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‘लॉकडाउन में रोजगार गया, अब घर टूटने वाला है, सड़क किनारे भूखे मरेंगे हम’

सुप्रीम कोर्ट से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर अन्नानगर की झुग्गी है. तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशन के पास बने रेलवे अधिकारियों के आवास को पार करने के बाद एक बोर्ड दिखता है जिस पर लिखा है 'आपका अन्ना नगर में स्वागत है'. बोर्ड के पास ही एक छोटा सा मंदिर है जिसके पुजारी यहां के प्रधान एन तुकुस्वामी हैं. 68 वर्षीय तुकुस्वामी चेन्नई से आकर यहां बसे हैं. मंदिर के आगे प्रसाद बना रही उनकी पत्नी जयश्री 20 मिनट इंतज़ार करने के लिए कहती हैं. थोड़ी देर बाद स्वामी हमसे मिलने आते हैं. झुग्गी-झोपड़ी तोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जिक्र करते ही वो कहते हैं, ‘‘मैं कुछ बताऊं उससे पहले कुछ पढ़ लीजिए.’’

अपने एक साथी श्याम शरण से वे दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी द्वारा बांटा गया एक पर्चा मंगवाते हैं. जिस लिफाफे के अंदर यह पर्चा रखा था उसके ऊपर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हंसती हुई तस्वीर छपी है और लिखा है- ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’. इस लिफाफे के अंदर तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के एक पत्र के साथ-साथ एक फॉर्म भी है, जिसे जल्दी भरने के लिए कहा गया है.

तुकुस्वामी कहते हैं, ‘‘इस पत्र को मैंने झुग्गियों में घर-घर जाकर बांटा था ताकि लोग फॉर्म भर दें. सालों से हम बदहाल स्थिति में रहते आए हैं. सबको अपना घर मिल जाएगा इसकी उम्मीद थी, लेकिन आज क्या हो रहा है. हमारे घरों को तोड़ने की बात हो रही है. मनोज तिवारी के इस पत्र को पढ़िए. उन्होंने हमें नए साल के साथ-साथ नए घर की बधाई दी थी. नया घर तो मिला नहीं जो रहने भर का था वो भी टूटेगा.’’

इस पत्र में मनोज तिवारी कश्मीर से धारा 370 हटाने और नागरिकता संशोधन कानून का जिक्र करते हुए झुग्गी वालों को लिखते हैं, ‘‘मोदीजी ने घोषणा की है, दिल्ली में हर झुग्गी वाले का पक्का मकान. तो बस पक्के मकान में रहने की तैयारी शुरू कर दें आप लोग.’’

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले बांटा गया बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष मनोज तिवारी का पत्र

तुकुस्वामी, अन्ना नगर के बीते 20 सालों से प्रधान हैं. पास की संजय अमर कॉलोनी भी उन्हीं के क्षेत्र में आती है, लेकिन आबादी ज़्यादा होने के कारण पप्पू नाम के एक शख्स को उन्होंने संजय कॉलोनी का प्रधान नियुक्त कर दिया है. तुकुस्वामी के ससुर एसएस सुब्रमण्यम सबसे पहले इस जगह पर रहने आए थे. वे पांडिचेरी के रहने वाले थे. एसएस सुब्रमण्यम की 65 वर्षीय बेटी जयश्री बताती हैं, ‘‘उन्हें लोग अन्ना बुलाते थे. यहां आने के चार-पांच साल बाद ही झुग्गियों को लेकर हुई लड़ाई में उनकी हत्या हो गई. उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम 'अन्ना नगर' पड़ा. मेरे लिए तो इस जगह से जाना और भी मुश्किल है. यह जगह मेरे पिता के नाम पर है.’’

तुकुस्वामी भी यहां 15 साल की उम्र में आ गए थे. वे बताते हैं, ‘‘यहां जब हम आए तो बड़े-बड़े गड्ढे थे. जंगल था. सांप और दूसरे जानवर आते थे. धीरे-धीरे लोगों का आना शुरू हुआ. अब यहां 15 सौ झुग्गियां हैं जिसमें लगभग 10 हज़ार लोग रहते हैं. भारत के ज़्यादातर राज्यों के लोग यहां रहते हैं. कुछ छोटी-मोटी नौकरी करके अपना गुजारा करते हैं तो कुछ सरकारी नौकरी भी करते हैं. अगर बिना वैकल्पिक ठिकाना दिए लोगों को यहां से हटाया गया तो ज़्यादातर लोग सड़कों पर रहने को मज़बूर होंगे. किराया देकर रहने की हैसियत नहीं है यहां के लोगों की. सुप्रीम कोर्ट को ज़रूर इस आदेश पर सोचना चाहिए था.’’

