Some of the elements in this story are not compatible with AMP. To view the complete story, please click here
Newslaundry Hindi

दिल्ली दंगा: दंगे की ओट में पत्रकारों पर हमले की बाढ़

रविवार शाम से ही, सांप्रदायिक हिंसा ने उत्तर पूर्वी दिल्ली को अपने चपेट में ले लिया. हिंसा मौजपुर के पास शुरू हुई, जहां इकट्ठा हुए हिन्दू गुटों ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के एक समूह पर हमला कर दिया जो देखते ही देखते पड़ोसी जाफराबाद, चांदबाग, भजनपुरा, करावल नगर, गोकुलपुरी, खजुरी खास में फैल गया. दंगाइयों ने घरों, दुकानों और धार्मिक स्थानों को तोड़ा और आग भी लगा दिया.

गुरुवार की सुबह तक जो आंकड़े सामने आए हैं उसके मुताबिक एक पुलिसकर्मी, एक आईबी कर्मचारी समेत कम से कम 27 लोगों की मौत इस दंगे में हो चुकी है. स्थानिय अधिकारियों के अनुसार 100 से अधिक घायल लोगों का इलाज केवल जीटीबी अस्पताल में हुआ है. इसमें 6 पत्रकार भी शामिल थे, जिनमें से एक को गोली भी मारी गई थी. कई संवाददाताओं के साथ गाली-गलौज, मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया पर उनकी जान बच गई.

आकाश नापा, जेके 24

मौजपुर से रिपोर्टिंग करते वक्त इन्हें भीड़ द्वारा गोली मार दी गई थी. इन्हेंजीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया.

सौरभ शुक्ला और अरविंद गुणशेखर, एनडीटीवी

सीएए का समर्थन करे रहे एक समूह ने इन्हें रिपोर्टिंग के दौरान घेर लिया.इसके बाद इन्हें बुरी तरह से मारा. एनडीटीवी के अनुसार भीड़ ने इन्हें घेर लिया और फिर चेहरे को निशाना कर हमले करने लगी. एनडीटीवी के मुताबिक "एक लाठी गुणशेखर के सर पर लगने वाली थी कि तब तक उनके सहयोगी सौरभ शुक्ला ने हस्तक्षेप किया और लाठी उन्हें लग गई. उनके पीठ, पेट और फिर पैरों पर हमला किया गया. इसहमले में अरविंद के सामने के तीन दांत भी टूट गए.”

एनडीटीवी 24x7 पर सौरभ ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि हम पर हमला तब हुआ जब हम गोकलपुरी में एक धार्मिक स्थल को शूट कर रहे थे जिसे उपद्रवियों ने आग लगा दी थी.

सौरभ बताते हैं, "मैं अरविंद के 20-30 मीटर पीछे खड़ा था. जब हमने रिकॉर्डिंग बन्द किया तो एक प्रदर्शनकारी या इस मामले में कहे तो एक दंगाई ने अरविंद को पकड़ लिया और उसे मारना शुरू कर दिया. मैंने देखा कि अरविंद फर्श पर गिरा हुआ था और उसके मुंह से खून बह रहा था. मैं बचाव के लिए आया था. वे अपनी लाठी से अरविंद के सर पर मारने वाले थे तभी मैंने बीच बचाव किया और वो लाठी मेरे कंधे पर लग गई."

सौरभ ने कहा कि भीड़ ने उन्हें अरविंद से अलग कर दिया क्योंकि वो सोच रहे थे कि अरविंद ही वहां अकेले शूट कर रहा था. "बाद में, मैंने उन्हें अपना एनडीटीवी का कार्ड नहीं दिखाया. मेरे पास फॉरेन कॉरस्पोंडेंट क्लब का एक कार्ड था, मैंने वो कार्ड दिखाया और कहा कि मैं यहां किसी भारतीय टेलीविज़न के लिए रिपोर्टिंग नहीं कर रहा हूं, मैं विदेशी एजेंसी से हूं. उन्होंने कहा, "वो हमें बता रहे थे, अरविंद से कहो अपने मोबाइल में से सबकुछ डिलीट कर दे. जब उन्होंने हमारा नाम देखा, उसके बाद हमें मारना बंद किया और बोले तुम हमारे धर्म से हो. तुम्हें यह नहीं करना चाहिए. तुम्हें इसका वीडियो नहीं बनाना चाहिए."

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए, अरविंद ने कहा, "हमने देखा मीतनगर में भीड़ एक इमारत (दरगाह) पर हमला कर रही थी. हम उसे शूट करने वहां गए. भीड़ हमारे पास की इमारत को तोड़ने लगी... वो हमें भी मारने लगे और 'जय श्री राम' के नारे भी लगाने लगे. मैंने काले रंग की टीशर्ट पहन रखी थी, शायद इसलिए उन्होंने सोचा होगा कि मैं मुस्लिम हूं."

