझे चार महीने से वेतनमान नहीं मिला. एक साल से मकान का किराया नहीं दिया था. राशन कई महीनों से उधार ही ले रहा था. मजबूरी में मेरे पास मजदूरी करने के अलावा कोई काम नहीं बचा.”

मौत की लंबी लाइन में चंद नाम और…

पिछले महीने चतरा के ही संदीप गुप्ता, दिनेश्वर भुइंया और सुश्रिता कुमारी की हुई मौत को भी इनके परिजन इलाज के अभाव में हुई मौत बताते हैं. जबकि मीडिया रिपोर्ट की माने तो अन्य जिलों में पाकुड़ के महेंद्र प्रसाद भगत की मौत भी सही से इलाज नहीं हो पाने कारण हुई है. परिवार के मुताबिक सभी मृतक कई दिनों से बीमार थें और मानदेय नहीं मिल पाने कारण उनका बेहतर इलाज नहीं हो पाया. जिसकी वजह से इनकी मौत हुई  है.

इधर गुजरे पांच माह में पारा शिक्षकों की हुई मौत की लंबी फेहरिस्त में भले ही ये चंद नए नाम जुड़ गए हो  लेकिन इनकी बदहाली आम है.

एकीकृत पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा के चतरा जिला अध्यक्ष कृष्णा पासवान कहते हैं, “मौत की निश्चित संख्या तो हम नहीं बता पाएंगे, लेकिन मेरे पास उन 33 लोगों की लिस्ट है, जो या तो आर्थिक तनाव में मर गए या फिर इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई.”

लेकिन जिन 33 लोगों की सूची कृष्णा पासवान दिखाते हैं उनमें से 26 मृतकों को ही सरकारी आंकड़ों में दर्ज किया गया है. शिक्षा विभाग के एक अधिकारी कहते हैं कि मुआवजा उन्हीं मृतक के परिवार को मिलेगा जिनकी हड़ताल के दौरान मौत हुई है. यानी सरकार की नजर में इसके बाद जो पारा शिक्षकों की मौत हुई है या हो रही है उसकी गिनती मुआवजे की लिस्ट में नहीं है.

हड़ताल, जेल और जारी मौत

अपनी मांग को लेकर पारा शिक्षकों ने 15 नवंबर 2018 को राज्यव्यापी हड़ताल शुरू किया था. राजधानी रांची समेत अन्य जिलों में सैकड़ों पारा कर्मियों ने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान राज्य के स्थापना दिवस पर रांची के मोराबादी मैदान में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचकर पारा कर्मियों के द्वारा प्रदर्शन किया गया. जवाब में पुलिस ने लाठी चार्ज किया. कई पारा कर्मी घायल हुए. यही नहीं इस लाठी चार्ज में कई पत्रकारों की भी पीटाई हुई. प्रशासन ने ढ़ाई सौ से अधिक पारा शिक्षकों को हिरासत में लेकर रांची के होटवार जेल में भेज दिया.

इधर हड़ताल जारी रहा. 65 दिनों के तक चलने वाला यह हड़ताल आखिरकार सरकार के आश्वासन के बाद 17 जनवरी को समाप्त हुआ. हड़ताल के दौरान 26 पारा शिक्षकों की मौत हुई. शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ विभागीय मंत्री की बैठक हुई. उनकी मांगो पर विचार करने हेतु कमेटी गठन की गई. इनके मानदेय में 22,00 सौ से 49,00 सौ तक वृद्धि की गई. आंदोलन से पहले पारा शिक्षकों को न्यूनतम 84,00 और अधिकतम 10,169 रूपया वेतनमान के नाम पर मिलता था.

मुआवजा अबतक नहीं

जिन पारा शिक्षकों की मौत हुई उनमें जीनत खातून और कंचन कुमार दास शामिल हैं. इनकी मौत रामगढ़ स्थित तत्कालीन जल संसाधन मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी और दुमका स्थित समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी के आवास के समक्ष दिए जा रहे हड़ताल के दौरान हुई थी.

मृतक कंचन कुमार दास(35) दुमका के भदवारी गांव स्थित उत्क्रमित मध्य विद्लाय में पढ़ाते थें. उनके पिता अखिलेश दास (75) कहते हैं, “ बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ बाहर रहता है. कंचन हमारे साथ रहता था. वो हम दोनों बुढ़वा-बुढ़िया का सहारा था. रात-बिरात में सिर्फ वो हमारा हाथ-पैर ही नहीं बल्कि घर खर्चा भी उसी के कंधे पर था. अब ना हमें कोई देखने वाला है, और ना कोई चाहने वाला. सरकार ने हमसे हमारा सबकुछ छीन लिया.

