Newslaundry Hindi
सुप्रिया शर्मा के खिलाफ एफआईआर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देगा स्क्रॉल
“भारत में स्वतंत्र न्यूज पोर्टल स्क्रॉल डॉट इन की एग्ज़िक्युटिव एडिटर सुप्रिया शर्मा के खिलाफ कोरोनो वायरस के दौर में लॉकडाउन के प्रभावों पर एक रिपोर्ट करने के लिए एफआईआर दर्ज किया गया है. रिपोर्टर को डराने के इस कुत्सित प्रयास की रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कड़े शब्दों में निंदा करता है.”
पेरिस स्थित प्रेस की दशा-दिशा पर नज़र रखने वाली अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी और गैर-सरकारी संस्था, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने 18 जून को अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर स्क्रॉल की एग्जिक्यूटिव एडिटर सुप्रिया शर्मा के खिलाफ उत्तर प्रदेश के बनारस में एफआईआर दर्ज कराने पर आपत्ति और चिंता जताई. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स दुनिया भर में प्रेस की आजादी के अधिकार की रक्षा के लिए काम करता है. और इस आधार पर हर साल विश्व प्रेस की रैंकिग भी जारी करता है.
इसके अलावा प्रेस के अधिकारों के लिए काम करने वाली एक अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्था सीपीजे यानी कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट ने भी एक बयान जारी करते हुए लिखा, “उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को पत्रकार सुप्रिया शर्मा पर की जा रही आपराधिक जांच को तुरंत बंद कर देना चाहिए. साथ ही अपनी पत्रकारीय जिम्मेदारी का निर्वाहन कर रहे प्रेस के सदस्यों एवं पत्रकारों को कानूनी रूप से परेशान करना बंद करना चाहिए.”
दरअसल स्क्रॉल की एग्जिक्यूटिव एडिटर सुप्रिया शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में लॉकडाउन के प्रभावों पर आधारित “प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव में लॉकडाउन के दौरान भूखे रह रहे लोग” शीर्षक से एक रिपोर्ट की थी. जो 8 जून को स्क्रॉल पर प्रकाशित हुई थी.
अपनी रिपोर्ट में सुप्रिया ने बनारस के डोमरी गांव की माला नामक महिला जो कि कथित रूप से घरेलू महिला हैं, सहित गांव के कई लोगों के बयान के आधार पर अपनी रिपोर्ट लिखी थी. ये वो लोग थे जो लॉकडाउन के दौरान परेशानी से दो-चार थे. सुप्रिया ने माला का यह इंटरव्यू 5 जून को किया था. गौरतलब है कि डोमरी गांव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया है.
इस मामले ने अचानक तब बड़ा मोड़ ले लिया जब रिपोर्ट छपने के 5 दिन बाद 13 जून को माला देवी ने रामनगर पुलिस थाने में सुप्रिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी. एफआईआर में माला देवी ने आरोप लगाया कि सुप्रिया शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में उनके बयान को गलत तरीके से प्रकाशित कर कई झूठे दावे किए हैं.
माला ने दावा किया कि वह घरेलू कर्मचारी नहीं हैं और उनकी टिप्पणियों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है. उसने दावा किया कि वह वाराणसी नगर निगम में ठेके पर सफाईकर्मी है और लॉकडाउन में उसने किसी भी संकट का सामना नहीं किया. उन्हें भोजन भी उपलब्ध था. माला ने कहा, "शर्मा ने मुझसे लॉकडाउन के बारे में पूछा, मैंने उन्हें बताया कि न तो मुझे और न ही मेरे परिवार में किसी को कोई समस्या है."
एफआईआर में माला कहती हैं, "यह कहकर कि मैं और बच्चे भूखे हैं, सुप्रिया शर्मा ने मेरी गरीबी और मेरी जाति का मजाक उड़ाया है. उन्होंने समाज में मेरी भावनाओं और मेरी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई है." माला ने सुप्रिया शर्मा और स्क्रॉल के एडिटर इन चीफ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी. और ऐसा करने पर भविष्य में प्रशासन की आभारी होने की बात भी एफआईआर में है.
इस पर कार्यवाही करते हुए रामनगर पुलिस ने सुप्रिया और स्क्रॉल के एडिटर इन चीफ नरेश फर्नांडिज़ के खिलाफ अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के विभिन्न प्रावधानों के साथ आईपीसी की धारा 501 (ऐसे मामलों का प्रकाशन या उत्कीर्णन, जो मानहानिकारक हों) और धारा 269 (लापरवाही, जिससे खतरनाक बीमारी के संक्रमण को फैलाने की आशंका हो) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.
