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डेरे और मठों की परिक्रमा करने वाली हरियाणा की सियासत

समय-समय पर हरियाणा अपनी कुछ ‘कुख्यात’ परम्पराओं से देश की राजनीति की झोली भरता रहा है. एकमुश्त हज़ारों-लाखों वोटों से अपनी झोली भरवाने के लिए डेरों के संत, महंत और बाबाओं के दरबार में जाकर बिछ जाने जैसी धार्मिक सी प्रतीत होती ‘कुख्यात’ परम्परा का हरियाणा के नेता हर चुनाव में क्रांतिकारी इस्तेमाल करते हैं और बिना किसी हिचक के डेरों में बिछ जाते हैं.

शक्ल से खाए-अघाए और कपड़ों से फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता के विजेता उम्मीदवार नज़र आने वाले ये डेरों के सन्त, महंत और बाबा नेताओं के प्रति स्वभाव से बड़े दयालु होते हैं. सरकार बनाने योग्य नेता को तो ये लोग अपने आशीर्वाद और दयाभाव की भारी बरसात कर एकदम तर कर देते हैं. वोट की वर्षा में भीगे नेता भी इन संतों, महंतों और बाबाओं पर नोटों की वर्षा कर अपना बदला चुकाते हैं.

दरअसल अपने अनुयायियों की राजनीतिक इच्छाशक्ति को प्रभावित करने की उनकी क्षमता ने सभी पार्टियों के नेताओं को उनके दरबार में बिछ जाने के लिए मजबूर कर किया है. ऐसा लगता है कि पिछले कुछ वर्षों में नेताओं के बिछ जाने की संस्कृति और भी दिलचस्प हो गई है और इन विधानसभा चुनावों में, ध्यान एक बार फिर हरियाणा के इन महान ‘अजूबों’ की ओर है.

कभी इस परम्परा के ‘हरियाणा केसरी’ रहे सतलोक आश्रम के संचालक और कबीरपंथ के झंडाबरदार संत रामपाल और अपने आपको बुल्लेहशाह की परम्परा का कर्ताधर्ता बताने वाले डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम सिंह जैसे कुछ प्रभावशाली बाबाओं का सिक्का उनके जेल में बन्द होने के कारण इस इलेक्शन में मद्धिम पड़ गया है. साल 2014 के चुनाव में दूसरी कतार के बाबा इस बार के विधानसभा चुनाव में अव्वल दर्जे के पहलवान बनकर उभरे हैं.

साल 2014 से पहले काला धन वापस लाने वाले बाबा और आर्यसमाज के कंधों पर सवारी कर बिजनेसमैन बने रामदेव ने इस चुनाव में बीजेपी के नेता मनोहरलाल खट्टर के गालों पर पतंजलि की क्रीम लगाकर उनके गालों की लाली बढ़ा दी है और उनके ब्रह्मचारी जीवन का गुणगान करते हुए बता दिया है कि “मनोहरलालजी को कौन सा सात पीढ़ियों का जुगाड़ करना है. वो भी मेरी तरह ब्रह्मचारी आदमी हैं इसलिए वे बेईमान नहीं हैं. उन्हें फिर से सत्ता में लाना चाहिए.”

हालांकि बाबा रामदेव द्वारा आज की जा रही इस मालिश की कीमत मनोहरलाल खट्टर ने मुख्यमंत्री बनते ही चुकानी शुरू कर दी थी. अरावली हो या शिवालिक, हरियाणा की हर पहाड़ी और जंगल में बाबा रामदेव का हर्बल पार्क बनाने  के लिए मनोहरलाल खट्टर ने पूरी प्रतिबद्धता दिखाई और आज आलम यह है कि रामदेव अब हरियाणा की किसी भी तरह की जमीन को पराई नज़रों से बिल्कुल नहीं देखते.

