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भय, आशंका और अफवाहों ने मिलकर रचा पालघर का हत्याकांड

"रात के 10:30 बजे थे. अचानक एक काले कपड़े पहने हुए, ऊंची कद-काठी के आदमी ने दरवाजा खोला, उसने अपना मुंह कपड़े से ढंक रखा था. वो तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ा पर जब मैं चिल्लाई तो वो भाग गया."

ये 34 वर्षीय रेणुका देशक का 12 अप्रैल की रात का विवरण है. रेणुका महाराष्ट्र में पालघर की दहानु तहसील के निकने गांव की निवासी हैं. वो कहती हैं कि मैं चिल्लाई और गांव वाले दौड़ते हुए मेरे घर की तरफ आ गए, बकौल रेणुका "वो एक चोर था".

गांव वालों ने पूरे इलाके को खंगाला, पर कोई नहीं मिला. उस रात बहुत से लोगों ने सारनी के पड़ोस के गांव में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को फोन कर आग़ाह किया कि, "चोर पहाड़ियों में भाग गये हैं और सारनी की तरफ आ सकते हैं."

अगले चार दिनों में, लंबे और हट्टे-कट्टे चोरों की अफवाहें पालघर जिले में दहानु से शुरू होकर तालसरी से लेकर विक्रमगढ़ तहसील तक, फोन और व्हाट्सएप के ज़रिए तेज़ी से फैल गईं. डर, आग की तरह फैला जिसमें उन्माद ने घी का काम किया. ये सब 16 अप्रैल की रात को दहानु में, गढ़चिंचली के गांव वालों के हाथ दो साधुओं और उनके ड्राइवर की निर्मम हत्या के रूप में फलीभूत हुआ.

ये सभी गांव गढ़चिंचली से 50 से 70 किलोमीटर की दूरी पर हैं.

दोनों साधू, 70 वर्षीय महंत कल्पवृक्ष गिरी और 35 वर्षीय सुशील गिरी महाराज कांदिवली के आश्रम में रूके हुए थे. 16 अप्रैल को, अपने गुरु महंत श्री राम गिरी के अंतिम संस्कार में सूरत जाने के लिए, इन दोनों ने एक गाड़ी किराए पर ली जिसका ड्राईवर 30 वर्षीय नीलेश येलगड़े था.

इन लोगों को पहले पालघर में गढ़चिंचली के पास वन विभाग के अधिकारियों ने रोका था. उसके कुछ ही देर बाद गाड़ी को पत्थर, डंडों और कुल्हाड़ियों से लैस गांव वालों ने घेर लिया. पुलिस वालों के होते हुए भी तीनों पर भीड़ ने हमला किया, और उनकी हत्या कर दी गई.

इस हत्या ने पूरे देश की भावनाओं को उद्वेलित कर दिया. मृतकों में हिंदू साधुओं के होने की वजह से सोशल मीडिया पर कई प्रभावशाली लोगों ने इस घटना को साम्प्रदायिक मोड़ दिया, बावजूद इसके कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने आधिकारिक तौर पर स्पष्ट कर दिया था कि गिरफ्तार किए गए 101 लोगों में से एक भी मुसलमान नहीं है. रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी इस मौके पर कुछ ज्यादा ही आगे निकल गए. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी पर इटली के लोगों के साथ साज़िश करके "साधुओं की हत्या" करवाने का आरोप लगाया.

पर असल में उस पूरे हफ्ते क्या हुआ जिसकी परिणति एक सामूहिक हत्याकांड में हुई?

अफवाहों की श्रृंखला

रेणुका न्यूज़लॉन्ड्री को बताती हैं कि 12 अप्रैल की रात जब "चोर" उनके घर में घुस आया, "जब मैं चिल्लाई तो वो निकल भागा और गा़यब हो गया". गांव वालों ने करीब आधे घंटे तक इलाके में ढूंढा पर कोई नहीं मिला.

