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जो बात गौरी लंकेश ने कभी नहीं कही उसे रेड एफएम का आरजे क्यों फैला रहा है?

मशहूर एफएम चैनल, रेड एफएम के आरजे रौनक जो ‘बउआ’ नाम से मशहूर हैं, का एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर चल रहा है जिसे उन्होंने हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या के बाद बनाया है.

हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या राजधानी लखनऊ स्थित उनके कार्यालय में बीते पखवाड़े कर दी गई थी.

कमलेश तिवारी की हत्या के मामले में पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है. हत्या की वजह पूर्व में कमलेश तिवारी द्वारा इस्लाम और पैगम्बर के प्रति कही गई अपमानजनक बातों को माना जा रहा है. गिरफ्तार किए गए युवक मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, लिहाजा इस बात को बल दिया जा रहा है कि हत्या की वजह पैगंबर का अपमान ही है.

तिवारी की हत्या की पृष्ठभूमि में आरजे रौनक ने लगभग सात मिनट लम्बा एक वीडियो बनाया जिसे उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया है. ‘कमलेश तिवारी मामला: इंटॉलरेंस का रोना रोने वाले चुप क्यों हैं?’ शीर्षक से शेयर किए गए इस वीडियो को लाखों लोगों ने अब तक देखा है और लगभग आठ हज़ार लोगों ने शेयर किया है.

वीडियो की शुरुआत के साथ ही रौनक कई सारी घटनाओं का जिक्र करते हैं. रौनक के तर्क और भाषा पूरी तरह से व्हाटअबाउटरी यानि ‘तब कहां थे जब’ के दायरे में सीमित थी. इसमें तथ्यों से ज्यादा रेटॉरिक का इस्तेमाल है और इस पूरे वीडियो का परोक्ष टोन मुसलमानों के खिलाफ घृणा और नफरत भरा है. इसे आसानी से समझा जा सकता है. इसमें शार्ली हेब्दो, गोरक्षा से भटकते हुए बात 2002 के गोधरा और गुजरात के दंगों के जस्टिफिकेशन तक चली गई.

अपने भयानक भटकाव की रौ में रौनक एक ऐसी बात भी कह जाते हैं जिसके लिए आम तौर पर आईटी सेल के कारिंदे बदनाम हैं. यानी घटनाओं को अपनी सुविधा से ट्विस्ट और टर्न देते हुए, पुरानी-नई चीजों की तुलना करते हुए बीच में कुछ एकदम बेबुनियाद, अनरगल बातों को डाल दिया जाय. हमने गांधी से लेकर नेहरू तक की गढ़ी हुई बदनामियों के इस दौर में देखी हैं. रौनक का ये वीडियो उसी का विस्तार लगता है.

वीडियो में रौनक कहते हैं, ‘‘अगर भड़काऊ बयान या लेखन किसी की हत्या की वजह हो सकती है तो क्या गौरी लंकेश की हत्या को भी ठीक माना जाए. उन्होंने तो एक से ज्यादा बार अपने लेखों में संघ के कार्यकर्ताओं को ‘रंडी की औलाद’ तक बुलाया था. अगर भावनाएं आहत होना हत्या का लाइसेंस देता है तो अपने लिए ‘रंडी की औलाद’ शब्द सुनकर संघ कार्यकर्ता की भावनाएं आहत नहीं हुई होंगी. आपने तो उलटे इस तरीके के दसियों बयान देने वाली गौरी लंकेश के नाम पर अवार्ड ही शुरू कर दिया.’’

