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टीवी चैनलों के स्थायी नागरिक बन चुके साधु कौन हैं?
भारतीय टीवी समाचार की गिरावट का ग्राफ काफी लंबा है लेकिन हाल के दिनों में यह पागलपन में तब्दील हुआ है. इंडिया टुडे के पत्रकार अंकित त्यागी को भी अपने अप्रिय अनुभवों की वजह से यह हाल में ही समझ आया.
16 अक्टूबर को शाम को 4 बजे का समय था. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई ख़त्म ही हुई थी. शाम को 6 बजे, इंडिया टुडे पर अयोध्या से “अयोध्या शोडाउन: टेम्पल टाउन रिएक्टस आफ्टर केस हियरिंग एंड्स” नाम से एक शो लाइव शो प्रसारित किया. त्यागी उस शो के एंकर थे.
राम जन्मभूमि न्यास, जिसको विवादित स्थल पर एक भव्य मंदिर के निर्माण के लिए बनाया गया था, के विशाल परिसर के अंदर शूट किये गए शो में ‘मुस्लिम-कांग्रेस’ को ‘हिन्दू आस्था’ के कथित संरक्षकों के सामने खड़ा किया गया था.
मुस्लिम-कांग्रेस के गठबंधन का प्रतिनिधित्व करने के लिए इंडिया टुडे ने मुस्लिम पॉलिटिकल कॉउन्सिल के प्रमुख तस्लीम अहमद रहमानी, “मुस्लिम विद्वान” शोएब जामेई, और “राजनीतिक विश्लेषक और कांग्रेस समर्थक” दीपक कुमार झा को आमंत्रित किया गया था. हिन्दुओं के लिए खुलकर बोलने के लिए, राजुदास – जिनका परिचय गलती से हनुमानगढ़ी मंदिर के पुजारी “रविदास” के नाम से कराया गया, साधु करपात्री महाराज और मौनी बाबा एवं सियाराम मंदिर के पुजारी करुणानिधान शरणजी मौजूद थे.
अयोध्या में राम जन्मभूमि न्यास, जहां टीवी शो आयोजित किये जाते हैं
20 मिनट से भी अधिक के बेहद उग्र समय तक इस शो में त्यागी अयोध्या के अशांत दर्शकों को, आक्रामक साधुओं को और गुस्से से भरे पैनलिस्टों को शांत कराने में लगे रहे. जूनून इतना ज्यादा हो गया था कि शो ख़त्म होते होते सभी पैनेलिस्ट शायद ही अपनी आवाज़ सुन पा रहे हों.
साधु–सन्यासी कुछ समय से टीवी चैनलों द्वारा आयोजित इस तरह के आडंबर में प्रमुख भूमिका निभाते आ रहे हैं. अयोध्या विवाद पर होने वाली चर्चाओं में, चाहे वो ज़ी न्यूज़ हो, एबीपी न्यूज़ हो, रिपब्लिक भारत, न्यूज़ नेशन या आज तक हो, उन्हें लगातार आमंत्रित किया जा रहा है.
मिलिए ऐसे तीन साधुओं से जिन्होंने अपनी पहचान किसी “आध्यात्मिक चैनल” पर उपदेश देते हुए नहीं बल्कि हमारे अपने संस्कारी समाचार चैनलों पर बहस करते हुए बनाई है.
राजूदास
“मैं जब चार साल का था, तब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी. मुझे याद है कि मैं यहां आया करता था और उन लोगों में से था जो कारसेवकों के लिए जरूरी व्यवस्था करवाया करता था. मस्जिद के गिरने के बाद यहां पर मलबे में सिर्फ पाइप और पत्थर ही थे फिर भी हम सभी ने वहां से कुछ न कुछ ले लिया ताकि हमारे पास उस ऐतिहासिक दिन की कोई याद हो.”
ये हैं 31 वर्षीय राजूदास, जिन्हें आपने टीवी पर देखा होगा. एक ऐसे उत्साही भगवाधारी नेता जो राम जन्मभूमि–बाबरी मस्जिद मामले में होनेवाली हर चर्चा पर लगभग हर न्यूज़ चैनल पर मौजूद रहते हैं.
