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शिवसेना वाले संजय राउत बोले तो अपुन इच भगवान है

“कभी-कभी लगता है अपुन इच भगवान है” सेक्रेड गेम्स नाम की नेटफ्लिक्स सीरीज़ का यह मशहूर डायलॉग आजकल महाराष्ट्र की राजनीति के एक नेता के सन्दर्भ में लोगबाग खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर इस डायलॉग का इस्तेमाल कर शिवसेना नेता और शिवसेना के मुखपत्र दैनिक सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत के बहुत सारे मीम्स लोकप्रिय हो चुके हैं. अगर देखा जाए तो महाराष्ट्र विधानसभा के परिणाम घोषित होने के बाद जो नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में है वो है संजय राउत.

महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीति में संजय राउत की भूमिका दिलचस्प है. 23 अक्टूबर, 2019 की शाम को जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम घोषित होने में एक दिन बचा था तब शिवसेना के मुखपत्र दैनिक सामना के कार्यकारी संपादक ने एक पत्रकार वार्ता में कहा था कि सरकार बनाने के लिए भाजपा को शिवसेना का सहारा लेना ही पड़ेगा. भले ही शिवसेना की 4-5 सीटें आएं लेकिन भाजपा, शिवसेना को सरकार में शामिल ज़रूर करेगी.

राउत ने उस शाम यह भी दावा किया था कि उनकी पार्टी सौ सीटों पर जीत दर्ज करेगी. 24 अक्टूबर का दिन आया और चुनावी नतीजे अपने अंतिम दौर में थे, चुनावी सूरत साफ़ नज़र आने लगी थी और  राउत ने अपने बयानों में यह कहना शुरू कर दिया कि महाराष्ट्र की जनता और शिवसैनिक आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. उस दिन से लेकर अब तक संजय राउत पत्रकार वार्ताओं और सोशल मीडिया के ज़रिये जिस तरह की बयानबाज़ी कर रहे हैं उससे भाजपा-शिवसेना के पास पूर्ण बहुमत होने के बावजूद भी महाराष्ट्र में सरकार नहीं बन पायी है और दिल्ली से लेकर बम्बई तक राजनैतिक सरगर्मी बढ़ गयी है.

अगर चुनावी नतीजों पर नज़र डालें तो 288 सीट वाली महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. भाजपा ने 164 सीटें अपने पास रखी थीं जिसमें से 150 सीटों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा और 14 उसके अन्य सहयोगियों को मिलीं. वहीं शिवसेना 124 सीटों पर लड़ रही थी. 150 सीटों पर चुनाव लड़कर भाजपा ने 105 सीटों पर अपना परचम लहराया वहीं शिवसेना महज 56 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी. शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस 54 सीटों पर विजयी घोषित हुयी है और कांग्रेस 44 सीटों पर.

महज 56 विधायकों के दम पर शिवसेना इस ज़िद पर अड़ी है कि मंत्रिमंडल में उसे बराबर की हिस्सेदारी के साथ-साथ आधे समय यानि ढाई साल तक मुख्यमंत्री का पद भी मिले. शिवसेना अपनी इस मांग को जायज़ ठहराने के लिए यह हवाला दे रही है कि भाजपा-शिवसेना में 50-50 फीसद हिस्सेदारी का समझौता हुआ था. संजय राउत इस मांग को चुनावी नतीजों के बाद बहुत बुलंद आवाज़ में उठाते चले आ रहे है.

24 तारीख को जहां मीडिया में उन्होंने आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही वहीं उसके अगले दिन ट्विटर अकाउंट के ज़रिये उन्होंने एक ऐसा व्यंग्यचित्र अपने ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया जिसने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बहुत सी राजनैतिक संभावनाओं पर चर्चा शुरू कर दी. उनके पोस्ट में एक शेर कमल का फूल सूंघ (कमल भाजपा का चुनाव चिन्ह है) रहा और उसने गले में घड़ी (राष्ट्रवादी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह) का लॉकेट पहना हुआ है. पोस्ट के ऊपर लिखा हुआ “व्यंग्य चित्रकारीचा कमाल (व्यंग चित्रकारी का कमाल), बुरा ना मानो दिवाली है.” इस व्यंगचित्र के ज़रिये राउत ने इस बात की बहस छेड़ दी की अगर शिवसेना की मांग पूरी नहीं हुई तो वह सरकार बनाने के लिए भाजपा का साथ छोड़ शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस का दामन भी पकड़ सकती है.

