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ग्राउंड रिपोर्ट: सरकारी घोषणाओं के बावजूद क्यों पलायन को मजबूर हुए मजदूर

रविवार सुबह के नौ बजे आनंद विहार बस अड्डे के पास इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप के सामने सैकड़ों की संख्या में दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान से आए मजदूर जमीन पर बैठे हुए हैं. दिल्ली सरकार ने इन्हें इनके घर तक पहुंचाने के लिए प्राइवेट बसें तैनात की हैं. कंडक्टर और दिल्ली पुलिस के जवान की पहली ही आवाज़ गोरखपुर... की आई और सैकड़ों की संख्या में लोग बस की तरफ लपक पड़े.

इसमें कुछ गोरखपुर के हैं तो कुछ बिहार के हैं. पुलिस थोड़ी सख्ती दिखाते हुए लोगों को धीरे-धीरे गाड़ी के अंदर पहुंचाती है. एक बस लोगों को लेकर निकलती हैं, इस बीच और लोग जमा हो जाते हैं. घंटों तक लोगों के आने और जाने का यह सिलसिला जारी रहा.

इंडियन ऑयल पेट्रोल पम्प के पास उज्ज्वला योजना का एक विशाल विज्ञापन लगा हुआ है. उसपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक मुस्कुराती हुई तस्वीर है. विज्ञापन पर लिखा है ‘ये मेहनत थी, इस मुस्कान के लिए’. मुस्कान को बोल्ड करके लाल रंग में लिखा गया है. इसी विज्ञापन के सामने हज़ारों की संख्या में लोग अपनी बदहाली का सर्टीफिकेट माथे पर चिपकाए अपने गांव-गिरांव लौटने के लिए जमा हैं.

इसी मौके पर हमारी नज़र एनडीआरएफ की एक टोली पर पहुंची. उसमें से कुछ सदस्य लोगों के हाथों में सेनेटाइज़र डालते हैं. यह सब चल ही रहा था कि तभी हरियाणा के सोनीपत से पैदल चलकर झांसी के लिए निकले कुछ लोग वहां आ धमके. अपने ठेले पर सामान लादे कुछ मर्द, बच्चे और औरतें ठीक उसी विज्ञापन के सामने खड़े हो जाते हैं जहां से प्रधानमंत्री की तस्वीर मुस्कान का दावा प्रचारित कर रही थी.

झांसी के लिए सोनीपत से पैदल निकला परिवार आनंद विहार में

सोनीपत से गुरुवार की शाम 13 लोगों की यह टोली चली थी जो तीन दिन बाद दिल्ली पहुंची हैं. झांसी के रहने वाले आदिवासी समुदाय के ये लोग सोनीपत में मजदूरी करके जिंदगी बसर कर रहे थे. रहने के लिए इन्होंने एक झुग्गी बना रखा था. लॉकडाउन होने के पहले से ही इनका काम बंद हो गया था. इस टोली में महिलाओं और बच्चों की संख्या ज्यादा है. यहांसे उन्हें झांसी के लिए बस मिल सकती थी लेकिन मंगल आदिवासी अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ बस से नहीं जाने का फैसला लेते हैं.

वो न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मैं पैदल ही जाऊंगा क्योंकि मैं अपना ठेला यहां नहीं छोड़ सकता हूं. आठ हज़ार रुपए में दो महीने पहले ही इसे खरीदा है. बस पर ठेला रखने को तैयार नहीं हैं. इसलिए मैंने अपने रिश्तेदारों को बस से चले जाने के लिए कह दिया और खुद अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर पैदल निकल रहा हूं. मैंने अपनी घरवाली को भी बोला कि बस से चली जा, लेकिन यह मान नहीं रही.’’

अपनी बीबी और बच्चों के साथ ठेला लेकर जाते मंगल आदिवासी

बातचीत को बीच में काटते हुए मंगल आदिवासी की पत्नी मालती कहती हैं, ‘‘अब ये पैदल आते और मैं गाड़ी से. ठीक नहीं लगता. रिश्तेदार बस से जाने को तैयार हो गए. हम इन्हें अकेले नहीं छोड़ सकते. रास्ते में क्या हो कौन जाने. किसी एक की तबीयत खराब होगी तो कोई दूसरा दवाई लाएगा. ध्यान रखेगा. आठ-नौ दिन में पहुंच जाएंगे.’’

