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सारण लिंचिंग: सबका जोर मृतकों को मवेशीचोर घोषित करने पर क्यों है?

19 जुलाई को सारण (छपरा) जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर पिठौरी गांव की दलित बस्ती नंदलाल टोले में भीड़ ने तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी. घटना के सिलसिले में जानकारी लेने के लिए सारण के एक स्थानीय पत्रकार से बातचीत की कोशिश की तो उनका बेहद सपाट सा जवाब आया- “देखिए, वो लोग मवेशी चोर हैं ही! लेकिन कोई चोर भी ही तो उसकी इस तरह हत्या नहीं करनी चाहिए.”

उस पत्रकार के इस दावे से यह आभास हो चुका था कि इस लिंचिंग की घटना पर स्थानीय अखबारों का क्या रुख रहने वाला है. पत्रकार पहले से ही इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि मारे गए लोग मवेशी चोर हैं. ऐसा ही हुआ भी. 20 जुलाई को सारण से छपने वाले सभी चार बड़े अखबारों ने कमोबेश इसी लाइन पर ख़बर लिखी. अलबत्ता, कुछ अखबार दो कदम आगे बढ़ते हुए अपनी ख़बर के शीर्षक में ही लिख दिया कि वे लोग मवेशी चोर थे.

खबरों का लब्बोलुआब भी कुछ ऐसा था कि “लिंचिंग तो हुई है, लेकिन वे लोग मवेशी चोर थे.” जैसे मवेशी चोरी होना लिंचिंग को वैधता देता हो

किस अखबार ने क्या लिखा

दैनिक भास्कर ने सारण संस्करण के पहले पेज पर ख़बर लगाई और हेडिंग लिखा- “चोरों ने कहा-मुझे छोड़ दो, बकरी मंगवा देते हैं, लोगों ने एक न सुनी, हाथ-पैर बांधकर लाठी-डंडे व रॉड से कर दी पिटाई.”

ख़बर की शुरुआत ही यह कहने से होती है कि तीनों मवेशी चोर थे. खबर का इंट्रो है, “तीनों चोर लगभग 2 से ढाई बजे के बीच नंदलाल टोली निवासी भिखारी राम की दो बकरियां खोल कर ले गए थे. उस चोर गैंग में और भी लोग थे. जिसके माध्यम से बकरी को भेज दिया गया था. तीन ही चोर वहां पिकअप के साथ दोबारा भैंस चोरी का प्रयास करने लगे. उसने उनके दरवाजे से भैंस खोल भी लिया और पिकअप में लाद रहे थे कि भैंस ने जोर से लतार मारा. इससे एक चोर चिल्लाने लगा.”

इसके बाद ख़बर में लिखा गया है कि उसी वक्त लोग जग गए. उन्होंने शोर मचाकर दूसरे लोगों को इकट्ठा कर लिया और उन्हें बांध कर मारा-पीटा गया. मेन हेडिंग की छतरी के नीचे छोटी-छोटी कई खबरें लगी हैं. इनमें एक खबर पिठौरी गांव की नंदलाल टोली के रहनेवाले मोहित राम के बयान पर आधारित है. मोहित राम वही लड़का है, जिसके घर के सामने तीनों की हत्या हुई थी. मोहित के पिता बुधराम इस घटना के मुख्य आरोपित हैं और गिरफ्तार हो चुके हैं.

अपने बयान में मोहित राम बताता है कि भैंस की चोरी करते हुए पकड़े जाने पर जब उनकी पिटाई की जाने लगी, तभी पता चला कि उन्होंने बकरी भी चुराई है. दैनिक भास्कर के इंट्रो में बकरी चोरी की जो बात बताई गई है, वो संभवतः मोहित राम के बयान पर ही आधारित है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से भास्कर में खबर इस तरह लिखी गई है, जैसे खबर लिखने वाले ने सबकुछ अपनी आंखों से देखा हो, क्योंकि खबर में उस स्रोत या प्रत्यक्षदर्शी का कोई जिक्र नहीं है, जिसने उसे सिलसिलेवार तरीके से बताया हो कि वारदात से पहले क्या-क्या हुआ था.