उस दिन के बाद से राउत लगभग हर रोज़ पत्रकार वार्ताओं या सोशल मीडिया के ज़रिये कभी आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की बात कहते हैं तो कभी शिवसेना की सरकार बनाने के लिए दूसरे ज़रिये अपनाने की बात कहते हैं. उन्होंने मीडिया चैनलों को दिए गए अपने साक्षत्कारों में भाजपा पर तीखे हमले बोले हैं और वादाखिलाफी के आरोप भी लगाए हैं. वह कभी वसीम बरेलवी के शेर के ज़रिये (उसूलों पर जहां आंच आये, टकराना ज़रूरी है, जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है) तो कभी दुष्यंत के शेर को (सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही, मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए, मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए) ट्वीट करके भाजपा पर हमले भी बोलते हैं और सरकार बनाने के लिए दूसरे विकल्पों की ओर इशारा भी करते हैं.

राउत प्रेस में दिए अपने बयानों में कभी यह कहते है कि उनकी पार्टी को 145 विधायकों का समर्थन है तो कभी कहते यह कहते हैं कि 170 विधायकों का समर्थन है और आंकड़ा 175 तक भी जा सकता है. प्रेसवार्ता में वो यह भी कह चुके हैं कि उन्हें जानकारी है कि भाजपा शपथ ग्रहण समारोह वानखेड़े स्टेडियम में करने वाली है लेकिन शिवसेना का मुख्यमंत्री शिवतीर्थ (दादर में स्थित शिवाजी पार्क जिसे बहुत से शिवसेना नेता और शिवसैनिक शिवतीर्थ कहते हैं) से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा.

अपने 170 विधायकों के समर्थन के बयान के बाद सोमवार (4 नवम्बर) को वह महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी से मिलने भी पहुंच गए थे. बाद में उन्होंने प्रेस से कहा कि वह उनसे राजनैतिक कारण की वजह से नहीं बल्कि शिष्टाचार के नाते मिलने गए थे. उन्होंने यह भी कहा था कि शिवसेना सरकार बनाने में कोई बाधा नही खड़ी कर रही है, और जिसके पास भी बहुमत है वह सरकार बना ले.

गौरतलब है कि राउत के 170 विधयकों के समर्थन वाले बयान के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने उनके इस बयान के ऊपर यह सवाल उठाये थे कि यह आंकड़ा उन्होंने कैसे निकाला.

इस राजनैतिक उथल पुथल में पिछले हफ्ते राउत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार से भी मिल चुके हैं. हाल ही में नवम्बर तीन को उन्होंने पवार के भतीजे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता अजीत पवार को भी फ़ोन पर सन्देश भेजा था जिसका जिक्र अजीत पवार ने मीडिया से भी किया था.

कुल मिला कर जब से चुनाव के नतीजे आये हैं तब से राउत रोज़ बयानबाज़ी करते चले आ रहे है और सामना में छपने वाले उनके साप्ताहिक लेख रोक-ठोक व सम्पादकीय के ज़रिये भाजपा पर करारे वार कर रहे हैं.

पिछले हफ्ते जब राजनैतिक हलकों में इस बात की चर्चा होने लगी कि शिवसेना महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना के समर्थन से सरकार बनाएगी तो शरद पवार ने कहा था कि जनता ने उनकी पार्टी को विपक्ष में बैठने को बोला है और वह वहीं रहेंगे. लेकिन सोमवार (4 नवम्बर )को इस मामले को लेकर पवार और कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी के बीच दिल्ली में एक बैठक हुई थी. इसके बाद पवार ने अख़बारों से कहा कि जनता का वोट उन्हें विपक्ष में रहने के लिए ही मिला है, लेकिन कुछ भी हो सकता है.

