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इंडिया टूडे की तहक़ीक़ात: इन्वेस्टिगेशन की आड़ में दर्शकों को परोसा गया झूठ
10 अप्रैल को इंडिया टूडे टीवी ने अपने प्राइम टाइम शो ‘न्यूज़ट्रैक’, जिसे राहुल कंवल पेश करते हैं, पर एक ‘स्पेशल इन्वेस्टिगेशन’ प्रसारित किया.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के तीन मदरसों, मदनपुर खादर स्थित ‘मदरसा दारुल-उल-उलूम उस्मानिया’ व ‘मदरसा इस्लाहुल मुमिनीर’ और ग्रेटर नोएडा स्थित ‘मदरसा जामिया मोहम्मदिया हल्दोनी’ के प्रभारियों का ‘स्टिंग’ करते हुए चैनल ने इन्हें ‘मदरसा हॉटस्पॉट’ का नाम दिया.
रिपोर्ट में दिखाया गया कि देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान भी तमाम छात्र मदरसों में रह रहे हैं. शो में एक वीडियो क्लिप भी दिखाई जिसमें कोई मौलाना स्वीकार कर रहा है कि उसने पुलिस को इस ओर ध्यान न देने के लिए घूस दी है.
इंडिया टूडे की व्याख्या यह है कि तीनों मदरसों के प्रभारियों ने लॉकडाउन की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाते हुए जान बूझकर छात्रों को तंग जगह पर पुलिस से छुपाकर रखा. चैनल ने यह दावा भी किया कि इन मदरसों के प्रभारियों का तबलीगी जमात से संबंध है. जिस के बारे में देश के मुख्यधारा मीडिया ने बताया कि निज़ामुद्दीन इलाके के मरकज़ में हुए जलसे के चलते देश में कोरोना का वायरस फैला. लिहाजा इन मदरसों में बंद बच्चों की जान पर बन आई है.
न्यूज़लॉंड्री ने मामले की जड़ तक पहुंचने के लिए उन तीनों लोगों से बात की जिनका स्टिंग किया गया, साथ ही दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से भी संपर्क किया. ‘मदरसा इस्लाहुल मुमिनीर’ के प्रभारी मोहम्मद जाबिर क़ासमी और ‘मदरसा जामिया मोहम्मदिया हल्दोनी’ के मोहम्मद शैख़ बातचीत के लिए राज़ी हो गए जबकि ‘मदरसा दारुल-उल-उलूम उस्मानिया’ के अब्दुल हफ़ीज़ ने सावधानी बरतते हुए मीडिया से दूरी बनाते हुए कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
कथित ‘तहक़ीक़ात’
शुरुआत कुछ अहम सवालों से करते हैं. ये बच्चे लॉकडाउन के दौरान इन मदरसों में रह क्यों रहे थे? क्या वे लॉकडाउन की गाइडलाइन का उल्लंघन कर रहे थे?
इस कड़ी में एक बेहद अहम सवाल है कि मदरसों में रह रहे ये बच्चे कहां के रहने वाले हैं? इसका जवाब राहुल कंवल के एकालाप से नदारद है.
जाबिर और शेख़ दोनों ने ही न्यूज़लॉंड्री से बताया कि उनके यहां पढ़ने वाले सभी बच्चे बिहार के रहने वाले हैं. यह पूरे मामले से जुड़ा एक बेहद अहम पहलू है जिसे इंडिया टूडे ने नज़रअंदाज़ कर दिया कि लॉकडाउन लागू होने की वजह से ये बच्चे अपने घरों को वापस नहीं जा सके.
जाबिर ने तफ़सील से बताते हुए कहा, “बच्चे 11 अप्रैल को घर जाने वाले थे. उनकी टिकट बुक थी. लेकिन वे लॉकडाउन की वजह से नहीं जा सके.”
मूल रूप से बिहार के ही रहने वाले शेख़ ने भी कमोबेश यही कहा, “अगर स्कूल एक अप्रैल से छुट्टी की वजह से बंद होने को हो और अचानक से यात्रा पर प्रतिबंध लग जाए तो ये बच्चे अपने घर कैसे जा सकते हैं?”
जाबिर द्वारा बच्चों की घर वापसी के लिए बुक किया हुआ ट्रेन का टिकट. यात्रा की तारीख़ 11 अप्रैल और गंतव्य भागलपुर, बिहार है.