दिल्ली से झांसी की दूरी लगभग पांच सौ किलोमीटर है. अपने छोटे-छोटे बच्चे को ठेले पर सुलाकर मंगल आदिवासी ठेला खींचने लगते हैं और उनकी पत्नी पीछे से धक्का देती है.

क्या वहां खाने को नहीं मिल रहा था. सरकार या आसपास के लोगों ने कोई मदद नहीं की. इस पर मंगल कहते हैं कि एकाध दिन कुछ लोग खाना देने आए थे. उसके बाद जो पैसे थे उसे हमने खाने में खर्च कर दिया. जब हमें खाने की दिक्कत आने लगी तो हमने वापस लौटने का तय कर लिया. रास्ते में जगह-जगह लोगों ने ज़रूर खाने को दिया लेकिन सरकारी राहत नहीं मिली. हमारा तो वहां कोई कार्ड ही नहीं था तो हमें राशन कहां से मिलता.’’

मंगल ठेले को खींचते हुए निकल पड़ते हैं. ठेले पर लोगों द्वारा दिया गया खाने का पैकेट,बिस्कुट और केला रखा था. एकाध पानी का बोतल भी.पिछले महीने ही मंगल अपने तमाम रिश्तेदारों के संग मजदूरी करने के लिए सोनीपत गए थे लेकिन अब उन्हें लौटना पड़ रहा है. मंगल जा रहे होते है तभी मजदूरों का एक दूसरा झुण्ड वहां आ पहुंचता है.

बस में चढ़ते मजदूर

इस झुण्ड में उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले उमेश कुमार भी हैं. दिल्ली के खोड़ा में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहने वाले उमेश कुमार दिहाड़ी मजदूरी करके अपना परिवार चलाते हैं. कोरोना के भारत में आने कीआहट के साथ ही इन्हें काम मिलना बंद हो गया. उमेश कहते हैं कि कल भूखे रहना पड़ा. पैसे खत्म हो गए थे. पैदल निकलने की सोच रहा था तभी पता चला कि योगी सरकार बस चलवा रही है तो पैदल ही हम आनंद विहार आ गए. अब यहां तो यूपी सरकार की बसें नहीं दिख रही लेकिन ये बसें चल रही है. जो शायद दिल्ली सरकार चलवा रही है. हरदोई के लिए कोई जाएगी तो मैं निकल जाऊंगा.

अपने परिवार के साथ बस का इंतजार करते उमेश कुमार

बातचीत के बीच में उमेश का चार साल का लड़का ऊंगली से खाने की तरफ इशारा करता है जो एक स्वयंसेवी संगठन द्वारा यहां के लोगों को दिया जा रहा है. बच्चे के खाने की तरफ इशारा करते देखखाना बांटने वाली लड़की उन्हें खाना देने आती है. ये लोग सुबह से ही खाना बांट रहे हैं.

खाना बांट रही लड़की का नाम गीता है. वो बताती हैं, ‘‘लोग काफी परेशान हैं. एक आदमी तो ऐसा मिला था जो रोहतक से पैदल आया था. उसने दो दिन से खाना नहीं खाया था. खाने को जब हमने दिया तो रोने लगा और खाने पर टूट पड़ा. यह सब देखना काफी परेशान करता है. दो दिन से हम यहां खाना बांट रहे हैं.’’

उमेश से हमने पूछा कि दिल्ली सरकार कह रही है कि सबको खाने को दिया जाएगा फिर आप लोग क्यों जा रहे हैं? इस सवाल के जवाब में उमेश कहते हैं, ‘‘जब मोदीजी ने लॉकडाउन की घोषणा की तो हम परेशान हो गाए. उससे पहले से काम बंद था. घर पर खाने को था लेकिन वो दो दिन बाद खत्म हो गया. एक दिन भूखे रहे लेकिन कितने दिन भूखे रहते. आज पांच दिन हो गए लॉकडाउन के दौरान कोई भी खाना देने नहीं आया. केजरीवालजी टीवी पर ऐसा कह रहे थे लेकिन मेरे इलाके में खाने को कुछ नहीं मिल रहा है. मजबूर होकर हम यहां आ गए है. गाड़ी मिलती है तो ठीक नहीं तो पैदल ही चले जाएंगे.’’

