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वोडाफ़ोन-आईडिया के संकट से अधर में अटका भारत का टेलीकॉम सेक्टर

बीते दिनों फ्रेंकलिन टेम्पलटन म्युचुअल फंड ने वोडाफोन आईडिया में अपने भारी-भरकम निवेश को राइट डाउन घोषित कर दिया. इसका अर्थ यह हुआ कि उन्होंने अपने निवेश की कीमत को शून्य मान लिया है. यह एक बड़े खतरे का संकेत है. देश की टेलीकॉम कंपनियों को लगभग एक लाख करोड़ रुपये सरकार को देने हैं. पुरानी कंपनियां जैसे एयरटेल और वोडाफ़ोन (विलय के बाद वोडाफ़ोन-आईडिया) को सबसे ज़्यादा भुगतान करना है. वोडाफ़ोन-आईडिया को लगभग 50,000 करोड़ रुपये चुकाने हैं.

ये कंपनियां कभी कोर्ट से गुहार लगा रही हैं तो कभी सरकार के सामने आंसू बहा रही हैं. पर सुप्रीम कोर्ट टस से मस नहीं हो रहा है और जल्द से जल्द पैसा जमा कराने का आदेश जारी कर दिया है.

इसका असर ये हुआ कि वोडाफ़ोन-आईडिया में संस्थागत निवेशकों ने अपने-अपने निवेश पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. फ्रेंकलिन टेम्पलटन की प्रतिक्रिया उसी कड़ी का हिस्सा है. फ्रेंकलिन टेम्पलटन के क़दम से यह संकेत सभी निवेशकों में जाएघा कि इस कंपनी में निवेश से कोई फ़ायदा नहीं होगा. इसकी देखा-देखी, अन्य निवेशक भी इसी राह पर चल सकते हैं.

वोडाफ़ोन देश की दूसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी है. उसके पास लगभग 3.30 करोड़ ग्राहक और लगभग 29.21% मार्केट शेयर है. टेलीकॉम एक्सपर्ट जीतेंद्र राही के अनुसार इन स्थितियों का वोडाफ़ोन-आईडिया के डे-टू-डे ऑपरेशन्स और भविष्य पर ही नहीं, बल्कि पूरे टेलीकॉम सेक्टर पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. वहीं कुछ जानकार मौजूदा हालत के मद्देनज़र मान रहे हैं कि वोडाफ़ोन का मैनेजमेंट इंडियन ऑपरेशन्स बंद कर सकता है.

यह कोई बड़ी बात नहीं है. दो महीने पहले वोडाफ़ोन-आईडिया के सीईओ निक रीड कहा था कि भारत के टेलीकॉम सेक्टर में अस्थिरता का माहौल है. इसके चलते वोडाफ़ोन-आईडिया भुगतान के संकट से गुजर सकते हैं. वहीं वोडाफ़ोन-आईडिया में दूसरे बड़े हिस्सेदार और आदित्य बिरला समूह के चेयरमैन कुमारमंगलम बिरला ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर टेलीकॉम सेक्टर का माहौल ठीक नहीं हुआ तो किसी भी दिन ये दुकान (वोडाफ़ोन-आईडिया) बंद कर देंगे.

आइये देखें कि किस प्रकार ये घटनाक्रम वोडाफ़ोन-आईडिया और पूरे सेक्टर पर असर डाल सकता है.

वोडाफ़ोन की विस्तार योजनाओं पर रोक लग सकती है

राही बताते हैं कि वोडाफ़ोन-आईडिया को नेटवर्क एक्सपेंशन पर काफ़ी काम करना बाकी है. वो उदहारण देते हैं कि राजस्थान में जिओ और एयरटेल, वोडाफ़ोन से काफ़ी आगे हैं. इस माहौल में उनकी विस्तार योजनाएं ठप पजड़ सकती हैं. राही के मुताबिक़ इन सब बातों का ग्राहकों, कर्मचारियों, डिस्ट्रीब्यूटर्स और रिटेलर्स पर ग़लत प्रभाव पड़ता है. वो सभी अपने-अपने निवेश को लेकर चिंतित हो उठते हैं.

अगर वोडाफ़ोन-आईडिया बंद होती है!

हालांकि इसकी संभावना कम है, पर ऐसा हो भी सकता है. एजीआर के चलते, कंपनी ने एक्सपेंशन प्लान पर रोक दिया है. ऐसे में दोनों कंपनियां (वोडाफ़ोन और भारतीय पार्टनर आदित्य बिरला समूह) अपनी-अपनी हिस्सेदारी किसी तीसरे निवेशक को बेच सकती हैं.

सरकार टेलीकॉम में 100% विदेशी निवेश पर बहुत गंभीरता विचार कर रही है. तो संभव है कि कोई विदेशी कंपनी वोडाफ़ोन और बिरला की हिस्सेदारी ख़रीद ले.

अगर सिर्फ़ वोडाफ़ोन काम बंद करता है

अगर वोडाफ़ोन अपने भारतीय कारोबार को समेटता है तो उस स्थिति में आदित्य-बिरला समूह के पास उसके शेयर्स ख़रीदने का पहला अधिकार होगा. बिरला के मना करने पर ही दूसरा निवेशक- भारतीय या विदेशी- बोली लगा सकता है.

