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दिल्ली दंगा: झुग्गियों को आग लगा दी गई थी, अब लोग लौटे तो पड़ोसी रहने नहीं दे रहे
काले बजबजाते पानी से भरे नाले पर लकड़ी का एक अस्थाई पुल बना हुआ है जिसे पार करते वक़्त डर बना रहता है कि कहीं टूट ना जाए. इसी नाले को पार कर हम गंगा विहार एच ब्लाक की झुग्गी में पहुंचे. गंदगी से भरे और मूलभूत सुविधाओं से महरूम यहां करीब 125 झुग्गियां हैं जिसमें हज़ारों की संख्या में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोग रहते हैं. दिल्ली में पिछले दिनों हुए दंगे के दौरान यहां की छह झुग्गियों को जला दिया गया. ये सभी मुस्लिम समुदाय के थे.
दंगे का असर धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. दुकानें खुलने लगी है. लोग काम पर लौट रहे हैं. इसी दौरान दोपहर दो बजे के आस पास दंगे के बाद भाग गए कुछ मुस्लिम परिवार वापस गंगा विहार की झुग्गियों में लौटे हैं. उनका सबकुछ जल चुका है. दोबारा से झुग्गी लगाने की कोशिश करते हैं तो सामने के मकानों में रह रहे लोग अपनी छत पर आकर इसका विरोध शुरू कर देते हैं. लोगों का कहना है कि अब आप यहां झुग्गी नहीं लगा सकते. यहां झुग्गी लगाना अवैध है.
पीड़ित कहते हैं कि यहां तो पहले से ही बहुत सी झुग्गियां है, और हम तो यहीं रहते थे? इसपर स्थानीय लोग जवाब देते हैं कि बाकी झुग्गियां भी जल्द ही हटेंगी.
दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर स्थित गंगा विहार के एच ब्लाक की यह जगह जल बोर्ड की है. यहां लोग बीते कई सालों से लोग रह रहे हैं. दंगे के दौरान झुग्गी के बगल में सैकड़ों की संख्या में उपद्रवी जमा होकर हंगामा करते रहे. यहीं पर नाले से तीन लाशें पुलिस ने बरामद की है.
अपनी जली हुआ झुग्गी को देखने के बाद 40 वर्षीय अमाना कहती हैं, “जब सबकी हटेंगी तो हम भी हट जाएंगे लेकिन अभी तो रहने दो. अभी तो हमारे पास पहनने को कपड़े तक नहीं है. रिश्तेदारों के कपड़े पहनकर रह रहे है. जो कुछ बचत था सब जल गया. ऐसे हालात में हम किसी और जगह कैसे रह पाएंगे.”
अमाना अपने पड़ोसी की झुग्गी में बैठी थी. उनके परिवार में पांच बच्चे और उनके पति हैं. वे कहती हैं, ‘‘दंगे के दौरान सबसे ज्यादा हंगामा यहां बगल की जौहरी की पुलिया (दिल्ली और यूपी का बॉर्डर जहां उपद्रवी लम्बे समय तक हंगामा करते रहे) पर था. वहां लोगों को मारा-पीटा जा रहा था. जय श्रीराम के नारे लगाए जा रहे थे. हमें डर लगा कि शायद हमें भी लोग मार दें. हम पूरे परिवार के साथ ही 24 फरवरी की रात में अपने रिश्तेदारों के यहां चले गए.’’
बुलंदशहर की रहने वाली अमाना अपने परिवार के साथ लोनी में अपने देवर के घर रहीं. दंगे के बाद वो आठ मार्च को अपनी झुग्गी देखने पहुंचीं. वे कहती हैं, "अपनी जली हुई झुग्गी देखकर तो मेरे होश उड़ गए. कुछ भी नहीं बचा था. सब राख हो गया था. जिस ठेले को चलाकर मेरे पति मजदूरी करते थे, उसे भी जला दिया. बहुत मेहनत से एक-एक समान इकठ्ठा किया था हमने सब जलकर राख हो गया.’’