21 मार्च को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शैक्षणिक संस्थाओं को निर्देश दिया था कि जो बच्चे हॉस्टलों में फंसे हुए हैं वो कोरोना वाइरस संक्रमण के काबू में आने तक कैम्पस में ही रहें. चूंकि मदरसा एक शैक्षणिक संस्थान है तो यह निर्देश उन पर भी लागू होता है. इस तरह देखें तो जाबिर और शेख़ लॉकडाउन की गाइडलाइन का उल्लंघन न करके उसका पालन ही कर रहे थे.
न्यूज़लॉंन्ड्री ने दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन के चेयरमैन ज़फर उल इस्लाम ख़ान से भी बात की. ख़ान ने इस बात की ओर संकेत किया कि मदरसों में पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चे दिल्ली से बाहर के और ग़रीब परिवारों के हैं. उनके शिक्षक के ऊपर ही उनकी सारी जवाबदेही होती है.
क्या मदरसों में बच्चों को ‘छिपाया’ गया था? क्या प्रभारियों का लिंक तबलीगी जमात से है? या उन्होंने निज़ामुद्दीन के आयोजन में शिरकत कि थी? क्या बच्चे ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का पालन कर रहे थे?
न्यूज़लॉन्ड्री ने दिल्ली पुलिस के दक्षिण-पूर्व दिल्ली के अधिकारियों से बात की. तीन में से दो मदरसों का लोकेशन दक्षिण-पूर्व दिल्ली ही है. नाम न बताने की शर्त पर एक अफसर ने कहा कि मदनपुर खादर स्थित दो मदरसों में बच्चों के ‘छुपाए’ जाने की ख़बरसीधे तौर पर फ़र्ज़ी है, झूठ है.
2 अप्रैल को पुलिस ने सब डिवीज़नल मजिस्ट्रेट को दोनों मदरसों में रह रहे बच्चों से जुड़ी जानकारी साझा की थी. कथित ‘स्टिंग’ में दिखाए गए कनेक्शन के ठीक उलट बात दिल्ली पुलिस से सवाल-जवाब में सामने आती है. दिल्ली पुलिस ने साफ़ तौर पर कहा कि जाबिर और शैख़ का न तो तबलीगी जमात से कोई संबंध है न ही वे निज़ामुद्दीन मरकज़ में गए थे.
अब बात करते हैं ग्रेटर नोएडा के मदरसे की
हमने पाया कि इसी मदरसे पर 10 अप्रैल को इंडिया टीवी ने एक रिपोर्ट प्रसारित की थी, जो कि ‘स्टिंग’ नहीं था. रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि कैसे यह मदरसा जिसमें बिहार के 24 बच्चे हैं, ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की मिसाल पेश कर रहा.
मदरसे का मुआयना करने गए एक डॉक्टर ने इंडिया टीवी को बताया कि वहां रह रहे बच्चों में किसी में भी कोविड-19 का कोई लक्षण देखने को नहीं मिला.
वही मदरसा और उसके प्रभारी शेख़ जिसे इंडिया टूडे ने अपने कथित ‘स्टिंग’ में लॉकडाउन का उल्लंघन करते दिखाया उसे इंडिया टीवी की रिपोर्ट में नज़ीर पेश करते दिखाया गया.
न्यूज़लॉंड्री से बातचीत में शेख़ ने कहा, “अल्लाह के करम से हमारे पास जगह की कमी नहीं है.” उन्होंने आगे बताया कि मदरसा 500 गज ज़मीन पर बना है, यानी लगभग 4,456 स्क्वायर फीट.
तबलीगी जमात के आयोजन और कोरोना संक्रमण के संदर्भ में इंडिया टीवी ने बचाव का जिक्र करते हुए मदरसे की तैयारियों की प्रशंसा की. चैनल ने बच्चों को मास्क लगाते हुए, सैनिटाइज़र व साबुन का इस्तेमाल करते दिखाया.
कुछ इसी तरह ‘मदरसा इस्लाहुल मुमिनीर’ के जाबिर ने अपने यहां इंतज़ामों की जानकारी में बताया कि कैम्पस बिल्डिंग तीन मंज़िल की है और हर बच्चे को ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का ख़याल करते हुए अलग बेड मुहैया है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने जाबिर और शेख़ से पूछा कि ‘क्या उनका तबलीगी जमात से संबंध है?’,‘क्या वे उसके आयोजन में गए थे?’