अगले दिन, एसएम देशक, निकने ग्राम पंचायत के सरपंच इस घटना की रिपोर्ट लिखाने कासा थाने पर गए, न्यूज़लॉन्ड्री ने इस रिपोर्ट की प्रति देखी. वे अपनी रिपोर्ट में कहते हैं, "12 अप्रैल की रात को एक अनजान व्यक्ति निकने गांव में घूमता देखा गया. गांववासियों ने उसे पकड़ने की कोशिश की पर वो निकल भागा. गांव के अंदर एक डर का माहौल बन गया है, अतः मेरी आपसे विनती है कि इस मामले की जांच करें."

दो घंटे बाद पुलिस पूछताछ के लिए गांव गई और 14 अप्रैल को लौटी. "उसके बाद हमारे गांव में कोई अजनबी नहीं दिखा पर लोग रात को पहरा देते रहे". सरपंच देशक आगे कहते हैं, "15 अप्रैल को पुलिस ने ग्राम पंचायतों की एक बैठक की जिसमें उन्होंने हमें समझाया कि अगर हम चोर को पकड़ लें तो उसे पीटें नहीं, बल्कि उसको पुलिस के हवाले कर दें."

रात को डर चरम पर पहुंच जाता था. बहुत से गांव वाले डंडे और मशालें लेकर सुबह तक गांव के चारों ओर गश्त लगाते थे. जैसा कि देशक बताते हैं, “पूरे दहानु और तालसरी में अफवाहों ने घर कर लिया था.”

सारनी गांव के सरपंच शांताराम दागला कहते हैं कि अफवाहें 12 अप्रैल को सारनी पहुंचीं जिससे गांव के लोग बहुत "भयाक्रांत और आक्रोशित" हो गए थे. "12 अप्रैल की रात, बहुत से गांव के लोगों को निकने में रहने वाले उनके मित्रों के फोन आये, उन लोगों ने बताया कि चोर यहां से निकल भागे हैं और पहाड़ियों के रास्ते सारनी में घुस सकते हैं." "कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने चोरों को देखा पर पकड़ नहीं पाये, कुछ कह रहे हैं कि उन्होंने चोरों का पीछा किया पर वो गायब हो गए. ये अफवाहें पालघर के कई घरों में फैल गईं, और सब यही कहती थीं कि चोर लंबे-चौड़े, हट्टे-कट्टे हैं और मुंह पर कपड़ा बांधे रहते हैं."

शांताराम आगे बताते हैं कि ऐसा गांवों में अक्सर होता है, "गांव के लोग दूसरे गांवों में अपने रिश्तेदारों को फोन करते हैं और अफवाहें फैलती जाती हैं."

हत्या से पहले की हिंसा

16 अप्रैल की हत्या से पहले इलाके में दो और हिंसक घटनाएं हो चुकी थीं.

डॉ विश्वास वल्वि, जो गांव में राशन बांटने आए थे, उन पर गांव वालों ने चोर समझ कर हमला कर दिया. शांताराम कहते हैं, "करीब रात के 8:45 बजे डॉ विश्वास और उनके दो सहयोगी अपनी कार से जा रहे थे. हमारे गांव के लोग सारनी के पास की सड़क पर गश्त लगा रहे थे, उन लोगों ने कार को रोका और रास्ता जाम कर दिया."

शांताराम बताते हैं कि वे वहीं थे और उन्होंने डॉ विश्वास की आईडी देखी.

शांताराम ने कहा, "मुझे पता चला कि वह एक डॉक्टर है, लेकिन कई ग्रामीण इस पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थे. वे बार-बार यही कहते रहे कि कार में तीनों लोग चोर थे. अफवाहों का असर ऐसा था कि गांव के लोगों ने उन पर विश्वास करने से इनकार कर दिया. ग्रामीणों को बहुत संदेह हुआ और वे पूछते रहे कि रात में राशन क्यों बांटा जा रहा है.” आखिर में पुलिस को बुलाया गया, जिनके लाठीचार्ज करने पर गांव के लोगों ने पथराव भी किया.