दोनों पैरों के बीच सर को टिकाकर बैठी 30 वर्षीय तरन्नुम निशा पहली बार अपनी जली हुई झुग्गी को देखकर बेहोश हो गईं. हमसे बातचीत में वो कहती हैं, ‘‘मेरे पति को पहले ही पता चल गया था कि झुग्गी को जला दिया गया लेकिन उन्होंने मुझे नहीं बताया उन्हें लगा कि औरत का दिल है मैं यह बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी. जब रविवार को मैं यहां आई तो सब कुछ जल चुका था.’’
अपने तीन बच्चों के साथ यहां रह रही तरन्नुम के पास अपना कोई घर नहीं है. उनका कोई गांव भी नहीं है. वो कहती है, ‘‘मेरे ससुर यहीं लोनी में किराये पर रहते थे. मैं शादी के बाद किराये के ही कमरे में आई थी. जब परिवार बड़ा हुआ और आमदनी कम हुई तो हमें किराये के कमरे से झुग्गी में लौटना पड़ा. ऐसे में मेरा जो कुछ था सब झुग्गी में ही था जो जलकर राख हो गया. ये जो कंधे पर दुपट्टा है वो भी किसी का दिया हुआ है. ऐसे में यहां से हम कहां जाए. ये लोग हमें रहने नहीं दे रहे हैं.’’
पड़ोसी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं
इन तमाम लोगों की झुग्गियों को 25 फरवरी की रात 10 बजे के करीब आग के हवाले कर दिया गया
झुग्गियों को आग के हवाले करने सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचे थे लेकिन किसी भी पड़ोसी को कुछ पता ही नहीं. ज्यादातर पड़ोसी बात करने से बचते नजर आते है. वे कहते हैं, ‘‘हमलोग खाकर सोए हुए थे. हमें पता ही नहीं चला कि कौन आग लगा गया, कब आग लगाई गई. जब आग तेज हुई तब हमें पता चला. हम लोग जगे और अपनी झुग्गी को बचाने की कोशिश करने लगे ताकि हमारी झुग्गियों तक आग न पहुंच जाए.’’
यहां के रहने वाले मुनेसर कहते हैं, ‘‘जब इन झुग्गियों में आग लगाई गई तो मैं सो रहा था.’
पास में दंगे हो रहे थे और आप कैसे सो गए थे? इस सवाल के जवाब में मुनेसर कहते हैं, ‘‘यहां आसपास के कॉलोनी में रहने वाले लोगों ने कहा कि यहां हम हिन्दू लोग है. हम हिन्दुओं के बीच तुम लोगों को कोई दिक्कत नहीं होगी. तुम अपने घर में आराम से रहो. तुमको कोई टेंशननहीं होगी. उन्होंने कहा कि बाहर मत जाना वो लोग तुम्हें मार भी देंगे.’’
मुनेसर कहते हैं, ‘‘झुग्गी में कौन आग लगाया हमें मालूम नहीं लेकिन हमें दुःख है कि बेचारों का सबकुछ जलकर राख हो गया. अगर हमारी नींद खुल गई होती तो आग लगाने से लोगों को ज़रूर रोकते.’’
क्यों नहीं रहने दे रहे कॉलोनी
गुरुवार को जब ये लोग झुग्गी बनाने के लिए तिरपाल और बांस लेकर पहुंचे तो सामने की कॉलोनी में रहने वाले लोग एक छत पर आ गए. उनमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल थे. सबने इन्हें यहां झुग्गी लगाने से मना किया. उन तमाम लोगों का कहना था कि यहां लोग अवैध तरीके से रह रहे हैं. सभी झुग्गियां यहां से हटाई जाएंगी. हम इनलोगों को दोबारा यहां झुग्गी नहीं बनाने देंगे.
स्थानीय निवासी उपमन्यु शर्मा कागज दिखाते हुए कहते हैं कि हमने इनके खिलाफ शिकायत कर रखी है. यह सारी झुग्गियां जल्द ही यहां से हटाई जाएंगी.
इसी बीच वहां मौजूद कुछ सामाजिक संगठन जो दंगा पीड़ितों के लिए काम कर रहे हैं, ने दिल्ली पुलिस को फोन कर दिया. अपनी पूरी टीम के साथ पहुंचे गोकुलपुरी थाने के एसएचओ प्रमोद जोशी ने जांच के बाद बताया कि यह क्षेत्र हमारे इलाके में नहीं है. इतना कहने के बाद थोड़ी देर वे वहां रहे और फिर लौट गए.