नौशाद आलम

प्रभात खबर ने पहले पेज पर दो लाइन की हेडिंग लिखी- “पशु चोरी के आरोप में तीन युवकों को ग्रामीणों ने पीट कर मार डाला.” खबर भी इसी लाइन पर लिखी गई कि पशु चोरी के आरोप में तीनों की पीट कर हत्या कर दी गई.

लेकिन, प्रभात खबर के सारण संस्करण के पेज तीन पर जो ख़बर लगी, उसकी हेडिंग से ये साफ हो गया कि भास्कर की तरह ही प्रभात खबर भी मानता है कि वे मवेशी चोर थे. पेज तीन पर आधे से ज्यादा पन्ने में फैली लिंचिंग से संबंधित ख़बर की हेडिंग थी – “सोचिए, चोरी की सजा मौत है क्या?”

अखबार अपनी ही हेडिंग को कॉन्ट्राडिक्ट करते हुए नीचे ही पहले प्वाइंटर में यह भी लिखता है कि नौशाद मवेशी खरीदने और बेचने का काम करता था. हालांकि, नौशाद आलम के परिजनों का कहना है कि वह मवेशी खरीद-बिक्री नहीं करते थे, बल्कि पिकअप चलाते थे. मवेशी की खरीद बिक्री का काम राजू नट व विदेश नट करते थे.

दैनिक जागरण ने भी खबर के साथ वही ट्रीटमेंट किया है, जो ट्रीटमेंट प्रभात खबर ने किया. जागरण ने सारण संस्करण के पहले पेज पर सारण के साथ ही वैशाली की घटना का भी जिक्र किया, लेकिन ख़बर में लिंचिंग का शिकार हुए लोगों के परिजनों की बातों को जगह नहीं मिली. अलबत्ता, इस बात का जिक्र प्रमुखता से किया गया कि गांव में मवेशी चोरी से लोग परेशान थे.

दिलचस्प बात ये भी है कि दैनिक जागरण की ख़बर में 100 शब्दों में कथित मवेशी चोरी की वारदात और ग्रामीणों द्वारा उन्हें (नौशाद, राजू व विदेश नट को) पकड़ लेने का जिक्र किया गया है और ऐसा लिखा गया है कि जिससे साफ हो जाता है कि वे तीनों मवेशी चोर ही थे. दैनिक जागरण ने लिखा है, “करीब ढाई बजे भिखारी राम के भाई बुधराम की भैंस की चोरी का प्रयास किया गया. उसे पिकअप पर लाद लिया गया था कि भैंस के चिल्लाने और उछल-कूद करने पर लोग जाग गए. बाहर आकर देखा और शोर मचा दिया. शोर सुन लोगों को जुटता देख चोर भागने लगे. हालांकि, तीन चोर पकड़ में आ गए. ग्रामीणों ने तीनों को पीटना शुरू कर दिया. पिटाई से राजू नट और विरेश नट (असली नाम विदेश नट) ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया.” लेकिन, ये सब लिखते हुए न तो किसी पुलिस अधिकारी को कोट किया गया है और न ही पिठौरी गांव के किसी प्रत्यक्षदर्शी को. और न ही ये ही कहा गया है कि एफआईआर में ऐसा लिखा हुआ है. इतना ही नहीं, पहले पेज की खबर में मवेशी चोरी की वारदातों से ग्रामीणों के गुस्से में होने और वारदात के बारे में तो लिखा गया है, लेकिन बड़ी चालाकी से मृतकों के परिजनों के पक्ष को गायब कर दिया गया है.

राजू नट (बायीं तरफ)

अखबार ने भीतर के पन्ने पर भी इस ख़बर को लिया है और वहां एसपीके हवाले से घटना के बारे में लिखा गया है. अंदर के पेज पर ही मृतकों के परिजनों के पक्ष को भी दर्ज किया गया है.

