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रामजन्मभूमि दान के नाम पर शिक्षकों का वेतन काटा
5 सितम्बर पूरे देश में ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. भारत के पहले उपराष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षकों के सम्मान में मनाया जाता है.
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में स्थित तिलकधारी (टीडी) महाविद्यालय जौनपुर में शिक्षक दिवस के दिन यहां के प्रोफेसरों और अन्य कर्मचारियों को जैसा सम्मान दिया गया उससे पूरे महाविद्यालय में हड़कंप मच गया है. यह ऐसी धोखाधड़ी है जिसकी कल्पना खुद इन प्रोफेसरों ने भी कभी नहीं की थी. सभी इस घटना से हैरान हैं.
5 सितम्बर को पूर्वांचल विश्वविद्यालय से संबद्ध टीडी कॉलेज जौनपुर के लगभग 300 टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया स्थित खाते में जब वेतन पहुंचा तो सबके खाते से बिना पूछे 2500 रुपए काट लिए गए थे. कहा गया कि यह पैसा “रामजन्मभूमि दान” में ट्रांसफर किया गया है. इस कारनामे का आरोप महाविद्यालय के शिक्षकों ने प्रबंधन और बैंक मैनेजर नितिन कुमार पर लगाया है.
जैसे ही लोगों को अपने खाते से पैसा काटे जाने की जानकारी मिली, उन्होंने बैंक मैनेजर से इस बाबत जानकारी मांगी. बैंक मैनेजर ने बताया कि उन्हें महाविद्यालय प्रबंधन से इस बारे में अनुमति पत्र मिला था. कुछ प्रोफेसरों का आरोप है कि बैंक मैनेजर ने आगे भी पैसे काटने की धमकी दी है. आरोप है कि इससे पहले भी महाविद्यालय प्रबंधन बिल्डिंग बनवाने के नाम पर 5000 रुपए ले चुका है. लेकिन उस मामले में भी आज तक कुछ नहीं हुआ.
नाम न छापने और अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कॉलेज के कुछ प्रोफेसरों ने हमसे बात की और सारा मामला विस्तार से बताया.
एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने कहा, “5 सितम्बर को हमारे बैंक खाते से बिना हमारी अनुमति लिए बैंक मैनेजर ने 2500 रुपए रामजन्मभूमि के खाते में डाल दिया. आमतौर पर किसी और खाते में अगर आप पैसा ट्रांसफर करते हैं तो एकाउंट नंबर पता चल जाता है लेकिन इसमें कुछ नहीं आ रहा. केवल “रामजन्म भूमि दान” लिखा हुआ आ रहा है. हमने जब इस बारे में बैंक मैनेजर से पूछा तो उसने बताया कि आपके महाविद्यालय के क्लर्क ने हमें सारे अकाउंट नंबर दिए थे. हमने उनसे शिकायत की कि अगर कोई भी उन्हें इस तरह से हमारे अकाउंट नंबर लाकर दे देगा तो आप पैसे काट लेंगे, हमसे बिना पूछे?”
प्रोफेसर आगे बताते हैं, “ये तो बैंक का रूल है कि आपकी सहमति के बिना आपका पैसा कोई भी नहीं निकाल सकता. लेकिन इन्होंने लगभग 300-400 टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ का पैसा काट लिया. तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों का 1500 कटा है. हो सकता है कि कॉलेज प्रबंधन ने अनुमति दी हो. लेकिन अगर उन्होंने अनुमति दी भी है तो बैंक मैनेजर के पास ये अधिकार नहीं है कि वह हमारी बिना अनुमति के पैसे काटे. ऑनलाइन शिकायत तो इसकी हो गई है और आज हम बैंक मैनेजर से मिलने जा रहे हैं. अगर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो हम एफआईआर दर्ज कराएंगे.”