इस एफआईआर को स्क्रॉल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है. इस मामले में सुप्रिया की वकील वृंदा ग्रोवर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “रिपोर्ट में जो भी बात कही गई है, उसके सारे साक्ष्य और रिकॉर्डिंग हमारे पास हैं. हम इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देंगे. इस पूरे मामले में कहीं भी एससी-एसटी एक्ट का उल्लंघन नहीं हुआ है. ये पूरी तरह से आधारहीन है.”
वो आगे कहती हैं, “ये पूरा मामला लॉकडाउन के कारण गरीब लोगों को हुई परेशानी को सामने लाने का था. चूंकि यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में उनके द्वारा गोद लिए गए आदर्श गांव से जुड़ी थी इसलिए एफआईआर की गई है. यह स्वतंत्र मीडिया की आवाज़ को दबाने की कोशिश है.”
इस बाबत स्क्रॉल ने भी एक बयान जारी कर अपनी रिपोर्ट का समर्थन किया है. “स्क्रॉल ने 5 जून को माला देवी का इंटरव्यू किया था और उसका बयान, जैसा माला ने कहा था, बिलकुल वैसा ही छापा है. स्क्रॉल अपने लेख के साथ खड़ा है, जिसे प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र से रिपोर्ट किया गया है. यह एफआईआर कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान कमजोर समूहों की स्थितियों पर रिपोर्टिंग करने की कीमत पर स्वतंत्र पत्रकारिता को डराने और चुप कराने का एक प्रयास है.”
देश के संपादकों की शीर्ष संस्था ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने भी इस मामले पर गहरी चिंता जताते हुए एक बयान जारी किया है. गिल्ड की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “स्क्रॉल की एग्जिक्यूटिव एडीटर सुप्रिया शर्मा और चीफ एडीटर के खिलाफ रामनगर थाने में दर्ज की गई एफआईआर से गिल्ड में गहरी चिंता है. गिल्ड का मानना है कि आईपीसी और एससी-एसटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं का इस्तेमाल गलत तरीके से किया गया है, जो निश्चित ही मीडिया की स्वतंत्रता को गंभीरता से कम करेगा. गिल्ड सभी कानूनों का सम्मान करता है और माला देवी के बचाव के अधिकार से भी खुद को रोकता है. लेकिन ऐसे कानूनों के अनुचित दुरुपयोग को भी निंदनीय मानता है. यह और भी चिंताजनक बात है कि अधिकारियों द्वारा कानूनों के इस तरह के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है जो भारतीय लोकतंत्र के एक प्रमुख स्तंभ को नष्ट करने जैसा है.”
इसके अलावा एनडब्लयूएमआई यानि ‘नेटवर्क ऑफ वूमेन इन मीडिया, इंडिया’ जो मीडिया में महिलाओं का एक सशक्त मंच है, ने भी सुप्रिया के खिलाफ हुई इस एफआईआर की कड़ी निंदा की है. इसने कहा है, एनडब्लयूएमआई सीनियर पत्रकार सुप्रिया के साथ खड़ा है. साथ ही संस्था ने एफआईआर वापस लेने और सुप्रिया को गिरफ्तारी से रोकने की अपील भी की है.
सुप्रिया ने इस मामले में अपनी तरफ से कुछ भी बोलने से फिलहाल मना किया है. लेकिन तमाम अन्य लोगों ने सुप्रिया के पक्ष में आवाज़ उठाई है.
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने एक ख़बर को रीट्वीट करते हुए सुप्रिया पर हुई एफआईआर की कड़ी निंदा की है. प्रियंका गांधी ने ट्विटर पर लिखा, “यूपी सरकार एफआईआर करके सच्चाई पर पर्दा नहीं डाल सकती. ज़मीन पर इस आपदा के दौरान घोर अव्यवस्थाएं हैं. सच्चाई दिखाने से इनमें सुधार संभव है लेकिन यूपी सरकार पत्रकारों पर, पूर्व अधिकारियों पर, विपक्ष पर सच्चाई सामने लाने के लिए एफआईआर करवा दे रही है. शर्मनाक”
न्यूयॉर्क में एशिया क्षेत्र के लिये कार्यरत सीपीजे की वरिष्ठ शोधकर्ता, आलिया इफ्तिखार ने कहा, “प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में अपने काम को ईमानदारी से निर्वाह करने के लिए एक पत्रकार के ऊपर जांच शुरू करना स्पष्ट रूप से डराने की रणनीति है और देश भर के पत्रकारों के लिए यह मामला डराने वाला है.”
Also Read
-
Two-thirds of Delhi does not have reliable air quality data
-
FIR against Gandhis: Decoding the National Herald case
-
TV Newsance 323 | Distraction Files: India is choking. But TV news is distracting
-
‘Talks without him not acceptable to Ladakh’: Sonam Wangchuk’s wife on reality of normalcy in Ladakh
-
Public money skewing the news ecosystem? Delhi’s English dailies bag lion’s share of govt print ads