कुमारमंगलम बिरला पहले ही अपना बयान दे चुके हैं कि वो दुकानदारी बंद करने में ज़्यादा देर नहीं लगायेंगे. साफ़ है कि उस स्थिति में कोई तीसरा ही निवेशक होगा. एक संभावना यह भी रहेगी कि सरकार किसी सरकारी भारतीय संस्थागत निवेश कंपनी जैसे एलआईसी आदि को इसे खरीदने के लिए बाध्य करे.

बीते कुछ तजुर्बों से अगर सरकार ने सीख ली होगी तो ये मुश्किल होगा. ऐसे में ये जानना बहुत दिलचस्प रहेगा की कौन आगे आता है.

विदेशी कंपनियों का वर्चस्व बढ़ सकता है

वोडाफ़ोन-आईडिया की बात हमने ऊपर कर ली. अब बचे रिलायंस जिओ, भारती एयरटेल और बीएसएनएल. जिओ का सितारा बुलंदी पर है. रही दो कंपनियां. बहुत संभावना है कि सरकार बीएसएनएल और एमटीएनएल को ठीक-ठाक हालात में लाकर किसी निजी कंपनी को बेचे. तो वो भी हाथ से गई.

ले-देकर बचती है एयरटेल. 21 जनवरी 2020 को डीओटी ने भारती एयरटेल में 100% विदेशी भागेदारी की अनुमति दे दी है. ज़ाहिर है समूह रिलायंस जिओ का सामना नहीं कर पा रहा है.

समूह के चेयरमेन सुनील मित्तल बार-बार दरख्वास्त कर रहे थे कि विदेशी निवेश का रास्ता खुले. डीओटी के फ़ैसले से उनका रास्ता साफ़ हो गया है. नाम न छापने की शर्त पर एयरटेल के एक अंदरूनी जानकार ने बताया कि आने वाले समय में एयरटेल पूर्णतया विदेशी स्वामित्व में जा सकती है. तो इस प्रकार भारतीय मोबाइल सेवा का पूरा बाज़ार विदेशी कंपनियों के हाथ में जाने की आशंका पैदा हो गई है.

निवेशकों में निराशा बढ़ेगी

जीतेंद्र राही के मुताबिक़ अगर वोडाफ़ोन अपने कुल निवेश को राइट-ऑफ़ कर भारत में ऑपरेशन्स बंद करता है तो विदेशी निवेशकों में सही मेसेज नहीं जाएगा. सिर्फ़ टेलिकॉम ही नहीं, कई और सेक्टर्स भी प्रभावित होंगे.

जीतेंद्र राही के अनुसार ऐसी हालात में निवेशक भारत में निवेश करने के प्रति सशंकित होंगे. इस अस्थिरता के महल में अगर वो निवेश करते भी हैं तो सरकार की बांह मरोड़ी जायेगी. इससे 5जी निवेश पर उल्टा असर पड़ने की पूरी संभावना है.

बाज़ार पर दो का अधिकार

जिस बाज़ार में कभी 8 या 9 कंपनियां हुआ करती थीं वहां रिलायंस जिओ के पदार्पण के बाद सिर्फ़ 4 कंपनियां रह गई हैं. तीन निजी और एक सरकारी कंपनी. अगर वोडाफ़ोन-आईडिया बंद हो जाता है तो बाज़ार में सिर्फ़ 2 निजी कंपनियां रह जाएंगी. ऐसे में ग्राहकों के लिए बेहद कम विकल्प बचेंगे. यह स्थिति सबको समान अवसर और बाजार में स्वस्थ स्पर्धा के सिद्धांत के खिलाफ है. ऐसे में इक्का-दुक्का कंपनी के एकाधिकार के चलते कॉल और डाटा की दरों पर किसी का नियंत्रण नहीं रह जाएगा. यह स्थिति कम से कम उपभोक्ताओं के लिए ठीक नहीं है.

क्या 5 जी तकनीक आने में देर हो सकती है

तकनीक तो अपनी रफ़्तार पर बदल रही है. 4जी अब पुराना हो गया है, वैश्विक कंपनियां 5जी पर सफल प्रयोग कर चुकी हैं. आपने भी देखा होगा कि कैसे भविष्य की तकनीक कहे जानी वाली 5जी अनुभव बदल देगी.

भारत सरकार भी 5जी को उम्मीद की निगाहों से देख रही है. ज़ाहिर है इसके लिए स्पेक्ट्रम नीलामी से आमदनी जो होनी है.

राही कहते हैं, “स्पेक्ट्रम ख़रीदने के अलावा कम्पैटिबल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए कंपनियों को भारी निवेश करना होगा. निवेशकों और कंपनियों को 4जी टेक्नोलॉजी में किये गए इन्वेस्टमेंट्स पर रिटर्न नहीं मिला है. ऐसे माहौल में ये 5जी टेक्नोलॉजी का इम्प्लीमेंटेशन थोड़ा मुश्किल हो सकता है.”

कुल मिलाकर ऐसे माहौल ये अच्छी घटना नहीं होगी क्योंकि देश में ज़बर्दस्त आर्थिक मंदी है, रोज़गार का संकट गहरा होता जा रहा है, जीडीपी की दर सिर्फ़ 4-5% रह गई है. इंडियन इकॉनमी का पोस्टर बॉय कहलाने वाला सेक्टर अब आईसीयू में जा चुका है. बस सांसे चल रही हैं, सरकार ध्यान दे.