विश्वास ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वह बाल-बाल बचे. वह उरसे गांव में राशन बांटने जा रहे थे जब उनकी कार को गांव वालों की भीड़ ने रोक लिया. "वह तो शुक्र है कि सरपंच मुझे जानते थे पर उनके पहचानने के बाद भी 200 लोगों से ऊपर की भीड़ उनकी बात मानने को तैयार नहीं थी. वे लोग नशे में थे और उनमें से कुछ मुझे मारने के लिए चिल्ला रहे थे, मैंने उन्हें समझाया पर वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थे."

विश्वास कहते हैं कि पुलिस पास में ही गश्त लगा रही थी और उन्होंने पुलिस को बुलाया. "पुलिस ने गांव वालों को समझाने की भरसक कोशिश की पर भीड़ पीछे नहीं हट रही थी. अंततः पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा, जिसके बाद गांव वालों ने हम पर पथराव शुरू कर दिया. किसी तरह हम वहां से जान बचाकर भागे."

विश्वास सिहरते हुए बताते हैं कि गढ़चिंचली में इन तीन हत्याओं की बारे में सुनकर वह सकते में पड़ गए. "उनकी बहुत निर्मम हत्या हुई. वह केवल एक संयोग ही था कि हम वहां से भाग पाए, संयोग ही नहीं, एक बहुत बड़ी खुशकिस्मती."

हिंसा की दूसरी घटना धनीवारी गांव के पास एक ढाबे में हुई थी.

गांव के सरपंच काशीराम हंडवा बताते हैं कि अफवाहें धानीवारी में 13 अप्रैल से फैलने लगीं थी. ग्रामीणों ने "चोरों" को पकड़ने के लिए गांव के अंदर और चारों ओर गश्त लगाना शुरू कर दिया, जो कई बार पूरी रात चलती थी.

कांशीराम कहते हैं, "मेरे गांव के लोगों ने, ढाबे पर काम करने वाले कुछ प्रवासियों को ही चोर समझ लिया. वे आठ लोग लॉकडाउन की वजह से बंद पड़े हुए ढाबे में ही रह रहे थे. गांव वालों ने यह कहते हुए कि ढाबे में चोर छुपे हुए हैं, उन पर हमला कर दिया. न जाने कैसे हम उन्हें रोक पाए, और पुलिस को बुलाया. पुलिस के आने पर गांव वाले भाग गए."

वह खेद प्रकट करते हुए आगे बताते हैं, "तथाकथित चोरों की जानकारी बिना किसी प्रकार की पुष्टि किए ही आगे बढ़ाई जाती रही. उन निरीह साधुओं की मृत्यु का कारण सांप्रदायिक या राजनीतिक टकराव नहीं, वे मारे गए तो बस अफवाहों और झूठे संदेशों की वजह से."

अफवाहों ने इस क्षेत्र को अत्यधिक खूंखार बना दिया

रंकोल, गंजड़ और कासा गांव के सरपंचों की भी कहानियां कुछ ऐसी ही थीं.

13 अप्रैल को, इलाके में "चोर" घात लगा रहे हैं, ऐसी अफवाहें रंकोल में आग की तरह फैलने लगीं. रंकोल के सरपंच दिलीप गडग, उस रात 10 बजे सोए हुए थे जब उनका फोन बज उठा.

"मुझे एक गांव के व्यक्ति ने फोन किया जिसको, उसके एक रिश्तेदार ने गंजड़ से फोन किया था." दिलीप बताते हैं, "उसने मुझे बताया कि चोर गंजड़ गए थे पर निकल भागे, और अब वह रैताली की तरफ जा रहे हैं, जो रंकोल से ज्यादा दूर नहीं है. उसने मुझे सचेत रहने के लिए कहा और पांच ही मिनट बाद, एक व्यक्ति जिसको मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं, उन्होंने मुझे रैताली से फोन करके कहा कि चोर हमारे गांव की तरफ आ रहे हैं."

दिलीप को तीसरा फोन कुछ ही मिनट बाद आया, और इस बार उन्हें बताया गया कि, चोर गांव की आश्रमशाला या विद्यालय के पास कहीं हैं. "दो ही मिनट बाद मुझे गांव वालों के कई फोन आए जिसमें वह कह रहे थे कि उन्होंने चोर का पीछा किया पर वह अचानक गायब हो गया."