अरविंद बताते हैं, "सौरभ ने भीड़ को बताया कि वे दोनों हिंदू हैं." उसमें से एक ने बताया कि मैंने वीडियो शूट किया था, तभी एक ने मेरा फोन छीन लिया. उन्होंने हमें तभी जाने दिया जब उन्होंने सारा वीडियो को डिलीट कर दिया.”

रुनझुन शर्मा, सीएनएन न्यूज 18

मंगलवार को जब भीड़ सौरभ और अरविंद पर हमला कर रही थी तो रुनझुन इनके ही साथ थीं.

अरविंद का जिक्र करते हुए उन्होंने सीएनएन न्यूज़ 18 को बताया, "वो उसे मारने लगे. उसके मुंह से खून बह रहा था. यहां तक कि इन लोगों ने सौरभ को भी पकड़ लिया और पीटने लगे. मैं इन लोगों से घिरी हुई थी. वे लगातार हमसे हमारी मजहबी पहचान पूछ रहे थे. हमें उनके सामने कई बार हाथ भी जोड़ना पड़ा कि हमें जाने दीजिए. हम लगातार विनती कर रहे थे.”

इस्मत आरा, स्वतंत्र पत्रकार

आरा, फर्स्टपोस्ट में अपने भयानक अनुभव के बारे में लिखती हैं, “वहां एक हिन्दू पुजारी कुछ लोगों को समझा रहे थे- "मुस्लिमों को मारने का आदेश ऊपर से आया है." जब इन्होंने पुजारी के बारे जानने की कोशिश की तो भीड़ उनकी तरफ संदेह से देखने लगी और उनसे उनकी पहचान पूछने लगी. उन्हें अपनी धार्मिक पहचान को लेकर झूठ बोलना पड़ा, प्रेस कार्ड को छिपाना पड़ा और उनके सवालों का मनगढ़ंत जवान देना पड़ा.

इसके बाद जब आरा अंदर एक सड़क पर गईं तो भीड़ में से कुछ लोग उनके पीछे भी आए. उन्हें रोक दिया गया. उनमें से किसी ने पूछा, "मीडिया से हो तो बोलो न, झूठ बोलकर हमारे पंडित जी के बारे में क्यों पूछ रही हो?" बताओ तुम मीडिया से हो और क्यों हमसे झूठ बोल रही थी और हमारे पंडित के बारे में पूछ रही थी?”

वहां पर लोगों ने गाली-गलौज शुरू कर दी.

उन्होंने कहा, "जो लोग सड़कों को रोक रखे थे, उनके हाथों में लाठी, ईंटें, बैट, डंडा, रॉड और कुल्हाड़ी आदि था.” वो लिखती हैं, "पुलिस और सीआरपीएफ की गैरमौजूदगी में मौजपुर के सड़कों पर घूमती हुई भीड़ मुझे पकड़, मेरी पहचान जानकर, एक पत्रकार होने के नाते परेशान भी कर सकती थी, एक महिला होने के नाते छेड़खानी और एक मुस्लिम होने के नाते मुझे मार भी सकती थी.

शिवनारायण राजपुरोहित, इंडियन एक्सप्रेस

सोमवार को पश्चिम करावल नगर में इनका सामना एक भीड़ से हुआ. भीड़ ने इन्हें मारा, इनका फोन छीना और इनका चश्मा भी तोड़ दिया. इनकी डायरी को छीन कर जलते हुए बेकरी के सामानों में फेंक दिया गया. अलग-अलग समय पर इन्हें भीड़ के तीन अलग गुटों ने घेरा.

“एक व्यक्ति जिसकी उम्र 50 के आसपास थी, उसने मेरा चश्मा हटाया, उसे तोड़ते हुए मुझे दो थप्पड़ मारा. उसने मुझे हिन्दू बहुल इलाके में रिपोर्टिंग करने के लिए दो बार थप्पड़ मारा."

इन्होंने अपने अखबार में लिखा, "उन्होंने मेरा प्रेस कार्ड चेक किया इसके बाद बोले "शिवनारायण राजपुरोहित. हम्म. हिन्दू हो? बच गए. इससे भी वो संतुष्ट नहीं हुए और उन्हें मेरे हिन्दू होने का और प्रणाम चाहिए था. उन्होंने कहा बोलो “जय श्री राम." मैं चुप था.”

फिर एक दूसरे समूह ने उन्हें घेर लिया. "उन्होंने मुझे जान बचा कर भागने को कहा. उन्हीं में से एक ने कहा "एक और भीड़ आ रही है. आपके पीछे. कांपते हुए मैं अपनी बाइक के तरफ गया. मैं अपने बैग में बाइक का चाभी ढूंढ़ने लगा. मेरे लिए हर एक मिनट कीमती था. तभी उसमें से एक आदमी ने कहां "जल्दी करो. वो लोग छोड़ेंगे नहीं."