अपने बेटे को कंधे पर बैठाये घर जाता एक शख्स

लॉकडाउन की घोषणा के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों मजदूरों का उनके घरों के तरफ पलायन शुरू हो गया. सबकुछ बंद होने की स्थिति में लोग पैदल ही अपने घरों को लौटने लगे. गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से ऐसी तस्वीरें सामने आई जहां मजदूर पैदल ही चले जा रहे थे. दिल्ली से हज़ारों की संख्या में लोग नेशनल हाइवे24 के रास्ते बिहार और यूपी के अपने घरों के लिए निकल पड़े. इसमें छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं थी. जिसके बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक आदेश जारी करके कहा कि जो भी लोग रास्ते में हैं उन्हें उनके घर तक पहुंचाने का काम उत्तर प्रदेश शासन करेगा.

यूपी सरकार के अधिकारियों का आरोप है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने डीटीसी बसों के जरिए दिल्ली से पैदल जा रहे लोगों को आनंद विहार और लाल कुआं पर छोड़ना शुरू कर दिया. देखते-देखते शनिवार की शाम हज़ारों की संख्या में लोग आनंद विहार पहुंच गए. जिस समय लोगों से दूरी बनाकर रहने की सलाह दी जा रही थी, उस समय में आनंद विहार से ऐसी तस्वीरें सामने आई जिसमें लोग एक दूसरे के ऊपर गिरते नजर आए. अनुमान है कि 50 हजार से एक लाख लोग दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर पहुंच गए.

इसके बाद इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया. केजरीवाल सरकार पर आरोप लगा कि उन्होंने जानबूझकर मजदूरों को यूपी बॉर्डर पर छोड़ा. इसपर जवाब देते हुए मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया कि इस त्रासदी के समय भी बीजेपी राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है. खैर राजनीति चलती रही और मजदूरों का पलायन जारी रहा. तमाम सरकारों की कोशिशें नकाम होती नजर आई.

सुबह के ग्यारह बज गए थे. हम आनंद विहार से लाल कुआं के लिए निकले. जहां से यूपी रोडवेज की गाड़ियों से लोगों को उनके घरों तक भेजा जा रहा था. आनंद विहार बस अड्डे के पास से जब हम गुजर रहे थे तभी सड़क के किनारे दिल्ली सरकार के कुछ कर्मचारी केजरीवाल सरकार का एक विज्ञापन लगा रहे थे जिसपर केजरीवाल की एक चिंतित तस्वीर लगी हुई थी और लिखा था- ‘दिल्ली सरकार ने आप सभी के लिए रहने और खाने का पूरा इंतज़ाम कर लिया है. आपको दिल्ली छोड़कर जाने की ज़रूरत नहीं है.’’

केजरीवाल सरकार का विज्ञापन लगाते मजदूर

हम आगे बढ़े तो मजदूरों का एक झुण्ड खड़ा था जिसे अपने घर जाना था. लेकिन पुलिस उन्हें उस जगह नहीं जाने दे रही थी जहां से बसें मिल रही थी. वे परेशान खड़े थे. ये लोग कहते हैं, ‘‘सरकार अभी हमें खाने को दे-दे हम घर को लौट जाएंगे. सरकार सिर्फ बात कर रही है. खाने के लिए पैसे नहीं बचे. घर पर अनाज नहीं है. जिंदा रहेंगे तभी तो कोरोना से लड़ेंगे. केजरीवालजी बस कह रहे है.’’

केजरीवाल सरकार का यह विज्ञापन दिल्ली में जगह-जगह लगा नज़र आता है. अख़बारों में भी प्रकाशित हुआ है. लेकिन लोगों का जाना बदस्तूर जारी है.

साईकिल से भागलपुर के लिए निकले मजदूर

नेशनल हाईवे 24 पर हर जगह लोगों का आना जाना जारी है. लोग पैदल लाल कुआं पहुंच रहे हैं ताकि अपने घरों को पहुंच सकें. रास्ते में जगह-जगह पुरुष और महिलाओं का झुण्ड नज़र आता है. एक जगह एक ट्रक में पुलिस महिलाओं और पुरुषों को भर रही थी. वहां खड़े एक पुलिस अधिकारी से हमने बात की तो उन्होंने बताया कि बेचारे पैदल जा रहे हैं तो हमने मदद के लिए इस ट्रक वाले से बोला कि उन्हें छोड़ते जाओ. लाल कुआं से इन्हें बसें मिल जाएंगी.