दिलीप के अनुसार इन अफवाहों ने वातावरण को "अत्यंत तनावपूर्ण" बना दिया था. "14 अप्रैल को पुलिस में एक शिकायत लिखाई गई क्योंकि कुछ गांव वालों ने नल्लासोपारा के दो लोगों को गांव छोड़कर जाने की धमकी दी. कासा थाने के अधिकारियों ने मुझे इस शिकायत के सिलसिले में आने को कहा, पर मैंने उन्हीं से गांव आने की विनती करी, क्योंकि इन अफवाहों के चलते बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं था."

दिलीप इंगित करते हैं कि ग्रामीण, डंडे और हथियार लिए गांव की गश्त लगा रहे थे, "अगर वह गलती से मुझे चोर समझ लेते तो हमला भी कर सकते थे." पुलिस रात को इस शिकायत की जांच करने रंकोल पहुंची, पर क्योंकि उनकी गाड़ी में पुलिस की लाइट नहीं थी तो 15-16 ग्रामीण यह समझकर उसकी तरफ दौड़े, कि शायद उसमें चोरों को ले जाया जा रहा है. पुलिस के बाहर आने पर ही वह पीछे हटे."

वे कहते हैं कि अभी तक किसी ने चोर को देखा नहीं था, बस उनके बारे में सुन रखा था या मैसेज पढ़ रखे थे. "अफवाहों से यह क्षेत्र बहुत खतरनाक हो गया है, अफवाहें निकने से शुरू हुईं पर उन्होंने कई गांवों को अपने आगोश में ले लिया."

गंजड़ के सरपंच निवास वर्था इस बात से सहमति रखते हैं. उनके अनुसार गंजड़ में अफवाहें और विस्तृत थीं. "अफवाहें उड़ने लगी कि चोर रात में आते हैं, और बच्चों को उनके गुर्दे निकालने के लिए चुरा कर ले जाते हैं. ग्रामीण गुस्से से पागल हो गए, और तीन-चार दिन तक हाथों में लाठियां और मशालें लेकर चोरों को ढूंढने के लिए रात भर गश्त लगाते रहे. अगर कोई हंसी में ही चिल्ला भी देता था, तो उसके पीछे सभी गांव वाले चोर-चोर चिल्लाते हुए दौड़ पड़ते थे.”

कासा ग्राम पंचायत के सरपंच, रघुनाथ गायकवाड़ के अनुसार, इन अफवाहों ने दहानु, तालसरी और आसपास के ग्रामीण क्षेत्र से खासतौर पर रात को सफर करना बहुत खतरनाक बना दिया था. उन्हें भी इन चोरों के बारे में 13 अप्रैल से फोन आने लगे थे.

वे बताते हैं, "कासा एक बड़ी ग्राम पंचायत है जिसमें 4 गांव आते हैं. मुझे और गांव के पंचायत कर्मियों से फोन आए, घोल के एक पंचायतकर्मी ने मुझे बताया कि वह बहुत चिंतित है. उसे अंदेशा था कि लाठी लेकर घूम रहे ग्रामीणों की पकड़ में अगर कोई आया, तो परिस्थिति खतरनाक रूप ले सकती है."

और अब गढचिंचली की हत्याओं के बाद भी अफवाहें शांत नहीं हुई हैं.

बहुत से सरपंचों ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि भय और संदेह की आबोहवा अभी भी बनी हुई है. हत्याओं के केवल एक दिन बाद ही तमिलनाडु के एक आदमी पर डहाणू के घोलवड गांव के 17 लोगों ने चोर समझकर हमला किया. पुलिस उसे किसी तरह बचाने के बाद अस्पताल ले गई.

कैसे व्हाट्सएप संदेशों ने अफवाहों को हवा दी

न्यूजलॉन्ड्री ने दहानु में बनाए गए दो व्हाट्सएप ग्रुप्स में प्रवेश लेकर संदेशों को देखा. दोनों ही समूहों में अनेक संदेश थे जो "बच्चा चोरों" के गांव में घूमने की चेतावनी दे रहे थे.