जवाब में शेख़ ने जमात से किसी तरह का संबंध होने कि बात को सिरे से ख़ारिज़ किया. जाबिर ने कहा, “मैं निज़ामुद्दीन टॉफियां और रुमाल ख़रीदने जाया करता था, लेकिन जमात से मेरा किसी भी तरह का जुड़ाव नहीं है.”
इंडिया टूडे के कथित ‘स्टिंग’ में जाबिर यह कहते हुए नज़र आते हैं कि वे तबलीगी जमात के मरकज़ में अपने छात्रों को साथ गए थे. उन्होंने ऐसा क्यों कहा? इसके जवाब में जाबिर कहते हैं, “उन्होंने (चैनल वालों ने) शायद मेरा ऑडियो एडिट कर दिया.”
तो क्या इस संदर्भ में स्टिंग की ज़रूरत थी?
पत्रकारिता में स्टिंग ऑपरेशन के औचित्य को लेकर कई तरह के मत हैं. इसके प्रभाव और नैतिकता को लेकर पत्रकारों और मीडिया पेशेवरों में मतभेद है. इसके समर्थकों का तर्क है कि यह भलाई के लिए इस्तेमाल होने वाला एक आवश्यक दुर्गुण है, जो ताकतवर लोगों की असलियत उजागर करने की ताकत रखता है.
हर स्टिंग ऑपरेशन मीडिया संस्थानों के संपादकों व रिपोर्टरों के सामने कुछ अहम प्रश्न खड़ा करता है. एक तो यही कि क्या यह इतना बड़ा जनहित का मुद्दा था जिसके लिए स्टिंग ही एकमात्र जरिया था, और किसी तरीके से इसे सामने नहीं लाया जा सकता था? क्या वह स्टोरी इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण है जिसे सिर्फ़ स्टिंग के जरिए ही सामने लाया जा सकता है?
इंडिया टूडे के जिस रिपोर्टर ने अपना हुलिया बदल कर जाबिर और शेख़ को एक ही कहानी सुनाई. जाबिर कहते हैं, “उसका नाम आमिर था. वो हमारी तरह कुर्ता पहने हुए हमारे एक ऐसे परिचित के साथ आया जिसने लॉकडाउन के दिनों में बच्चों के लिए इंतज़ाम करने में मदद कि थी.”
इंडिया टूडे की इस पड़ताल की ट्विटर पर जमकर लानत-मलानत हुई. ज़्यादातर लोगों का मानना था कि यह महामारी का सांप्रदायिकरण करने की घिनौनी कोशिश है. लेकिन राहुल कंवल अपनी बात पर अड़े रहे.
लेकिन टीवी चैनल ने मामले से जुड़े कुछ अहम सवालों को नज़रअंदाज़ कर दिया और अपने दर्शकों के सामने कुछ ऐसी ख़बर परोसी: लापरवाह मौलवी ने जानबूझकर छात्रों को मदरसों में रखा, छात्रों और उनके संपर्क में आने वालों की ज़िंदगी जोखिम में डाल दिया. इतना ही नहीं है, इस खबर में मनगढ़ंत सूचनाएं परोसी. लिहाज़ा यह रिपोर्ट दर्शकों को सूचना देने से ज़्यादा भरमाने वाली बन गई.
स्टिंग वीडियो के प्रसारण के ठीक पहले राहुल कंवल ने बड़ा दावा किया कि, “यह मीडिया के सभी माध्यमों में इकलौती इन्वेस्टिगेशन टीम है जो आपके लिए फील्ड में है, और दिखाती है कि वास्तव में वहां क्या हो रहा है.”
काश कंवल की टीम यही उत्साह और जोश इस रिपोर्ट से पैदा हुए कुछ मूलभूत सवालों और उसमें व्याप्त खामियों का जवाब देने में दिखाया होता.
कुछ सवालों की फेहरिस्त न्यूज़लॉन्ड्री ने राहुल कंवल को भेजी है, जवाब आने पर उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
(इस लेख का हिंदी अनुवाद सूरज त्रिपाठी ने किया है.)