हरियाणा के डेरों, मठों, धाम रूपी मंदिरों और गुरुकुलों में पाए जाने वाले ये संत-महात्मा बड़े ही लिबरल होते हैं और हर धर्म-जाति के लोगों को साथ लेकर चलने का दावा करते हैं. साल 2005 में वरिष्ठ पत्रकार अनिल कुमार यादव को अपने साथ जोड़ने के लिए “मैं भी यादव ही हूं” कहने वाले बाबा रामदेव की तर्ज पर ही रोहतक के अस्थल बोहर स्थित बाबा मस्तनाथ मठ के गद्दी आसीन बाबा बालकनाथ ने बीजेपी की एक चुनाव सभा में अपनी जाति बताकर वोट मांगने में कोई हिचक नहीं दिखाई. बीजेपी ने भी उन्हें अपनी जाति बताने की कीमत पहले ही यादव बहुल अलवर सीट से लोकसभा भेजकर चुका दी थी. जैसे ही हरियाणा बना था वैसे ही बाबा मस्तनाथ का यह मठ राजनीतिक ताकत का मठ बन गया था. हालांकि भूपिंदर हुड्डा भी उनसे आशीर्वाद लेने गए थे. लेकिन ‘यादव नाथ’ ने भूपिंदर हुड्डा को बैरंग लौटा दिया.

रोहतक से दिल्ली रोड पर करीब 25 किलोमीटर आगे बढ़ने पर सांपला में स्तिथ काली दास महाराज का डेरा भी साल 2014 के बाद राजनीतिक ताकत का केंद्र बनकर उभरा है. काली दास के बारे में कहा जाता है कि वे नारियल का पानी पीकर ही जीवित रहते हैं. काली दास महाराज नेताओं को विभिन्न पार्टियों से टिकट भी दिलवाने का दावा करते हैं. नौकरशाही छोड़कर सांसद बनी सिरसा की सुनीता दुग्गल और पहलवान योगेश्वर दत्त का मानना है कि उन्हें टिकट काली दास के कारण मिला है. साल 2017 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपनी तीन दिवसीय रोहतक यात्रा के दौरान उनके डेरे में भी आशीर्वाद लेने पहुंचे थे.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से लेकर पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा तक, सभी उनके डेरे का दौरा कर चुके हैं. काली दास अक्सर भाजपा के बैनर तले आयोजित कार्यक्रमों में देखे जाते हैं. इतना ही नहीं, उनके करीबी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके ”सीधे संबंध” होने का दावा भी करते हैं. बीते दिनों ही उन्होंने स्थानीय भाजपा नेताओं को मोदी के साथ एक फोटो सेशन करवाने भी लेकर गए थे. हालांकि महम विधानसभा सीट से उनके चहेते उम्मीदवार बलराज कुंडू को भाजपा ने टिकट नहीं दिया. पिछले कुछ सालों में रामपाल और रामरहीम की गैरमौजूदगी में रोहतक, झज्जर और सोनीपत जिले में काली दास की तूती बोलने लगी है.

अगर गुड़गांव और रेवाड़ी की बात करें तो स्वामी धर्मदेव उस इलाके में बड़ा नाम बनकर उभरे हैं. उनका मुख्य डेरा पटौदी इलाके में है और वे भी इस वक्त भाजपा के पालने में झूल रहे हैं. स्वामी धर्मदेव गुड़गांव से विधानसभा की टिकट भी मांग रहे थे, लेकिन उन्हें नहीं मिली. इस समय वे बीजेपी की अधिकतर सभाओं में देखे जाते हैं. भिवानी के इलाके में राधा स्वामी आश्रम (दिनोद) जोकि राधा स्वामी व्यास वालों से मिलती-जुलती अलग धारा का है, का बोलबाला है. राधा स्वामी आश्रम दिनोद के गद्दी आसीन ज्ञानानंद महाराज मनोहरलाल खट्टर की सभाओं में गीता ज्ञान देते हुए पाए जाते हैं. भिवानी और उसके आसपास के जिलों में राधा स्वामी दिनोद का बहुत ज्यादा प्रभाव है और वहां के गद्दी आसीन ज्ञानानंद महाराज खुले तौर पर बीजेपी के समर्थन में उतरे हुए हैं.

