Newslaundry Hindi
विनोद दुआ से जुड़े संस्थान एचडब्ल्यू न्यूज़ नेटवर्क पर आयकर विभाग का छापा
डिजिटल मीडिया संस्थान एचडब्ल्यू न्यूज़ नेटवर्क के मुंबई स्थित में ऑफिस में आयकर विभाग (इनकम टैक्स) ने छापेमारी कर तलाशी ली है. गुरुवार से शुरू यह तलाशी शुक्रवार तक चली. इसके पीछे के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है.
भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले एचडब्ल्यू न्यूज़ के कार्यालय में गुरुवार, 10 सितंबर की सुबह ग्यारह बजे संपादकीय मीटिंग चल रही थी, उसी वक्त इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पांच अधिकारी, दो पुलिस कॉन्स्टेबल के साथ पहुंचे और छानबीन शुरू कर दी. यह छानबीन शुक्रवार, 12 सितंबर की शाम सात बजे तक चली.
एचडब्ल्यू के मैनेजिंग एडिटर सुजीत नैयर ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, ‘‘सबसे पहले उन्होंने हम सबका फोन ले लिया. वे देर रात दो बजे तक जांच कर रहे थे. क्या तलाश रहे थे हमें नहीं पता. उस दिन ऑफिस में मैं और मेरे पांच कर्मचारी थे. उन्होंने हमारे ऑफिस से बाहर आने-जाने पर रोक लगा दी. जो महिला कर्मचारी थीं उन्हें तो शाम को जाने दिया, लेकिन दूसरे फिर से बुला लिया. लेकिन पुरुष कर्मचारियों को ऑफिस में ही रोके रखा. हम सबका फोन ले लिया गया था. उस पर आए व्हाट्सऐप मैसेज को वो देख रहे थे. मुझे भी पहले दिन नहीं जाने दे रहे थे, लेकिन देर रात को 12 बजे के बाद मुझे जाने दिया. मैं हर रोज सुबह दस बजे ऑफिस जाता था और देर रात को लौटता था.’’
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तलाशी खत्म होने के बाद सुजीत नैयर ने एक वीडियो भी जारी कर इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी है.
विनोद दुआ पर राजद्रोह का मामला और एचडब्लू
एचडब्ल्यू पर छापे का संबंध संस्था से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर चल रहा राजद्रोह का मामला तो नहीं है? क्योंकि एचडब्ल्यू पर प्रसारित ‘विनोद दुआ शो’ के कंटेंट को आधार बनाकर ही हिमाचल प्रदेश के रहने वाले अजय श्याम ने दुआ पर राजद्रोह का मामला दर्ज कराया था.
छह मई को दुआ पर राजद्रोह समेत कई अन्य आरोपों में शिमला के कुमारसेन थाने में एफआईआर दर्ज कराने वाले अजय श्याम भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता है. इस मामले के खिलाफ दुआ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. जहां उनकी गिरफ्तारी पर तत्काल रोक लगा दी गई है, लेकिन यह मामला अभी लंबित है.
विनोद दुआ कहते हैं, ‘‘यह बात भरोसे से नहीं कही जा सकती, क्योंकि हिमाचल प्रदेश में मेरे खिलाफ जो एफआईआर दर्ज है उसमें एचडब्ल्यू का नाम नहीं है. उनके बारे में एक शब्द भी नहीं है. हालांकि शिकायतकर्ता पक्ष की कोशिश है कि एचडब्लू को इसमें शामिल किया जाए. लेकिन हमारा केस तो एफआईआर से ही चलेगा ना. हम दाएं-बाएं थोड़ी जाएंगे.’’
दुआ आगे बताते हैं, ‘‘मेरी जांच तीन दफा हुई है. एक बार ईमेल के जरिए हुई. दूसरी दफा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई. तीसरी बार उन्होंने सवालों की लिस्ट भेजी थी. जिसके बाद हम कोर्ट गए. इसमें उन्होंने तमाम सवाल एचडब्लू से संबंधित पूछा था. जैसा मैंने बताया आपको कि एचडब्लू का कोई जिक्र एफआईआर में भी नहीं और ना ही मेरा उससे कोई लेना देना है. मैं वहां कंट्रिब्यूटिंग एडिटर हूं, उनका कर्मचारी नहीं हूं. मैं बस उन्हें वीडियो बनाकर देता हूं, जिसका वो मुझे मेहनताना देते हैं. मेरे केस और इस छापेमारी में संबंध है इसको लेकर अनुमान ही लगा सकते हैं, क्योंकि उन्हें कुछ मिल नहीं रहा. कोर्ट में शिकायतकर्ता के वकील महेश जेठमलानी दाएं-बाएं, इधर-उधर जा रहे हैं. वे कुछ ना कुछ तो चाहते हैं. ताकि बदनाम किया जाय. जैसा की मुझे पता चला कि छापेमारी के दौरान वे लोगों के व्हाट्सप्प देख रहे थे जबकि वे तो इनकम टैक्स के अधिकारी थे.’’