राउत ने मंगलवार को एक पत्रकार वार्ता में फिर से कहा है कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही बनेगा और महाराष्ट्र की राजनीति की सूरत बदल रही है. यह हंगामा नहीं है, यह न्याय और हक़ की लड़ाई है.

पत्रकारिता से राजनीति में आये 58 साल के संजय राउत ठाकरे परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं और लगभग पिछले तीस वर्षों से दैनिक सामना के कार्यकारी संपादक हैं. रायगढ़ जिले के अलीबाग में जन्मे राउत ने मुंबई के वडाला इलाके के डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर कॉलेज से बीकॉम में स्नातक करने के बाद अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत फ्री प्रेस जर्नल के मराठी अखबार नवशक्ति से की थी. कुछ समय वहां काम करने के बाद वह इंडियन एक्सप्रेस समूह के मराठी साप्ताहिक पत्रिका लोकप्रभा में उपसंपादक – रिपोर्टर की हैसियत से काम करने लगे. यह वह दौर था जब मुंबई का अपराध जगत बढ़ रहा था. दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरुण गवली जैसे माफिया सरगना मुंबई में फल-फूल रहे थे.

गुजरते समय के साथ राउत भी लोकप्रभा में क्राइम रिपोर्टिंग (अपराध पत्रकारिता) करने लगे और अस्सी के दशक की मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुडी ख़बरों को रिपोर्ट करने लगे थे. धीरे-धीरे वो राजनैतिक ख़बरों के बारे में उन्होंने लिखना शुरू कर दिया और तभी से उनके सामना में जाने की भूमिका बनना शुरू हो गयी थी.

शिवसेना के पूर्व राज्यसभा सांसद और महाराष्ट्र टाइम्स अखबार के पूर्व सांसद भरत कुमार राउत बताते हैं, “जब संजय राउत लोकप्रभा में काम करते थे तब उनकी राज ठाकरे से गहरी मित्रता हो गयी थी. उस समय बीट रिपोर्टिंग का कल्चर इतना नहीं था तो सब तरह की रिपोर्टिंग करते थे. जनवरी 1988 में सामना की स्थापना हो गयी थी और उसके संपादक तब अशोक पड़बिद्री हुआ करते थे. कुछ कारणवश जब बाला साहेब ठाकरे और उनकी नहीं जमीं तो पड़बिद्री सामना से अलग हो गए. उसके बाद राज ठाकरे जो संजय के ख़ास दोस्त थे ने बालसाहेब ठाकरे को संजय का नाम सुझाया और महज 28 साल की उम्र में संजय एक आम रिपोर्टर से सीधे कार्यकारी संपादक बन गए.”

भरत कुमार राउत आगे कहते हैं, “संजय का शिवसेना के प्रति झुकाव बहुत छोटी उम्र से था, जब वह पत्रकारिता में भी नहीं आये थे. वह एक कट्टर शिवसैनिक हैं. सामना में आने के बाद वह बालासाहेब ठाकरे के बहुत ही करीबी बन गए थे. संजय की खासियत यह है कि उन्होंने बहुत कम समय में बाला साहेब ठाकरे की लिखने की शैली को पकड़ लिया, जो कि बहुत अनोखी और कठिन थी. शुरुआत में बाला साहेब उन्हें बोलकर लिखवाते थे, फिर धीरे-धीरे उन्हें सिर्फ महत्वपूर्ण बिंदु बताने लगे, संजय उनको इतना ध्यान से सुनते थे कि कुछ समय में वे खुद सम्पादकीय लिखने लग गए थे. वह ऐसा लिखते थे कि कोई यह फर्क नहीं बता सकता था कि बाला साहेब ने लिखा है या संजय ने.”

राउत कहते हैं, “संजय ने बहुत बार सामना में ऐसे भी लेख लिखे हैं जो बालासाहेब और उद्धव दोनों को पसंद नहीं आये हैं. लेकिन वह ठाकरे परिवार के इतने करीबी और वफादार हैं कि इसके बावजूद भी उन्हें संपादक के पद से कभी नहीं निकाला गया. वह उद्धव ठाकरे के इतने करीब हैं कि शायद ठाकरे परिवार के खुद के लोग नहीं होंगे. मौजूदा दौर में वह वही कर रहे हैं जो किसी भी बड़े संस्थान में होता है, संस्थान का शीर्ष का व्यक्ति कभी नहीं बोलता, वह दूसरे या तीसरे पायदान के व्यक्ति को संस्थान का मत रखने के लिए कहता है.”