छह फ़ीट से कुछ कम और चौड़ी छाती वाले राजूदास, अयोध्या के पड़ोस में हनुमानगढ़ी मंदिर, जो कि इस शहर की अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करता है और काफी शक्तिशाली धार्मिक संस्थान है, में रहते हैं. इनका कमरा हनुमान जी की मध्ययुगीन मूर्ती, जिसको हर रोज सैंकड़ों भक्त पूजते हैं, से मुश्किल से 10 गज दूर है. राजूदास के पास दो बिल्लियां है जिनकी देखभाल वो बड़ी लगन के साथ करते हैं.
अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर में रहने वाले राजूदास
अठारहवीं शताब्दी से हनुमानगढ़ी मंदिर को वैष्णव साधु चलाते आ रहे है जो खुद को रामानंदी समुदाय से बताते हैं. रामानंदी समुदाय बेहद प्रभावशाली मठ व्यवस्था है जो श्री राम को अपने इष्ट देव के रूप में पूजते हैं. मंदिर में चार महंत हैं, जिनमें से प्रत्येक के पास एक प्रशासनिक इकाई या पाटी है – हरद्वारी, बसंतिया, उज्जैनिया, सागरिया. हर एक महंत के अधीन 56 साधु हैं.
राजूदास, टीवी चैनलों पर जिनका परिचय अक्सर हनुमानगढ़ी के “महंत” के रूप में करवाया जाता है, वास्तव में उन 56 साधुओं में से एक हैं जो उज्जैनिया पाटी के महंत संतराम दास के अधीन आते है. हालांकि “महंत” शब्द का इस्तेमाल अक्सर हनुमानगढ़ी के साधुओं के रूप में किया जाता है.
राजूदास के कमरे की दीवारें भी भगवा रंग से रंगी हुई हैं. एक कोने में बिस्तर लगा हुआ है जिसके ऊपर उनका अपना चित्र टंगा हुआ है. बिस्तर के बगल में ही एक लंबा सा सोफे रखा हुआ जिस पर पांव में पॉलिथीन लपेटे हुए राजूदास बैठे हुए हैं. वो बताते हैं, “कल मैं गोंडा में अपनी एक प्रॉपर्टी को देखने गया हुआ था वहां पर चोट लग है. यह मेरे पैर को संक्रमण से बचाने के लिए लपेटा है.”
जैसा कि पत्रकार धीरेन्द्र झा ने अपनी पुस्तक एसेटिक गेम्स में लिखा है, हनुमानगढ़ी के साधुओं का धार्मिक मामलों से ज्यादा धर्मनिरपेक्ष मामलों में ज्यादा हस्तक्षेप है. इसका अध्यात्म से कोई लेना देना नहीं है, सिर्फ व्यावसायिक हित, सत्ता का संघर्ष, राजनीतिक निष्ठा और खूनी प्रतिद्वंदिता का मामला है. राजूदास का बायोडाटा एक पुजारी से ज्यादा एक पार्टी कार्यकर्ता की तरह लगता है.
टाइम्स नाउ, इंडिया टुडे, ज़ी न्यूज़ और एबीपी न्यूज़ पर राजूदास.
राजूदास अपने कॉलेज के दिनों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सदस्य थे. वे अयोध्या के साकेत महाविद्यालय से प्रमाणित पहलवान भी हैं. अपनी एक बिल्ली को सहलाते हुए राजूदास बताते हैं, “मुझे कॉलेज के तुरंत बाद रामानंदी संप्रदाय में ले लिया गया. मैं 2004 में विश्व हिन्दू परिषद् के अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया से भी मिला था. उन्होंने मुझे अयोध्या में बजरंग दल का आयोजक बना दिया और इस तरह मैं राम मंदिर मामले से पूरी तरह जुड़ गया.”