ट्रक में चढ़कर लाल कुआं जाते मजदूर और बच्चे

इसी बीच हमने अपनी गाड़ी में रेडियो चालू किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कर रहे थे. इसमें वे लॉकडाउन के कारण आई परेशानियों के लिए मांफी मांग रहे थे. अफ़सोस की जिनसे वो माफ़ी मांग रहे थे उसमें से कोई भी रेडियो सुनता नहीं दिखा. हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि जिन लोगों ने रेडियो सुना है वो प्रधानमंत्री की भावना उन लोगों तक पहुंचा देंगे.

सड़क पर जा रहे मजदूरों को खिलाने पिलाने और मदद करने के लिएकई लोग सड़क पर खड़े नज़र आते हैं, लेकिन यह पूरी तरह निजी प्रयास हैं.

एक जगह पर हमें साईकिल पर बैठे कुछ लोगों का झुण्ड नजर आया. उनसे बात करने पर पता चला कि ये लोग उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद में रहकर मजदूरी करते थे और अब साईकिल से बिहार के भागलपुर और बांका जिला स्थित अपने घर जा रहे हैं.

दिल्ली से भागलपुर के बीच की दूरी लगभग 1,400 किलोमीटर है. पर लॉकडाउन के बाद बंद हुए कारोबार ने इन्हें मजबूर कर दिया कि ये साईकिल से अपने घर को लौट रहे हैं. गाड़ियां भी चल रही है जो इन्हें घर के आसपास तक छोड़ सकती है लेकिन इसमें से एक युवक कहता हैं कि हम भीड़ में नहीं जाना चाहते हमें कोरोना से बचना भी है इसलिए हम साईकिल से निकल रहे हैं.

साईकिल से भागलपुर के लिए निकले मजदूर

बांका जिले के रहने वाले राम बालम पंडित साहिबाबाद में बाथ फीटिंग का काम करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘हमलोगों का काम बीस तारीख से बंद है और आगे कब तक बंद रहेगा, कह नहीं सकते. योगीजी और मोदीजी रहने के लिए कह रहे हैं लेकिन क्या करें यहां भूखे मर रहे है. घर जाएंगे तो अपने बाल बच्चों के सामने मरेंगे या जीएंगे. राशन के दुकान पर एक रुपए का सामना दो रुपए में मिल रहा है. दुकानदार कहता है लेना है तो लो नहीं तो जाओ. हमारे पास पैसे भी नहीं हैं. उधार कोई राशन देने को तैयार नहीं है. एक सप्ताह में घर पहुंच ही जाएंगे.’’

उनकी साईकिलों में जंग लगा हुआ था. साईकिल की स्थिति देखकरलगा कि शायद ही यह भागलपुर तक पहुंच पाए. हालांकि ये लोग पूरे इंतजाम के साथ निकले हैं. हवा भरने के लिए पंप भी लिया हुआ है. अपने साईकिल पर पंप लेकर जा रहा 24 वर्षीय पिंटू कुमार पंडित, बीएससी करने के बाद यहां पीतल की दूकान में काम करता है. जहां उसे महीने के छह हज़ार रुपए वेतन मिलता है. जिसमें से एक से दो हज़ार रुपए अपने घर भेज देता है.

पिंटू बताते हैं कि इस महीने तीन चार छुट्टी थी. तो सब छांटकर मालिक ने पैसे दिए. काम बंद होने के बाद जो पैसे थे उससे ही खर्च चल रहा था. आठ सौ रुपए मकान मालिक को किराये के रूप में दे दिया. अभी मेरे पास सिर्फ 200 रुपए है और इसी में मुझे घर जाना है.

योगी सरकार ने कहा है कि ज़रूरतमंदों तक खाना पहुंचाया जाएगा. तो आखिर आप लोग क्यों नहीं रुक रहे हैं. सरकार मदद पहुंचाने की बात तो कर ही रही है. इस सवाल के जवाब में पिंटू कहते हैं, ‘‘देखिए योगी सरकार सिर्फ बात कर रही है. मिल कुछ नहीं रहा है. मैं अपने मालिक से बोला कि खर्च के लिए कुछ पैसे दे दीजिए तो उसने कहा कि मेरी कंपनी बंद है तो मैं पैसे कहां से दूं. मैंने बोला कि कुछ खर्चे पानी के लिए दे दो. मोदीजी ने ऐसा कहा है तो उसने कहा मोदीजी ने कहा है तो उन्हीं से जाकर ले लो.’’