फिर छापेमारी क्यों हुई?
यह छापेमारी क्यों हुई इस सवाल के जवाब में सुजीत नैयर कहते हैं, ‘‘उन्होंने ने हमें इस संबंध में कोई जानकरी नहीं दी. वे क्या करने आए थे और क्या चाह रहे थे, हमें पता नहीं चल पाया. उनके सवाल-जवाब से जो कुछ समझ आया उससे लगा कि वो कंपनी की फंडिग के बारे में जानना चाहते थे.’’
सुजीत नैयर से जब हमने पूछा की क्या विनोद दुआ पर दर्ज राजद्रोह मामले और इस छापेमारी के बीच संबंध है. तो उन्होंने कहा, ‘‘शायद नहीं. मुझे नहीं लगता है. उन्हें जो सवाल भेजे गए थे उसमें संस्थान के डायरेक्टर के बारे में पूछा गया था. उसका इस छापेमारी से शायद ही कोई लेना देना हो. शायद मैं इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि मुझे भी इसका कारण नहीं पता और न बताया गया है.’’
न्यूज़लॉन्ड्री को एक सोर्स ने बताया कि इस छापेमारी के पीछे का मकसद यह पता लगाना था कि एचडब्लू को किसी राजनीतिक दल से तो पैसे नहीं आ रहे हैं. क्योंकि एचडब्ल्यू लगातार सरकार से सवाल पूछ रहा है. सरकार और उसके अधिकारियों को ये अपने सवालों और ख़बरों से अक्सर असहज स्थिति में डाल देते हैं.
आप जो सरकार से लगातार सवाल कर रहे हैं उसके कारण ऐसा हुआ? तो वे हंसते हुए कहते हैं, ‘‘आपको नहीं लगता है. हालांकि इस छापेमारी से हम चुप नहीं होंगे. जो हम बोल रहे थे बोलते रहेंगे. इसके कारण हम बोलना कम नहीं करेंगे. हमारा जो अंदाज है वो बदल जाए ये नहीं होगा. जो हम प्रश्न कर रहे थे वो करते रहेंगे.’’
डिजिटल मीडिया पर सरकार की टेढ़ी नजर
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से मंत्रालय के अंडर सेक्रेट्री विजय कौशिक ने एक हलफनामा (एफिडेविट) दाखिल किया. जिसमें उन्होंने टीवी और प्रिंट मीडिया से पहले डिजिटल मीडिया के नियमन के लिए नियम कानून बनाने की मांग की है.
एचडब्लू पर हुई कार्रवाई के बाद यह सोच पुख्ता हुई है कि सरकार डिजिटल मीडिया पर दबाव बनाना चाहती है, क्योंकि आज के समय में डिजिटल मीडिया के ही कुछ हिस्से में सरकार की आलोचना हो रही है.
सुदर्शन टीवी चैनल के विवादित शो ‘यूपीएसी जिहाद’ के प्रसारण पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टेलीविजन मीडिया के लिए गाइडलाइंस की ज़रूरत बताया था. जिसके बाद केंद्र सरकार ने कोर्ट को एफिडेबिट देते हुए कहा कि प्रिंट और टेलीविजन से ज़्यादा ज़रूरी है कि डिजिटल मीडिया के लिए नियम बने क्यों इन दोनों के लिए पहले से गाइडलाइंस बने हुए हैं.
इससे पहले एनडीटीवी और दी क्विंट पर आयकर विभाग का छापा पड़ चुका है. द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और स्क्रॉल की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा पर उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में एफ़आईआर दर्ज हुआ है.
Also Read
-
No surprises in Tianjin show: Xi’s power trip, with Modi and Putin as props
-
In upscale Delhi neighbourhood, public walkways turn into private parking lots
-
Delhi’s iconic Cottage Emporium now has empty shelves, workers and artisans in crisis
-
Gauri Lankesh case: Govt and judicial inaction, bureaucratic delays slow down trial
-
Dainik Bhaskar joins the smear campaign against MP’s rural changemakers