एनएल चर्चा
Newslaundry Hindi

एनएल चर्चा 112: मुंबई में उमड़ा लोगों का हुजूम और अमेरिका द्वारा डब्ल्यूएचओ की फंडिग पर रोक

एनएल चर्चा का यह लगातार चौथा एपिसोड है जिसमें हम कोरोना वायरस और उससे पैदा हुई वैश्विक चुनौतियों की चर्चा कर रहे है. कोरोना वायरस के अलावा चर्चा के 112वें एपिसोड में 3 मई तक लॉकडाउन बढ़ाए जाने, मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर जुटे हजारों की संख्या में मजदूरों और इस मामले में गिरफ्तार हुए एबीपी माझा के पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता, बांद्रा की तरह ही गुजरात के सूरत में इकट्ठा हुए मजूदर और डोनाल्ड ट्रंप द्वारा विश्व स्वास्थ संगठन की फंडिग पर रोक लगाने आदि विषयों पर चर्चा की गई.

इस बार चर्चा में न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन, शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाथ एस शामिल हुए. चर्चा का संलाचन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल ने कहा कि लॉकडाउन के समय ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं. अफवाहों के कारण मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर हज़ारों की संख्या में लोग इसलिए इकठ्ठा हो गए. ये भीड़ हमें बताती की जो लोग मुंबई, दिल्ली या सूरत में फंसे हुए हैं वे कहीं ना कहीं मजबूरी में फंसे हैं, इसलिए उन्हें जैसे ही मौका मिलता है वे अपने घर जाने के लिए निकल पड़ते हैं. यानि ये लोग वहां कई तरह की मुसीबतों का सामना कर रहे हैं.

मेघनाथ इसके जवाब में कहते हैं, "हमें इस विषय पर विस्तृत चर्चा करने की जरुरत है. जब पहली बार लॉकडाउन की घोषण की गई तब हमने देखा मजदूर हजारों की संख्या में पैदल अपने घरों के लिए निकल पड़े थे, लेकिन उस समय में भी ऐसे भी बहुत से लोग थे, जो हालात पर नज़र बनाए हुए थे, वे इंतजार कर रहे थे की ट्रेन या बस चल जाए तो वे अपने घर जा सके. इन सबके लिए सरकार जिम्मेदार है, अगर देखे तो रेलवे ने इस दौरान भी अपना रिजर्वेशन सेवा चालू रखा था और लोगों के टिकट भी बुक हो रहे थे. फिर प्रधानमंत्री के लॉकडाउन बढ़ाए जाने के फैसले के बाद अचानक से सारे टिकट कैंसल कर दिए गए. इससे लोगों को निराशा हुई. इसलिए हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए.”

आनंद से बातचीत में अतुल कहते हैं- दिहाड़ी मजदूरों की संख्या ज्यादातर बिहार और यूपी की हैं, लेकिन इन प्रदेशों की सरकारों ने अपने स्तर पर महाराष्ट्र या अन्य राज्यों में फंसे मजदूरों के लिए कोई खास इंतजाम नहीं किया है जिससे बाहर रह रहे लोगों में भरोसा पैदा हो.

इस पर आनंद कहते हैं, "हर राज्य सरकार अपने-अपने स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए काम कर रही है. मौजूदा समस्या पर भारतीय नौकरशाही भी कहीं ना कहीं नाकाम साबित हुई है. अगर बिहार सरकार की बात करें तो उसने मजदूरों के लिए कई कदम उठाए है जैसे की उनके लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किया, उनके खातों में पैसा भी जमा कराए. बिहार सरकार के साथ-साथ अन्य राज्यों ने भी अपने स्तर पर इन लोगों की मदद की है. इस मामले का दूसरा पहलू यह भी है कि लॉकडाउन के कारण जब काम बंद हो चुके है तो इतने दिनों तक शहरों में क्यों रुका जाय. जब बस या ट्रेन चल रहीं है तो कोई भी शहर में क्यों रहेगा. मजदूरों का मानना है कि गांव शहर से ज्यादा सुरक्षित हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग अपने गांवों के तरफ जा रहे है."

मध्यप्रदेश के हालात की जानकारी देते हुए शार्दूल कहते हैं, “मध्यप्रदेश देश में कोरोना का हॉटस्पाट बन चुका है. इसका प्रमुख केन्द्र इंदौर है जहां पर 696 (अब मरीजों की संख्या 841 हो गई है) मरीज मिले हैं वहीं भोपाल में 168 मरीज हैं. भोपाल के मरीजों के साथ अजीब विडंबना है कि वहां स्वास्थ्यकर्मी और प्रशासनिक अधिकारी सबसे ज्यादा कोविड से ग्रसित हैं. इंदौर शहर में शुरुआत में जो मरीज मिले उनकी कोई ट्रैवेल हिस्ट्री नहीं थी, तो यह अनुमान लगाना सही नहीं है कि बड़े शहरों के मुकाबले छोटे शहर सुरक्षित हैं.”

इसके अलावा भी कोविड-19 के विविध पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई. पूरी चर्चा सुनने के लिए पॉडकास्ट सुने. न्यूजलॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

पत्रकारों की राय, क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.

शार्दूल कात्यायन

इन्फेक्शन एंड इनइक्वालिटी:पाल फार्मर की किताब

द जर्नी: गेम

अमेजन सीरीज – द बॉयज

आनंद वर्धन

ऑल इंडिया रेडियो पर कोविड की चर्चाएं

मेघनाथ

टाइगर किंग - नेटफ्लिक्स डाक्यूमेंट्री

अतुल चौरसिया

क्यूबा एंड द कैमरामैन - नेटफ्लिक्स डाक्युमेंट्री

आप इन चैनलों पर भी सुन सकते हैं चर्चा: Apple Podcasts | Google Podcasts | Spotify | Castbox | Pocket Casts | TuneIn | Stitcher | SoundCloud | Breaker | Hubhopper | Overcast | JioSaavn | Podcast Addict | Headfone

Also Read: एनएल चर्चा 111: दो डॉक्टरों के अनुभव और एक सर्वाइवर की आपबीती

Also Read: नोएडा के दिहाड़ी मजदूर: ‘‘सरकारी खाना मिल जाता है तो खाते हैं, नहीं तो उपवास’’