पिंटू आगे कहते हैं, ‘‘हम जहां रहते हैं वहां तीन हज़ार से ज्यादा बिहार के लोग हैं किसी को अभी तक सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिला है. हमें मदद मिलता तो हम साईकिल से घर जाने को मजबूर क्यों होते.’’

लाल कुआं: एक उम्मीद

जो स्थिति शनिवार शाम आनंद विहार बस अड्डे की थी वहीं स्थिति रविवार को लाल कुआं में थी. हज़ारों की संख्या में लोग यहां पैदल या किसी गाड़ी से चलकर पहुंच रहे थे. यहां दिल्ली, हरियाणा और नोएडा-गजियाबाद से मजदूर पहुंच रहे थे.

योगी सरकार ने वादा किया था कि लोगों को उनके घर छोड़ा जाएगा लेकिन यहां हैरान करने वाली स्थिति सामने आई. उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसों में यात्रा कर रहे लोगों से मोटा किराया वसूला जा रहा था. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि लॉकडाउन की स्थिति में प्राइवेट बसें न जाने किसके परमिशन से सड़क पर उतर गई थीं और मजदूरों से मोटा पैसा वसूलना शुरू कर दिया था.

न्यूज़लॉन्ड्री ने कई मजदूरों से बात की जिन्होंने बताया कि लखनऊ जाने के लिए प्राइवेट बस वाले छत पर बैठकर जाने पर आठ सौ रुपए ले रहे हैं और नीचे बैठकर जाने पर एक हज़ार रुपए. जब वहां से प्राइवेट गाड़ियां निकल रही थी तब गाजियाबाद पुलिस वहां मौजूद थी. प्राइवेट गाड़ी वाले ड्राइवर से हमने पूछा कि किसकी इजाजत से ये गाड़ियां चल रही है तो उसने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया.

लाल कुआं में जमा हज़ारों लोग

एक तरफ दिल्ली सरकार प्राइवेट गाड़ियों को परमिशन देकर मजदूरों को मुफ्त में उनके घर तक भेज रही थी. दूसरी तरफ हरियाणा सरकार की बसें अलग-अलग शहरों से पलायन कर रहे लोगों को मुफ्त में छोड़ने जा रही थी वहीं यूपी सरकार मजदूरों से मोटा पैसा वसूल रही थी. हालांकि बाद में देर शाम मजदूरों से पैसे लेना बंद कर दिया गया लेकिन तब तक हज़ारों की संख्या में मजदूर जा चुके थे.

यहां हमारी मुलाकात बिहार के समस्तीपुर जिले के रहने वाले सतीश कुमार, रघुवीर कुमार और अरविन्द सैनी से हुई. तीनों की उम्र लगभग 24 से 25 साल की थी. ये लोग हरियाणा के भिवानी में रहकर मजदूरी कर रहे थे.

तीनों 27 फरवरी को ही अपने गांव से भिवानी मजदूरी करने आए थे. अभी काम ठीक से शुरू भी नहीं हुआ कि भारत में कोरोना ने दस्तक दे दी और जहां ये काम कर रहे थे वो 22 मार्च को कर्फ्यू लगने के एक दिन पहले ही बंद हो गया. कंपनी ने इनके रहने-खाने का इंतजाम किया था. उसका पैसा काटकर इनका जितना बना उतना दे दिया और कह दिया कि अब हालात बेहतर होने के बाद ही कंपनी में काम शुरू होगा.

सतीश के पैर में पड़े छाले

सतीश कुमार कहते हैं, ‘‘हरियाणा में लोग कह रहे है कि लॉकडाउन 15 अप्रैल के बाद भी चलेगा. तभी हमने अपने घर लौटने का फैसला किया.’’

तीनों शुक्रवार को भिवानी से चले थे. कुछ दूर पैदल चले और फिर रास्ते में बस मिली और ये लाल कुआं पहुंचे. सतीश अपना पैर दिखाते हुए कहते हैं पैदल चलने के कारण पैर में छाले पड़ गए हैं. वहां रुकते तो भूख से मर जाते. घर जाएंगे तो कम से कम खाने की दिक्कत नहीं होगी. आजकल गेहूं कटाई का समय चल रहा है तो अपने गांव में कटाई करके कुछ कमाई भी कर लेंगे.