“आप बताओ! अगर ऐसे खाते से पैसे निकलेंगे तो हो गया काम. अगर इन्हें दान ही लेना था तो हमें बताते. हम 2500 की जगह 5000 दे देते. मगर पूछते तो! क्योंकि दान तो स्वैच्छिक होता है. ऐसे तो आज 2500 निकाले हैं कल ढाई लाख भी निकल सकते हैं,” प्रोफेसर ने कहा.
इसके बाद सोमवार, 7 सितम्बर को टीडी कॉलेज जौनपुर के प्रोफेसर और अन्य स्टाफ बड़ी संख्या में बैंक मैनेजर नितिन कुमार से मिलने पहुंचे. तो बैंक मैनेजर ने यही कहा कि कॉलेज की तरफ से प्रस्ताव आया था. अंत में मैनेजर ने शिक्षकों को आश्वासन दिया कि शाम तक आपका पैसा वापस कर दिया जाएगा.
एक अन्य प्रोफेसर ने भी अपनी पहचान न उजागर करने की अपील करते हुए बताया, “हमारी सैलरी, क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी हमारे खाते में डालता है. उसको छोड़कर किसी को कोई अधिकार नहीं है कि हमसे बिना पूछे प्रस्ताव बनाकर हमारे पैसे काट ले. लेकिन हमारे अकाउंटेंट और टीडी कॉलेज प्रबंधक ने बैंक मैनेजर से कहा और मैनेजर ने हमसे बिना पूछे रामजन्म भूमि दान में पैसा ट्रांसफर कर दिया. हमें तो पता तब चला जब मैसेज आया.”
“यह सरासर गलत है. दान तो स्वेचछा से दिया जाता है. इस तरह ताला तोड़ कर घर में से दान लेना, ये गलत है. इसे हम बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करेंगे. अगर कुछ नहीं होता है तो एफआईआर दर्ज कराएंगे,” प्रोफेसर ने कहा.
प्रोफेसर के इस आरोप के बारे में हमने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मैनेजर नितिन कुमार से बात की.
नितिन कुमार ने हमें बताया, “कॉलेज से हमें इस संबंध में एक प्रस्ताव और पत्र मिला था.” उसमें सब स्टाफ के हस्ताक्षर हैं! इस पर नितिन ने कहा कि वह हमने कॉलेज से मांगी है वह भी आपको मिल जाएगी.
तो बिना लोगों के हस्ताक्षर की लिस्ट के आपने पैसे कैसे काट दिए, इस सवाल पर नितिन ने सवालिया अंदाज में कहा, “कॉलेज का रिजोल्यूशन तो आया था. कॉलेज प्रबंधन अगर कहता है तो उसमें क्या दिक्कत है.”
“पैसा गया है रामजन्मभूमि वाले अकाउंट में. कोई फ्रॉड तो हुआ नहीं है? इसके अलावा प्रबंधन पूरा सपोर्ट कर रहा है कि अगर कोई इसका विरोध कर रहा है तो उसका रिफंड कर दो. तो इसमें प्रॉब्लम कहां है, मैं ये नहीं समझ पा रहा हूं,” नितिन ने सफाई देते हुए कहा.
अगर गलत नहीं हुआ तो रिफंड क्यों कर रहे हैं, और क्या बिना किसी की अनुमति के उसके अकाउंट से पैसा निकाला जा सकता है. इन सवालों का मैनेजर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए. इसके अलावा हमने मैनेजर से कॉलेज का वह रिजोल्यूशन मांगा जिसके आधार पर उन्होंने पैसे काटे थे, लेकिन 2 दिन बाद भी हमारे स्टोरी जाने तक मैनेजर ने वह रिजोल्यूशन हमें नहीं भेजा था.
इस मामले की और ज्यादा जानकारी के लिए हमने एसबीआई के रीजनल मैनेजर प्रशांत सिंह से बात की.
प्रशांत सिंह ने हमें बताया, “उसमें एक इनवेस्टिगेटिंग हम करा रहे हैं. कस्टमर का इसमें कोई भी नुकसान नहीं होगा, मेरे पास शाम तक रिपोर्ट आ जाएगी. इनवेस्टिगेशन ऑफिसर आज वहां गए हैं. वो वहां सबके बयान ले रहे हैं और जब रिपोर्ट आ जाएगी तभी हम और ज्यादा बता सकते हैं.”
