Newslaundry Hindi
खुरेजी: नाबालिग समेत शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को जेल क्यों भेजा गया?
दिल्ली में हुए दंगों के बीच एक ख़बर पूरी तरह से दबकर रह गई. यह घटना दिल्ली पुलिस द्वारा 26 फरवरी यानि दिल्ली में जारी दंगों के दौरान ही खुरेजी इलाके में अंजाम दी गई.
नागरिकता संशोधन कानून संसद में पास होने के साथ ही राजधानी दिल्ली सहित देश के विभिन्न इलाकों में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए थे. पूर्वी दिल्ली के खुरेजी इलाके में भी 14 जनवरी, 2020 से नागरिकता संसोधन कानून (सीएए), नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन्स (एनआरसी) और नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुआ था. लगभग डेढ़ महीने से शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे इस आंदोलन के बाद अचानक 26 फरवरी की दोपहर पुलिस ने जमकर बलप्रयोग करते हुए इसे खत्म कर दिया. पुलिस ने प्रदर्शनस्थल पर बैरिकेडिंग लगाकर वहां भारी फोर्स तैनात कर दिया. पुलिस ने कार्रवाई के दौरान 2 राउंड फायर और आंसू गैस का इस्तेमाल भी किया गया.
पुलिस ने वहां पहुंची कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां, सामाजिक कार्यकर्ता खालिद सैफी सहित मो.सलीम, विक्रम ठाकुर, सलीम अंसारी, शाबू अंसारी और आफताब को गिरफ्तार कर जगतपुरी थाने ले गई. पुलिस ने इन लोगों पर दंगा करने, आर्म्स एक्ट और आईपीसी की विभिन्न धराएं लगाई. ये सभी लोग फिलहाल जेल में हैं. अन्य लोगों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस अभी भी लगातार लोगों के घर में छापे मार रही है और लोगों के मुताबिक मनमाने ढंग से गिरफ्तारियां कर रही है.
खुरेजी, कृष्णानगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है जहां से आम आदमी पार्टी के एसके बग्गा लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं. यह प्रदर्शन स्थल लक्ष्मी नगर को आने वाली पटपड़गंज रोड पर था, जिसके एक तरफ हिंदुस्तान पेट्रोल पंप, दूसरी तरफ आश्रम और सामने मार्केट है.
बुधवार को न्यूजलॉन्ड्री की टीम ने खुरेजी के कुछ इलाकों का दौरा किया. निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन से लगभग दो किमी. की दूरी पर यह प्रदर्शनस्थल मौजूद है. हम जब वहां पहुंचे तो प्रदर्शन स्थल के सामने सुरक्षा बलों के जवान बैठे नजर आए. प्रदर्शन स्थल के गेट को पुलिस ने भारी बैरिकेडिंग करके बंद कर दिया है. मार्केट की कुछ दुकानें बंद और कुछ खुलीं थी. वहां मौजूद 3-4 लोगों से हमने बात करने की लेकिन वे इस कदर डरे हुए थे कि बात करने से मना कर दिया. कुछ देर बाद एक स्थानीय दुकानदार ने झल्लाकर बोला, “भैया, यहां कुछ ना हुआ... पुलिस ने कुछ नहीं किया.”
जब हमने थोड़ी गुजारिश की तो नाम न छापने की शर्त पर बोला, “भैया और क्या करें, बच्चे पालने हैं, पुलिस कभी भी पकड़ कर ले जा सकती है.” उनकी हां में हां मिलाते हुए पास ही खड़ा एक लड़का बोला, “उधर देखो दंगों में क्या हुआ है, हमारे ही लोग मरे हैं, हमारी ही दुकाने जली हैं और अब हमें ही गिरफ्तार किया जा रहा है. हमारी कोई सुनवाई नहीं है. यहां भी रोज लोगों को पुलिस उठा रही है, और थाने में ले जाकर बहुत टॉर्चर कर रही है.”
काफी देर बात करने के बाद जब हम जाने लगे तो वह दुकानदार फिर बोला, “भैया, कुछ मत छापना. कुछ नहीं होने वाला, और भी लोग यहां आकर रिपोर्टिंग कर गए हैं, कुछ नहीं होता.”