हरियाणा सरकार ने खाने का इंतजाम नहीं किया. कोई अधिकारी पूछने आया था. इस सवाल के जवाब में रघुवीर कहते हैं, ‘‘एक दिन एक नेता आए और कुछ खाने को दे गए थे. उसके बाद कोई नहीं आया. आसपास का कोई अभी हमें जानता नहीं तो उधार भी नहीं दे रहा था.’

अपने घर के लिए निकले सतीश कुमार, रघुवीर कुमार और अरविन्द सैनी

अरविंद सैनी कहते हैं, ‘‘यहां इस हालात में मर गए तो घर वाले लाश लेने भी नहीं आ पाएंगे. गांव में मरे तो कम से कम घर वालों के सामने तो मरेंगे.’’

कानपुर से अमृतसर के लिए निकले मजदूर

एक तरह जहां हरियाणा और दिल्ली से उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में रहने वाले मजदूर भुखमरी और सरकार की मदद नहीं मिलने की स्थिति में अपने घरों को लौट रहे हैं ठीक उसी तरह उत्तर प्रदेश से भी काफी संख्या में मजदूर राज्य में ही एक जगह से दूसरी जगह के साथ-साथ बाहर के राज्यों में भी जा रहे हैं.

लाल कुआं के पास हमारी मुलाकात पंजाब के अमृतसर और उसके आसपास के ईलाकों के रहने वाले 15 लोगों की एक टोली से हुई. ये दिल्ली की तरह आने के लिए पैदल चल रहे थे. कानपुर से ये लोग कुछ दूर पैदल तो कुछ गाड़ी से चलकर आए थे.

ये तमाम लोग कानपुर में पनकीधाम थर्मल पॉवर हाउस में काम करते थे. इनका काम बंद हो गया लेकिन ये लोग वहीं रुके हुए थे बाकी कंपनी के लोग जो आसपास के रहने वाले थे वे जा चुके थे. मोता सिंह कहते हैं, ‘‘कंपनी वालों ने कहा कि जाना है तो जाओ नहीं तो रुको. जो खर्चा लगेगा खाने पीने का ले लेना बाद में सैलरी से काटा जाएगा. अब यह कितने दिन तक चलेगा कौन जानता है. इसलिए हम निकल गए.’’

कानपुर से अमृतसर के लिए निकला मजदूरों का झुण्ड

बलराज सिंह बताते हैं, ‘‘गुरुवार रात दो बजे पुलिस वालों ने वहां से निकलने के लिए कहा. पुलिस वालों ने कहा कि यहां से निकलो नहीं तो हमें आर्डर है कि जेल में बंद कर देंगे.’’

इन तमाम लोगों को कोई गाड़ी नहीं मिल रही थी जिससे ये अमृतसर जा सकें. इस टोली के एक सदस्य मंदीप सिंह कहते हैं, ‘‘अगर कोई गाड़ी नहीं मिलती है तो कोई बात नहीं हम पैदल ही चले जाएंगे. भले आठ दिन में जाए या दस दिन में. अभी कोशिश कर रहे हैं कि कोई गाड़ी मिल जाए.’’

गाजियाबाद से मध्य प्रदेश के सागर वो भी रिक्शा से

रविवार दोपहर के तीन बज गए थे लेकिन दिल्ली के जिस भी रोड से हम गुजर रहे थे वहीं पर लोग सिर पर बैग रखे चले जा रहे थे. पुलिस ने अब सख्ती तेज कर दी थी. लोगों को इधर उधर जाने पर रोका जा रहा था.

सराय काले खां के करीब यमुना नदी पर बने पुल के पास दिल्ली पुलिस के कई जवान बैरिकेड लगाये खड़े थे. आनंद विहार जा रहे लोगों को पुलिस जब भगा रही थी तो वे सराय काले खां जा रहे थे. इस उम्मीद में कि वहां से बसें चल रही होगी. वहीं दूसरी तरफ हरियाणा और दक्षिणी दिल्ली की तरफ से आए हुए जो लोग थे वे इस उम्मीद में थे कि लाल कुआं पहुंच जाएं ताकि बस के जरिए अपने घर जा सकें लेकिन पुलिस ना इधर वाले को उधर जाने दे रही थी और ना ही उधर वाले को इधर आने दे रही थी.