स्वामी आगे बताते हैं, ‘‘यहां घर बनाने में लोगों ने अपनी सारी कमाई लगा दी है. जब बना रहे थे, तब पुलिस वालों ने या किसी ने भी नहीं रोका और अब भगा रहे है. लोग कहां जाएंगे. कोरोना और लॉकडाउन की वजह से किसी को काम भी नहीं मिल रहा है. महीनों से बेरोजगार बैठे हुए. ऐसे में जब घर टूटेगा तो भूखे मरेंगे लोग.’’

अन्ना नगर के प्रधान एन तुकुस्वामी और उनकी पत्नी जयश्री

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने रेलवे ट्रैक के किनारे किसी भी तरह के अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में रेलवे ट्रैक के आसपास फैली गंदगी को लेकर रेलवे के दिल्ली डिविजन के अडिशनल डिविजनल मैनेजर ने रिपोर्ट दी थी. जिसमें उन्होंने बताया था कि दिल्ली में 140 किलोमीटर ट्रैक के आसपास 48,000 झुग्गियों का अतिक्रमण है.

अपने रिटायरमेंट के एक दिन पहले ही जस्टिस अरुण मिश्रा ने यह फैसला सुनाया. उनकी अगुवाई वाली बेंच ने सिर्फ फैसला ही नहीं दिया बल्कि अतिक्रमण हटाने में परेशानी न आए इसको भी सुनिश्चित करते हुए अपने आदेश में साफ लिखा है कि अतिक्रमण हटाने से रोकने के लिए देश का कोई भी कोर्ट अगर आदेश करता है, तो वह आदेश प्रभावी नहीं होगा. साथ ही कहा कि अतिक्रमण हटाने में किसी भी तरह से राजनीतिक हस्तक्षेप न हो.

इस आदेश के बाद 48 हजार झुग्गियों को अगले 3 महीने में तोड़ा जाना है. कई झुग्गी-झोपड़ियों में उसे तोड़ने की तारीख बताते हुए नोटिस भी लगने लगा है. हालांकि अन्ना नगर में अभी ऐसा कोई नोटिस नहीं लगा, लेकिन लोगों को पता है कि अगले 3 महीने में उनका घर टूट जाएगा. 45 वर्षीय शिमला देवी को जब से झुग्गी हटाने की ख़बर मिली है उन्हें रात में नींद नहीं आती है.

आगे क्या होगा सोचकर नींद नहीं आती...

संजय अमर कॉलोनी की संकरी गलियों से होकर हम गुजर रहे थे तो शिमला देवी हमें कपड़े धोती दिखीं. इनका जन्म यहीं पर हुआ और शादी भी यहीं हुई. इनकी मां और पिता राजस्थान के जयपुर के रहने वाले थे. दिल्ली में वे मज़दूरी करते थे. शिमला के पति ड्राइवर थे, लेकिन साल 2013 में उनका निधन हो गया जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी इनके सिर आ गई.

दो बच्चों की मां शिमला बताती हैं, ‘‘काम तो मैं शादी के बाद से ही कर रही हूं. पहले किसी के घर पर खाना बनाती थी, लेकिन 3 साल पहले जनपथ के पास एक ऑफिस में हाउस कीपिंग का काम मिला. वहां से 8 हज़ार रुपए महीने मिलता है उसी से घर का खर्च चलता है. दो बेटे हैं, दोनों पढ़ाई छोड़कर आवारागर्दी कर रहे हैं. कमरे का किराया नहीं देना होता उसके बावजूद महीने का खर्चा ही मुश्किल से चल पाता है. आगे क्या होगा भगवान ही मालिक है.’’