अगर इसमें कोई दोषी पाया जाता है तो इसके जवाब में प्रशांत कहते हैं, “स्वाभाविक तौर पर उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा. बैंक किसी को छोड़ता नहीं. जहां भी नेक्सस पाए जाएंगे, बैंक उसके खिलाफ ऐक्शन लेता है.”
महाविद्यालय प्रबंधन पर भी इस मामले में काफी आरोप लगे हैं. इस कारण महाविद्यालय का पक्ष जानने के लिए हमने टीडी महाविद्यालय जौनपुर की प्रिंसिपल डॉ. सरोज सिंह से बात की.
प्रोफेसरों के साथ हुए फ्रॉड के सवाल पर डॉ. सरोज कहती हैं, “कोई फ्रॉड नहीं हुआ है, ऐसा था कि इस पर प्रबंधन समिति में प्रस्ताव पास हुआ था, इसके बाद शिक्षक संघ से प्रस्ताव पास करवा कर कटौती हुई है.”
क्या प्रोफेसरों से इसकी परमीशन ली गई? इस पर डॉ. सरोज गोलमाल जवाब देते हुए कहती हैं, “ऐसा है कि जो शिक्षक यहां आवश्यक सेवाओं में लगे हुए हैं वो आ रहे हैं, जिनकी जरूरत नहीं है वो नहीं आ रहे हैं. और पचासों शिक्षक बनारस से अप-डाउन करते हैं, तो स्वाभाविक है कि सबसे सम्पर्क हो पाना संभव नहीं हो पाया.”
लेकिन किसी की मर्जी के बिना उसके अकाउंट से पैसा नहीं निकाला जा सकता, इस सवाल पर डॉ. सरोज कहती हैं, “ये जो अभी कोविड वाला प्रकरण था, उसमें भी पूरे प्रदेश में कटौती हुई थी.”
लेकिन कोविड और राम जन्मभूमि दान तो बिल्कुल अलग प्रकरण हैं. इस पर डॉ. सरोज कहती हैं, “एक मिनट सुन लीजिए. जब शिक्षक संघ मीटिंग करता है तो जरूरी नहीं कि 100 परसेंट शिक्षक उपस्थित रहें. कभी-कभी तो 15-20 शिक्षक रहते हैं और आवश्यक कार्य हो तो निर्णय ले लिया जाता है.”
लेकिन आप ऑफिशियल निर्णय ही तो ले सकते हैं, किसी की पर्सनल लाइफ या अकाउंट से पैसे निकालने का निर्णय बिना पूछे कैसे लिया जा सकता है? इस पर डॉ. सरोज बेतुका जवाब देते हुए कहती हैं, “अब मैं इनको क्या बताऊं. इनकी ड्यूटी लगी है तो इसके लिए कहेंगे कि कोरोना है, हम ड्यूटी नहीं करेंगे.”
तो उसके लिए आप इनके खिलाफ ऐक्शन ले सकती हैं ना कि उनके खाते से पैसे काटे जाएं.“नहीं ये तो निर्णय सामूहिक रूप से शिक्षक संघ ने ही लिया है,” इस पर सरोज ने कहा.
क्या आपने कोई नोटिस निकाला कि रामजन्मभूमि के लिए इतने पैसे काटे जाएंगे. और शिक्षक इससे सहमत थे? इस पर सरोज ने आधे- अधूरे मन से ‘हां’ कहा. हमने पूछा कि फिर अब क्यों वे विरोध कर रहे हैं? इस पर सरोज कहती हैं, “हर संस्थान में 10-20 लोग प्रबंधन के खिलाफ रहते ही हैं. और उनसे कह दिया गया है कि अगर आपको नहीं देना तो आपका पैसा वापस आ जाएगा.”