बजरंग दल के पदाधिकारी के रूप में राजूदास का काम गलियों में “पश्चिमीकरण” से लड़ने का था. वे याद करते हैं, “एक बार हम गिरोह बनाकर 14 फरवरी को शहर में वैलेंटाइन डे के समारोहों को रोकने के लिए निकले थे. मुझे गिरफ्तार कर लिया गया था और मैंने तीन दिन जेल में काटे. लेकिन इसी तरीके से मैं संगठन में आगे बढ़ा. अब मैं विहिप का सदस्य हूं. मैंने राज्य के चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में भारतीय जनता पार्टी के लिए भी काम किया था.”
यहां तक कि राजूदास ने 2017 के उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में भाजपा से अयोध्या से टिकट की भी मांग की थी. जब उनको टिकट नहीं मिली, तो उन्होंने इसके लिए शिवसेना चले गए, जिसके एक दिन बाद ही वो भाजपा में वापस आ गए. राजूदास बताते हैं, “योगीजी ने मुझे भोजन के लिए गोरखपुर आमंत्रित किया जहां पर उन्होंने मुझे सांत्वना दी.”
2018 में राजूदास ने अयोध्या में मेयर पद के लिए चुनाव लड़ा जिसमें वो हार गए. उनके इस चुनावी अभियान के लिए विशेष गाने की रचना की गई थी. “मेयर बनेंगे राजूदास, होगा अयोध्या का विकास; हो जाओ तैयार साथियों, फिर हिंदुत्व को जगाना है“. यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो हैं जहां राजूदास हिन्दुओं से धनतेरस के मौके पर हथियार खरीदने की अपील कर रहे हैं और समाजवादी पार्टी के समर्थकों को पोलिंग बूथ पर मारते हुए दिख जा रहे हैं.
इसको देखते हुए, टीवी समाचार चैनलों को राजूदास का परिचय एक संघ परिवार के कार्यकर्ता की तरह देना चाहिए न कि हनुमानगढ़ी के “महंत” के रूप में.
अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर का प्रांगण
साधु और एक राजनीतिक कार्यकर्ता का दोहरा जीवन जीना अपने आप में कई सारी समस्याओं को साथ लेकर आता है. महंत संतराम दास, राजूदास के गुरु, अपने शिष्य के राजनीतिक जीवन के ज्यादा खुश नहीं हैं. राजूदास कहते हैं, “गुरूजी मुझे इसके लिए डांटते हैं. वह अक्सर मुझे यहां से निकल जाने के लिए बोलते हैं. कहते हैं कि दिमाग ख़राब है जो साधु होकर ये सब करते हो.”
केवल अपने गुरु की अस्वीकृति ही राजूदास के दोहरे जीवन को कठिन नहीं बना रही है. हाल के कुछ वर्षों में, हनुमानगढ़ी के साधुओं ने विहिप से दूरियां बना ली हैं. वे राम जन्मभूमि–बाबरी मस्जिद विवाद की धीमी गति के लिए संघ से जुड़े लोगों को दोषी मानते हैं, यहां तक कि वो संघ को इस बात का दोषी भी मानते हैं कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस विवाद की स्थिति के बारे में हनुमानगढ़ी मठ को अंधेरे में रखा. इसके अलावा, मठ ये भी मानता है कि उसका इस मामले में ऐतिहासिक दावा है और जन्मभूमि पर संघ का दावा अनुचित है.
राजूदास कहते हैं, “बहुत सारे साधु विहिप को पसंद नहीं करते हैं, लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हूं और उनके विचारों से खुश नहीं हूं. आप देखते होंगे कि ईसाई मिशनरी किस तरह से काम करते हैं. वे लोग आदिवासी समुदाय के लिए काम करते हैं और बाद में उनका धर्म परिवर्तन करवा यह उनका एक सक्रीय मिशन है. लेकिन हमारे महंत, एक गौशाला, एक ठाकुरजी की घंटी और दो चेलों के साथ पूरा जीवन मंदिरों में बिता देते हैं और हिन्दुओं की रक्षा के लिए एक भी कदम नहीं उठाते हैं. यदि आप ऐसा नहीं करते नहीं हैं तो आप खुद को हिन्दू धर्म का संरक्षक मत कहिये. कम से कम विहिप आदिवासियों तक पहुंचती तो है.”