शिमला कहती हैं, ‘‘जिस रोज झुग्गी हटाने की ख़बर मिली उसके बाद से रात में नींद नहीं आ रही है. आगे क्या होगा उसको सोचकर डर लगता है. कोई साथ देने वाला नहीं है. मेरा तो जन्म ही यहीं हुआ. मां-बाप ने झुग्गी बनाई थी. एकलौती संतान थी तो शादी के बाद उनके साथ ही रही. अब तो यहां सब कुछ है, लेकिन पहले यहां सुविधा नहीं थी. जैसे-तैसे कष्ट सहकर हम रहते रहे क्योंकि किराया देकर रहने की हमारी हैसियत नहीं है. सरकार और सुप्रीम कोर्ट हमें सौतेला क्यों समझ रहे हैं. हम भी इस देश के नागरिक है.’’

शिमला का जन्म इसी झुग्गी में हुआ है. उन्हें डर है कि अगर उनकी झुग्गी तोड़ी जाती है तो वो बेघर हो जाएंगी.

शिमला से हम बात कर रहे थे तभी वहां से कली देवी गुजरीं. इंदिरा गांधी स्टेडियम में सफाईकर्मी का काम करने वाली कली अपनी उम्र पचास से दो साल कम बताती हैं. उदासी और निराशा को कली के चेहरे और बातचीत में आसानी से महसूस किया जा सकता था.

कली कहती हैं, ‘‘मैं ग्वालियर की रहने वाली हूं. शादी के बाद बहू बनकर यहां आई थी. साल 1988 से इसी झुग्गी में रह रही हूं. जब मैं आई थी तब यहां बिजली नहीं थी. हम लोग लालटेन या ढिबरी जलाकर रहते थे. पति राजमिस्त्री का काम करते थे तो मैं उनके साथ हेल्पर का काम करने लगी. कुछ साल पहले मुझे इंदिरा गांधी स्टेडियम में काम मिला. यह भी प्राइवेट है. पति को जल्दी काम नहीं मिलता. इतनी कमाई से घर का खर्च ठीक से चल नहीं पाता है और वे अब घर तोड़ने की बात कर रहे हैं.’’

कली आगे कहती हैं, ‘‘मिलकर जो भी कमाए बच्चों की शादी में खर्च कर दिए. कहीं और जमीन लेने का ध्यान ही नहीं रहा. तीन साल पहले तक हम लोग झुग्गी डालकर ही रहते थे. जब बच्चों से थोड़ा वक़्त मिला तो पक्का घर बनाए. अब उसे तोड़ने वाले है. बिना घर हम कहां जाएंगे. सरकार से हमारी विनती है कि हमें छत दे. किराया देकर रहने लायक आमदनी नहीं है हमारी. मुझे दस हज़ार रुपए मिलते हैं. पति को कम ही काम मिलता है. इतना बड़ा परिवार है. आजकल पांच से दस हज़ार से कम में किराए पर घर कहां मिलेगा.’’

ग्वालियर की रहने वाली कली देवी सरकार से आवास की मांग कर रही है. उन्हें डर है कि अगर सरकार उन्हें आवास नहीं देती तो वो बेघर हो जाएंगी.

यहां हमें जो भी मिला सबकी चिंता एक ही थी. बिहार के मधुबनी जिले के राम इक़बाल राउत यहां बीते पंद्रह साल से सब्जी बेच रहे हैं. उन्होंने यहां झुग्गी नहीं बनाया है. लेकिन झुग्गी टूटने की जानकारी मिलने पर वे दुखी है.

राम इक़बाल कहते हैं, ‘‘20 साल की उम्र में मैं गांव से यहां कमाने आया था. कुछ दिन पुरानी दिल्ली में अपने जीजा के संग काम किया और एक रोज एक दोस्त के साथ अन्नानगर आ गया. यहां किराए के कमरे में सब्जी की दुकान खोल ली. तब से यहीं हूं. यहां के लोग परिवार की तरह है. सब उजड़ जाएगा तो मुझे भी जाना पड़ेगा. सोचकर दुःख तो हो ही रहा है. मैं तो कहीं और दुकान लगा लूंगा, लेकिन जिन्होंने अपनी सारी कमाई लगाकर घर बनाया है उनका क्या होगा. सरकार को उन्हें घर देना चाहिए नहीं तो लोग मर जाएंगे.’’

राम इक़बाल अन्ना नगर में बीते 15 सालों से सब्जी की दुकान लगा रहे है. झुग्गी तोड़े जाने के आदेश के बाद इनकी चिंता बढ़ गई.