हिन्दुस्तान अख़बार ने पटना संस्करण में लिंचिंग और उसी दिन ठनका गिरने से सात बच्चों की मौत की घटना को एक साथ लिया है. हिन्दुस्तान की खबर में भी मवेशी चोरी के आरोप में तीनों की हत्या किए जाने का जिक्र किया गया है. हिन्दुस्तान ने मवेशी चोरी करने और भैंस की आवाज से लोगों को जाग जाने का जिक्र ग्रामीणों के हवाले से किया है, लेकिन किसी ग्रामीण का नाम नहीं है. यहां भी पूरी खबर में पीड़ितों का पक्ष नदारद है. भीतर के पेज पर जरूर उनकी बातों को जगह मिली है.

क्या कहती है एफआईआर

पैगम्बरपुर और पिठौरी गांवों के बीच करीब पांच किलोमीटर का फासला है. दोनों गांव बनियापुर थाने के अंतर्गत आते हैं. 19 जुलाई की घटना को लेकर बनियापुर थाने में दो एफआईआर दर्ज कराई गई हैं. पहली एफआईआर (एफआईआर नं.230/19 है और इसकी कॉपी न्यूज़लॉन्ड्री के पास है.) बुधराम ने दर्ज कराई. बुधराम लिंचिंग की घटना का मुख्य आरोपी है क्योंकि उसके घर के ठीक सामने लिंचिंग की वारदात हुई थी. घटना के दिन ही बुधराम समेत सात लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

बुधराम के अलावा गिरफ्तार लोगों में एक महिला और एक पुरुष लिंचिंग के वीडियो में तीनों को डंडे से पीटते हुए नजर आते हैं.

बुधराम की तरफ से दर्ज एफआईआर में कहा गया है, “रात्रि में दो बजे मेरी नींद भैंस के चिल्लाने पर खुली, तो उठकर भैंस को देखने गया. देखा कि तीन अज्ञात चोर भैंस की रस्सी को खूंटे से खोल रहे हैं. लेकिन, भैंस मरखाह होने के कारण चिल्लाने लगी. मैंने जोर-जोर से चोर-चोर का हल्ला किया. लोग अपने अपने घरों से निकले और मेरी तरफ आए. लोगों को देखकर एक चोर दक्षिण दिशा में और दो चोर पूरब दिशा में भागने लगे, तो लोगों ने उन्हें पकड़ लिया और मेरे दरवाजे पर ले आए.”

विदेश नट

एफआईआर के मुताबिक, बुधराम ने देखा कि भैंस के पास उसका बच्चा बंधा रहता था, वो गायब है. जब वह घर में गया, तो पाया कि दो बकरियां भी नहीं हैं. इस संबंध में पूछताछ करने पर चोरों ने बकरियां चुराने की बात स्वीकार कर ली. तभी 100 की संख्या में लोग आए और तीनों को बांधकर पीटने लगे.

दूसरी तरफ, भीड़ का शिकार हुए पैगम्बरपुर निवासी नौशाद आलम (40 वर्ष) के भाई मो. आजाद ने अपनी शिकायत  (एफआईआर नं.231/19 है. एफआईआर की कॉपी न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद है. लिखित बयान में अन्य मृतकों राजू नट (35 वर्ष) और विदेश नट (20 वर्ष) के परिजनों के हस्ताक्षर हैं) में कहा है, “19 जुलाई को तड़के 4.30 बजे मेरे भाई नौशाद अपने घर में थे. उसी वक्त राजू नट और विदेश नट घर पर आए और नौशाद से बोला कि उनका पिकअप वैन लेकर पिठौरी के नंदलाल टोला चलना है. नौशाद पिकअप लेकर दोनों के साथ नंदलाल टोले में बुधराम के घर के पास पहुंचे, तभी बुधराम, सत्यनारायण राम, पटेल साह व अन्य नामजदों के साथ ही 50 से 100 अज्ञात लोगों ने उन पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया.”

सरकार पुलिस की लाइन पर अखबार

19 जुलाई को हुई इस घटना पर जिले के एसपी हर किशोर राय से बातचीत के दौरान उन्होंने दावे के साथ कहा था कि वे लोग मवेशी चुराने के लिए ही गए थे.