14 अप्रैल को पालघर वासियों के एक ग्रुप में जिसका नाम "बातामी आदिवासी समाजातील" या "आदिवासी समाज की खबरें" है, कमलेश कतेला नामक व्यक्ति ने यह संदेश भेजा:

"मित्रों, सावधान. 12 अप्रैल 2020 की रात रनशेत, वधना, निकने, गंजड़ और सारनी में चोर घुस आए. यह सारे चोर लंबे, हट्टे-कट्टे और मुसलमानों के जैसे दिखाई देते हैं. यह खिड़कियों से अंदर झांककर देखते हैं और अगर अंदर छोटे बच्चे या किशोर हों तो घर में घुस जाते हैं. मित्रों, मेरी आपसे विनती है कि इस संदेश को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें."

व्हाट्सएप पर प्रसारित हुए मैसेज.

कमलेश का एक दूसरा संदेश उसी ग्रुप में कहता है: "बच्चा चोर, नागझड़ी और अंबेसरी गांव के आसपास घूम रहे हैं. वह सभी गांवों में घूम रहे हैं, तो मेरे आदिवासी भाइयों सावधान रहिए. मैं फिर कह रहा हूं, चोर जो बच्चों को उठा ले जाते हैं, गांवों में घूम रहे हैं. अंबेसरी और नागझड़ी पहुंच चुके हैं, सावधान रहें."

एक दूसरे सदस्य ने इस जानकारी की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाया, कि उसे केवल तभी साझा करना चाहिए अगर वह सत्य हो.

कमलेश ने जवाब दिया: "हां, खबर सही है. लोग कह रहे हैं कि एक चोर, जो धनविरी, चिंचले, नागझड़ी और अंबेसरी में घूम रहा था, हमारे सांसवड में चिंचले से आया, और नदी की पट्टी लेकर भाग निकला. वहां 5 लोग थे, उनमें से तीन तो दर्जी के यहां भाग गए… मैंने यह मैसेज अपने आदिवासी भाइयों को सावधान करने के लिए पोस्ट किया है."

यह मैसेज 14 अप्रैल को सुबह 9:40 से 11:50 के बीच में पोस्ट हुआ था.

उसी ग्रुप में एक रमा उराड़े नामक व्यक्ति ने कमलेश के संदेश पर उत्तर यह कहकर दिया, "यह सही है कि जो रात में आए दिन चोरियां होती हैं. पर अभी तक उन्होंने किसी के घर से कुछ भी नहीं चुराया है. मुझे आज ही जानकारी मिली कि चोर गंजड़ में, एक पंचायत सदस्य के घर में घुस गए थे."

उसी दिन, अंबेसरी के रहने वाले रामदास कटाले ने कमलेश के मैसेज को एक दूसरे ग्रुप "बतामी दहानू तालुक्याची" या "दहानु तहसील की खबरें" में साझा किया.

न्यूजलॉन्ड्री ने कमलेश से संपर्क करने की कोशिश की पर उनका फोन स्विच ऑफ था. न्यूजलॉन्ड्री ने रामदास टकाले और रमा उराड़े से भी संपर्क किया और उनसे पूछा कि उन्होंने व्हाट्सएप पर अफवाहें क्यों फैलाईं?

रामदास का कहना था, "मुझे यह संदेश एक ग्रुप में मिला जिसे मैंने आगे 2 ग्रुपों में साझा कर दिया, जिसमें से एक परिवार का ग्रुप भी है. मैंने तो हमेशा की तरह ही साझा किया. जब सब गांव वाले रात को पहरा दे रहे थे तो मुझे लगा यह खबर सच्ची है."

रामदास ने यह भी बताया कि उन्होंने व्हाट्सएप ग्रुप्स में एक चिट्ठी साझा होते हुए देखी थी, जो निकने ग्राम पंचायत की लग रही थी, जिसमें कहा गया था कि गांवों में एक "अनजान व्यक्ति" घूम रहा है.

