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झारखंड: सहारा के पत्रकार पर एफआईआर, जाना पड़ा जेल
पत्रकार- हां, साहब, सहारा से बसंत साहू, चांडिल से बोल रहे हैं सर.
डिप्टी कमिश्नर- क्या हुआ?
पत्रकार- हम लोगों के एरिया में भी हुआ है क्या. सरायकेला जिला में.
(पत्रकार कोरोना की बात कर रहे हैं. उनकी बात को काटते हुए डिप्टी कमिश्नर बोलने लगते हैं)
डिप्टी कमिश्नर- नहीं हुआ है. टेंशन मत लेना. शांति से रहो. सो जाना घर पे.
पत्रकार- टेंशन नहीं लेंगे!
यह किसी नाटक या फिल्म का डायलॉग नहीं बल्कि झारखंड के सरायकेला जिले के डिप्टी कमिश्नर यानी जिलाधिकारी और पत्रकार के बीच हुई बातचीत है. इस ऑडियो के कारण बिहार-झारखंड सहारा टीवी के 52 वर्षीय पत्रकार बसंत साहू को जेल जाना पड़ा. पांच दिन जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत मिली.
एक तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अपने प्रदेश के मजदूरों को देश के अलग हिस्सों से वापस लाने के लिए तारीफ हो रही है. वहीं दूसरी तरफ प्रशासन में मौजूद अधिकारी कोरोना को सवाल पूछने पर पत्रकारको पहले शांति से सो जाने के लिए कहते हैं. जब पत्रकार उस ऑडियो को जिला संपर्क अधिकारी द्वारा बनाए जिले के पत्रकारों के वाट्सऐप ग्रुप में साझा कर देता है तो उसे उस ग्रुप से निकाल दिया जाता और उस पर संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज कर जेल भेज दिया जाता है.
राजधानी रांची से लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित स्थित सरायकेला जिले में 19 मई को सूचना आई कि महाराष्ट्र के थाणे से आए 20 वर्षीय युवक में कोरोना की पुष्टि हुई है. इस खबर की पुष्टि के लिए पत्रकार बसंत साहू ने जिले के डीसी ए दोड्डे को फोन किया. लगभग 16 सेकेंड की बातचीत में उन्होंने शांति से सो जाने को कहा और फोन काट दिया.
न्यूजलॉन्ड्री से बातचीत करते हुए बसंत साहू एफआईआर और अपनी गिरफ्तारी को लेकर बताते हैं, ‘‘यह सब हुआ 19 मई की शाम को. सरायकेला जिले के इचागढ़ प्रखंड के एक गांव में कुछ मजदूर लोग महाराष्ट्र के थाणे से आए थे. उसमें से एक 19 मई को कोरोना पॉजिटिव निकला था. प्रशासन ने उसे पंचायत के क्वारनटीन सेंटर से लेकर उसे टाटा मेन अस्पताल (टीएमएस) जमेशदपुर भेज दिया. उसके बाद लगभग साढ़े सात बजे न्यूज़-18 में यह ख़बर चली. इस खबर को कन्फर्म करने के लिए मैंने डीसी साहब (ए दोड्डे) को फोन लगाया. उन्होंने जवाब दिया कि नहीं नहीं टेंशन मत लो, तुम सो जाओ.’’
बसंत साहू आगे कहते हैं, ‘‘यहां जिला संपर्क कार्यालय द्वारा पत्रकारों का एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया गया है. उसमें जिले के डीसी समेत कई आला अधिकारी और मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं. उस ग्रुप में तमाम पत्रकार लोग इचागढ़ में कोरोना वायरस के मामले को लेकर सवाल पूछ रहे थे तो मैंने उस ऑडियो को ग्रुप में शेयर करते हुए बताया कि डीसी साहब का कहना है कि आप आराम से सोइए. कोरोना नहीं है. जब तक वे कोरोना की पुष्टि नहीं करते हैं, तब तक हम लोग खबर नहीं बनाते हैं. सुबह का इंतजार करेंगे. यहीं सबकुछ अपने सहारा ऑफिस को भी भेज दिया.’’