पुरोहित ने लिखा, "आखिरकार, मुझे चाभी मिल गई और मैं उस अनजान जगह से जल्दी से सुरक्षित पुश्ता रोड पर निकल गया."

तनुश्री पांडे, इंडिया टुडे

सोमवार को मौजपुर क्षेत्र में एक भीड़ ने इन्हें धमकाया और छेड़छाड़ की.

प्रवीण पुरकायस्थ, टाइम्स नाउ

मौजपुर मेट्रो स्टेशन के पास प्रवीण से सीएए समर्थकों ने गाली-गलौज किया. इन्होंने 'द प्रिंट' से बताया, "मैं मौजपुर मेट्रो स्टेशन से रिपोर्ट कर रहा था. मैं एक सुरक्षित जगह से रिपोर्टिंग कर रहा था और मैं अकेला नहीं था. मैं प्रो सीएए समर्थकों और और एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों को भिड़ते देख सकता था. अचानक प्रो-सीएए के प्रदर्शनकारियों ने मेरी तरफ इशारा किया और भीड़ से पांच से छह लोग लाठी-डंडे लेकर मेरी तरफ आए और 'मारने' के लिए धमकाने लगे. मुझे वहां पर बैठकर निवेदन करना पड़ा कि मुझे मत मारिये और जाने दीजिए.

श्रेया चटर्जी, स्वतंत्र पत्रकार

सोमवार को चटर्जी ने आरोप लगाया कि मौजपुर में वो संवाददाताओं के साथ थीं जिन्हें रिपोर्टिंग करने से रोक दिया गया. इन्होंने 'द प्रिंट' से कहा कि नागरिकता कानून का समर्थन करने वालों ने उन्हें मारने के लिए धमकाया. वे कह रहे थे, "हिंदुओं की लड़ाई है, हमारा साथ दीजिये, वरना आप मुसीबत में पड़ जाएंगी."

शांताश्री सरकार, रिपब्लिक टीवी

सोमवार को भजनपुरा से रिपोर्टिंग करते समय उन्हें ऐसी ही हिंसक भीड़ का सामना करना पड़ा.

अनिंद्य चटोपाध्याय, टाइम्स ऑफ इंडिया

सोमवार को जितने भी पत्रकारों को परेशान किया गया, मारपीट कर रिपोर्ट करने से रोका गया उसमें टाइम्स ऑफ इंडिया के फोटोग्राफर एक अनिंद्य चट्टोपाध्याय भी थे. उन्होंने अपने अखबार में अपने अनुभव के बारे में लिखा, वो दोपहर बाद मौजपुर मेट्रो स्टेशन से बाहर निकले थे.

वो कहते हैं, "मैं हक्का-बक्का रह गया जब निकलते ही हिन्दू सेना के सदस्यों ने मुझे घेर लिया और मेरे माथे पर तिलक लगाने को बोला और कहा कि इसे मेरे काम आसान हो जाएगा. तुम भी एक हिन्दू भाई हो. इससे क्या नुकसान है. उस लड़के ने कहा."

जब चट्टोपाध्याय ने एक बिल्डिंग की फ़ोटो लेने की कोशिश की जिसमें आग लगा दी गई थी तभी कुछ लोगों ने उन्हें लाठी-डंडे के साथ घेर लिया. वो कैमरे को छीनने की कोशिश करने लगे. इस पर उनके साथी साक्षी चंद ने बीच बचाव किया, फिर वो लोग चले गए. लेकिन बाद में, उन्होंने लिखा, कुछ और लोगों के समूह ने उनका पीछा किया. एक युवा ने बड़ी ढिठाई से पूछा "भाई, तू ज्यादा उछल रहा है. तू हिन्दू है या मुसलमान?"

चट्टोपाध्याय ने कहा कि वो उन्हें पैंट नीचे करने की धमकी दे रहे थे ताकि उन्हें पता चल सके कि मैं हिन्दू हूं या मुस्लिम. हाथ जोड़ कर विनती करने के बाद ही उन्होंने मुझे जाने दिया.

मंगलवार रात को, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों पर हुए हमले पर "गंभीर चिंता" व्यक्त करने हुए एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया है, "पत्रकारों पर हमला प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला जैसा है और ऐसी हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ ज़रूर कार्रवाई होनी चाहिए.

यहाँ पढ़िए

Also Read: “आपका नाम चाहे परवेज हो या फिर प्रवीण ऐसी स्थिति में नुकसान दोनों का है”

Also Read: दिल्ली के अमन को कैसे लगी नफ़रत की नज़र