वो अपनी एक बिल्ली को उठाते हैं और उसके पंजे को देखने लगते हैं.
राजूदास अपने धर्म में बहुत विश्वास रखते हैं, कम से कम उनकी आंखें और उनका कसमें खाना इस बात को स्पष्ट करता है. वे कहते हैं, “दलितों ने आज अंबेडकर को पूजना शुरू कर क्योंकि गलत लोग उनके बीच में घुस गए हैं और उनका ब्रेनवाश कर रहे हैं. अंबेडकर महापुरुष हो सकते हैं लेकिन भगवान नहीं. तो उनकी पूजा क्यों करनी? साधुओं ने सनातन धर्म का ध्यान नहीं रखा और इस वजह से हिन्दू धर्म विभाजित हो रहा है.”
इन साधु के अनुसार, राम महापुरुष और भगवान दोनों हैं. राजूदास आगे बताते हैं, “वे एक महान व्यक्ति थे और बाबर एक गुंडा और लुटेरा था. यह एक सच है. मुस्लिमों ने हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को नष्ट करके हमारे समाज को दूषित करने का प्रयास किया है. अंग्रेजों ने भी ऐसा ही किया था. इसीलिए हम राम मंदिर चाहते हैं.”
वे रुक कर बोलते हैं. कोने में शांत बैठे अपने एक शिष्य को आदेश देते हैं, “लगता है बिल्ली का पंजा सूज गया है. जाओ बेटाडीन ले आओ.”
इन विचारों के बावजूद, राजूदास राम जन्मभूमि–बाबरी मस्जिद विवाद को “हिन्दू–मुस्लिम मुद्दा” नहीं मानते हैं. अपना तर्क रखते हुए वो कहते हैं, “यह राम जन्मस्थान का मुद्दा है, हिन्दू या मुस्लिम का नहीं. हिन्दू और मुसलमान के बीच कोई अंतर नहीं है. हम सिर्फ अयोध्या के उस फैसले के खिलाफ लड़ रहे हैं जिसमें जमीन का कुछ हिस्सा मुसलमानों को दे दिया गया था. हम जानते हैं कि बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर था तो जन्मभूमि का एक हिस्सा मुसलमानों को क्यों दिया गया?”
अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिन्दुओं के पक्ष में आएगा तो क्या अयोध्या में जश्न मनाया जायेगा? इसके जवाब में राजूदास कहते हैं, “हम किसी भी तरह के जश्न की तयारी नहीं कर रहे हैं. हम किसी को भी धमकाना नहीं चाहते हैं. मुस्लिम ज्यादा संख्या होने पर हिन्दुओं को डरा सकते हैं लेकिन हम हिन्दू ऐसा नहीं करते.”
इसके बाद वो अपनी बिल्ली के सूजे हुए पंजे पर बेटाडीन लगाने लगते हैं.
करपात्री महाराज
अयोध्या के करपात्री महाराज कहते हैं, “आज तक के रोहित सरदाना कहते हैं कि योगी जी से डर नहीं लगता, मोदी जी से डर नहीं लगता, लेकिन महाराज जी आपसे जरूर लगता है.” अगर आप टीवी न्यूज़, जिनमें साधुओं को बुलाया जाता है, देखते होंगे तो आपने इन्हें इंडिया टुडे, आज तक, ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक भारत पर देखा होगा.
राजूदास की तरह, करपात्री हनुमानगढ़ी मंदिर के परिसर में नहीं रहते हैं. उनके पास अयोध्या की प्रसिद्ध राम की पौड़ी के पास एक कोने में एक अंधेरा कमरा है.जब हमारे रिपोर्टर उनको मिले तो वो रिपब्लिक भारत के एक शो से वापस लौटे थे.
