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हिंदी पत्रकार शादाब, सर्वप्रिया और दिति को मिला रामनाथ गोयनका पुरस्कार
उल्लेखनीय ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका अवार्ड सोमवार को घोषित हो गए. इसके तहत प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों माध्यमों में काम करने वाले पत्रकारों को शामिल किया जाता है.
इस वर्ष हिन्दी कैटेगरी में प्रिंट के लिए गांव कनेक्शन की रिपोर्टर दिति बाजपेयी को 'रक्तरंजित सीरीज' और ब्रॉडकास्ट कैटेगरी में क्विंट हिंदी के संवाददाता शादाब मोईजी को यह अवार्ड मिला. इसके अलावा हिंदी में बीबीसी हिन्दी की संवाददाता सर्वप्रिया सांगवान को यह अवार्ड पर्यावरण, विज्ञान एवं तकनीक श्रेणी में दिया गया.
कहानियां जो पुरस्कार की हक़दार बनी
गांव कनेक्शन की रिपोर्टर दिति बाजपेयी ने 2018 में 'रक्तरंजित”' नाम से एक रिपोर्ट सीरीज किया था. इस सिरीज़ में बलात्कार पीड़िताओं के उन मामलों को कवर किया गया था जो सुर्खियां और हैशटैग नहीं बन सके थे. खेतों में, स्कूल के रास्ते में, शौच के लिए जाते वक़्त बलात्कार ग्रामीण महिलाओं की रोज़मर्रा की सच्चाई से पर्दा उठाने वाली यह विस्तृत रिपोर्ट काफी चर्चित रही थी.
दिति ने दूर-दराज के गांवों की पीड़ित महिलाओं से बात कर यह बताया था कि कैसे गांव में उनके घरों में ऐसे मामले दबा दिए जाते हैं, कैसे कानून बेहद कड़ा होने के बाद भी उन्हें लागू करने की व्यवस्था बहुत खराब है. साथ ही 'रक्तरंजित सीरीज' के माध्यम से यह भी सुझाव दिया गया था कि कैसे इन अपराधों पर रोक लगाईं जा सकती है और कैसे पीड़ित महिलाओं को इन्साफ मिल सकता है.
दिति ने इस सीरीज के तहत सात 7 भागों में रिपोर्ट किया था जिनको आप यहां पढ़ सकते हैं.
द क्विंट के रिपोर्टर शादाब मोइजी को 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगे में गुम हो चुके लोगों के परिवारों पर बनाई गई एक डॉक्यूमेंट्री के लिए ब्रॉडकास्ट श्रेणी में यह अवॉर्ड मिला.
क्विंट के अनुसार इस डॉक्यूमेंट्री में शादाब ने बताया था कि किस तरह से जिनके अपनों को उनकी आंखों के सामने ही मारा गया, उन्हें भी पुलिस लापता बता रही है.
डॉक्यूमेंट्री में शादाब के कैमरे ने दंगा पीड़ितों के दर्द को सामने रखा था. पीड़ितों ने बताया था कि वो अब अपने गांव लिसाढ़ वापस नहीं जाना चाहते, क्योंकि वहां वही जख्म फिर ताजा हो जाएंगे.
शादाब मोईजी की रिपोर्ट यहां देखें.
बीबीसी हिंदी की संवाददाता सर्वप्रिया सांगवान को पर्यावरण और विज्ञान कैटेगरी में ब्रॉडक्रास्ट पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका आवार्ड मिला है.
बीबीसी हिंदी के अनुसार सर्वप्रिया सांगवान की ये स्टोरी झारखंड के जादूगोड़ा में यूरेनियम खदानों से प्रभावित लोगों की कहानी कहती है और सवाल उठाती है कि क्या ये इलाक़ा भारत के न्यूक्लियर सपनों की क़ीमत चुका रहा है?
झारखंड में यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) कंपनी 1967 से यूरेनियम की माइनिंग कर रही है. देश के न्यूक्लियर रिएक्टरों के लिए 50 सालों से वहां से यूरेनियम आ रहा है.
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम ज़िले में सात यूरेनियम खदाने हैं- जादूगोड़ा, भाटिन, नरवापहाड़, बागजाता, बांदुहुरंगा, तुरामडीह और मोहुलडीह. लेकिन नब्बे का दशक ख़त्म होते-होते यहां पर सैकड़ों की संख्या में लोग विकलांग और बीमार नज़र आने लगे.
सर्वप्रिया सांगवान की पूरी रिपोर्ट आप यहां देखें.
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