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एनएल चर्चा 84: एनआरसी, एक देश, एक भाषा और अन्य
इस सप्ताह एनएल चर्चा में जो विषय शामिल हुए उनमें हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दिया गया ‘एक देश एक भाषा’ वाला बयान प्रमुखता से चर्चा में रहा. इसके अलावा सरकार द्वारा ई-सिगरेट पर प्रतिबंध, जीडीपी में आई गिरावट और देश में फैली आर्थिक मंदी और साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन इस हफ्ते की प्रमुख सुर्खियां रहीं.
‘‘एनएल चर्चा’’ में इस बार पत्रकार लेखक व पत्रकार अनिल यादव के साथ ही वरिष्ट पत्रकार प्रशांत टंडन ने शिरकत किया. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल चौरसिया ने प्रशांत टंडन से हिंदी दिवस के दिन अमित शाह द्वारा दिए गए ‘एक देश, एक भाषा’ बयान को लेकर सवाल किया कि राजनीतिक रूप से हिंदी को किसी पर थोपकर हिंदी की स्थिति सुधार जा सकता है क्या. उसे बढ़ाया जा सकता है. इस पर प्रशांत टंडन ने कहा, ‘‘हिंदी या कोई भी भाषा अपने साहित्य के जरिए बढ़ता है. अगर उस भाषा का साहित्य बेहतर है तो वो भाषा अपने आप लोगों तक पहुंचेगी. अगर उस भाषा में कुछ बेहतर लिखा जा रहा है तो अनुवाद होकर दूसरी भाषाओं में भी जाएगा. उस साहित्य को पढ़ने के लिए लोग उस भाषा को सीखेंगे. मेरी जानकारी में ऐसे तमाम लोग हैं जिन्होंने केवल टैगोर की गीतांजली को पढ़ने के लिए बंग्ला सीखी है. साहित्य की ताकत के जरिए ही लोग भाषा की तरफ आकर्षित होते हैं. लेकिन कोई सरकार, कोई नेता या सरकारी तंत्र के जरिए भाषा को थोपा नहीं जा सकता है.’’
अमित शाह द्वारा दिए गए बयान के पीछे के राजनीतिक मकसद को लेकर अतुल चौरसिया ने लेखक पत्रकार अनिल यादव से सवाल किया तो उन्होंने बताया, ‘‘अमित शाह के बयान के तत्कालिक राजनीतिक मकसद भी हैं और दीर्घकालिक मकसद भी है. सभी जानते हैं कि बीजेपी सत्ता में आरएसएस के एजेंडे को देश में लागू करना है. एक निशान, एक विधान, एक प्रधान. निशान का मतलब तिरंगा नहीं भगवा ध्वज, प्रधान का मतलब एक व्यक्ति मतलब राजा टाइप. बहुदलीय राजनीति नहीं. और विधान भी वैसा होना चाहिए जो मनुस्मृति से मिलता जुलता हो. उनको यह वाला विधान मंजूर नहीं वे बार-बार संविधान की समीक्षा की बात करते रहते है और आरएसएस चाहता है यूरोपियन ढंग का राष्ट्रवाद. जो कि समान भाषा, समान संस्कृति और समान इतिहास के आधार पर वहां विकसित हुआ. जो नेचुरल रूप से विकसित हुआ. लेकिन हमारे यहां ऐसी परिस्थितियां है ही नहीं. हमारे यहां न समान भाषा है,न सामान संस्कृति है और न समान इतिहास है. मान लीजिए कि आप भाषा जबरदस्ती लोगों पर लाद भी दें लेकिन समान संस्कृति और समान इतिहास कैसे बनायेंगे. उत्तर और दक्षिण का इतिहास अलग-अलग है.’’
इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी को मिले बहुमत में 80 फीसद हिस्सा हिंदी पट्टी से आया है. इतनी बड़ी संख्या में जहां से सीटें आई हैं वहां के लोगों को अपने पक्ष में गोलबंद करने की राजनीति भी इसमें छिपी हुई है. वरना अमित शाह और मोदी की अपनी भाषा गुजराती है.
एनआरसी लिस्ट जारी होने के बाद एक फैक्ट फाइंडिंग टीम के साथ प्रशांत टंडन हाल ही में असम से लौटे हैं. वहां की स्थिति का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया, ‘‘एक बड़ी मानव त्रासदी से असम गुजर रहा है. एनआरसी ने एक गहरा घाव किया है जिसे भरने में काफी वक़्त लगेगा. असम में एक नए तरह ध्रुवीकरण हो रहा है. एक दूसरे के प्रति अविश्वास बढ़ा है. अपने ही देश में 19 लाख लोग बेगाने हो गए हैं. एक ही परिवार में एक व्यक्ति एनआरसी में हैं और एक एनआरसी से बाहर है. इसके बाद क्या स्थिति होगी.’’
चर्चा के आखिर में अनिल यादव ने महेश वर्मा की कविता ‘आदिवासी औरत का रोना’ का पाठ किया. यह कविता एक रोती हुई आदिवासी महिला की है जो बताती है कि शेष भारत से उसका क्या संबंध है.
पूरी चर्चा सुनने के लिए ‘‘एनएल चर्चा’’ का पूरा पॉडकास्ट सुनें.
पत्रकारों की राय, क्या देखा, सुना और पढ़ा जाय :
अतुल चैरासिया
प्रशांत टंडन
अनिल यादव
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