कई सारे सवालों का उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं था. घुमा-फिराकर वे एक ही जवाब दे रही थी.
जब हमने पूछा कि ऐसे तो आगे भी फिर पैसे कट सकते हैं, जैसा कि प्रोफेसर कह रहे हैं. इस पर सरोज ने कहा, “देखिए ये हमारा बहुत पुराना और गरिमामय कॉलेज है. प्रदेश में ये नंबर एक महाविद्यालय भी रह चुका है. ये सब 4-5 साल पुराने नए नियुक्त शिक्षक हैं जो कॉलेज की परंपरा से अवगत नहीं हैं. विशालतम कॉलेज की परंपरा है. बेमतलब वे भयभीत हैं और ये भी हो सकता है कि किसी के बहकावे में आकर ये सब कर रहे हों या श्रेय लेना चाह रहे हों कि हम विरोध कर रहे हैं.”
वे सवाल करते हुए बोलीं, “अब पांच सौ, साढ़े पांच सौ वर्षों के बाद ये निर्णय हुआ कि यहां राम मंदिर बनेगा, इससे पहले तो टेंट में रह रहे थे. कितने लोगों ने कुर्बानी दी, कितने लोगों ने शहादत दी, अगर हम 2500 रुपए दे ही देते हैं तो उसमें हमारा क्या जाता है. हम उस वक्त में हैं, जब राम मंदिर बन रहा है.”
अपनी आस्था आप किसी दूसरे पर नहीं थोप सकते. आपकी है आप 2500 या 25 लाख दो, लेकिन दूसरों को इसके लिए मजबूर नहीं कर सकते. हो सकता है आपकी है, दूसरे की ना हो. इस पर सरोज ने कहा, “हां वो तो है. समझ रहे हैं.”
सरकार की क्या कोई गाइडलाइन आई है कि सब प्रोफेसर दान दें. सरोज जवाब देती हैं, “नहीं ऐसा तो कुछ नहीं है. बाकि इस कॉलेज में 99 प्रतिशत,क्या 100 प्रतिशत हिंदु हैं तो सभी की आस्था है, बाकि कुछ की ना हो तो अलग बात है.”
लेकिन शिक्षण संस्थान तो धर्मनिरपेक्ष होने चाहिए. संविधान में भी यही है. इस पर सरोज कहती हैं, “हां संविधान तो हमारा यही कहता है कि हम धर्मनिरपेक्ष हैं. लेकिन इंसान जिस धर्म को मानता है उसमें आस्था तो होती है ना.”
प्रोफेसरों को सबसे ज्यादा आपत्ति यही है कि बिना पूछे ये कटौती कैसे हो गई. इस पर सरोज कहती हैं, “हां, चलिए अब ऐसा नहीं होगा लेकिन उन्हें ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए. हमारी कॉलेज की ऐसी कोई परंपरा नहीं है. बाकि जो नहीं कटाना चाहता वो आवेदन कर दे उसका रिफंड कर दिया जाऐगा.”
लगभग 18 मिनट तक डॉ. सरोज ऐसे ही बेतुक तर्कों के साथ ऐसे फोन पर जवाब देकर अपने आपको सही साबित करती रहीं.
हमने महाविद्यालय प्रबंधक अशोक सिंह को भी कई बार फोन किया तो उन्होंने हमारे फोन का जवाब नहीं दिया.
इसके अलावा जौनपुर डीएम दिनेश कुमार सिंह से हमने इस मामले में बात करने के लिए फोन किया तो उनके सहायक ने हमारा परिचय लेकर शाम में फोन करने को कहा. कई बार कोशिश करने के बाद भी हमारी उनसे बात नहीं हो पाई थी.
हालांकि हमारी स्टोरी पब्लिश होने से पहले एक प्रोफेसर ने हमें बताया कि आज हुई मीटिंग में महाविद्यालय प्रबंधन ने अपनी गलती मान ली है और भविष्य में ऐसी कोई गलती न करने का आश्वासन दिया है.
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