Newslaundry Hindi
सीएए/एनआरसी : बीजेपी असम में कुछ, दिल्ली में कुछ और बोल रही है
नागरिकता क़ानून और नागरिकता रजिस्टर के विरोध पर मुसलमानों के विरोध का लेबल लगाने वाले अपने ही देश की विविधता को नहीं जानना चाहते. एक तरह से ज़िद किए हुए हैं कि हम जानेंगे ही नहीं. अब इस ख़बर को देखिए. इंडियन एक्सप्रेस के अभिषेक साहा ने लिखा है कि बीजेपी के विधायकों ने मुख्यमंत्री सोनेवाल से कहा है कि आप जनता से बात करें. उन्हें साफ़ साफ़ आश्वासन दें. सारे विधायक उनके साथ है. अब इसी ख़बर में बीजेपी के एक विधायक का बयान है जिसे प्रधानमंत्री मोदी या गृहमंत्री अमित शाह कभी समझाना नहीं चाहेंगे. क्योंकि दोनों को लगता है कि इस क़ानून के विरोध के पीछे सिर्फ़ नासमझी और भ्रांति है.
भाजपा विधायक पद्मा हज़ारिका ने कहा है कि अगर लोग कहेंगे तो मैं इस्तीफ़ा दे दूंगा. 6 दिसंबर को मैंने खुद 500 बांग्लादेशी को अपने दम पर निकाला और दौड़ा कर भगाया है. क्या मैंने ऐसा कर अपने समुदाय के विरोध में कोई काम किया है ?
असम के लोग घुसपैठियों को धर्म के आधार पर नहीं बांटते हैं. उनके लिए घुसपैठिया चाहे हिन्दू हो या मुसलमान दोनों बराबर हैं और दोनों को जाना चाहिए. वहां पर नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध हो रहा है क्योंकि हिन्दू बांग्लादेशी अब भारतीय हो जाएंगे. इस संदर्भ में पद्मा हज़ारिका का बयान बता रहा है कि उन्होंने किस घुसपैठिए को दौड़ा कर भगाया होगा. उन्होंने नहीं कहा और न कह सकते हैं कि वे हिन्दू घुसपैठियों के बसाने के समर्थक हैं.
तो एक तरफ भाजपा के बड़े नेता हिन्दू बांग्लादेशी के बसाने के चैंपियन बने फिर रहे हैं दूसरी तरफ़ उनकी ही पार्टी का विधायक घुसपैठियों को भगा रहा है जिनमें हिन्दू भी हो सकते हैं और मुसलमान भी.
एक बार भी बीजेपी के नेता ने अपने असम के विधायकों को चेतावनी नहीं दी कि संसद का फ़ैसला है सबको मानना होगा. क्या प्रधानमंत्री मोदी अपने विधायकों को चैलेंज दे सकते हैं ? क्या वे यह कह सकते हैं कि असम के बीजेपी विधायकों ने क़ानून को नहीं पढ़ा है और न समझा है?
पद्मा हज़ारिका ने जिन 500 घुसपैठियों को दौड़ा कर भगाया है वो कहां गए, कहां रह रहे हैं और पहले कैसे रह रहे थे, हम सिर्फ़ इसकी कल्पना कर सकते हैं. ऐसी ख़बरें टीवी पर आती या अख़बार में ही विस्तार से छपतीं तो आप बेहतर तरीक़े से समझ पाते. इसका मतलब है आप अंधेरे में रखे जा रहे हैं.
अब आप क्या कहेंगे? क्या किसी हिन्दी अख़बार या चैनल या व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी ने आपको ये बताया? आप समर्थन कीजिए लेकिन सारी चीजों को नहीं जानने की ज़िद तो छोड़िए. आपको कैसे सांप्रदायिक जाल में हमेशा के लिए फंसाया जा रहा है, ये समझना आपका ही फ़र्ज़ है.
मेघालय विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजा है कि जिसके अनुसार जो भारतीय मेघालय का नही है वो बाहरी है. आउटसाइडर. इस प्रस्ताव का किसी ने विरोध नहीं किया है.
क्या यही एक देश एक क़ानून है? हिन्दी प्रदेशों को धोखे में रखा जा रहा है. जब मन किया एक देश एक क़ानून के नाम पर कश्मीर को अंधेरे में धकेल दिया लेकिन वही सरकार जब नागरिकता संशोधन क़ानून पास करती है तो एक देश के लिए एक क़ानून नहीं बनाती हैं. पूर्वोत्तर के ही कई राज्यों को इस क़ानून से बाहर रखा गया है. मेघालय ने खुद से ही बाहर कर लिया. वैसे भी वहां के जनजातीय क्षेत्रों में केंद्र का क़ानून लागू नहीं होने वाला था.
अब आप इंडियन एक्सप्रेस की एक और ख़बर को देखिए. जम्मू कश्मीर और लद्दाख में इस बात को लेकर आशंका है कि कहीं बाहरी उनके रोज़गार पर क़ब्ज़ा न कर लें. इसलिए सरकार अब एक नए रेसीडेंसी क़ानून पर विचार कर रही है. इसके अनुसार 15 साल रहने के बाद ही इन दो क्षेत्रों का निवास प्रमाण पत्र मिलेगा और तभी कोई सरकारी नौकरी या यहां के शिक्षण संस्थानों के योग्य हो सकेगा.
वहां पर ज़मीन ख़रीदने के लिए भी यही शर्त होगी. पहले आप 15 साल रहिए, फिर निवास प्रमाण पत्र लीजिए और तब ज़मीन ख़रीदिए. यह ख़बर सूत्रों के हवाले से लिखा गई है. सारे देश में यह बात फैलाई गई कि कोई भी जम्मू कश्मीर जाकर लोग ज़मीन ख़रीद सकेंगे. ऐसा फैलाने वालों को पता था कि लोगों को उल्लू बना रहे हैं और लोग उल्लू बन रहे हैं. हम यह पोस्ट लिख कर या एक्सप्रेस यह ख़बर छाप कर उन लोगों तक पहुंच ही नहीं सकेंगे कि जो उल्लू बनने के बाद रातों को जाग रहे हैं कि श्रीनगर में प्लॉट ख़रीदेंगे. वैसे अनुच्छेद 370 हटाने के पहले भी श्रीनगर की ज़मीन बेहद मंहगी थी.
एक्सप्रेस की ख़बर में एक और बात है. इंडस्ट्री को ज़मीन ख़रीदने के लिए 15 साल का वासी होने की शर्त से नहीं रोका जाएगा. मुसलमानों और कश्मीर को लेकर नफ़रत की सारी हदें पार कर चुके सांप्रदायिक लोग ज़ोर ज़ोर से हंस सकते हैं कि वे बेवकूफ बनाए जाने के बाद भी बेवकूफ बनाए जा रहे हैं. ईश्वर हर किसी को ऐसी योग्यता नहीं देता है.
तो आपने देखा कि एक देश एक क़ानून का आइडिया कितना बोगस है. यह आइडिया सिर्फ़ इस बुनियाद पर सफल है कि आप अपने दिमाग़ का इस्तमाल नहीं करेंगे और आप बेवकूफ बनाने वाले को कभी निराश नहीं करते हैं. आप बेवकूफ बनते हैं. मुबारक हो.
Also Read
-
Margins shrunk, farmers forced to switch: Trump tariffs sinking Odisha’s shrimp industry
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Gurugram’s Smart City illusion: Gleaming outside, broken within
-
DU polls: Student politics vs student concerns?
-
दिल्ली विश्वविद्यालय चुनाव में छात्र हित बनाम संजय दत्त और शराब