राय ने कहा था, “ये कन्फर्म है कि वे लोग मवेशी चोरी करने आए थे. पिकअप वैन से हमने भैंस और उसके बच्चे को बरामद किया है. भैंस चुराने से दो घंटे पहले उन लोगों ने दो बकरियां भी उठाई थीं.” एसपी का ये कहना कि दो घंटे पहले उन्होंने बकरियां भी उठाई थीं, पूरी तरह से बुधराम की तरफ से दर्ज कराई गई शिकायत पर आधारित लगती है, क्योंकि जब एसपी ने ये बयान दिया था, तब तक अनुसंधान शुरू भी नहीं हुआ था. ये हैरानकुन बात है कि एक पुलिस अफसर सिर्फ एफआईआर के बिना पर किसी को अपराधी कह दे. पुलिस का काम होता है कि वह दर्ज कराई गई शिकायत की पूरी छानबीन करे और सच्चाई का पता लगाए, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. घटना के चंद घंटे बाद ही मृतकों को अपराधी घोषित कर दिया गया.

एसपी के इस दावे पर हमने राजू, विदेश नट और नौशाद आलम के परिजनों से भी बात की. उनका कहना था कि वे लोग चोर नहीं हैं और पुलिस का दावा झूठा है.

नौशाद आलम के भाई मो. आजाद ने कहा, “नौशाद आलम का अपना पिकअप वैन है. वैन ड्राइवर चलाता है, लेकिन तड़के ड्राइवर नहीं था, तो वह खुद चला गया था.”  20 वर्षीय विदेश नट के भाई शैलेश नट ने मुझे बताया कि विदेश और उसके चाचा राजू नट मवेशियों की खरीद-बिक्री करते हैं, वे लोग चोर नहीं हैं. राजू नट की पत्नी कांति देवी कहती हैं, “नंदलाल टोला में मोतीलाल राम नाम के एक व्यक्ति से भैंस खरीदने की बात हुई थी उनकी. भैंस खरीदने के लिए उन्होंने 15 हजार रुपए एडवांस भी दे दिया था. वह 18 जुलाई की शाम को ही जा रहे थे, लेकिन मैंने ही रोक लिया, तो 19 की सुबह वह भैंस खरीदने के लिए निकले.”

विदेश नट के पिता गफूर नट बताते हैं, “मवेशी की खरीद-बिक्री हमारा पुश्तैनी काम है. हमारे पास अपनी जमीन-जायदाद नहीं है. हम मवेशी खरीदते हैं और उसे कुछ दिन तक घर पर रखते हैं. जब ग्राहक आता है, तो उसे बेच देते हैं.”

बातचीत करते हुए गफूर नट मुझे अपने घर के पिछवाड़े में लगे बांस के बागान की तरफ ले गए और नाद में घास खा रही भैंसों की तरफ इशारा करते हुए सवाल पूछा, “क्या ये  भैंस चोरी के हैं? क्या हमलोग चोर हैं? अगर विदेश नट और राजू नट चोर है, तो पूरे सारण के एक थाने में उनके खिलाफ एक आपराधिक रिकॉर्ड दिखा दीजिए मुझे.”

एसपी हर किशोर राय ने जब दावे के साथ मुझे बताया था कि वे लोग मवेशी चुराने गए थे, तो मैंने उनसे पूछा था कि क्या मवेशियों की खरीद-बिक्री उनका पेशा है, तो उन्होंने बड़ी ही सहजता से कहा था कि वे लोग मवेशियों की चोरी करते हैं. मैंने इस दावे की वजह जानने के लिए जब उनसे पूछा कि क्या उनके पास तीनों के खिलाफ पूर्व के आपराधिक रिकॉर्ड हैं, तो उन्होंने कहा, “उनका पूर्व का कोई आपराधिक रिकॉर्ड तो नहीं है, लेकिन वे लोग चोरी (नंदलाल टोले की घटना के संदर्भ में) करते हुए पकड़े गए हैं.”

ऐसा ही सवाल मैंने बनियापुर थाने के एसएचओ संजीत कुमार से भी पूछा था, तो उन्होंने भी लगभग एसपी वाला बयान ही दोहराया, लेकिन उनके खिलाफ चोरी का कोई पिछला रिकॉर्ड होने से इनकार किया.

एसपी और एसएचओ के बयान और अखबारों में छपी खबरों का चरित्र देखें, तो यह साफ दिखता है कि अखबारों ने भी एसपी की खींची लकीर पर ही चलना मुनासिब समझा और मृतकों के परिजनों की बातों को पहले पन्ने की खबर से गायब कर दिया.