उन्होंने यह भी दावा किया कि, "मैंने गांवों में लोगों से यह भी सुना कि कुछ लोग बच्चों को चोरी करके उनके गुर्दे बेच देते हैं. मैंने उसे बस एक बार साझा किया और फिर बाद में डिलीट कर दिया. वह साझा करना मेरी गलती थी. मुझे उन साधुओं की हत्या पर अत्यधिक खेद है. गांव वालों ने उन्हें बिना बात ही मार दिया."

रमा उराड़े जो तलासरी तहसील में वेवजी के निवासी हैं, "बतानी आदिवासी समाजतील" के ग्रुप प्रबंधक हैं. वह काफी झिझक रहे थे यह समझाने में कि उन्होंने कमलेश के दावों को बिना पोस्ट किए क्यों वितरित किया. "मुझे पता नहीं था कि यह झूठी ख़बर है."

दहानु के नागरिकों ने व्हाट्सएप के संदेशों में से कुछ को फेसबुक पर भी साझा किया. उदाहरण स्वरुप 15 अप्रैल को, महेश टंडेल ने कमलेश के "चोर जो खिड़कियों से बच्चों को ढूंढने के लिए झांकते" हैं वाला संदेश साझा किया.

महेश ने एक और मैसेज साझा किया जो यह कहता था कि चोरों ने दहानू तहसील को "भयाक्रांत" कर रखा है. "चोरों को, रंकोल, ऐने, दाभों, डभाले, गरगांव, रैताली, गंजड़, पिंप्लेशेट, वधना, रंनशेट, अवधनी, धानीवरी, डपचरी, सारनी, साये, उर्षे, अंबोली, चिंचड़े, घोल, भराड, धमतने, सार्षी, महालक्ष्मी गांव में देखा गया."

उन्होंने लिखा, "कृपया सावधान रहें. और भी बहुत सारे गांव हैं और चोरों को इन्हीं गांव में देखा गया. लोगों को सावधान रहना चाहिए."

जब भी किसी ने महेश से फेसबुक पर पूछा कि, "क्या उसने चोरों को अपनी आंखों से देखा था" तो उनका जवाब हां था. न्यूजलॉन्ड्री ने महेश को अपने प्रश्न भेजे पर उसने कोई जवाब नहीं दिया.

पालघर के पुलिस अधीक्षक गौरव सिंह ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि गढ़चिंचली में हत्याओं का मुख्य कारण अफवाहें थी.

गौरव के अनुसार, "यह चोरों के बारे में अफवाहें ही थीं, चोर आते हैं, चोरी करते हैं, बच्चे चुराते हैं, उनके गुर्दे बेच देते हैं. अफवाहें बातों से और व्हाट्सएप के द्वारा ही फैलती हैं. इस घटना के कारणों में व्हाट्सएप संदेशों का बहुत बड़ा हाथ है, क्योंकि यह सारी जगहें एक दूसरे से काफी दूरी पर हैं. अन्यथा केवल कानाफूसी से अफवाहें इतनी दूर तक नहीं फैलती हैं."

"यह अफवाहें इतनी सशक्त रूप से कैसे फैल गईं, यह जांच का विषय है और हम वह जांच कर रहे हैं."

जमीन पर कोई राजनीति नहीं हो रही

गढ़चिंचली की घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई (मार्क्सिस्ट), एक दूसरे पर दोषारोपण करने में लगे हैं. जहां कांग्रेस, भाजपा पर इस इस घटना का राजनीतिकरण करने का आरोप लगा रही है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने एनसीपी और सीपीआईएम पर घटना में मिलीभगत होने का आरोप लगाया है.

लेकिन स्थानीय नेताओं ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि, राजनैतिक मतभेद होने के बावजूद भी सभी लोग जमीन पर भीड़ को संभालने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं.

काशीनाथ चौधरी कासा गांव के स्थानीय एनसीपी के नेता हैं. 16 अप्रैल की रात को 10:00 बजे पुलिस ने उन्हें बताया कि गांव वालों ने गढ़चिंचली के पास एक गाड़ी को रोक लिया है, और उसके यात्रियों पर हमला कर रहे हैं.