वहां से निकलकर हम पास के रिहाइशी कॉलोनी के अंदर गए जहां से लोगों को गिरफ्तार किया गया था. वहां हमारी मुलाकात नजमा से हुई जो, प्रोटेस्ट में लगातार हिस्सा लेती रही थीं. उन्होंने हमें बताया कि यहां हिंदु, मुस्लिम, सिख, इसाई सब मिल कर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन अब पुलिस ने इतना डर बैठा दिया है कि डर से कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं है. जवान लड़कों को उठाया जा रहा है. किसी को कहीं से भी उठा रहे हैं. जिससे लोगों में डर बैठ गया है.
वहीं पास में हमें एक अन्य महिला मिली जो पुलिस की कार्रवाई के दौरान प्रदर्शन स्थल पर मौजूद थी. जब हम उसके घर पहुंचे तो पहले उनकी बेटी ने बाहर ही हमसे यह सुनिश्चित कराया कि न तो उनकी अम्मी को कुछ होगा और न ही हम उनका नाम छापेंगे. यानि जो डर का आलम हमने पहले देखा था, वो यहां भी बरकरार था. संकरी सीढ़ियों पर चढ़कर हम तीसरी मंजिल पर पहुंचे. उन्होंने हमें बताया, “26 फरवरी को सुबह लगभग 11 बजे 20-25 औरतें धरना स्थल पर मौजूद थीं, जो कुरान और तस्बीह पढ़ रही थीं. तभी बड़ी संख्या में पुलिस वाले धरना स्थल पर पहुंच गए और तम्बू और स्टेज को हटाना शुरू कर दिया. जब हमने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों कर रहे हैं तो कहा चुपचाप चले जाइए. यह सुनकर जब लोग वहां इकटठा होने लगे तो पुलिस ने लोगों को खदेड़ने के लिए आंसू गैस के गोले दागना शुरू कर दिया और साथ-साथ हवाई फायर भी किया.”
हमने उनसे पूछा कि क्या पुलिस ने उनसे भी मारपीट का तो उन्होंने कहा नहीं. हमने उन लोगों के परिजनों से बातचीत की जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर रखा है.
मोहम्मद सलीम, 45 वर्ष
यहां हम एक ऐसे परिवार से मिले जिसके घर के मुखिया को पुलिस ने 26 फरवरी की शाम को उठा लिया था. घर में अकेले कमाने वाले 45 वर्षीय मोहम्मद सलीम एक्सपोर्ट का काम करते हैं. परिवार के मुताबिक पुलिस ने उन्हें तब गिरफ्तार कर लिया जब वे अपने घर के बाहर खड़े थे. लगभग 20 गज के घर में पत्नी और बच्चों के साथ गुजर-बसर करने वाले सलीम शुरुआत से ही प्रदर्शन से जुड़े थे.
जब हम उनके घर पहुंचे तो हमें उनकी बेटियां वहां मिलीं. बड़ी बेटी निशा ने हमें बताया कि उनके पापा कि गुरुवार को कड़कड़डूमा कोर्ट में तारीख है तो अम्मी वहीं गई हैं. निशा ने बताया कि प्रोटेस्ट हटाने के बाद शाम को पुलिस इलाके में गश्त कर रही थी और लोगों को भरोसा दे रही थी कि डरने की कोई बात नहीं है. लेकिन शाम को ही वीडियो के जरिए लोगों को गिरफ्तार करने लगी. बीट इंस्पेक्टर ने लोगों की लिस्ट बना रखी थी.
“इससे पहले लगभग दो महीने से यहां प्रदर्शन शांतिपूर्ण चल रहा था. पुलिस ने शुरू में जरूर हटने के लिए कहा था, लेकिन अब अचानक से सबको खदेड़ दिया गया,” निशा ने बताया. जैसे ही हम वहां से निकलने के लिए उठे तभी उनकी अम्मी कोर्ट से वापस आ गईं. निराश और थकी हारी घर पहुंचकर वे रोते हुए बोलीं, “नहीं मिली बेल, 25 तारीख को फिर सुनवाई है.” किसी को भी आज बेल नहीं मिली. इतना मारा है कि उनसे (सलीम) चला भी नहीं जा रहा था. खालिद सैफी की दोनों टांगें तोड़ दी हैं, स्ट्रेचर पर लाया गया था उन्हें.”
नाबालिग आफताब को भी जेल भेजा
पुलिस ने सामान्य प्रक्रियाओं का भी खुलेआम उल्लंघन किया. उसने 17 वर्षीय नाबालिग आफताब को घर से रात में 10 बजे उठा लिया. नाबालिग होने के बावजूद उसे जुवेनाइल कोर्ट या बालसुधार गृह में ले जाने के बजाए अन्य लोगों की तरह ही रेगुलर कोर्ट ले जाया गया. आफताब के स्कूल सर्टिफिकेट के मुताबिक उसकी जन्मतिथि 30 अगस्त, 2002 है, और वह नाबालिग है.