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10 अप्रैल को इंडिया टूडे टीवी ने अपने प्राइम टाइम शो ‘न्यूज़ट्रैक’, जिसे राहुल कंवल पेश करते हैं, पर एक ‘स्पेशल इन्वेस्टिगेशन’ प्रसारित किया.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के तीन मदरसों, मदनपुर खादर स्थित ‘मदरसा दारुल-उल-उलूम उस्मानिया’ व ‘मदरसा इस्लाहुल मुमिनीर’ और ग्रेटर नोएडा स्थित ‘मदरसा जामिया मोहम्मदिया हल्दोनी’ के प्रभारियों का ‘स्टिंग’ करते हुए चैनल ने इन्हें ‘मदरसा हॉटस्पॉट’ का नाम दिया.
रिपोर्ट में दिखाया गया कि देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान भी तमाम छात्र मदरसों में रह रहे हैं. शो में एक वीडियो क्लिप भी दिखाई जिसमें कोई मौलाना स्वीकार कर रहा है कि उसने पुलिस को इस ओर ध्यान न देने के लिए घूस दी है.
इंडिया टूडे की व्याख्या यह है कि तीनों मदरसों के प्रभारियों ने लॉकडाउन की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाते हुए जान बूझकर छात्रों को तंग जगह पर पुलिस से छुपाकर रखा. चैनल ने यह दावा भी किया कि इन मदरसों के प्रभारियों का तबलीगी जमात से संबंध है. जिस के बारे में देश के मुख्यधारा मीडिया ने बताया कि निज़ामुद्दीन इलाके के मरकज़ में हुए जलसे के चलते देश में कोरोना का वायरस फैला. लिहाजा इन मदरसों में बंद बच्चों की जान पर बन आई है.
न्यूज़लॉंड्री ने मामले की जड़ तक पहुंचने के लिए उन तीनों लोगों से बात की जिनका स्टिंग किया गया, साथ ही दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से भी संपर्क किया. ‘मदरसा इस्लाहुल मुमिनीर’ के प्रभारी मोहम्मद जाबिर क़ासमी और ‘मदरसा जामिया मोहम्मदिया हल्दोनी’ के मोहम्मद शैख़ बातचीत के लिए राज़ी हो गए जबकि ‘मदरसा दारुल-उल-उलूम उस्मानिया’ के अब्दुल हफ़ीज़ ने सावधानी बरतते हुए मीडिया से दूरी बनाते हुए कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
कथित ‘तहक़ीक़ात’
शुरुआत कुछ अहम सवालों से करते हैं. ये बच्चे लॉकडाउन के दौरान इन मदरसों में रह क्यों रहे थे? क्या वे लॉकडाउन की गाइडलाइन का उल्लंघन कर रहे थे?
इस कड़ी में एक बेहद अहम सवाल है कि मदरसों में रह रहे ये बच्चे कहां के रहने वाले हैं? इसका जवाब राहुल कंवल के एकालाप से नदारद है.
जाबिर और शेख़ दोनों ने ही न्यूज़लॉंड्री से बताया कि उनके यहां पढ़ने वाले सभी बच्चे बिहार के रहने वाले हैं. यह पूरे मामले से जुड़ा एक बेहद अहम पहलू है जिसे इंडिया टूडे ने नज़रअंदाज़ कर दिया कि लॉकडाउन लागू होने की वजह से ये बच्चे अपने घरों को वापस नहीं जा सके.
जाबिर ने तफ़सील से बताते हुए कहा, “बच्चे 11 अप्रैल को घर जाने वाले थे. उनकी टिकट बुक थी. लेकिन वे लॉकडाउन की वजह से नहीं जा सके.”
मूल रूप से बिहार के ही रहने वाले शेख़ ने भी कमोबेश यही कहा, “अगर स्कूल एक अप्रैल से छुट्टी की वजह से बंद होने को हो और अचानक से यात्रा पर प्रतिबंध लग जाए तो ये बच्चे अपने घर कैसे जा सकते हैं?”
जाबिर द्वारा बच्चों की घर वापसी के लिए बुक किया हुआ ट्रेन का टिकट. यात्रा की तारीख़ 11 अप्रैल और गंतव्य भागलपुर, बिहार है.