"पुलिस ने मुझे साथ चलने के लिए कहा. हम उस स्थान पर 4 गाड़ियों में पहुंचे. वहां हजारों लोग नशे में धुत खड़े थे. यात्रियों को मारा गया था और उनकी गाड़ी को पलट दिया गया था."

काशीनाथ बताते हैं कि वहां पहुंचने के बाद, पुलिस ने एक साधु और उनके ड्राइवर को अपनी गाड़ी में बिठा लिया‌. पर जब उन्होंने वृद्ध साधु महंत कल्पवृक्ष गिरी को बिठाने की कोशिश की तो भीड़ ने उन पर हमला कर दिया.

पलटी हुई गाड़ी

"भीड़ काबू के बाहर थी. उन्होंने पुलिस पर हमला किया और हम पर हमला करने की अगुवाई की. साधु और उनके ड्राइवर को मारने के बाद, भीड़ तितर-बितर हो गई."

काशीनाथ के अनुसार, भले ही पार्टियों के वरिष्ठ नेता एक दूसरे पर "कीचड़ उछालने" में लगे रहें, पर जमीन पर सब पार्टियां मिलकर काम करती हैं.

वे जिक्र करते हैं, "भाजपा नेत्री चित्रा चौधरी, जो गढचिंचली ग्रामसभा की सरपंच हैं, अपने पति के साथ वहां पर थीं. वह अपनी तरफ से भीड़ को शांत करने की पूरी कोशिश कर रही थीं, पर वे सुनने को तैयार नहीं थे. भीड़ के छंट जाने के बाद, हम सभी वहां सुबह तक रुके. इस हमले के पीछे कोई राजनीति नहीं थी, यह सब केवल झूठी खबरों और अफवाहों के कारण हुआ."

वे बताना नहीं भूलते, "हम सभी मिलकर काम कर रहे हैं. अलग-अलग पार्टियों में जो वरिष्ठ नेता कर रहे हैं वह ठीक नहीं है. इस भयावह घटना का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए."

न्यूजलॉन्ड्री ने चित्रा चौधरी जो गढचिंचली की सरपंच हैं, उन्हें संपर्क करने की कोशिश की परंतु संपर्क नहीं हो पाया.

पुलिस की कर्मण्यता या अकर्मण्यता

पालघर पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी, हेमंत काटकर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि गढ़चिंचली की 700-800 लोगों की भीड़ के सामने केवल 12 पुलिस वाले थे.

उनके अनुसार, "पुलिस ने उन सब की जान बचाने का पूरा प्रयास किया पर पुलिसकर्मी पर हमला हो गया. हमारे भी 4 लोग अस्पताल में हैं, यह अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है."

उनका दावा है की भीड़ का संख्या में बहुत ज्यादा होना ही हवा में फायर न करने का भी कारण था. ऐसा करने पर वह पुलिस के खिलाफ भी बहुत उग्र हो सकते थे.

कासा थाने के 2 पुलिसकर्मी, असिस्टेंट इंस्पेक्टर आनंदराव काले और सब इंस्पेक्टर सुधीर कटारे दोनों को अपने दायित्व के निर्वाह ना करने के लिए सस्पेंड कर दिया गया है, इस घटना की जांच के आदेश भी हो चुके हैं.

110 लोग, जिनमें से 9 नाबालिग हैं, पालघर पुलिस के द्वारा इन तीन हत्याओं के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए हैं. नाबालिगों को बाल सुधार गृह और बाकियों को हिरासत में ले लिया गया है. 20 अप्रैल को यह केस महाराष्ट्र के गुन्हा अन्वेषण विभाग (सीआईडी) को आगे की जांच के लिए सौंप दिया गया है.

सीआईडी के सहायक महानिदेशक अतुलचंद्र कुलकर्णी ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "जांच को हमने अपने हाथ में ले लिया है. अभी हम इस बारे में कुछ नहीं कह सकते क्योंकि जांच अभी शुरु ही हुई है."

(हिंदी अनुवाद शार्दूल कात्यायन)

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