राम इक़बाल की तरह ही कई लोगों का व्यापार इन झुग्गी वालों पर निर्भर है. इसमें से कुछ से हमने बात की. अमूमन सबने एक तरह की बात हमें बताई. इनका कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन ने कम तबाह किया. अब कोर्ट ने झुग्गी तोड़ने का आदेश दे दिया.

दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी पर हासिल क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने झुग्गी झोपड़ियों को हटाने का आदेश देते हुए यह भी कहा है कि किसी भी तरह की राजनीतिक हस्तक्षेप न हो, लेकिन दिल्ली की सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी, देश की सत्ता में बैठी बीजेपी और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस एक दूसरे पर निशाना साधते नज़र आ रहे हैं. वहीं झुग्गी-झोपड़ियों में लोगों को भाकपा माले के लोग जागरूक कर रहे हैं.

बीते दिनों आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता राघव चढ्डा ने कैमरे के सामने फ़िल्मी स्टाइल में झुग्गियों को तोड़ने वाला नोटिस फाड़ दिया. उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा की केंद्र सरकार लोगों की झुग्गियों पर नोटिस लगा रही है जिसमें लिखा है कि 11 सितम्बर को आपका घर तोड़ दिया जाएगा. मैं ये नोटिस फाड़ता हूं और हर झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले को कहता हूं आपका बड़ा बेटा अरविंद केजरीवाल अभी जिंदा हैं, हम आपका घर नहीं उजड़ने देंगे.’’

राघव के ट्वीट पर लिखते हुए दिल्ली विधानसभा में बीजेपी के नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी ने लिखा, ‘‘नाटक बंद कीजिए. भाजपा आ रही है इन 48,000 झुग्गीवालों को लेकर उन 52,000 फ्लैटों में बसाने के लिए जो इन्हीं झुग्गी-झोंपड़ी वालों के लिए बनाये गए हैं और जिनका आवंटन अरविन्द केजरीवाल सरकार ने वर्षों से रोक रखा है.’’

वहीं कांग्रेस नेता अजय माकन ने सुप्रीम कोर्ट में झुग्गी झोपडी में रहने वालों को हटाने से पहले पुनर्वास के इंतज़ाम के लिए आवेदन दिया है. अपने आवेदन में माकन ने कहा है कि अगर झुग्गियों के बड़े पैमाने पर तोड़ने की कार्रवाई होती है तो कोरोना काल में लाखों लोग बेघर हो जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में पुनर्वास को लेकर क्या बोला है यह जानने के लिए हमने हाईकोर्ट के वकील कमलेश कुमार मिश्रा से बात की. मिश्रा कहते हैं, ‘‘कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि न्यायसंगत तरीके से इन्हें हटाया जाए. यानी अगर कानून के मुताबिक हटाने की बात कोर्ट कह रहा है तो इसका मतलब हुआ इनके पुनर्वास का इंतज़ाम करना है.’’

जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि अतिक्रमण हटाने से रोकने के लिए देश का कोई भी कोर्ट अगर आदेश करता है, तो वह आदेश प्रभावी नहीं होगा. कोर्ट के इस फैसले पर नाराज़गी जाहिर करते हुए कमलेश कहते हैं, ‘‘जस्टिस मिश्रा ने ऐसा जजमेंट लिखा है कि मुझे नहीं लगता कि कोई भी जज उसका समर्थन करेगा. इतना ग़ैरक़ानूनी जजमेंट है ये जिसके लिए किसी और जज का यह कहना कि यह सही है मुश्किल होगा. यह पूरी तरह से गलत फैसला है.’’

मिश्रा कहते हैं, ‘‘संभावना तो है कि पुनर्वास के बाद ही झुग्गियों को तोड़ा जाएगा और अगर ऐसा नहीं होता तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा.’’

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रेलवे प्रशासन बहादुरगढ़ ने एक नोटिस जारी किया. जिसमें लिखा है कि सभी ने रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है. उसे 14 सितंबर तक खाली कर दें नहीं तो उनके विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही की जाएगी. इसके अलावा रेलवे प्रशासन का एक और नोटिस हमें मिला जिसमें लिखा है कि झुग्गियों को तुरंत खाली करा दें अन्यथा रेलवे प्रशासन उक्त आदेश के अनुपालन में 11 सितंबर को अतिक्रमण हटा देगा और उस दौरान हुई किसी भी नुकसान के लिए रेलवे जिम्मेदार नहीं होगा.