रौनक का ये दावा कहां से आया, क्या गौरी लंकेश ने कभी ऐसा बयान दिया भी था, हमेशा से स्त्रीवाद (फेमिनिज्म) की सशक्त आवाज़ रही गौरी लंकेश क्या रंडी जैसा नितांत स्त्रीद्वेषी शब्द का इस्तेमाल कर सकती हैं? बकौल रौनक उन्होंने आरएसएस के कार्यकर्ताओं के लिए ‘रंडी की औलाद’ शब्द का इस्तेमाल बार-बार किया था. रौनक को ये जानकारी कहां से मिली और कहां गौरी लंकेश ने आरएसएस के लोगों के लिए इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया ये जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने रौनक से सम्पर्क किया तो पहले उन्होंने इस पर बात करने से इनकार कर दिया. फिर उन्होंने गौरी लंकेश द्वारा साल 2016 में लिखे एक फेसबुक पोस्ट का जिक्र करते हुए कहा कि मैंने उसी के आधार पर बोला है.

जिस स्क्रीनशॉट का यहां जिक्र हो रहा है यह तब का है जब सुब्रमण्यम स्वामी और भाकपा माले की नेता कविता कृष्णन के बीच ‘फ्री सेक्स’ को लेकर विवाद हुआ था. उसको लेकर गौरी लंकेश ने एक पोस्ट लिखा था, जिसमें वो फ्री सेक्स को लेकर कविता कृष्णन और उनकी मां का समर्थन करते हुए लिखा था. लंकेश ने अपने पोस्ट में जो लिखा है उसके मुताबिक, एक स्त्री अगर फ्री सेक्स को लेकर स्वतंत्र नहीं है यानि सेक्स को लेकर उसकी अपनी च्वाइस को तरजीह या सहमति नहीं मिलती है तो उस सेक्स को सिर्फ दो श्रेणियों में रखा जा सकता है या तो व्यक्ति बलात्कार से पैदा हुआ है या फिर किसी सेक्स वर्कर से पैदा हुआ है. क्योंकि सेक्स वर्कर पैसे लेकर सेक्स करती हैं. अब ये चयन आप (संघ कार्यकर्ता) पर निर्भर करता है कि आप ये कहे कि आपकी मां ‘फ्री सेक्स’ में शामिल थी या ऊपर जिक्र की गई दो स्थितियों में से आप एक को चुन सकते हैं. मैं कविता कृष्णन और उनकी बहादुर मां के साथ खड़ी हूं. मेरी मां ने अपनी सहमति से मेरे पिता से सेक्स किया, जिसके बाद मैं पैदा हुई. और मैं इस पर गर्व करती हूं.’’

लेकिन इस पोस्ट में गौरी लंकेश किसी को ‘रंडी की औलाद’ नहीं कहती हैं. इस सवाल के जवाब में रौनक कहते हैं, ‘‘वो साफ़ तौर पर तो नहीं कहती हैं लेकिन उनके कहने का मकसद तो साफ़ नजर आता है.’’ जाहिर है रौनक ने कुछ बातें अपनी मर्जी से जोड़ घटाकर एक निष्कर्ष दे दिया है. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि जिस संदर्भ में गौरी लंकेश ने बात कही थी, उस संदर्भ को ही रौनक ने गायब कर दिया. ये जानबूझकर किया गया या रौनक को असल में बहस का मुद्दा समझ ही नहीं आया, इस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा.