जिस राज ठाकरे ने संजय राउत को सामना का दरवाजा दिखाया था आज उन दोनो के सम्बन्ध कटु हो चुके हैं. गौरतलब है कि जब राज ठाकरे शिवसेना छोड़कर जा रहे थे तो राज ठाकरे के समर्थकों ने संजय राउत की गाड़ी तोड़ दी थी.

इंडियन एक्सप्रेस समूह के मराठी अखबार लोकसत्ता के एक वरिष्ठ संपादक नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहते हैं, “राउत लोकप्रभा में बहुत बढ़िया कहानियां (कवर स्टोरीज़) लिखते थे. जब वह सामना में पहुंचे तो वहां बहुत कम समय में उन्होंने सम्पादकीय लिखना शुरू कर दिया. वह बाल ठाकरे की शैली में ही लिखने लगे थे और लोगों को लगता था कि बाला साहेब ही लिख रहे हैं. संजय बाला साहेब के करीबी ज़रूर थे, लेकिन बाला साहेब के ज़माने में संजय की भूमिका सिर्फ संपादक की थी, वह शिवसेना के कार्यक्रमों तक में नज़र नहीं आते थे, ना उन्हें अधिकार था कि वह शिवसेना की तरफ से बोले. लेकिन अब संजय राउत खुद शिवसेना के मुखपत्र बन गए. संजय एक कुशल वक्ता हैं और मीडिया के सामने बहुत अच्छी तरह से बात रखते हैं, उन्हें पता है कब क्या बोलना है. उद्धव ठाकरे भी जानते हैं कि जैसे संजय मीडिया के सामने बात रखते हैं वह खुद नहीं रख सकते और इसी वजह से उन्हें बोलने का इतना अधिकार मिला हुआ है. पिछले 12-13 दिनों में जो संजय बोल रहे हैं वो उद्धव ठाकरे के कहने पर ही बोल रहे हैं.”

वरिष्ठ पत्रकार अरुण खोरे कहते हैं, “संजय राउत अपने ज़माने में बहुत बेहतरीन क्राइम रिपोर्टिंग करते थे, ख़ास तौर से मुंबई अंडरवर्ल्ड के माफिया किरदारों दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली आदि के बारे में उनकी लेखन शैली बहुत बढ़िया थी और बाद में वह राजनैतिक लेख भी लिखने लगे थे. सामना में उनके साप्ताहिक लेख रोक-ठोक और सम्पादकीय काफी उग्र होते हैं.”

गौरतलब है कि जिस तरह से संजय राउत अपनी बयानबाज़ी, सोशल मीडिया की टिप्पणियां और सामना के लेखों के ज़रिये भाजपा पर तीखे हमले कर रहे हैं, उसी अंदाज़ में संघ परिवार के मुखपत्र तरुण भारत ने संजय राउत, शिवसेना और सामना पर उन्हीं के अंदाज़ में तीखा हमला बोला हैं. तरुण भारत ने 4 नवम्बर को उद्धव आणि बेताल (उद्धव और बेताल) शीर्षक से सम्पादकीय लिखा है, जिसमें उद्धव ठाकरे और संजय राउत को बेताल कहा गया है. सम्पादकीय में संजय राउत को बेताल और विदूषक सम्बोधित करते हुए लिखा गया है- “बेताल की काबिलियत और कथनी में कोई तालमेल नहीं है. जिन बाला साहेब ठाकरे ने कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस का राज ख़त्म करने के लिए इतना संघर्ष किया, उसी संघर्ष को ख़त्म करने के लिए बेताल आमदा हो रहा है.”