यहां हमारी मुलाकात सुखीराम से हुई. 55 वर्षीय सुखी राम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ गाजियाबाद में रहते थे. यहां वे और उनका बेटा रिक्शा चलाकर परिवार का पालन पोषण कर रहे थे. लॉकडाउन होने के बाद सबकुछ बंद हो गया. गाजियाबाद के जिलाधिकारी ने आदेश जारी किया कि मजदूरों से एक महीने का किराया मकान मालिक नहीं लेंगे लेकिन सुखराम के मकान मालकिन ने उनपर किराए के लिए दबाव बनाया.

रिक्शे से सागर के लिए निकले सुखीराम

सुखराम कहते हैं, ‘‘मकान मालकिन ने किराये के लिए दबाव बनाया तो जो हमारे पास पैसा था उसमें से उन्हें हमने दे दिया. उसके बाद हमारे पास काफी कम पैसे बचे. उसमें हम वहां रह नहीं सकते थे. अगले महीने भी काम बंद ही रहेगा तो हमने कमरा छोड़कर जाने का निर्णय लिया. रिक्शा से निकल गए हैं क्योंकि गाड़ियां तो मिल नहीं रही है.’’

दिल्ली से सागर के बीच की दूरी लगभग 700 किलोमीटर है. रिक्शा से चले जाएंगे? इस सवाल के जवाब में सुखीराम कहते हैं, ‘‘जी अब तो जाना ही पड़ेगा. यहां तो भूखे मर जाएंगे. एकबार घर से दिल्ली ट्रक से आए हैं तो रास्ता पता है.’’

योगी सरकार कह रही है कि लोगों के खाने का इंतजाम किया जाएगा तो आखिर आप क्यों जा रहे हैं. इस सवाल के जवाब में सुखराम कहते हैं कि अभी तक तो कोई पूछने नहीं आया. कर्फ्यू के दिन से ही काम बंद है. मकान का किराया कैसे देते. तो हमने घर जाने का फैसला लिया. सरकारी अनाज कब मिलता उससे पहले हम मर ही जाते. खरीदने जाओ तो पुलिस मारती है हर समान भी महंगा मिल रहा है.’’

एक तरफ जहां बीजेपी से जुड़े लोग केजरीवाल सरकार पर सवाल उठा रहे हैं तो दूसरी तरफ यह भी सवाल उठ रहा है कि बीजेपी शासित हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात से हज़ारों लोगों का पलायन क्यों हुआ? कांग्रेस शासित महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान से हज़ारों लोग एक जगह से दूसरे जगह जाने को क्यों मजबूर हुए? इस सवाल के जवाब में तमाम लोगों ने जो कहा उसका मतलब एक ही था कि सरकारों पर भरोसा नहीं था और भूखे मरना नहीं चाहते थे. कोरोना से तभी लड़ते जब भूख से बच जाते.

घर को जाते मजदूर

रविवार शाम के छह बज रहे थे. यमुना नदी में सूरज डूबता हुआ खूबसूरत दिख रहा था. डीएनडी फ्लाईओवर पर कुछ लोग सिर पर बैग लेकर चलते नजर आये. उसमें एक बुजुर्ग थे जिनकी उम्र लगभग साठ साल थी. हमने उनसे पूछा कि कहां से आ रहे हैं और कहां जाएंगे. उनमें बोलने की क्षमता नहीं थी. उनके आंखों से आंसू बहने लगा. वे बिना बोले निकल गए. उनसे चला नहीं जा रहा था पर चले जा रहे थे. लाल कुआं पहुंचना था. बस लेकर घर जाना था...

यहीं दो लड़कों से हमारी मुलाकात हुई जो रोहतक से आ रहे थे. उन्हें कानपुर जाना था. अब तक का सफर पैदल ही किया था उन्होंने और लाल कुआं की तरफ बढ़े जा रहे थे. हमसे बातचीत करते हुए वे तमाम सरकारों को बद्दुआ दे रहे थे.

अब यूपी सरकार ने लाल कुआं बॉर्डर को बंद कर दिया है और वहां से कोई भी बस नहीं जा रही है लेकिन जो लोग गुरुग्राम, भिवानी, रोहतक और दिल्ली से निकल चुके थे और जिन्हें बस नहीं मिल पाई उनका सफर सोचकर ही हैरानी होती है.

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