रौनक से पहले ठीक इसी तरह की बात साल 2017 में नवभारत टाइम्स से जुड़े पत्रकार नीरज बधवार ने भी फेसबुक पर लिखा था. उनकी बात अभी भी आईबीटीएल नाम के फेसबुक पेज पर मौजूद है. ‘कब बंद होगा विरोध का दोगलापन?’ शीर्षक से लिखे गए लेख में लिखा गया है कि मोहम्मद का कार्टून बनाने पर इस्लामिक चरमपंथियों ने फ्रांस में जब दर्जनों हत्याएं कर दी थी तो खुलकर ये दलील दी गई कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जब भी कोई सीमा लांघेगा, तो ऐसा तो होगा ही. कोई तो अपना आपा खोएगा ही. अब यही बात गौरी लंकेश के लेखों को लेकर भी की जा सकती है. जो अपने लेखों में संघ कार्यकर्ताओं को रंडी की औलाद तक लिख चुकी हैं. अब इस पर भी कहा जा सकता है कि कुछ लोग तो ऐसी भाषा पर आपा खोएंगे ही!’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने नीरज बधवार से इस लेख के संबंध में बात की. बधवार ने उसी फेसबुक पोस्ट का जिक्र किया, जिसका जिक्र रौनक करते हैं. नीरज कहते हैं, ‘‘साफ़-साफ़ शब्दों में गौरी ऐसा नहीं कहती हैं, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से तो उनका यही कहना. प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक बार कहा था, कि अगर कुत्ते का बच्चा भी कार के नीचे आकर मारा जाता है तो आपको दुख होता है. इस पर उनकी कितनी आलोचना हुई. जबकि मोदी खुलकर किसी को कुछ कह नहीं रहे थे, लेकिन लोगों ने इसे मुसलमानों से जोड़कर निष्कर्ष निकाल लिया. इसी तरह मैंने भी गौरी की पोस्ट से निष्कर्ष निकाला है. वो ऐसा ही कुछ कहना चाहती हैं. जिसकी आलोचना होनी चाहिए.’’

नीरज बधवार और रौनक ने जिस स्क्रीन शॉट का जिक्र किया है उसपर ऑल्ट न्यूज़ ने सितम्बर 2017 में एक स्टोरी   की थी. तब यह स्क्रीनशोर्ट परेश रावल समेत काफी लोगों ने शेयर किया था.

गौरी लंकेश ने क्या ऐसा कभी कहा?

न्यूज़लॉन्ड्री ने एक बार फिर से इस बात की तस्दीक करना जरूरी समझा कि क्या कभी भी गौरी लंकेश ने संघ कार्यकर्ताओं के प्रति ऐसा शब्द इस्तेमाल किया जिसका जिक्र बधवार या रौनक ने किया. इसके लिए हमने गौरी लंकेश को लम्बे समय से जानने वाले लोगों से सम्पर्क किया.
गौरी लंकेश पर छपे ‘द वे आईसी इट : ए गौरी लंकेश रीडर’ नाम की किताब का संपादन करने वाले चन्दन गौड़ा ने न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहा, ‘‘ऐसे शब्दों का गौरी कभी इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं. इसकी कोई संभावना ही नहीं है. यह असंभव है. मैंने अपने काम के दौरान ऐसा कहीं भी नहीं पाया. गौरी आरएसएस के कामों और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की उनकी सोच की आलोचना करती रही लेकिन इस तरह के शब्दों का उन्होंने कभी इस्तेमाल नहीं किया.’’ चन्दन गौड़ा अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए हैं.

गौरी लंकेश की पत्रिका लंकेश पत्रिके की संपादक स्वाति न्यूज़लॉन्ड्री को बताती हैं, ‘‘मैं उनको जितना जानती हूं उसके आधार पर कह सकती हूं कि वो कभी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करती थीं. उनके फेसबुक पर जब आरएसएस से जुड़े युवा कमेन्ट करते थे तो उन्हें वो बच्चों की तरह व्यवहार करती थी. उनका कहना था कि ये भटके हुए बच्चे हैं. उनसे बात करती थीं और उनको समझाने की कोशिश करती थी.’’

स्वाति आगे कहती हैं, ‘‘पिछले कुछ महीनों से आरजे रौनक के कुछ वीडियो देख चुकी हूं. इसका कंटेंट हिंदुवादी विचारधारा से ज्यादा प्रभावित होता है. गौरी के बारे में जो उन्होंने कहा वो किसी मामले को जस्टिफाई करने का तरीका है कि गौरी को मारकर उन्होंने सही किया. ऐसे ही गांधीजी की हत्या के मामले में किया जा रहा है. आज गोडसे के किरदार के बारे में अच्छी अच्छी बातें बताते हैं ये लोग. कहते हैं कि उन्होंने गांधी को मारकर सही किया.”