आफताब के घर वाले भी उस दिन कोर्ट में गए थे. बाद में फोन पर उसकी अम्मी ने बताया कि आफताब फेरी का काम करता है. घर में तीन बहनें और एक भाई है. आफताब अकेला कमाने वाला था. उनके परिवार को उम्मीद थी कि बृहस्पतिवार को जमानत मिल जाएगी.
खुरेजी गईं एक फैक्ट फाइंडिग टीम के सदस्य अधिवक्ता आशुतोष से हमने आफताब के बारे में बात की तो उन्होंने हमें बताया कि पुलिस ने साफ तौर पर इस मामले में कानून तोड़ा है. इस मामले में पुलिस ने ‘जुवेनाइल जस्टिस ऑफ प्रोटेक्शन एक्ट-2015’ का उल्लंघन किया है. जेजेबी यानि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड इसका निर्णय करता है कि ऐसे मामले में क्या करना है.
हमने जगतपुरी थाने के एसएचओ सुनील कुमार से जानना चाहा कि नाबालिग को जेल क्यों भेजा गया. फोन पर उन्होंने बताया कि एक प्रक्रिया के तहत ऐसा होता है. उस समय अगर उसने अपनी उम्र 18 साल बताई होगी तो उसे सभी लोगों के साथ ले जाया गया होगा. अगर वह नाबालिग है और समय रहते इस बात का सबूत पेश कर देता है तो फिर उसे जुवेनाइल कोर्ट में भेज दिया जाएगा. ऐसा अक्सर होता है कि पहले किसी नाबालिग को बालिग के तौर पर गिरफ्तार किया जाता है और जब वह नाबालिग होने का प्रमाण दे देता है तो उसे सुधार गृह भेज दिया जाता है.
हमने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के डीसीपी दिनेश कुमार से भी इस पूरी घटना के बारे में उनके ऑफिस में बात की. डीसीपी ने बताया कि फिलहाल सात लोगों को गिरफ्तार किया गया है, सात लोग वांटेड हैं. उनकी गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं. साथ ही दिनेश कुमार ने माना कि पुलिस की तरफ से दो राउंड फायरिंग हुई और आंसूगैस के गोलों का प्रयोग किया गया. जबकि प्रदर्शनकारियों ने भी फायरिंग की थी. जब हमने पूछा कि पुलिस द्वारा सीसीटीवी कैमरे तोड़ने की बात आ रही है तो उन्होंने बताया कि ये जांच का विषय है, मेरी पोस्टिंग यहां 27 फरवरी को हुई है, जबकि ये घटना 26फरवरी की है. पुलिस हिरासत में लोगों को दी गई यातना पर डीसीपी ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि इस बारे में आपको जेल अथॉरिटी जवाब देगी. आपको उनसे पूछना चाहिए.
पुलिस का मनमाना रवैया
जितने भी लोगों से हमने वहां बात की उनमें से अधिकतर ने बताया कि पुलिस ने न सिर्फ यहां ज्यादतियां की बल्कि मनमाने तरीके से कार्रवाई की. पुलिस ने इस दौरान सभी सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिया. इसकी तस्वीर भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी. जहां पुलिसवाले पेट्रोल पंप के पास सीसीटीवी कैमरों को तोड़ रहे थे. एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पुलिस ने 26 तारीख को प्रदर्शन स्थल के आस-पास की सारी दुकानों के अंदर से सीसीटीवी कैमरे भी अपने कब्जे में ले लीं और उन्हें डिलीट कर दिया.
लेकिन यह बड़ा सवाल है कि जब लोग शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे तो उन्हें बलपूर्वक क्यों हटाया गया. इसका जवाब दिल्ली पुलिस के पास नहीं है.
Also Read
-
TV Newsance 305: Sudhir wants unity, Anjana talks jobs – what’s going on in Godi land?
-
India’s real war with Pak is about an idea. It can’t let trolls drive the narrative
-
How Faisal Malik became Panchayat’s Prahlad Cha
-
Explained: Did Maharashtra’s voter additions trigger ECI checks?
-
‘Oruvanukku Oruthi’: Why this discourse around Rithanya's suicide must be called out