बसंत साहू बताते हैं, ‘‘दूसरे दिन डीसी साहब ने सुबह 11 बजे के करीब में फोन खोला और वाट्सऐप पर यह सब देखा तो हमको लिखा कि यह क्या है. मामला पॉजिटिव आया है. इतना लिखने के बाद मुझे ग्रुप से निकाल दिया. उस ग्रुप के एडमिन डीसी और जिला सूचना अधिकारी हैं. ग्रुप से हटाए जाने के कुछ समय बाद जिला संपर्क अधिकारी सुनील उपाध्याय का फोन आया कि मैं डीसी साहब से मिल लूं नहीं तो मामला दर्ज होगा. मैंने पूछा की मेरी गलती क्या है, जो हमपर केस होगा. आप जो चाहें करें. मैंने कोरोना के मामले को कन्फर्म करने लिए डीसी को फोन किया, उन्होंने सीधे ना बोला. कोरोना का मामला छुपाना डीसी की गलती है या उसको लेकर सवाल करना मेरी गलती है? हम मुलाकात करने नहीं गए. 23 तारीख को डीसी ने स्थानीय बीडीओ को फोन करके पूरी बात बताई और मेरे पर मामला दर्ज करा दिया गया.’’
एफआईआर होते ही गिरफ्तारी
23 मई की सुबह-सुबह बसंत साहू पर चांडिल ब्लॉक के प्रखंड विकास पदाधिकारी प्रवेश कुमार साह ने एफआईआर दर्ज करा दी.
न्यूजलॉन्ड्री के पास यह एफआईआर है. जिसमें प्रवेश कुमार साह ने लिखा है कि उपायुक्त सरायकेला के द्वारा फोन पर दिए गए आदेश के आलोक में श्री बसंत साहू के द्वारा उपायुक्त महोदय के चांडिल क्वारनटीन क्षेत्र के निरिक्षण के दौरान उनकी अनुमति के बिना हर बात को टेप कर वायरल किया गया. जो विधि विरुद्ध है. इससे सरकारी काम में बाधा उत्पन्न होता है. साथ ही कोविड-19 जो आपदा है, के निरिक्षण को भी प्रभावित करने का प्रयास है.
बसंत साहू पर भारतीय दंड संहिता की धारा 353/ 188/505 (B) के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस एफआईआर के अनुसार साहू ने डीसी को क्वारनटीन क्षेत्र के निरिक्षण के दौरान रोका. पर क्या यह हक़ीकत है. क्या उस दिन का कोई वीडियो या आडियो वायरल हुआ है. इसका जवाब बसंत साहू ना में देते हैं. वे कहते हैं कि मैं किसी भी क्वारनटीन सेंटर में डीसी साहब से मिला ही नहीं तो वायरल क्या करूंगा. उनके पास अगर कोई सबूत है तो उसे बतायें. यह साफ़-साफ़ झूठ बात है.
23 मई की सुबह बीडीओ प्रवेश कुमार साह ने पत्रकार बसंत साहू पर मामला दर्ज कराया और उसी दिन सुबह-सुबह उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
बसंत बताते हैं, ‘‘सुबह-सुबह 10:30 बजे के करीब मैं अपने ऑफिस में बैठा हुआ था. ऑफिस से मुझे बाहर बुलाया और गाड़ी में बैठाकर लेकर चल दिए. मेरे परिवार को कोई सूचना नहीं दी गई. सब परेशान थे. दरअसल कुछ दिन पहले हमने कोयला को लेकर एक रिपोर्ट किया जिससे थानाध्यक्ष हमसे खार खाए बैठे थे. मौका मिलते ही गिरफ्तार कर लिया. वे थाने लेकर आए और बताया कि तुम वीडियो वायरल किए हो. मैंने उन्हें फोन पकडाया और बोला कि देखकर बताइए कि हमने कुछ वायरल किया है. इसपर उन्होंने कहा कि ज्यादा होशियार मत बनो. मेरा फोन ले लिया. पांच दिन जेल में रहने के बाद 28 मई को मैं जेल से रिहा हुआ.’’