तरुण भारत के मुख्य संपादक गजानन निमदेव कहते हैं, “महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना और अन्य मित्र दल जिसे महायुति कहा जाता है, ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इस महायुति की पहली चुनावी प्रचार सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देवेंद्र फडणवीस ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन उस वक़्त उद्धवजी ने इस बात का विरोध नहीं किया था, लेकिन नतीजे आने पर जब भाजपा के पिछले चुनाव के मुकाबले कम सीटें आई तो शिवसेना ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. अभी भी शिवसेना की तरफ से संजय राउत के अलावा कोई नहीं बोल रहा है और शिवसेना उनकी बात नकार भी नहीं रही है. संजय  राउत जो बयान दे रहें हैं वो महायुति में तनाव पैदा करने वाले हैं.”

नीमदेव आगे कहते हैं, “महाराष्ट्र में ज़रुरत से ज़्यादा बारिश होने की वजह से किसान और खेती दोनों संकट में है. ऐसी सूरत में महाराष्ट्र को एक स्थिर सरकार की ज़रुरत है जिससे किसानों की मदद की जा सके. लेकिन शिवसेना अपनी गैर जायज़ मांगों को लेकर अड़ी है. परिणाम आने के बाद 12-13 दिन हो गए हैं लेकिन महाराष्ट्र में सरकार नहीं बन पाई है. संजय राउत अपनी बेतुकी बयानबाज़ी से बाज़ नहीं आ रहे हैं.

तरुण भारत के संपादकीय के बाद संजय राउत ने सोमवार को कहा की उन्हें पता नहीं है कि तरुण भारत नाम का कोई अखबार है. इसके बाद तरुण भारत ने मंगलवार को राउत के ऊपर एक और सम्पादकीय लिखा जिसका शीर्षक था ‘अदूरदृष्टि संजय’. इसमें लिखा गया कि पूरे महाराष्ट्र में पढ़ा जाने वाला 93 साल पुराना अखबार राउत को नहीं पता है. हालांकि तरुण भारत के दूसरे सम्पादकीय के बाद हुई एक पत्रकार वार्ता में उन्होंने यह भी बोला की वह भी सामना में दूसरो की आलोचना करते हैं, उसी लिहाज़ सब को यह हक़ है कि वह उनकी आलोचना करे. लोकतंत्र में यह जायज़ है.

इस पूरे मामले पर जब न्यूज़लॉन्ड्री ने संजय राउत से पूछा कि क्या उनकी कांग्रेस-रांकपा से मिलकर सरकार बनाने की कोई बातचीत हुई है, तो वह कहते हैं, “देखिए बात हुई है और पवार साहब ने भी यह माना है कि हमारी उनसे बातचीत हुई है, लेकिन यह दूसरा विकल्प है. भाजपा सबसे बड़ा पक्ष होने के बावजूद भी महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना सकती है तो कुछ ना कुछ तो सोचना पड़ेगा.”

जब भाजपा से चल रही खींचतान और बयानों के चलते राष्ट्रपति शासन जैसी स्तिथि के निर्माण होने की बात हुई तो उन्होंने कहा, “कोई खींचतान नहीं चल रही है. चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री पद और बराबरी के मंत्रिमंडल की बात तय हो गयी थी, रही बात राष्ट्रपति शासन की वह तो बिलकुल बेमानी बात लगती है.”

जब राउत से पूछा गया कि क्या शिवसेना और भाजपा के गठबंधन की अभी भी कोई संभावनाएं हैं, तो वह कहते हैं, “आज भाजपा के नेताओं की बैठक थी और उनका बयान आया है कि भाजपा, शिवसेना के साथ सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है जिसमें मुख्यमंत्री पद के ढाई साल का मुद्दा भी शामिल है. इस बयान के बाद देखेंगे की आगे क्या बात होती है.”

राउत जिसे खींचतान नहीं मानते, दूसरे लोग उसे इस रूप में देखते हैं कि शिवसेना अपनी हैसियत से ज्यादा डोरी को खींच रही है. क्या वह इसे टूटने की हद तक खींचेगी, शिवसेना का अगला क़दम इस पर निर्भर करेगा कि उसे शरद पवार और कांग्रेस की तरफ से क्या सिग्नल मिलता है.