दिल्ली पुलिस ने इस इलाके को यूपी के अंतर्गत बताया. इस मामले को लेकर जब न्यूज़लॉन्ड्री उत्तर प्रदेश के लोनी थाने पहुंचा तो यूपी पुलिस ने इस इलाके को अपने क्षेत्र में होने से इनकार कर दिया. लोनी थाना इन झुग्गियों से महज 500 मीटर की दूरी पर है. यहां के थाना प्रभारी शैलेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं, “यह क्षेत्र दिल्ली इलाके में पड़ता है. हमारा इलाका 17 नम्बर मेट्रो पुल तक ख़त्म हो जाता है. जहां झुग्गियां जली हैं वह इलाका दिल्ली में है."
दिल्ली पुलिस और यूपी पुलिस के सीमा विवाद में इन झुग्गी वालों की कोई सुनने वाला नहीं है. झुग्गी निवासी कहते हैं कि उनका इलाका दिल्ली में है. झुग्गी जलने की शिकायत उन्होंने दिल्ली के ही थाने में दर्ज कराई है.
झुग्गियों को हटाने के लिए आर्डर
गुरुवार को कॉलोनी वालों ने झुग्गी नहीं लगने दिया. इसको लेकर सबसे ज़्यादा मुखर विरोध उपमन्यु शर्मा कर रहे हैं. उनका घर झुग्गी से बिल्कुल लगा हुआ है.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए उपमन्यु शर्मा कहते हैं, “यह ज़मीन यूपी जल रखरखाव विभाग के अंतर्गत है. यहां झुग्गी वालों की वजह से हमें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. देर शाम शराब पीकर हंगामा करते हैं. खुले में शौच करते हैं. टायर जलाते है. जिससे कॉलोनी के लोगों को परेशानी होती है. इन्हें यहां से हटाने के लिए हम लोग लम्बे समय से प्रशासन से शिकायत कर रहे है. इसको लेकर यूपी जल बोर्ड ने 29 जुलाई 2019 को हटाने का निर्देश दिया था. कुछ झुग्गियां हटाई भी गई लेकिन फ़ोर्स कम होने की वजह से यहां से सबको हटाया नहीं जा सका.”
ऐसे समय में जब इन लोगों का सबकुछ जल चुका है. इन्हें यहां से हटाकर दूसरी जगह बसने के किए भेजना कितना जायज है. इस सवाल के जवाब में स्थानीय आरडब्यूए के उपाध्यक्ष अरविंद पवार कहते हैं कि इनलोगों ने जानबूझकर अपनी झुग्गियां जलाई है. जैसे ही केजरीवाल सरकार ने दंगा पीड़ितों को मुआवजा देने का वादा किया इन्होंने मुआवजा लेने की लिए झुग्गियों में आग लगा दी. ये भले आपको गरीब दिख रहे हैं लेकिन इन सबके घर लोनी वगैरह में है. इनकी बस कोशिश है कि दिल्ली सरकार के द्वारा दिए जाने वाले फायदे इन्हें मिलते रहें.
हालांकि अरविंद पवार द्वारा झुग्गी वासियों द्वारा मुआवजे के लिए अपनी ही झुग्गी में आग लगाने का दावा यहां के बाकी निवासी भी करते हैं. लेकिन यह बात वास्तविकता से मेल नहीं खाती. केजरीवाल सरकार ने दंगा पीड़ितों को मुआवजा देने की घोषणा 27 फरवरी को की थी जबकि इनकी झुग्गियों में आग 25 फरवरी को लगाई गई थी.
ये तमाम लोग अभी आसपास के लोगों की झुग्गियों में रह रहे हैं. इनकी झुग्गी नहीं बन पाई है. क्या इनकी झुग्गी नहीं बनने देंगे. इस सवाल के जवाब में उपमन्यु शर्मा कहते हैं, " देखिए एकबार कैंसर सही हो जाए तो क्या आप दोबारा चाहेंगे कि आपको कैंसर हो. हमारी पूरी कोशिश होगी कि ये दोबारा यहां न बस पाएं. सिर्फ ये ही नहीं बाकी जितने भी लोग है उनको यहां से हटाया जाए.'
(जिज्ञासा अग्रवाल के इनपुट के साथ)
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