रेलवे द्वारा जारी नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने झुग्गियों को हटाने के लिए 3 महीने का समय दिया है लेकिन रेल प्रशासन काफी जल्दबाजी में दिख रहा है. इस सवाल के जवाब में पुनर्वास के लिए वजीरपुर झुग्गी झोपड़ी में भूख हड़ताल पर बैठे भाकपा माले के दिल्ली सचिव रवि राय कहते हैं, ‘‘रेलवे प्रशासन, केंद्र सरकार का ही एक अंग है. केंद्र सरकार गरीब विरोधी मानसिकता वाली है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बहाना करके इन्हें हटाना चाहती है. लोग इसे रेलवे के निजीकरण से भी जोड़कर देख रहे हैं.’’

सिर्फ बीजेपी ही ने नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी ने भी चुनाव के समय पक्के मकान का वादा किया था. विधानसभा चुनाव से पूर्व अरविन्द केजीरवाल ने 10 मुद्दों पर गारंटी दिया था जिसमें से एक, गरीब लोगों के लिए झुग्गी-झोपड़ी के पास पक्के मकान की गारंटी भी थी. लेकिन आज बीजेपी और आप आदमी पार्टी आपस में इस मामले पर लड़ रही हैं. इस पर दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल चौधरी कहते हैं, ‘‘ये मामला केंद्र और दिल्ली दोनों सरकारों की जानकरी में था. ऐसे में सरकारों की जिम्मेदारी बनती थी कि कोर्ट को पुनर्वास के लिए आश्वस्त कर दें. आए दिन केंद्र और दिल्ली सरकार के लोग एक-दूसरे की तारीफ करते रहते हैं. अगर दोनों में तालमेल इतना बेहतर है तो आज ये आरोप-प्रत्यारोप क्यों? इनके चक्कर में गरीब पिस रहा है.’’

अन्ना नगर झुग्गी में पानी भरने जाती एक महिला

चौधरी आगे कहते हैं, ‘‘जब से अरविंद केजरीवाल की सरकार बनी तब से केवल 1908 लोगों का पुनर्वास हुआ है जबकि 65 हज़ार आवास बनकर तैयार हैं. गरीबों के हित में तो कुछ किया नहीं और आज नोटिस फाड़ रहे हैं. नोटिस फाड़ना समाधान नहीं है, लोगों को फ़्लैट का पत्र देना समाधान है. लेकिन ऐसा कुछ ठोस होता नज़र नहीं आ रहा है. कांग्रेस इस मामले में अदालत के दरवाजा खटखटा चुकी है.अगर बिना पुनर्वास के झुग्गियां तोड़ी जाती है तो मैं केजरीवाल जी के घर जाकर इनके पुनर्वास की मांग करूंगा.’’

बीते सोमवार को झुग्गीवासियों को लेकर राहत की खबर आई. इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर पहुंचे कांग्रेस नेता अजय माकन ने ट्वीट कर जानकारी दी कि कोर्ट ने झुग्गी वालों को चार सप्ताह की राहत दी है. उन्होंने बताया, ‘‘हमारी याचिका पर सॉलिटर जनरल ने माना कि अगले चार हफ़्तों में 48,000 झुग्गियों के पुनर्वास संबंधी मसला सुलझाया जाएगा और तब तक कोई झुग्गी नहीं हटाई जाएगी.’’

वहीं केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अगले चार सप्ताह तक झुग्गियां नहीं हटाई जाएंगी. इस दौरान शहरी विकास मंत्रालय, दिल्‍ली सरकार और रेल मंत्रालय मिलकर इस मामले का कोई हल निकालेंगे. सरकार की तरफ से यह जानकारी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को दी है.

देर शाम जब हम लौटने लगे तो 16 साल की उम्र में पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर जिले से आकर यहां बसे 57 वर्षीय बुजुर्ग सुभाष चंद्र दास से हमारी मुलाकात हुई. उन्होंने कहा- ‘‘हमारी कोई सुनेगा भी? नेता लोग यहां चुनाव के समय आते हैं, ये देंगे, वो देंगे कहते हैं और फिर अगले चुनाव के समय ही नज़र आते हैं. गांव में हमारा कुछ था नहीं तो यहां आकर बसे. यहां से उजड़ेंगे तो कहां जाएंगे?’’