कंचन की मौत 16 दिसंबर 2018 धरने के दौरान हुई थी. पिता अखिलेश कहना है कि कंचन की मौत ठंड लगने से से हुई है. हलांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट ऐसा नहीं कहती है.

वहीं मृतक जीनत खातून(36) की हड़ताल के ही दौरान 29 नवंबर 2018 को अचानक तबियत बिगड़ती है. बाद में इलाज के दौरान हार्ट अटैक से उनकी मौत हो जाती है. इनके पति रशीद असलम कहते हैं, “ गार्ड का काम करता हूं. मात्र साढ़े चार हजार रूपयामहीने के ही मिलता है. जीनत के मानदेय पर ही परिवार का खर्च और बच्चों की पढ़ाई निर्भर थी. एक बेटा और बेटी है, जिनको आगे पढ़ाना अब संभव नहीं लग रहा है.” जीनत रामगढ़ के गोला स्थित राजकीय प्रथामिक उर्दू कन्या विद्यालय हुप्पू में शिक्षिका थीं.

मृतकों के परिवार को मुख्यमंत्री राहत कोष से एक-एक लाख रूपया देने की घोषणा की गई थी. लेकिन छह माह बीत जाने के बाद भी इन्हें सरकारी मुआवजे का एक रूपया तक नहीं मिला है.

सरकार का 90 दिनों का वादा फेल

झारखंड एकीकृत पारा शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष संजय दुबे शिक्षकों की हो रही मौत के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं. वो कहते हैं, “हमलोगों ने हड़ताल कुछ शर्तो पर खत्म किया था. एक समझौता पत्र के तहत हमसे बोला गया था कि 90 दिनों में एक नियमवाली बनाकर आपलोगों की उचित मांग को पूरा किया जाए जाएगा. कहा गया था कि दूसरे राज्य के शिक्षकों के मानदेय का सर्वे कर झारखंड के पारा शिक्षकों की उचित मांग पूरी की जाएगी. लेकिन 210 दिनों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी सरकार की तरफ कोई सुध नहीं ली जा रही है.”

संजय दुबे के मुताबिक सरकार से जो शिक्षकों का प्रतिनिधिमंडल मिला था उसे तब आश्वास्त किया गया था कि 90 दिनों में उनकी मांगों पर निर्णय ले लिया जाएगा. दूसरे राज्यों के सरकारी शिक्षकों को दी जाने वाली सुविधाओं और वेतनमान का सर्वे कर एक नियमावली बनायी जाएगी.

वहीं समझौता पत्र की माने तो नियमावली के लिए 17 जनवरी 2019 को जिस तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है उसकी चेयरमैन शिक्षा मंत्री डॉ नीरा यादव हैं. इसी कमेटी को 90 दिनों में नियमावली तैयार करनी थी. लेकिन और 90 दिन बीत गए, पर नियमावली अबतक तैयार नहीं हो पाई है.

जब मंत्री नीरा यादव से इस मामले की जानकारी के लिए इस रिपोर्टरने फोन किया तो उन्होंने कहा कि रांची में मिलकर बात कर लीजिएगा. इसके बाद उन्होंने फोन काट दिया.

15 अगस्त तक का इंतजार, नहीं तो उग्र आंदोलन

नियमावली के लिए जो कमेटी बनायी गई उसके काम को देख रहे एक अधिकारी नाम नहीं लिखने की शर्त कहते हैं, “ मेरे पास नया अपडेट नहीं है. एक माह पहले  का है. कमेटी के निर्देशानुसार चार-पांच राज्यों का अध्यन कर लिया गया है, जो मंत्री जी के अध्यक्षता में कमेटी की होने वाली बैठक के समक्ष रखा जाएगा. इसके बाद जो भी निर्देश होगा उसके अनुसार आगे बढ़ा जाएगा.”

90 दिनों के समय सीमा वाले सवाल पर वो कहते हैं, “नियमावली बनाने में काफी स्टडी और काम करने पड़ते हैं. नियमावली बनाने हेतु सकारात्मक ढंग से आगे बढ़ा जा रहा है. सरकार जल्द ही इसपर फैसला लेगी.”

मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष संजय दुबे के अनुसार शिक्षा मंत्री डॉ नीरा यादव ने कोडरमा के एक सभा में कहा है कि वो 15 अगस्त तक पारा शिक्षकों कुछ तोहफा देंगी.

संजय दुबे कहते हैं कि वो इसलिए वो 15 अगस्त तक का इंतजार कर रहे हैं. अन्यथा इस बार हम प्रशासन और आश्वासन से नहीं मानने वाले हैं, बल्कि उग्र प्रदर्शन करेंगे.