सीएम एसपी का लिंचिंग से इनकार, लेकिन…   

पैगम्बरपुर से महज पांच किलोमीटर दूर पिठौरी के नंदलाल टोले में राजू नट, विदेश नट और नौशाद आलम की नृशंस तरीके से हाथ बांध कर भीड़ द्वारा हत्या करने की घटना की जानकारी तुरंत ही सीएम नीतीश कुमार तक भी पहुंच गई.

नीतीश कुमार ने द प्रिंट के एक पत्रकार के सवालों के जवाब में कहा था, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. लेकिन, इसे मॉब लिंचिंग के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. जिनकी हत्या हुई, वे नट समुदाय (तीन में से दो नट समुदाय के थे और एक मुस्लिम था) से थे और जिन्होंने हत्या की, वे पिछड़ा वर्ग से आते हैं.”

एसपी से बात करने पर, उन्होंने सीएम के बयान के तर्ज पर ही कहा कि यह मॉब लिंचिंग का मामला नहीं है. उन्होंने मॉब लिंचिंग की परिभाषा देते हुए कहा था, “लिंचिंग तब होता है, जब अफवाह फैलाकर मारपीट की जाती है. लेकिन अफवाह तो नहीं है. चोरी करने आया था, उसी में मारपीट हो गई.”

हालांकि, डिक्शनरी में लिंचिंग की जो परिभाषा दी गई है, उसमें अफवाह का कोई जिक्र नहीं है. मरियम वेब्सटर में लिंचिंग की परिभाषा है, “बिना किसी कानूनी मान्यता या इजाजत के भीड़ द्वारा हत्या (खासकर फंदा डाल कर) लिंचिंग है.”

कॉलिंस डिक्शनरी के मुताबिक, अगर लोगों का एक समूह किसी की लिंचिंग करता है, उसे बिना किसी सुनवाई के मार (खासकर गले में फंदा डालकर) दिया जाता है क्योंकि  वे (भीड़) समझते हैं कि उसने (जिसे मारा गया है) अपराध किया है, तो उसे लिंचिंग कहा जाता है.

इन दो परिभाषाओं से साफ है कि लिंचिंग को लेकर सीएम नीतीश कुमार और एसपी ने जो कुछ कहा, उसका कोई वजन नहीं है और केवल अपनी छवि को बचाने के लिए उन्होंने ये तर्क गढ़ा है.

अनिश्चितता के गर्त में जिंदगियां

मिश्रित आबादीवाला पैगम्बरपुर गांव सारण जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर बसा हुआ है. मुख्यालय से करीब एक घंटा लगता है पैगम्बरपुर पहुंचने में. पैगम्बरपुर चौक से एक पक्की सड़क गांव तक जाती है. लेकिन, गांव तक जाने के लिए वहां से नियमित वाहन नहीं चलता है. चौक तक आने के लिए लोग अपने निजी वाहन का इस्तेमाल करते हैं.

गांव में नौशाद आलम का मकान है. उनका घर पक्का है. नौशाद का बेटा हैदराबाद में बीटेक कर रहा है और बेटी की शादी हो चुकी है. वह पिछले 10 साल से पिकअप चला रहे हैं. उनके भाई मो. आजाद बताते हैं, “सुबह 4.30 से घर से निकलने के कुछ देर बाद ही नौशाद का कॉल आया. उसने डरी-सहमी आवाज में बताया कि उसे पीटा जा रहा है. इसके बाद फोन कट गया. बाद में अलग-अलग स्रोतों से पता चला कि उनकी हत्या हो गई है.”

नौशाद की मौत के बाद उनके बेटे की पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाएगी. मो. आजाद ने कहा, “उन्होंने आज तक किसी का एक तिनका नहीं चुराया. पुलिस जो भी बोल रही है, वो झूठ है.”

उनके एक रिश्तेदार परवेज आलम स्थानीय अखबारों की रिपोर्टिंग से नाराज हैं. उन्होंने मुझसे कहा, “प्रेस मीडिया ने उन पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाया है कि वे लोग मवेशी चोरी करने के लिए नंदलाल टोला गए थे. उनका ये आरोप सच्चाई से कोसों दूर है.”