अयोध्या में अपने घर पर करपात्री महाराज
करपात्री महाराज को टीवी पर जोर से तीखी और भद्दी भाषा में दूसरे पैनलिस्टों पर चिल्लाने की आदत है. लेकिन उसके बाद, उन्होंने हमारे रिपोर्टर को उतनी तकलीफ नहीं दी जितनी उन्होंने इंडिया टुडे के अंकित त्यागी को दी. उन पर चीखते हुए वो कहते हैं, “बाबर लुटेरा है, बाबर आतंकवादी है, और उसका समर्थन करने वाले आतंकवादी हो सकते हैं.”
करपात्री करीब 25 साल पहले पड़ोस के बस्ती जिले से अयोध्या आये थे. वो राम जन्मभूमि आंदोलन का हिस्सा थे और जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी तब वो वहीं थे. वो कहते हैं, “मैं सन्यासी इसलिए बना क्योंकि मुझे इस दुनिया से कोई उम्मीद नहीं बची थी. सन्यास का यही मतलब होता है कि जिसको संसार से कोई आशा न हो.”
करपात्री के हनुमानगढ़ी से दूर रहने के पीछे एक कारण है. वह कहते हैं कि वो राजनीति का विरोध करते हैं. अपने कमरे को देखते हुए वो कहते हैं, “यहां लगभग 80 प्रतिशत सन्यासी राजनीतिक हैं. मेरे शिष्य मुझसे कहते हैं कि मुझे राजनीति में आ जाना चाहिए. लेकिन मैं ऐसा क्यों करूं? अगर मैं सांसद बन जाता हूं तो क्या मुझे बहुत सारे नेताओं की तरह योगी जी या मोदी जी के पैर छूने पड़ेंगे? क्या कोई महाराज ऐसा करने का सोच भी सकता है? मैं तपस्या में विश्वास करता हूं और यही मेरा जीवन है.”
करपात्री का कमरा लगभग 15 फ़ीट लंबा और 6 फ़ीट चौड़ा है. कमरे में दो दीवान हैं जिनकी उंचाई अलग–अलग है, राम की एक मूर्ति है, चारों तरफ से बर्तनों से घिरा हुआ एक छोटा सा फ्रिज और रसोईघर में घूमता हुआ चूहा है.
करपात्री सिद्धांत और व्यवहार से एक “राष्ट्रवादी संत” हैं. वो बताते हैं, “मैं भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाक उल्ला खां जैसे देशभक्तों के नाम पर यज्ञ और कथा का आयोजन करता हूं. अभी हाल ही में एक यज्ञ गोरखपुर में किया था.” वो दावा करते हैं कि वो हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और संस्कृत में कथा कह सकते हैं. वो आगे बताते हैं, “मेरा सपना है कि मैं एक मंदिर शहीदों के लिए बनवाऊं. मेरे पिताजी आज़ाद हिन्द फ़ौज में एक सेनानी थे. मैं एक असली देशभक्त का बेटा हूं.”
उनके शब्दकोष में “हिन्दू” शब्द की एक परिभाषा अलग है. इसको समझाते हुए वो बताते हैं, “जो भी हीन की भावना से दूर है, वो हिन्दू है. हीन और दूर – हिन्दू. इस हिसाब से मुस्लिम और ईसाई भी हिन्दू हो सकते हैं.” इसके बाद राम की परिभाषा की, जिसको वो समझाते हुए बताते हैं, “राम की परिभाषा है: राष्ट्र का मंगल.”
जब उनसे पुछा गया कि वो टीवी पर इतने आक्रामक क्यों हैं? इस पर वो कहते हैं कि वो हिन्दू समाज के “पतन” के कारण आक्रामक हो जाते हैं. वो कहते हैं, “मैं देखता हूं कि बहुत सारे ब्राम्हण अजीबो गरीब व्यवसायों में लगे हुए हैं. वे कपडे बेचते हैं या समोसे पकाते हैं और इससे संतुष्ट भी रहते हैं. ऐसा करने के बजाय उन्हें खुदखुशी कर लेनी चाहिए. जब मैं ऐसे ब्राम्हणों से मिलता हूं तो उनको बोलता हूं कि मैं तुम्हे तीन महीने के लिए अपने संरक्षण में रखूंगा और तुम्हें राष्ट्रवादी कथावाचन का पाठ पढ़ाऊंगा. फिर वो दुनिया भर में जा कर इस सन्देश का प्रचार प्रसार कर सकते हैं. यह बाकि कामों के मुकाबले ज्यादा सम्मानजनक है.”
