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प्रोफ़ेसर हार्डी: रामानुजन पर ट्रिनिटी (कैम्ब्रिज) को अभिमान होना उचित है
प्रोफ़ेसर हार्डी का रामानुजन की प्रतिभा को निखारने में और मौके देने में अभूतपूर्व योगदान था. रामानुजन प्रोफ़ेसर हार्डी के पास इंग्लैण्ड में मात्र पांच साल ही रहे. इन पांच वर्षों में रामानुजन को हार्डी ने हर प्रकार से सुविधाएं दीं और उनका व्यक्तिगत तरीके से ख्याल रखा. रामानुजन को “रॉयल सोसाइटी के फेलो” के रूप में चयन करवाने के लिए भी उन्होंने अनगिनत कोशिशें कीं. प्रोफ़ेसर हार्डी रामानुजन के गुरु और मित्र दोनों थे.
सन 1919 में कैम्ब्रिज में पांच वर्ष गुज़ारने के बाद रामानुजन गिरते स्वास्थ्य के कारण वापस भारत आ गए थे. 26 अप्रैल, 1920 को रामानुजन लम्बे समय तक खराब स्वास्थ्य के कारण सुबह ही अचेत हो गये और कुछ घंटों बाद वह चिर निद्रा में सो गये. रामानुजन की मृत्यु की खबर जब प्रोफ़ेसर हार्डी तक पहुंची तो उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय समेत रॉयल सोसाइटी आदि संस्थानों में रामानुजन की याद में शोक-सभाएं आयोजित करवायीं.
स्वयं हार्डी बहुत ही ऊंचे दर्जे के गणितज्ञ थे, लेकिन वह हमेशा कहते थे कि उनके जीवन की सबसे बड़ी खोज रामानुजन हैं. बर्ट्रेंड रसेल को एक बार उन्होंने उत्साहित होकर कहा था, “तुम नहीं जानते, मैंने दूसरा न्यूटन खोज लिया है.”
प्रोफ़ेसर जीएच हार्डी. ने रॉयल सोसाइटी के तत्कालीन अध्यक्ष और महान भौतिकविद प्रोफ़ेसर जेजे थॉमसन के नाम एक पत्र लिखा था जिसमें रामानुजन की मृत्यु के बाद ट्रिनिटी और रॉयल सोसाइटी के द्वारा रामानुजन के स्मरण में कुछ किये जाने की सलाह दी थी. यह जेजे थॉमसन वही वैज्ञानिक हैं जिन्हें इलेक्ट्रान की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार मिल चुका था-
प्रोफ़ेसर जीएच हार्डी का प्रोफ़ेसर जेजे थॉमसन के नाम पत्र
मई 1920
प्रिय प्रोफ़ेसर थॉमसन,
मुझे अभी हाल में ही भारत से ख़बर मिली कि रामानुजन की मृत्यु हो गई है. मेरे लिए यह एक बहुत गहरा झटका है: क्योंकि मैंने सोचा था कि वह यहां से जाने से पहले बीमारी से एकदम ठीक होना शुरू हो गया था.
क्या ट्रिनिटी रामानुजन की याद में छोटे स्तर पर ही सही मगर स्थायी श्रद्धांजलि दे सकता है? आखिरकार वह एक सर्वाधिक अविश्वसनीय प्रतिभाशाली व्यक्तित्व था, जिसके लिए ट्रिनिटी को भी अभिमान होना उचित है. मुझे विदेशों से बस अभी से सुनाई देना शुरू हुआ है कि वे सभी लोग रामानुजन के काम से कितना अधिक प्रभावित हैं!
एक यह सम्भावना (हालांकि बाकी संभावनाओं की तरह बेहतर) हो सकती है कि उसके सारे उपलब्ध कार्यों की एक संपादित पुस्तक प्रकाशित की जाये, इस तरह उसके द्वारा छोड़ी गई सभी पांडुलिपियों को मिलाकर जितने भी संस्करण बन जाएं. बेशक मद्रास विश्वविद्यालय भी यह करने के लिए प्रस्ताव रखेगा: मैं नहीं जानता कि उनके पास यह करने के लिए कितनी आर्थिक मदद उपलब्ध है. ऐसी परिस्थिति में, किसी अन्य प्रकार से श्रद्धांजलि देना अधिक उचित रहेगा. क्या आप यह प्रश्न (ट्रिनिटी) परिषद के समक्ष रख सकते हैं? मैं इस बारे में बहुत ही स्पष्ट हूं कि किसी भी प्रकार का कोई क्रियाकलाप तार्किक और राजनैतिक दोनों प्रकार से गरिमापूर्ण होगा.
भवदीय
जीएच हार्डी
(इस मामले में आपके लिए यह भी अच्छा होगा कि आप एक बार लिटिलवुड से भी इस बारे में मशविरा ले लें.)
इस पत्र के कारण बाद में रॉयल सोसाइटी, ट्रिनिटी (कैम्ब्रिज) और मद्रास विश्वविद्यालय की आर्थिक सहायता से रामानुजन के शोध-कार्य के संकलित संस्करण प्रकाशित किये गए.
(पत्र का हिंदी अनुवाद डॉ. मेहेर वान ने किया है)
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