नौशाद आलम के मकान से कुछ दूर नट टोला है, जहां करीब डेढ़ दर्जन नट परिवार रहते हैं. इनमें से कुछ परिवारों को सरकारी योजना के तहत पक्का मकान मिला हुआ है. पक्के मकानों में रंगरोगन नहीं है. इन पक्के मकानों के साथ ही झोपड़ियां भी खड़ी हैं. नट एक आदिवासी समुदाय है. बिहार में नट समुदाय मुख्य रूप से मवेशी की खरीद-फरोख्त करता है.

विदेश नट के घर पर उसके बड़े भाई शैलेश नट से हमारी बात हो रही थी कि दो महिलाएं एक बुजुर्ग महिला का हाथ पकड़ कर पास आती नज़र आई. बुजुर्ग महिला के कपड़े बेतरतीब थे. बाल मकड़े के जालों की तरह उलझे हुए थे और चेहरा भावशून्य था. ये महिला विदेश नट की मां लक्ष्मीदेवी हैं. घटना के बाद से वह पागलों की तरह यहां-वहां भटकती रहती हैं और कुछ का कुछ बोलती हैं. दोनों महिलाओं ने उन्हें सड़क किनारे बिछी चौकी पर लिटा दिया. वह कुछ मिनट लेटी रहीं और फिर उठकर कहीं चली गईं. फिर कुछ महिलाएं पकड़ कर उन्हें ले आईं और पास ही लगी खटिया पर बिठा दिया. कुछ पल वह बैठी रहीं और फिर जोर-जोर से पूरे शरीर को झटके के साथ हिलाने लगीं. फिर उन्होंने उन महिलाओं से फुसफुसाकर कुछ कहा और फिर कई बार पुकारा, “बिदेस (विदेश)…रे बिदेस! बिदेस..रे बिदेस! बिदेस होS…” और फिर बिलखते हुए गाने लगी, “बड़ी पोसउसा से बबुआ के पोसली…”

शैलेश नट ने बताया कि घटना के बाद से वह ऐसा ही कर रही हैं. न खाती हैं, न पीती हैं.

एक औऱ ज़िंदगी तबाही की ओर

विदेश नट की शादी होनेवाली थी. तिलक हो चुका था. सितंबर-अक्टूबर के महीने की तारीख तय की जानी थी. विदेश की मौत ने लड़की पक्ष पर भी कहर ढा दिया है. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे अब क्या करें, क्योंकि उनमें इतना सामर्थ्य नहीं है कि दोबारा कर्ज लेकर कहीं और शादी तय करें.

राजू नट के छह बच्चे हैं-तीन बेटे और तीन बेटियां हैं. राजू की मौत से उनकी पत्नी कांति देवी पर जिम्मेवारियों का पहाड़ आन पड़ा है. वह कहती हैं, “उन्हीं की कमाई से परिवार चलता था. हमारे पास एक बित्ता भी खेत नहीं है. अब मैं किसके सहारे छह बच्चों को पालूंगी?”

पीड़ित परिवारों की सरकार से दो ही मांगें हैं- एक उन्हें सरकार से उचित मुआवजा मिले और दोषियों को अविलम्ब कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाए. लेकिन, मुआवजे को लेकर सरकार की तरफ से अब तक कोई बयान नहीं आया है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पिछले साल नीतीश सरकार ने मॉब लिंचिंग का शिकार होनेवाले लोगों के परिजनों को तीन लाख रुपए मुआवजा देने का निर्णय लिया था. फैसले के मुताबिक, मृतक के परिजनों को एक लाख रुपए की तत्काल मदद दी जाएगी और दो लाख रुपए मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद मिलेंगे.

इस हिसाब से तीनों मृतकों के परिजनों को अविलंब एक-एक लाख रुपए राज्य सरकार की ओर से मिलना चाहिए. नीतीश कुमार इस घटना को मॉब लिंचिंग साबित नहीं होने देने के लिए खुद ही मोर्चे पर हैं, तो भला उन्हें मुआवजा मिलेगा कैसे?