सिर्फ ब्राम्हण? इस पर वो कहते हैं, “सिर्फ उन्हें ही नहीं, किसी को भी. हरिजनों का भी.”
इंडिया टुडे और आज तक पर करपात्री महाराज
अयोध्या में राम मंदिर के सवाल पर करपात्री कहते हैं कि संभवतः सुप्रीम कोर्ट भी वही निर्णय देगी जो 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया था. हालांकि वो यह भी कहते हाँ, “राम के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए और अयोध्या के बीचों बीच कोई मस्जिद नहीं होनी चाहिए. मस्जिद शहर के बाहर हो सकती है लेकिन वहां नहीं. इसके अलावा बाबर के नाम पर तो मस्जिद होनी ही नहीं चाहिए.”
करपात्री मानते हैं कि अयोध्या में हिन्दू और मुसलमानों के बीच कोई भेदभाव नहीं है. वो कहते हैं, “मुसलमानों से कोई समस्या है ही नहीं. अयोध्या में राम की मूर्तियों के लिए कपडे तैयार करने वाला मुस्लिम है. हमें समस्या उन लोगों से है जो मुस्लिमों के नाम पर राजनीति करते हैं और जो तालिबानी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं जैसे कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए लोग. जब साधु जय श्री राम बोलते हैं तो ये पार्टियां जाहिल श्री राम कहती हैं.”
इसका मतलब यह नहीं है कि करपात्री भाजपा को पूरी तरह से स्वीकार करते हैं. वे कहते हैं, “आप भाजपा के किसी ऐसे नेता का नाम बता दीजिये जो स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा रहा हो. ज्यादातर कांग्रेस के नेता थे, ऐसी पार्टी जिसने राजीव गांधी के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद का ताला खोला था और नरसिम्हा राव की सरकार में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी.”
आप ऐसे विचार टीवी पर क्यों नहीं रखते हैं? इसका जवाब वो देते हैं, “ये विषय कभी आया ही नहीं.”
वे आगे कहते हैं, “मैं किसी समाचार चैनल पर जाने के पैसे नहीं लेता.”
फिर आपका खर्चा कैसे चलता है? “भगवान की कृपा से सब हो जाता है.”
करुणानिधान शरणजी
सरयू नदी के किनारे बने सियाराम क़िला के मुख्य पुजारी करुणानिधना शरणजी कहते हैं, “मेरा एक शिष्य आज तक में काम करता है. तो एक दिन शो से कुछ घंटे पहले उसका मुझे फ़ोन आया और उसने मुझसे कहा कि गुरूजी क्यों न आप भी इसमें शामिल हो जाएं. इसलिए मैं चला गया.”
इंडिया टुडे के त्यागी वाला शो न्यूज़ टीवी पर शरणजी का पहला टीवी शो था और उन्होंने “गंगा–जमुनी तहज़ीब“, जो कि भारत की समन्वित संस्कृति है, के बारे में बात की और उन्होंने कहा कि अयोध्या में हिन्दू मुस्लिमों का सम्मान करते हैं इसलिए मुस्लिमों को भी हिन्दुओं का सम्मान करना चाहिए और तथाकथित राम जन्मभूमि उन्हें दे देनी चाहिए.
इंडिया टुडे पर करुणानिधान शरणजी
सियाराम किले के अंदर अपने कमरे में शरणजी सफ़ेद पोशाक पहने एक बड़े से कुशन पर बैठे हैं. दीवारों पर हिन्दू देवताओं के बड़े बड़े चित्र लगे हुए हैं. इन देवताओं की तस्वीरों के सामने, शरणजी भारत में “संतों” की स्थिति के बारे में बताते हुए कहते हैं, “संत समाज के मार्गदर्शक होते हैं. वो सिर्फ भजन करने के लिए नहीं होते हैं. चाणक्य भी एक संत थे और वो एक किंगमेकर थे. संतों का भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. यहां तक कि अयोध्या में भी सन 1992 में संतों ने ही अन्य मस्जिदों को गिरने से बचाया.”