हरियाणा की राजनीति में सरेआम दांव ठोंक रहे ये डेरे नव धार्मिक आंदोलन का एक हिस्सा हैं. समाज के जो लोग अपने मुख्य धारा समाज से कट जाते हैं या किसी भी तरह के भेदभाव से पीड़ित होते हैं, उनके लिए ये डेरे सामाजिक पूंजी बनने का काम करते हैं और इन डेरों में उन लोगों को सम्मान और स्वीकार्यता मिलती है. हरियाणा के सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली निर्मल बंजारन बताती हैं, “इन डेरों को समाज से कटे हुए लोगों का ठिकाना कहना उचित रहेगा. घर में उपेक्षित महिलाएं भी इन डेरों में जाकर सशक्त महसूस करती हैं. इसलिए इन डेरों में प्रायः दलितों और महिलाओं की सबसे ज्यादा संख्या होती है. मैं जब हरियाणवी लोकगीतों पर काम कर रही थी तो मैंने पाया कि ग्रामीण औरतें इन बाबाओं के समर्थन में भी गीत गाती हैं और इनके विरोध में भी. अब पिछले दो साल में गुरमीत राम रहीम का तेजी से पतन हुआ है और उसके समर्थक राधा स्वामी डेरे में जाने लगे हैं. अब महिलाएं भी राम रहीम के विरोध में गीत गा रही हैं.”

वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी डेरों के उफान की राजनीतिक व्याख्या करते हुए बताते हैं, “हरियाणा में तर्कशील विचारधाराओं की शून्यता तो इसकी होंद से ही बनी हुई है. 90 के बाद चमकने वाली मंडल-समतावादी राजनीति ने भी हरियाणा से दूरी बनाए रखी. एक खास दलित जाति में बीएसपी और आंबेडकरवादी आंदोलन पनपा. लेकिन बाकी दलित जातियों को इनका फायदा नहीं मिला. इसी वजह से ही इन डेरों द्वारा दिखाए गए समानता के सपने दलितों और हाशिये के समाजों को हसीन लगे और वे लोग इन डेरों के खूंटे से बंध बैठे. तथाकथित ऊंची जाति के लोग तो डेरों में बहुत कम जाते हैं क्योंकि उनके अपने मंदिर और धाम हैं. इसलिए डेरा दलितों, शोषितों को अपनी और खींचता है, बेशक कोई भी बाबा दलित न हो.”

चुनाव के समय ये डेरे अपने समर्थकों को एकजुट होकर वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं और गुरु द्रोण बन मछली की आंख दिखा देते हैं. हालांकि वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र सिंह का मानना है कि अब इन डेरों के दिन लद गए हैं. वे बताते हैं, “रामपाल और राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद हरियाणा के बाबाओं में एक डर है और वो कोई भी राजनीतिक पंगा मोल लेना नहीं चाहते. बीजेपी ने इन सब बाबाओं की मरोड़ निकाल दी है. अब बीजेपी इनके दरबारों में जाकर बिछती नहीं बल्कि ये बाबा बीजेपी की चुनावी सभाओं में खुद आकर बिछ जाते हैं. एक हिसाब से बीजेपी ने इन बाबाओं की दुखती रगें पकड़ ली हैं.”

यह बिल्कुल साफ दिखता है कि इस चुनाव में ये बाबा खुलेआम बीजेपी के मंचों पर देखे जा रहे हैं और वोटों की अपील कर रहे हैं. नेता मंच पर इनसे आशीर्वाद लेने का ढोंग कर इनके समर्थकों का वोट बटोरने की कोशिशों में लगे हैं. हालांकि इस चुनाव में राम रहीम और रामपाल के समर्थकों ने अभी तक चुप्पी साध रखी है. आज भी इन दोनों डेरों के लाखों समर्थक हैं और दोनों राजनीतिक रूप से सक्रिय रहते आए हैं. महेंद्र कहते हैं, “इनकी चुप्पी का मतलब बीजेपी की खिलाफत करना है. दोनों के समर्थकों को लगता है कि बीजेपी ने उनके बाबाओं को जेल भेजा है. इसलिए इन दोनों के समर्थक बीजेपी के उलट ही जाने वाले हैं.”

कभी अपने आपको आर्यसमाजी बताकर आर्यसमाज के वोट बटोरने वाले भूपिंदर हुड्डा इस चुनाव में आर्यसमाज से भी कटे हुए दिखाई दे रहे हैं. ज्यादातर आर्यसमाजी नेता बीजेपी के मंचों पर दिखाई देते हैं और राष्ट्रवाद व गाय के नाम पर बीजेपी को मज़बूत करने की बात कर रहे हैं. संतो, महंतों और बाबाओं के इस राजनीतिक जाल से वोटरूपी मछली बटोरने में इस बार बीजेपी ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रही है.