21 मार्च को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शैक्षणिक संस्थाओं को निर्देश दिया था कि जो बच्चे हॉस्टलों में फंसे हुए हैं वो कोरोना वाइरस संक्रमण के काबू में आने तक कैम्पस में ही रहें. चूंकि मदरसा एक शैक्षणिक संस्थान है तो यह निर्देश उन पर भी लागू होता है. इस तरह देखें तो जाबिर और शेख़ लॉकडाउन की गाइडलाइन का उल्लंघन न करके उसका पालन ही कर रहे थे.
न्यूज़लॉंन्ड्री ने दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन के चेयरमैन ज़फर उल इस्लाम ख़ान से भी बात की. ख़ान ने इस बात की ओर संकेत किया कि मदरसों में पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चे दिल्ली से बाहर के और ग़रीब परिवारों के हैं. उनके शिक्षक के ऊपर ही उनकी सारी जवाबदेही होती है.
क्या मदरसों में बच्चों को ‘छिपाया’ गया था? क्या प्रभारियों का लिंक तबलीगी जमात से है? या उन्होंने निज़ामुद्दीन के आयोजन में शिरकत कि थी? क्या बच्चे ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का पालन कर रहे थे?
न्यूज़लॉन्ड्री ने दिल्ली पुलिस के दक्षिण-पूर्व दिल्ली के अधिकारियों से बात की. तीन में से दो मदरसों का लोकेशन दक्षिण-पूर्व दिल्ली ही है. नाम न बताने की शर्त पर एक अफसर ने कहा कि मदनपुर खादर स्थित दो मदरसों में बच्चों के ‘छुपाए’ जाने की ख़बरसीधे तौर पर फ़र्ज़ी है, झूठ है.
2 अप्रैल को पुलिस ने सब डिवीज़नल मजिस्ट्रेट को दोनों मदरसों में रह रहे बच्चों से जुड़ी जानकारी साझा की थी. कथित ‘स्टिंग’ में दिखाए गए कनेक्शन के ठीक उलट बात दिल्ली पुलिस से सवाल-जवाब में सामने आती है. दिल्ली पुलिस ने साफ़ तौर पर कहा कि जाबिर और शैख़ का न तो तबलीगी जमात से कोई संबंध है न ही वे निज़ामुद्दीन मरकज़ में गए थे.
अब बात करते हैं ग्रेटर नोएडा के मदरसे की
हमने पाया कि इसी मदरसे पर 10 अप्रैल को इंडिया टीवी ने एक रिपोर्ट प्रसारित की थी, जो कि ‘स्टिंग’ नहीं था. रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि कैसे यह मदरसा जिसमें बिहार के 24 बच्चे हैं, ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की मिसाल पेश कर रहा.
मदरसे का मुआयना करने गए एक डॉक्टर ने इंडिया टीवी को बताया कि वहां रह रहे बच्चों में किसी में भी कोविड-19 का कोई लक्षण देखने को नहीं मिला.
वही मदरसा और उसके प्रभारी शेख़ जिसे इंडिया टूडे ने अपने कथित ‘स्टिंग’ में लॉकडाउन का उल्लंघन करते दिखाया उसे इंडिया टीवी की रिपोर्ट में नज़ीर पेश करते दिखाया गया.
न्यूज़लॉंड्री से बातचीत में शेख़ ने कहा, “अल्लाह के करम से हमारे पास जगह की कमी नहीं है.” उन्होंने आगे बताया कि मदरसा 500 गज ज़मीन पर बना है, यानी लगभग 4,456 स्क्वायर फीट.
तबलीगी जमात के आयोजन और कोरोना संक्रमण के संदर्भ में इंडिया टीवी ने बचाव का जिक्र करते हुए मदरसे की तैयारियों की प्रशंसा की. चैनल ने बच्चों को मास्क लगाते हुए, सैनिटाइज़र व साबुन का इस्तेमाल करते दिखाया.
कुछ इसी तरह ‘मदरसा इस्लाहुल मुमिनीर’ के जाबिर ने अपने यहां इंतज़ामों की जानकारी में बताया कि कैम्पस बिल्डिंग तीन मंज़िल की है और हर बच्चे को ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का ख़याल करते हुए अलग बेड मुहैया है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने जाबिर और शेख़ से पूछा कि ‘क्या उनका तबलीगी जमात से संबंध है?’,‘क्या वे उसके आयोजन में गए थे?’