स्वाति लंकेश पत्रिके के संपादकीय से जुड़े लोगों से बातचीत करने के बाद हमें बताती हैं, ‘‘उनके साथ लम्बे समय से काम करने वाले लोगों ने कहा कि ऐसा कहना बिल्कुल झूठ है. ऐसा उन्होंने कभी नहीं कहा न कभी लिखा. यह एक सोशल मीडिया पर लोगों द्वारा फैलाया गया झूठ है. जो रौनक तक पहुंची होगी जिसके बाद वो ऐसा कह रहे हैं. गौरी स्त्रीवादी महिला थी और वो इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल नहीं करती थी.’’

गौरी लंकेश की बहन कविता लंकेश इस पूरे मामले पर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहती हैं, ‘‘ऐसा वो बोल ही नहीं सकती. वो डायलॉग में भरोसा करती थी. अक्सर वो आरएसएस से जुड़े लोगों से बातचीत की कोशिश करती थी. दूसरी बात उन्होंने सेक्स वर्कर्स के साथ लम्बे समय तक काम किया है. तो ऐसे शब्दों का इस्तेमाल वो बिलकुल नहीं कर सकती हैं.’’

आरएसएस से जुड़े और बंगलौर में रहने वाले हर्ष परला न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘गौरी लंकेश आरएसएस के बारे में लिखती बोलती रही हैं लेकिन इस तरह के शब्द उन्होंने कभी नहीं सुना. इसकी जानकारी मुझे नहीं है.’’

आरएसएस कर्नाटक के मीडिया प्रभारी प्रवीण पटवर्धन कहते हैं, ‘‘गौरी लंकेश ने ऐसे किसी शब्द का प्रयोग किया हो ऐसा मेरे सामने नहीं आया लेकिन गौरी लंकेश का आरएसएस के लोगों के प्रति नजरिया सही नहीं रहा है. एक बार उन्होंने आरएसएस के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन से गलत तरीके से बात किया था. उनको सम्मान नहीं दिया था. वो ऐसा बोल भी सकती हैं लेकिन मेरे सामने नहीं आया तो मैं कुछ कह नहीं सकता है.’’

दक्षिणपंथ के प्रति झुकाव

गौरी लंकेश पत्रिका की संपादक स्वाति के आरोप का जवाब देते हुए रौनक कहते हैं कि ना मैं पत्रकार हूं, ना नेता. मैं एक आर्टिस्ट हूं. मैं किसी के प्रति झुक कर काम नहीं करता हूं. मुझे दोनों पक्ष के लोग गाली देते हैं. एक वीडियो के बाद मुझे दक्षिणपंथी बना दिया जाता है और दूसरे वीडियो के बाद कांग्रेसी. तो मैं क्या कह सकता हूं. मेरा काम सटायर करना है. एक बल्लेबाज उसी गेंद पर छक्का मरता है जो गेंद कमजोर हो. मुझे जो मौका देता हैं मैं उस पर सटायर मारता हूं. जहां तक रही बीजेपी की बात तो यूपी में नमक रोटी विवाद हो या दिल्ली में प्रधानमंत्री की भतीजी से पर्स चोरी का मामला मैंने खुलकर बोला. मुझे किसी विचारधारा में बांधकर आप सटायर का ही नुकसान कर रहे हैं.’’

रौनक अपने विडियो में गौरी लंकेश पर इस तरह की भाषा का कई जगहों पर इस्तेमाल का आरोप लगाते हैं, लेकिन ऐसा कहने का उनका आधार महज एक फेसबुक पोस्ट है. लेकिन इस फेसबुक पोस्ट में भी गौरी लंकेश साफ़ तौर पर किसी को कुछ अपशब्द कहते नजर नहीं आती हैं.