बसंत साहू के वकील विश्वनाथ राथ न्यूजलॉन्ड्री से बताते हैं, ‘‘एफआईआर में आईपीसी की धारा 353 और 505 ( B) लिख तो दिया गया था, लेकिन इसको लेकर कुछ लिखा नहीं गया था और ना ही सबूत था. धारा 353 का मतलब होता है किसी सरकारी अधिकारी के काम को प्रभावित करने के लिए बल का प्रयोग करना. ना ही एफआईआर में ऐसा कुछ लिखा था और ना ही उनके पास इसका सबूत था. वहीं धारा 505 (B) यानी दो समुदायों के बीच नफरत फैलाना है. अगर कोई पत्रकार कोरोना के मामले की जानकारी मांग रहा है तो इससे दो समुदाय में नफरत का मामला कैसे आता है. इस तरह से उनका केस कमजोर था तो आसानी से जमानत मिल गई. प्रशासन ने गलत तरीके से गिरफ्तारी की थी.’’
इस मामले पर अधिकारी चुप
बसंत साहू अब जेल से रिहा हो चुके हैं. बताया जा रहा है कि खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मामले में हस्तक्षेप किया. इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी इस मामले में सरकार पर पत्रकार को परेशान करने का आरोप लगाया था.
नेताओं की नाराजगी के बाद अधिकारी चुप्पी साध लिए हैं.
सरायकेला के जिला सूचना अधिकारी सुनील उपाध्याय से हमने संपर्क किया तो उन्होंने इस पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए कहा कि इस मामले में आप बीडीओ से बात कीजिए वहीं जानकारी दे सकते हैं. मैं इस मामले में कुछ नहीं जानता हूं.
ये वही सूचना अधिकारी थे जिन्होंने बसंत साहू को फोन करके डीसी से मिलने के लिए कहा था.
इस मामले में जानकारी के लिए हमने एफआईआर दर्ज कराने वाले बीडीओ प्रवेश कुमार साह को जब फोन किया तो उन्होंने भी जवाब देने से इनकार करते हुए सिर्फ इतना कहा कि वो डीसी साहब के आदेश का पालन कर रहे थे.
इस मामले में डीसी ए दोड्डे का पक्ष जानने के लिए हमने उन्हें कई बार फोन लगाया लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई.
ये कोई पहला मामला नहीं
झारखंड में किसी पत्रकार के साथ यह पहला मामला नहीं था. आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जहां पत्रकार और प्रशासन आमने सामने होते हैं. पत्रकारों पर मामले दर्ज होते रहते हैं.
बसंत साहू के मामले पर रांची प्रेस क्लब के सचिव अखिलेश कुमार सिंह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘बेशक इस मामले में प्रशासन ने जल्दबाजी की और बसंत साहू को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर जो धारा लगाई गई है उसमें दोषी साबित होने पर सात साल से कम की सज़ा होती. ऐसे मामलों में नियम है कि जिसके खिलाफ एफआईआर हो उसे नोटिस भेजकर उसका पक्ष लिया जाए. दो बार नोटिस भेजने के बाद जवाब नहीं आता तो उसे गिरफ्तार किया जाए, लेकिन यहां एफआईआर दर्ज होने के साथ ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इस मामले में रांची प्रेस क्लब और बाकी पत्रकारों के यूनियन ने नाराजगी दर्ज कराई तो उनपर से धारा 353 हटा लिया गया. जिसके बाद उन्हें जमानत मिल गई.’’
प्रशासन और मीडिया के बीच आए दिन बन रहे टकराव की स्थिति से निपटने के लिए राज्य के पुलिस महानिदेशक एमवी राव बीते शनिवार को रांची स्थित प्रेस क्लब पहुंचे. वहां उन्होंने ने कई लोगों से बात की. राज्य के अलग-अलग हिस्सों से आए पत्रकारों के सवालों का जवाब भी दिया. मीडिया रिपोर्टर्स के अनुसार राव ने कहा, ‘‘पुलिस और पत्रकार जनता के प्रति जवाबदेह हैं. दोनों को अपना काम ईमानदारी और निष्पक्ष होकर करना चाहिए.’’
अखिलेश कुमार सिंह प्रेस क्लब में डीजीपी के आने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘पुलिस और पत्रकारों के बीच संवादहीनता की स्थिति में जो भ्रम की स्थिति बन जाती है उसको लेकर डीजीपी चाहते थे कि पत्रकारों से एक सकारात्मक बातचीत हो. उनका मकसद था कि आगे कोई ऐसी स्थिति ना बने. डीजीपी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि पत्रकारिता करने के कारण किसी पत्रकार को जेल नहीं भेजा जाएगा और ऐसी कोई स्थिति आने भी नहीं दी जाएगी.’’
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