शरणजी 1986 में अयोध्या आये थे. राजूदास की तरह, वो भी सिंघल से मिले और 1990 में भाजपा के लाल कृष्ण अडवाणी के नेतृत्व वाले राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल हो गए. वो बताते हैं, “मैं नहीं मानता कि अयोध्या में मस्जद गिराई गई. 1528 में बाबर ने मंदिर ढहाया था. 1992 में मुस्लिमों द्वारा स्थापित किया गया ये धब्बा हटाया गया था.”
उनके विचार से भारत को एक हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता है जहां हर कोई समान हो, धर्मनिरपेक्षता का दिखावा करता हुआ एक लोकतान्त्रिक राज्य. शरणजी कहते हैं, “आज भारत में राजनीति का मतलब सिर्फ धार्मिक और जातिगत तुष्टिकरण से रह गया है. बहुत सारे लोग कहते हैं कि वे जाति में विश्वास नहीं करते हैं, लेकिन वो इसी को मानते हैं. आप अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम का ही उदहारण ले लीजिये. किसी भी न्यायिक व्यवस्था में कोई बिना किसी मुक़दमे के कैसे गिरफ्तार किया जा सकता है?”
हालाँकि शरणजी मानते हैं कि जातिगत भेदभाव दूर करने की जरूरत है लेकिन वे ये भी कहते हैं कि जाति व्यवस्था ही भारतीय समाज की नींव है. इसको समझाते हुए वो कहते हैं, “जाति को एक प्रथा के रूप में ख़त्म कर देना चाहिए. जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. लेकिन जाति हमारे समाज की पहचान है.”
अयोध्या का सियाराम क़िला जहां पर करुणानिधान शरणजी मुख्य पुजारी हैं
ऐसे विचार अयोध्या में स्वीकार किये जा सकते हैं लेकिन क्या महानगरों में ऐसे लोग नहीं हैं जो जाति और धर्म को प्राचीन मानते हैं? शरणजी कहते हैं, “ये सब बकवास है. दुनिया के सभी देश धर्म को अपना मूल चालक मानते हैं. मिडिल ईस्ट में इस्लाम और अमेरिका जैसे देशों में ईसाई धर्म है.”
लेकिन क्या अमेरिका का संविधान धर्म को राजनीति से अलग नहीं करता? इस पर वो कहते हैं, “नहीं, पोप अभी भी अमेरिका को आदेश देते हैं.”
शरणजी आगे कहते हैं, “शहरों के बच्चे बड़े होने पर पश्चिमी संस्कृत से रूबरू होते हैं. उनकी परवरिश धर्मनिरपेक्ष होती है इसलिए स्वाभाविक है कि वो जाति और धार्मिक पहचान को स्वीकार नहीं करते हैं. धर्मनिरपेक्षता एक बेकार की चीज़ है. यह मीडिया ही है जो धर्मनिरपेक्षता को लिए लिए शहर शहर घूमता है. यह संतों का देश है. यह लंबे समय तक सम्प्रदायों और जातियों के कारण विभाजित था, और मुसलमानों और अंग्रेजों द्वारा शोषित था.”
करीब 15 मिनट के गुस्से और घृणा से भरे हुए विषयों पर बात करने के बाद शरणजी गांधी और अंबेडकर पर प्रवचन देना शुरू करते हैं. आखिर में उनको लगता है कि उनके विचार लिखने लायक नहीं है तो वो कहते हैं, “जो भी मैंने गांधी और अंबेडकर के बारे में कहा है उसको हटा दीजियेगा. इसको प्रकाशित मत कीजियेगा.”
फिर एक कुटिल मुस्कान के साथ कहते हैं, “अगर आप छाप भी दो तो मैं सीधे मना कर दूंगा कि मैंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं है. मीडिया में तो ऐसा कर सकते हैं न? मैं सीख रहा हूं.”
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