जवाब में शेख़ ने जमात से किसी तरह का संबंध होने कि बात को सिरे से ख़ारिज़ किया. जाबिर ने कहा, “मैं निज़ामुद्दीन टॉफियां और रुमाल ख़रीदने जाया करता था, लेकिन जमात से मेरा किसी भी तरह का जुड़ाव नहीं है.”
इंडिया टूडे के कथित ‘स्टिंग’ में जाबिर यह कहते हुए नज़र आते हैं कि वे तबलीगी जमात के मरकज़ में अपने छात्रों को साथ गए थे. उन्होंने ऐसा क्यों कहा? इसके जवाब में जाबिर कहते हैं, “उन्होंने (चैनल वालों ने) शायद मेरा ऑडियो एडिट कर दिया.”
तो क्या इस संदर्भ में स्टिंग की ज़रूरत थी?
पत्रकारिता में स्टिंग ऑपरेशन के औचित्य को लेकर कई तरह के मत हैं. इसके प्रभाव और नैतिकता को लेकर पत्रकारों और मीडिया पेशेवरों में मतभेद है. इसके समर्थकों का तर्क है कि यह भलाई के लिए इस्तेमाल होने वाला एक आवश्यक दुर्गुण है, जो ताकतवर लोगों की असलियत उजागर करने की ताकत रखता है.
हर स्टिंग ऑपरेशन मीडिया संस्थानों के संपादकों व रिपोर्टरों के सामने कुछ अहम प्रश्न खड़ा करता है. एक तो यही कि क्या यह इतना बड़ा जनहित का मुद्दा था जिसके लिए स्टिंग ही एकमात्र जरिया था, और किसी तरीके से इसे सामने नहीं लाया जा सकता था? क्या वह स्टोरी इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण है जिसे सिर्फ़ स्टिंग के जरिए ही सामने लाया जा सकता है?
इंडिया टूडे के जिस रिपोर्टर ने अपना हुलिया बदल कर जाबिर और शेख़ को एक ही कहानी सुनाई. जाबिर कहते हैं, “उसका नाम आमिर था. वो हमारी तरह कुर्ता पहने हुए हमारे एक ऐसे परिचित के साथ आया जिसने लॉकडाउन के दिनों में बच्चों के लिए इंतज़ाम करने में मदद कि थी.”
इंडिया टूडे की इस पड़ताल की ट्विटर पर जमकर लानत-मलानत हुई. ज़्यादातर लोगों का मानना था कि यह महामारी का सांप्रदायिकरण करने की घिनौनी कोशिश है. लेकिन राहुल कंवल अपनी बात पर अड़े रहे.
लेकिन टीवी चैनल ने मामले से जुड़े कुछ अहम सवालों को नज़रअंदाज़ कर दिया और अपने दर्शकों के सामने कुछ ऐसी ख़बर परोसी: लापरवाह मौलवी ने जानबूझकर छात्रों को मदरसों में रखा, छात्रों और उनके संपर्क में आने वालों की ज़िंदगी जोखिम में डाल दिया. इतना ही नहीं है, इस खबर में मनगढ़ंत सूचनाएं परोसी. लिहाज़ा यह रिपोर्ट दर्शकों को सूचना देने से ज़्यादा भरमाने वाली बन गई.
स्टिंग वीडियो के प्रसारण के ठीक पहले राहुल कंवल ने बड़ा दावा किया कि, “यह मीडिया के सभी माध्यमों में इकलौती इन्वेस्टिगेशन टीम है जो आपके लिए फील्ड में है, और दिखाती है कि वास्तव में वहां क्या हो रहा है.”
काश कंवल की टीम यही उत्साह और जोश इस रिपोर्ट से पैदा हुए कुछ मूलभूत सवालों और उसमें व्याप्त खामियों का जवाब देने में दिखाया होता.
कुछ सवालों की फेहरिस्त न्यूज़लॉन्ड्री ने राहुल कंवल को भेजी है, जवाब आने पर उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
(इस लेख का हिंदी अनुवाद सूरज त्रिपाठी ने किया है.)
इस तरह की मीडिया रिपोर्ट करने के लिए हमें समय, संसाधन और पैसों की ज़रूरत होती है.
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